when the power goes out at night during summer in Hindi Comedy stories by Rohan Beniwal books and stories PDF | जब गर्मी में रात को लाइट जाती है।

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जब गर्मी में रात को लाइट जाती है।


मई की एक उमस भरी रात थी। मोहल्ले का हर इंसान AC, कूलर और पंखे के सहारे किसी तरह ज़िंदगी काट रहा था। सबने जैसे-तैसे नींद पकड़ी ही थी कि अचानक एक “ठप” की आवाज़ आई — और बिजली चली गई। ऐसा लगा जैसे किसी ने ज़िंदगी का "pause" बटन दबा दिया हो। पहले तो लोग करवट बदलते रहे, सोचते रहे शायद ये सपने में हुआ है, लेकिन जब पीठ से चादर चिपकने लगी और पसीना नदी की तरह बहने लगा, तब सबको अहसास हुआ — हां, बिजली सच में गई है!

पहली चीख़ शर्मा aunty के घर से आई — “फिर चली गई ये हरामखोर बिजली! सोने भी नहीं देते अब!” उधर गुप्ता जी ने साजिश की बू सूंघ ली: “ये सब सरकार की नाकामी है।” मच्छर खुशी से झूम उठे — जैसे किसी को खजाने के भंडार की चाबी मिल गई हो। पूरे मोहल्ले में एकाएक हलचल मच गई। कोई छत पर भागा, कोई बाल्टी में पैर डालकर बैठ गया, और कोई फ्रिज का दरवाज़ा खोलकर उसमें घुसने की तैयारी करने लगा।

मोबाइल की बैटरी वैसे ही दिन भर की वॉट्सऐप यूनिवर्सिटी की भेंट चढ़ चुकी थी — अब टॉर्च भी बंद, Instagram भी बंद और मन की शांति भी बंद। बच्चे पसीने से लथपथ, “मम्मी, पंखा दो ना!” की रट लगाए बैठे थे, और मम्मी खुद अख़बार से हवा कर-करके अपना पर्सनल थंडरस्टॉर्म बनाने में लगी थीं।

पापा जी छत पर चले गए, उम्मीद थी कि ऊपर "cross ventilation" मिलेगी। लेकिन ऊपर पहले से ही पूरा मोहल्ला जमा था — छतें अब छत नहीं, सामूहिक गर्मी राहत शिविर बन चुकी थीं। नीचे वर्मा जी अपने पुराने रेडियो से ‘पुरानी फ़िल्मी गीत’ सुनाने लगे, ताकि लोग कम से कम मनोरंजन में लाइट की कमी भूल जाएं। 

इसी अफ़रा-तफ़री के बीच, टॉमी (गुप्ता जी का कुत्ता) भी बेचैन हो गया था। पसीने में लथपथ टॉमी ने पहले तो दरवाज़ा खरोंचा, फिर जाकर सीधे बालकनी से झांकने लगा — शायद उसे भी उम्मीद थी कि ऊपर से कोई बिजलीवाला उतर आएगा। मोहल्ले में अफ़वाह फैली कि शर्मा जी ने बिजली विभाग को चिट्ठी लिखी है। चिट्ठी क्या थी, भरी गर्मी में एक उबलते गुस्से का प्रेम पत्र था — जिसमें “सिस्टम” और “दूधवाला” तक को दोष दे दिया गया था।

गुप्ता जी ने बिजली जाने के पीछे का कारण “अंतर्राष्ट्रीय साजिश” बता दिया। उनके अनुसार, चीन ने भारत की बिजली सप्लाई में सेंध लगाई है ताकि हम सब गर्मी में पक जाएं और AC कंपनी के शेयर गिर जाएं। वर्मा जी ने ये थ्योरी तुरंत वॉट्सऐप पर फॉरवर्ड कर दी, और एक घंटे में वो मैसेज देशभर के 17 समूहों में फैल चुका था।

छोटे बच्चों ने इस पूरे घटनाक्रम को एक साहसिक रोमांच में बदल दिया था। कोई पेड़ के नीचे बैठकर भूतों की कहानी सुन रहा था, कोई टॉर्च लेकर मच्छर खोजने निकला था, और एक लड़का अपने पसीने की बूंदें गिनने की प्रतियोगिता कर रहा था।

इधर शर्मा जी के बेटे रोहन ने लैपटॉप ऑन करने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही स्क्रीन आई, बैटरी ने अपना अंतिम संदेश दिया — “Shutting down.” रोहन की चीख़ ऐसी थी जैसे world cup का फाइनल मिस हो गया हो।

छोटे चौराहे पर, “बिजली कब आएगी” को लेकर गहन चर्चा हो रही थी। कोई कह रहा था “2 घंटे में”, कोई “सुबह तक”, और एक बुजुर्ग बोले, “जब ट्रांसफार्मर का पुनर्जन्म होगा।”

इतनी गरमी में मोहल्ले की रेखा दीदी ने अपना “हर्बल फेस मास्क” लगाना बंद कर दिया था, क्योंकि चेहरे पर पसीना बहता जा रहा था और हल्दी नींबू मिलकर सब्ज़ी जैसा लुक दे रहे थे।

चार बजते-बजते, मोहल्ला शांत पड़ गया था। गर्मी की मार से सब सुस्त हो चुके थे। तभी अचानक “ठक” की आवाज़ हुई, और बिजली वापस आ गई! पहले तो किसी को भरोसा नहीं हुआ, फिर पंखे की आवाज़ सुनकर जैसे सबकी आत्मा लौट आई हो। बच्चों ने खुशी में नाचना शुरू कर दिया।

शर्मा जी ने नारा लगाया — “बिजली विभाग अमर रहे!” और फिर खुद ही बोले, “कल तो इनसे मिलने ज़रूर जाऊंगा, पूछूंगा — इतनी देर क्यों लगाई?”

पर ये तय था कि अगली गर्मी की रात भी कुछ ऐसा ही होगा। लाइट फिर जाएगी, मच्छर फिर नाचेंगे, और मोहल्ला फिर एक थियेटर में बदल जाएगा — जहाँ हर रात एक नया ड्रामा चलेगा।

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