रुशाली आज कुछ ज़्यादा ही नर्वस थी। सफ़ेद कोट उसके कंधों पर था, पर आत्मविश्वास कहीं कंधों से फिसलता जा रहा था। सामने एक दरवाज़ा —
Dr. Mayur (MD)
उसने नेमप्लेट को देखा और गहरी साँस ली।
“यह सिर्फ एक डॉक्टर नहीं… शायद मेरी कहानी का वो पन्ना है, जो अब तक कोरा था।”
ठक-ठक।
"Come in..." — अंदर से ठहराव भरी आवाज़ आई।
दरवाज़ा खोला, और उसकी नज़रें एकदम ठिठक गईं। लाइट पिंक शर्ट, हल्के मोड़े हुए बाजू, और कलाई में सादी सी ब्लैक वॉच। पर सबसे ज़्यादा असर कर रही थी उनकी मुस्कान — शांत, आत्मीय, और आत्मविश्वास से भरी आवाज़।
उसने मन ही मन सोचा —
“गुलाबी रंग तो बस लड़कियों पर ही देखा था अब तक... लेकिन इन पर तो जैसे ये रंग भी फिदा है।”
"Hi, I’m Dr. Mayur... and you must be Rushali?"
"Y-Yes sir..." — उसकी आवाज़ जैसे किसी गहरे कुएँ से निकल रही थी।
"Nice to have you on board. I’ve heard good things about your work." — उन्होंने कुर्सी पर बैठते हुए कहा।
"Thank you, sir..." — रुशाली ने सिर झुकाकर मुस्कराने की कोशिश की।
उसकी आँखें चाह रही थीं कि उनकी आँखों से टकरा जाएं, मगर हिम्मत कहीं रास्ता बदल लेती थी। दिल की धड़कनें मानो हॉस्पिटल के ECG मॉनिटर से तेज़ चल रही थीं।
"Tell me something about yourself, Rushali." — मयूर सर ने हल्के अंदाज़ में पूछा।
"जी सर... मैंने गुजरात के एक छोटे से शहर से स्कूलिंग की है। मेरे पापा अब इस दुनिया में नहीं हैं, तो घर की ज़िम्मेदारी भी मुझे ही संभालनी पड़ती है और साथ ही पढ़ाई भी कर रही हूँ। वैसे मेरा बैकग्राउंड नॉन-मेडिकल रहा है, लेकिन हेल्थ सेक्टर में काम करने की ललक मुझे यहाँ तक ले आई।"
"That’s good. Welcome to the team." — उन्होंने मुस्कराकर कहा और फिर कुछ फाइलें आगे बढ़ाईं।
"ये कुछ केस प्रोसीजर हैं, इन्हें ध्यान से पढ़ना। और हाँ, अगर कुछ समझ न आए तो मुझसे बेझिझक पूछना।"
"जी सर... अगर कभी कुछ नहीं समझा तो आपसे पूछ लूँगी।" — रुशाली ने दबे स्वर में कहा।
मयूर सर मुस्कराए —
"You’ll learn fast. Just stay observant and confident."
उनकी यह बात सीधी दिल को छू गई। रुशाली को लगा जैसे कोई उसके डर को पहचान गया हो।
"हौसलों की डोर थाम लो, डर खुद ही छूट जाएगा,
जब कोई भरोसा करे तुम पर, तो ख़ुद पे यक़ीन आ ही जाता है..."
थोड़ी देर बाद मयूर सर ने कहा, "चलिए, अब चलते हैं वार्ड राउंड पर, आपको भी साथ चलना होगा।"
रुशाली ने सिर हिलाया।
वार्ड में मयूर सर के साथ चलते हुए वो हर पल उन्हें गौर से देख रही थी — कैसे वो पेशेंट्स से बात करते हैं, कैसे धीरे से मुस्कराते हैं, और कैसे एक डॉक्टर के तौर पर नहीं बल्कि एक इंसान के तौर पर सामने वाले को ट्रीट करते हैं।
उनका व्यवहार विनम्र, शांत और आत्मीय था।
कोई घमंड नहीं, कोई तामझाम नहीं।
मयूर सर के मन में चल रहा था —
"यह लड़की शायद बहुत इंट्रोवर्ट है। काम में अच्छी है लेकिन लोगों से जल्दी नहीं जुड़ती... देखना होगा मेरे साथ कैसे तालमेल बैठता है..."
रुशाली ने गौर किया,
“एक डॉक्टर अगर दिल से इलाज करे, तो दवाइयों से ज़्यादा उसकी बातों में असर होता है।”
वार्ड राउंड के बाद लौटते वक़्त, उन्होंने हल्के लहज़े में पूछा —
"Rushali, लंच करेंगे साथ?"
रुशाली थोड़ी असहज हो गई। इतने बड़े डॉक्टर के साथ खाना?
"नहीं सर, मुझे अभी भूख नहीं है..." — उसने नज़रें झुकाकर कहा।
"मैं बाद में कुछ खा लूंगी..." — उसने धीरे से कहा।
मयूर सर मुस्कराए, उन्हें समझ आ गया था।
"It’s okay. कोई बात नहीं, फिर कभी साथ लंच करेंगे। अब तो साथ ही काम करना है, धीरे-धीरे आप खुल जाओगी..."
रुशाली को नहीं पता था कि वो ये सब सुनकर मुस्कराए या और ज़्यादा शर्माए।
पर एक बात थी — डॉ. मयूर, सिर्फ एक सीनियर नहीं थे, वो समझते भी थे।
"कुछ रिश्ते बनते नहीं, बस महसूस होते हैं,
और कुछ लोग मिलते नहीं, बस अपनी जगह छोड़ जाते हैं..."
उनके इन शब्दों में कोई औपचारिकता नहीं थी, बस एक मानवीय समझदारी थी, जो शायद ही आजकल किसी वरिष्ठ में देखने को मिले।
उस दिन का एहसास रुशाली को बहुत कुछ सिखा गया था...
"कुछ लफ़्ज़ नहीं कहे जाते, बस महसूस होते हैं...
कुछ लोग नहीं आते, वो जैसे हमारी कहानी में पहले से लिखे होते हैं।
लंच के बाद डॉ. मयूर क्लास के लिए निकल गए। हाँ, वो अब भी पढ़ रहे थे। उन्होंने रुशाली से कहा —
"आज का इतना ही था। आप भी जा सकती हो, कल मिलते हैं फिर।"
रुशाली के लिए वो दिन जैसे किसी खूबसूरत कविता की पहली लाइन था। बाहर निकलते वक्त उसकी आँखों में वो मुस्कान थी जो सिर्फ तब आती है जब कोई दिल को छू जाता है।
रात गहरा चुकी थी। हॉस्पिटल से घर लौटने के बाद रुशाली ने अपना बैग एक कोने में रखा और चुपचाप अपने कमरे में चली गई। माँ ने पूछा भी —
"थक गई क्या बेटा?"
उसने बस सिर हिलाया और मुस्कुरा दी।
पर असल में उसके दिल में बहुत कुछ चल रहा था — पहला दिन, वो पिंक शर्ट वाला डॉक्टर, उसकी आँखों की चमक और... उसका अपनापन।
रात के सन्नाटे में जब सारा शहर नींद की आगोश में था, रुशाली अपने बिस्तर पर लेटी थी, पर नींद उससे कोसों दूर थी। दीवार पर टंगी घड़ी की टिक-टिक दिल की धड़कनों से होड़ ले रही थी।
आज का दिन बहुत कुछ देकर गया था — नया माहौल, नए लोग और सबसे अहम — डॉ. मयूर सर।
बातें ज़्यादा नहीं हुईं, लेकिन जो हुईं, उसने रुशाली के दिल में कुछ ऐसा छोड़ दिया था जो शब्दों से परे था।
"दिल ने जिसे चाहा...
वो सिर्फ एक नाम नहीं था,
वो एक अधूरी दास्तान थी —
इम्तिहानों से भरी, ख़ामोशी में लिपटी,
जिसे वक्त ने लिखा था लेकिन मुकम्मल करना
रुशाली के दिल को था।
अभी तो बस पहला पन्ना पलटा है...
आगे हर लम्हा उसकी ज़िंदगी की कहानी बदलने वाला है।
क्योंकि...
कभी-कभी जिन्हें हम 'सर' कहकर पहचानते हैं,
वही हमारी रूह में घर कर जाते हैं...
और कहानी वहीं से करवट लेने लगती है...
जहाँ दिल, इश्क़ को पहचानने लगता है।"
"क्या ये सिर्फ एक प्रोफेशनल रिश्ता है या कुछ और भी दिल के साए में पनप रहा है?
अगला हिस्सा दिल की धड़कनों से जुड़ी एक नई परत खोलेगा... इंतज़ार कीजिए।"
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जारी रहेगा.......