The Triple Ring: The Curse of Fire, Lust and War in Hindi Mythological Stories by Rakesh books and stories PDF | त्रैलोक्य वलय: अग्नि, वासना और युद्ध का शाप

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त्रैलोक्य वलय: अग्नि, वासना और युद्ध का शाप


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अग्निपुरी, स्वर्गलोक की सीमाओं पर बसा एक रहस्यमय इलाका था, जहां न देव पूर्ण रूप से प्रवेश कर सकते थे, न असुर पूरी तरह से उसे छू सकते थे। वहीं छिपा था *"त्रैलोक्य वलय"*, एक ऐसा रत्न जिसमें देवत्व और दैत्यत्व दोनों की ऊर्जा समाहित थी। इसी वलय की रक्षा करती थी — *अप्सरा नंदनी*, जो नृत्य में माहिर थी, पर युद्ध में भी असाधारण थी।

उधर *दैत्यराज कालवक्र* — अंधकार का पुत्र, जो 500 वर्षों की तपस्या के बाद उस वलय को पाने निकला था। वह अप्सरा नंदनी की सुंदरता और शक्ति दोनों का भूखा था। लेकिन त्रैलोक्य वलय को छूने के लिए उसे एक देव का रक्त चाहिए था — और उसी समय स्वर्ग से पृथ्वी पर आया *युवदेव अर्णव*, अग्निदेव का पुत्र।

नंदनी और अर्णव की पहली मुलाक़ात अग्निपुरी की झील के पास हुई। अर्णव जैसे ही झील से निकला, सामने खड़ी नंदनी की भीगी देह उसकी साँसें थामने को मजबूर कर रही थी। उसकी आँखों में अप्सरा नहीं, कोई योद्धा दिख रही थी — आँखें जो कह रही थीं *"यहाँ स्वर्ग का नियम नहीं चलता, यहाँ सिर्फ़ धड़कनें बोलती हैं।"*

**उसी रात**, झील के उस पार छिपा था कालवक्र, जो दोनों को देख रहा था — और उसकी आँखों में जलन और वासना दोनों धधक रही थीं। "अगर वो देव और अप्सरा एक हो गए… तो वलय मेरी पहुँच से हमेशा के लिए दूर हो जाएगा," कालवक्र गुर्राया।

**अगले दिन**, एक भयानक आक्रमण हुआ। अग्निपुरी जल उठी। नंदनी और अर्णव ने पहली बार एक साथ युद्ध किया। नृत्य की लय और अग्नि के शस्त्रों ने ऐसा संयोग रचा कि दैत्य सेना पीछे हट गई। लेकिन कालवक्र आया नहीं था… वो इंतज़ार कर रहा था — उस रात का जब अर्णव और नंदनी एक हो जाएं…

और जब चंद्रमा अपनी पूर्णिमा पर था, नंदनी और अर्णव के बीच की ऊर्जा देवत्व और कामना के अजीब से मिश्रण में बदलने लगी। उनके पास न कोई नियम था, न कोई डर। बस एक-दूसरे की बाँहों में पिघलती हुई आत्माएँ थीं… लेकिन जैसे ही उनका मिलन पूर्ण हुआ, वलय ने चमकना शुरू किया — और उसी समय प्रकट हुआ कालवक्र…




चंद्रमा की रोशनी में अप्सरा नंदनी और देव अर्णव के शरीर एक दूसरे में समाए हुए थे। नंदनी की साँसें अर्णव की छाती पर उतरती-चढ़ती थीं, और अर्णव की उँगलियाँ उसके बालों में उलझी थीं। ये केवल देह का मिलन नहीं था — ये था *ऊर्जा का संयोग*, ऐसा संयोग जो त्रैलोक्य वलय को जागृत कर चुका था।

जैसे ही वलय ने नील प्रकाश फैलाया, ज़मीन काँपी। झील का पानी उफना और उसमें से उठी काली छाया…
**दैत्यराज कालवक्र**।

"तो यही है वह मिलन, जो मुझे रोक सकता है…" कालवक्र के शब्दों में ज़हर था।

अर्णव तुरंत उठा, उसका अग्नि-अस्त्र हाथ में प्रकट हुआ। नंदनी भी उठी, लेकिन उस आलोक के कारण उसकी शक्ति क्षीण हो रही थी। वलय की ऊर्जा ने उनका मिलन तो जागृत किया, पर साथ ही उनकी शक्ति को कुछ समय के लिए निष्क्रिय कर दिया।

"आज की रात सिर्फ़ युद्ध की नहीं, मेरे अधिकार की रात है!" कालवक्र गरजा और सीधे अर्णव पर टूट पड़ा।

**टक्कर शुरू हुई।**
कालवक्र की तलवार अंधकार से बनी थी, जिसे छूते ही जीव की चेतना छीन ली जाती। अर्णव ने अग्नि के गोले फेंके, लेकिन कालवक्र अब एक सामान्य दैत्य नहीं था — वह खुद को *महा-असुर* में बदल चुका था, एक ऐसा रूप जो उसे केवल एक बार जीवन में प्राप्त होता।

नंदनी ने वलय की ऊर्जा को छूकर एक मंत्रोच्चार किया — *"नृत्ताय युद्धाय च…"*
और उसकी देह से हजारों कमल-पंखुड़ियाँ उड़ने लगीं, जो हवा में जाकर अग्नि बन गईं। वह अब *नृत्य-योद्धा* बन चुकी थी, जिसने अपने ही सौंदर्य को शस्त्र बना लिया।

अर्णव और नंदनी ने मिलकर कालवक्र पर वार किया, लेकिन तभी…

**वलय चमका, और तीनों को निगल गया।**

तीनों एक ऐसे आयाम में पहुँच चुके थे, जहाँ समय रुक जाता है, शरीर अस्थायी हो जाता है — और केवल आत्मा की शक्ति बोलती है।

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अब युद्ध शारीरिक नहीं, *आध्यात्मिक* हो चुका था।
और त्रैलोक्य वलय तय करेगा… कौन जीवित बचेगा, और कौन शापित।

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