"घर" शब्द का जादू ही अलग होता है... नशा ही अलग होता है। घर का मतलब सिर्फ चार दीवारें नहीं, बल्कि सुरक्षा, अपनापन और रिश्तों की गर्माहट से बना वह स्थान है, जहां इंसान बिना किसी दिखावे के, बिना किसी डर के खुलकर जी सकता है। यह वह जगह है जहां दिल को सुकून मिलता है, और मन को शांति। रोजमर्रा की भागदौड़ में जहां तनाव और थकान हर किसी की दिनचर्या बन चुकी है, वहीं घर ही वह जगह है जो हमारी आत्मा को संबल देता है। यहां इंसान अपने सुख-दुख को बाँट सकता है, खुलकर हँस सकता है, रो सकता है—बिना किसी नकाब के।
घर में खुशहाली तभी आती है जब वहां प्रेम, समझदारी और अपनापन हो। सिर्फ दीवारों से नहीं, घर में बसे रिश्तों से जीवन में ऊर्जा और सकारात्मकता आती है। माँ की रसोई की ख़ुशबू, पिता का साया, भाई-बहनों की मस्ती, दादा-दादी के संस्कार—ये सब मिलकर ही तो घर को घर बनाते हैं। चाहे हम कितने भी बड़े क्यों न हो जाएं, माँ के हाथों का खाना और पिता का एक सहारा आज भी सबसे बड़ी तसल्ली है।
आज के इस प्रतिस्पर्धी युग में युवा पीढ़ी शिक्षा या करियर के लिए घर से दूर जाना मजबूरी बन गई है। इसमें कोई बुराई नहीं है क्योंकि यही समय की मांग है। लेकिन दिनभर की दौड़ के बाद मन को जिस शांति की तलाश होती है, वह सिर्फ और सिर्फ परिवार के साथ ही मिलती है। फोन पर बातें हो सकती हैं, पर आँखों में देखकर जो सुकून मिलता है, उसकी जगह कुछ नहीं ले सकता।
मैं खुद इस दर्द से गुज़रा हूँ। कुछ साल पहले नौकरी की वजह से घर से दूर था। दोस्त बने, दिन बीते, लेकिन परिवार की कमी हमेशा दिल में बनी रही। जब भी तनाव में होता था, एक कॉल घर पर करने से जो सुकून मिलता था, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। कई बार मन करता कि काश घर पर ही रह पाता... लेकिन सपनों की राह में घर से दूर रहना भी एक संघर्ष है, जिसे स्वीकार करना पड़ता है।
बहुत सोचने के बाद मैंने ऐसा स्थान चुना जहां से घर बार-बार जाया जा सके। मुझे समझ आया कि घर से दूर जाना नहीं, बल्कि घर से जुड़े रहना ज़्यादा ज़रूरी है। भविष्य में चाहे कितनी भी नई जगहों पर जाना पड़े, अगर परिवार का साथ हो तो हर चुनौती आसान लगती है। घर से दूर होकर कुछ लोग ऐसे मिलते हैं जो अनजाने में ही हमारे अपने बन जाते हैं। एक बार जब मैं फिर से पुरानी जगह लौटा तो एक खास व्यक्ति की उपस्थिति ने उस शहर को फिर से घर जैसा एहसास दिलाया। ऐसे लोग शब्दों से परे होते हैं, जो घर की कमी को थोड़ा आसान बना देते हैं।
आज कई युवा विदेश जाकर अपने सपनों को आकार दे रहे हैं। भले ही वे चमचमाती इमारतों और आलीशान जिंदगी के बीच हों, लेकिन दिल कहीं न कहीं ‘घर’ की सादगी और सुकून ढूंढ़ता है। दुनिया की कोई भी जगह, कोई भी अनुभव, घर की अहमियत को नहीं छू सकता।घर केवल एक इमारत नहीं, बल्कि भावनाओं, यादों और सुरक्षा का एक संसार है। जिस जगह पर हमने चलना सीखा, अपने पहले शब्द बोले, वही घर हमारे जीवन की सबसे मजबूत नींव है। अक्सर जब हम घर पर होते हैं, तब इसकी कीमत नहीं समझते। लेकिन जब हम दूर होते हैं, तब हर छोटी बात की कीमत दिल को चुभती है।
और इसीलिए किसी ने बहुत सही कहा है –
"सुबह का भूला अगर शाम को घर लौटता है,
तो उसे भूला नहीं कहते।"