अक्सर गाँव में मैंने अपने बाल्य काल में देखा है अनुभव किया है वास्तविकता का अंवेषण किया है जिसके परिणाम मैंने पाया कि ज़ब कोई जातक (बच्चा ) जन्म लेता है तो सबसे पहले माता को उसके स्वर सुनने कि जिज्ञासा होती है नवजात ज़ब रुदन करता है तो माँ के साथ परिजन भी प्रसन्न होते है जिसका स्पष्ट अर्थ यही है कि जन्म लेने वाले जातक ने जीवन में प्रवेश कर लिया है! ज़ब जातक दस बार बारह दिन बाद ज़ब जातक अपने जीवन के रिश्ते समाज से प्रत्यक्ष होता है जैसे पिता भाई बहन चाचा आदि तब उसके सभी रिश्ते जन्म लेने वाले को बड़े ध्यान से देखते है एवं उसके शरीर पर तिल,मस्सा, लक्षण,आदि तो देखते ही है फिर नाक होंठ रंग आदि आदि का माँ बाप परिजनों से मिलाते है और आपस में चर्चा करते है कि नाक माँ पर गयी है रंग नाना नानी के खानदान पर है तो आँख फलां जैसी इसके बाद फिर जातक के शरीर के निशान तिल एवं मौजूद लक्षणो से उसके पिछले जन्म का अंदाजा लगाया जाता है!उदाहरण के रूप में मै स्वंय को उधृत कर रहा हूँ ज़ब मै रिश्ते नातों को समझने लायक हुआ और प्राथमिक पाठशाला प्रवेश हेतु अपने छोटे बाबा के साथ प्राथमिक पाठशाला गया तो प्राथमिक पाठशाला के प्रधानाध्यापक बहुत शक्त अनुशासन पसंद कुम्हार परिवार से थे जिनके आने पर बच्चे बरबस भयाक्रांत बोल उठते ( भाग पतुकिया अवता ) पतुकी (मिट्टी कि हांडी) मेरे छोटे बाबा को देखते ही अपनी कुर्सी छोड़ कर खडे हो गए और दंड प्रणाम करने के उपरांत बोले पंडित जी आपके साथ यह लड़का कौन है? मेरे छोटे बाबा ने प्रधाध्यपक से बताया कि यह नंदलाल मेरे बड़े भाई के छोटे पुत्र का सुपुत्र है और मेरा पौत्र हेड मास्टर साहब ने छोटे बाबा को बैठने के लिए कुर्सी दिया और बैठेने का निवेदन किया छोटे बाबा के बैठने के बाद वह स्वंय बैठे और मुझे अपने पास बुलाकर मेरे कंधे पर हाथ रखकर बड़े ध्यान से मुझे देखते रहे!कहा जाए तो बड़े गौर से निहारने के बाद मेरे छोटे बाबा से बोले (महराज जी राउर ई नाती पिछला जनम में वनिया या सोनार रहल होई )छोटे बाबा ने बड़े हास्यास्पद दृष्टि से जोर का ठहका मारते बोले हेडमास्टर साहब ज्योतिष के अध्ययन हम हमार परिवार केईलें है और हमरे ही नाती के पिछला जन्म आप बतावत हई आपो ज्योतिष शास्त्र क़े अध्ययन केईलें हई मुझे बहुत अच्छी तरह याद है लगभग उनसठ वर्ष पूर्व हुई हेडमास्टर एवं छोटे बाबा के मध्य हुई वार्ता!हेडमास्टर साहब बोले (नाही महराज हम चाहे हमरे खानदान के सैकड़ो पीढ़ी ज्योतिष के पजरे नाही गईल ई त बुढ़ पुरनिया बचन के शरीर के लक्षण देख के बतावेले देखी आपो आपकी नाती के दुनो कान पर ऐसन जगह छेदल बा जउन खाली बनिया या सोनारे के परिवार में कान छेदल जाला एकर मतलब राउर नाती पिछला जन्म में बनिया या सोनार रहल)!छोटे बाबा ने हेडमास्टर साहब से प्रश्न किया (कान के छेद से पिछला जन्म कईसे पता लग गईल )हेडमास्टर छोटे बाबा से बोले (महराज हम कही ज्योतिष चाहे ई ज्ञान ना पौले या पढ़ले हई जैसे कि हम केहू के पिछले जन्म बता सकी ऊ त बुढ़ पूरनिया बच्चन लड़ीकन के देख क़े बतावलन हमहू कुछ उनही के बीच में रहत देखत सुनत जानत हई)!मुझे आज भी उनसठ वर्ष पूर्व तत्कालीन समय के दो बिभिन्न समाज समुदाय के व्यक्तियों के अनुभव सुनने का अवसर प्राप्त हुआ छोटे बाबा ने मेरा दाखिला कक्षा एक में करा दिया और अगले दिन से नियमित मेरे विद्यालय आने का हेडमास्टर को आश्वासन देकर घर चल दिए! उनसठ वर्ष पूर्व कि हेडमास्टर एवं छोटे बाबा के बीच वार्तालाप मेरे स्मरण से कभी ओझल नहीं हुई मै शिक्षा काल में भी कभी कभार इस विषय पर सोचता एवं विषय वस्तु के अध्ययन कि कोशिश करता लेकिन ना तो सोच विचार के अलवा कोई अवसर मिला ना ही अध्ययन सम्भव हो सका!बहुत दिनों बाद वर्ष उन्नीस सौ चौरानवे में करम दीपाक पुस्तक मिली और किसी भी प्राणी के कायन्तरण अर्थात कर्मानुसार शरीर मिलना छूटना सम्बन्धित मूल सिद्धांत और गणना कि गणतीय पद्धति का अध्ययन सम्भव हो पाया और तब मै उनसठ वर्ष पूर्व अपने छोटे बाबा और प्राथमिक विद्यालय के हेडमास्टर साहब के मध्य वार्ता कि सच्चाई का सत्यापन कर सकने में सक्षम हो सका!सत्य बिल्कुल स्पष्ट है कि प्राणी कर्मानुसार मोक्ष के उदेश्य पथ पर भटकता शरीर दर शरीर धारण करता है जो काल समय युग सृष्टि कि प्रक्रिया परम्परा है और अनादि अनंत है ठीक इसी प्रकार यह भी सत्य है कि प्राणी के कर्मनुसार उसके भावी और वर्तमान जन्म अनुसार पूर्व कर्म काया का गणतीय गणना द्वारा निर्धारित किया जा सकता है जो विज्ञान एवं वैज्ञानिक अवधरनाओ पर भी जाँचा परखा जा सकता है और जांचा परखा भी गया है!कर्मानुसार जन्म जीवन काया मिलना और छूटने कि सतत अनादि अनंत प्रक्रिया कि वास्तविकता को जानने समझने के लिए मैंने प्रायोगिक आधार पर कुछ जीवनो के बाद के जन्म जीवन कि गणनाओ को करने का प्रयास किया!श्री मदभागवत पुराण के द्वादश स्कन्द के प्रथम अध्याय में कलयुग के भावी स्वरूप एवं परिवर्तन के पराक्रम पुरुषार्थ का वर्णन जन्म के बाद जीवन मृत्यु पुनः जन्म के अवधारणा सिद्धांत को और स्पष्ट करता हुआ साक्ष्य है जिसके अनुसार प्राणी कर्म प्रारबद्ध के अनुसार शरीर धारण करता रहता है! स्वंय पर अन्याय करने वाले के लिए भगवान राम के दरबार में न्याय मांगने वाले श्वान द्वारा स्वंय के साथ अन्याय करने वाले के लिए दंड मागना एवं भगवान राम को श्वान द्वारा अपने पूर्व जन्म का रहस्य बताना कर्मनुसार जन्म काया जीवन कि वास्तविकता कि सारभौमिक स्वीकारोक्ति एवं मान्यता प्रधान करने के लिए पर्याप्त है!महाभारत काल अर्थात द्वापर युग में भीष्म अर्जुन से लेकर सभी पात्रों के पूर्व जन्म का किसी न किसी रूप में उल्लेख है! महराज शांतनु स्वंय देव सभा में एकटक गंगा को निहारने एवं वासना प्रधानता के कारण देव सभा से श्रापित अभिशप्त पृथ्वी पर मनव काया में जन्मे थे!सनातन धर्म ही नहीं सभी धर्मों ने जन्म जीवन काया का कर्मनुसार निरंतर बदलते रहने कि वास्तविकता को धर्म दर्शन के मूल सिद्धांतो के रूप में प्रत्यक्ष या परोक्ष अंगीकार किया है!प्रश्न यह जटिल है कि पूर्व जन्म एवं कर्मनुसार भावी जन्म को कैसे निर्धारित किया जाए एवं गणना के सिद्धांतो को स्वीकारोक्ति प्रदान किया जाए या नहीं सिर्फ परिकल्पना मानकर शोध अंवेषण इसे वैज्ञानिक तथ्यों पर परखा जाना आवश्यक है उत्तर स्पष्ट है- हाँ परिकल्पना को अंवेषण के यथार्थ परिणाम के आधार पर परखा जाना चाहिए और वैज्ञानिक स्वीकारोक्ति होनी चाहिए!भारतीय समाज में चाहे भारत देश का कोई भाग हो समाज हो भाषा हो संस्कृति संस्कार हो एक मत स्वर से कर्मनुसार जन्म जीवन सिद्धांत को स्वीकार भी करते है मान्यता भी देते है वैश्विक स्तर पर भी यही सच्चाई है!भारतीय समाज में किसी भी व्यक्ति बालक के शारीरिक लक्षणो शरीर पर विद्यमान बिभिन्न प्रकार के चिन्हो आदि एवं वर्तमान के हाव भाव से पूर्व जन्म का अंदाजा लगाते है जो मात्र कल्पना पर आधारित ही होता है निश्चित रूप से या दावे के साथ नहीं कहा जा सकता है और इसे मान्यता भी नहीं दिया जा सकता है!कर्मानुसार जन्म जीवन के निर्धारण का वैज्ञानिक एवं गणितीय पद्धति ही मान्य है और जिसके अनुसार एवं परिणाम के आधर पर सत्यता के बहुत निकट पहुंचा जा सकता है इसी सैद्धांतिक सत्यता के परख के लिए मैंने तीन प्रमुख गणनाए बिना किसी पूर्वाग्रह से प्रेरित निष्कपट निश्छल भाव से सिर्फ मानवता एवं धर्म आचरण के बोध में किया है!1- कर्मानुसार जन्म जीवन के निर्धारण कि पहली गणना मैंने ब्रिटेन कि महारानी के विषय में कि जिसे मैंने उनके परिजनों तक सन्देश के माध्यम से प्रेषित किया यह प्रथम अति विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण गणना मैंने इसलिए कि क्योंकि मेरे मन में महारानी अलजिया वेथ द्वितीय के प्रति आगाध श्रद्धा भाव है अतः उनके द्वारा भौतिक शरीर के त्याग के बाद उनके प्रति श्रद्धां भाव ने मुझे ऐसा करने को बाध्य किया!!2-रूस के पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय गौरवाचोव के भावी जन्म जीवन कि गणान करना गोरवाचौव कि रुस के स्वच्छचंद विकास एवं रुसी जनता कि उच्च आकांक्षाओ के शसक्त सक्षम रूस निर्माण कि ईमानदार सोच जो सफल नहीं हुई और अनेक विभाजन असफलता का दोष गौरवचोव के सर मढ़ गया स्वर्गीय गोरवाचौव के भावी जन्म कि गणना के परिणाम भी सन्देश के द्वारा मैंने प्रेषित किया!3-तीसरी गणना मैंने भारत के ख्याति लब्ध विद्वान मानस मर्मज्ञ पूज्य शी मोरारी जी बापू जी के पूर्व जन्म के सम्बन्ध में किया और उन्हें इस उद्देश्य से प्रेषित किया कि बापू स्वंय भारतीय धर्म दर्शन के वैश्विक स्तर पर स्थापित एवं ख्याति लब्ध विद्वानों के मध्य विराजते है तो मेरे द्वारा प्रेषित संदेश कि वास्तविकता कि परख विशेषज्ञओ के द्वारा अवश्य कराएगे ऐसा उनके द्वारा किया गया या नहीं मुझे कोई जानकारी नहीं है क्योंकि मोरारी बापू से मै कभी नहीं मिला उन्हें उनके सम्बन्ध में जानकारी देने का मूल उद्देश्य था विद्वानों के मध्य विषय पर विचार एवं मंथन!!
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश!!