Tu Hi Meri Aashiqui in Hindi Love Stories by Mystic Quill books and stories PDF | तू ही मेरी आशिकी - 7

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तू ही मेरी आशिकी - 7

तीन दिन बाद...

मारिया उस दिन छोटे के साथ नानी के कहने पर पास के बाजार गई थी।
छोटे को नए जूते चाहिए थे, और मारिया भी अब धीरे-धीरे अपनी पुरानी जिंदगी में लौटने की कोशिश कर रही थी।
बाजार में हलचल थी, लोग खरीदारी में लगे थे,
गर्मियों की दोपहर थी, मगर हवा में कुछ मीठी सी ताजगी थी।

छोटा अपनी मर्जी से एक दुकान से दूसरी दुकान भाग रहा था।
मारिया उसे पकड़ने के लिए इधर-उधर दौड़ रही थी,
जब अचानक भीड़ के बीच में एक तेज़ आती बाइक ने छोटा की तरफ रुख किया —
और वो पल...

सब कुछ जैसे थम गया।

मारिया चीखी,
"छोटे!"

लेकिन किसी के मजबूत हाथों ने छोटे को समय रहते उठा लिया था —
और उसे अपनी छाती से भींच लिया।

मारिया ने घबराई नज़रों से ऊपर देखा —
वो मीर था।

चाहे भीड़ से घिरा हो,
चाहे वक्त का तूफान हो,
जब भी जरूरत होती, मीर हमेशा उसके और छोटे के बीच एक दीवार बन कर खड़ा हो जाता था।

छोटा अब भी सहमा हुआ मीर की बांहों में था।
मारिया हाँफती हुई उसके पास आई, छोटे को अपने सीने से लगाया।

"थ... थैंक यू..."
उसके लब कांपे।

मगर मीर चुप रहा,
उसकी नज़रें सिर्फ मारिया पर थीं —
जैसे वो देखना चाहता हो कि कहीं उसे कोई चोट तो नहीं आई।

दोनों की साँसें तेज़ थीं,
दिल की धड़कनें मानो एक-दूसरे की छाती में सुनाई दे रही थीं।
भीड़ अब छंटने लगी थी, मगर ये दो लोग अभी भी वहीं, वक्त के बीच जमे हुए थे।

छोटा धीरे से मीर से अलग हुआ और मारिया की उंगली पकड़ ली।
मीर ने उसे देखकर हल्की सी मुस्कान दी,
फिर बगैर एक लफ्ज़ कहे, सिर्फ इशारे से पूछा —
"ठीक हो?"

मारिया ने सिर हिलाया,
मगर उसकी आंखों में आंसू आ गए —
डर के नहीं,
बल्कि उस अनकहे एहसान और मोहब्बत के बोझ से।

मीर ने अपना रुमाल निकाला,
बहुत एहतियात से,
जैसे किसी टूटती चीज को छूता हो,
उसके आंसू पोंछे।

मारिया का दिल तेज़ी से धड़क रहा था।
ये नजदीकियां,
ये छुअन,
ये खामोश लम्हा...
सब कुछ उसके अंदर कुछ नया जगा रहा था —
कुछ जिसे वो अब रोक नहीं पा रही थी।

"चोट नहीं लगी इसे?"
मीर ने पहली बार आवाज़ में नरमी लाते हुए पूछा।

मारिया ने धीरे से सिर हिलाया।
वो उसके इतने करीब था कि उसकी सांसों की गर्माहट मारिया की पलकों को छू रही थी।
एक पल को दोनों की आँखें मिलीं —
गहरी, रुकी हुई, और कुछ कहती हुईं।

छोटा अब भी दोनों के बीच मासूमियत से देख रहा था,
जैसे समझ रहा हो कि अब से इन दोनों की दुनिया एक-दूसरे में सिमटने वाली है।

मीर ने फिर बहुत नर्मी से कहा:

"चलो... तुम्हें और छोटे को घर छोड़ दूँ।"

इस बार मारिया ने ना नहीं की।
बस चुपचाप मीर के साथ चल दी।
छोटा बीच में उनके हाथ थामे हुए था —
तीनों की हथेलियों में एक अनदेखा वादा बंध चुका था।

गाड़ी में...

मारिया खिड़की से बाहर देख रही थी,
और मीर चुपचाप उसे देख रहा था।
सड़क पर दूर कहीं सूरज डूब रहा था,
जैसे आसमान भी इस पहली नज़दीकी पर अपनी मुहर लगा रहा हो।

सड़कों पर शाम उतर रही थी।
हल्की ठंडी हवा खिड़कियों के किनारों से सरसराते हुए गाड़ी के अंदर घुल रही थी।
मारिया चुप थी — उसकी नज़रें बाहर थी, मगर उसका दिल... कार के अंदर के सन्नाटे की हर हलचल को महसूस कर रहा था।

पीछे की सीट पर छोटा बैठा था,
और अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से कभी मीर को देखता, कभी अपनी बहन को।

फिर अचानक उसने मासूम सी आवाज़ में पूछा:

"भाई... आप मेरी दीदी से प्यार करते हो?"

गाड़ी की रफ्तार एक पल को जैसे थम गई।

मारिया का दिल धड़क उठा।
उसने चौंककर पीछे मुड़कर छोटे को देखा —
छोटा बिल्कुल मासूम था, नादान था,
पर उसके सवाल में एक ऐसी सच्चाई थी, जिससे कोई झूठ नहीं बोल सकता था।

मीर ने मुस्कुराकर छोटा की तरफ देखा।
उसकी मुस्कान में वो सब था जो लफ्जों में कह पाना मुमकिन नहीं था —
प्यार, वादा, और अपनापन।

मीर ने धीमे से कहा:

"हाँ छोटू... बहुत प्यार करता हूँ तुम्हारी दीदी से।"

छोटा खुशी से उछल पड़ा।

"तो फिर आप दीदी से शादी कर लोगे ना?"
उसने भोलेपन से पूछा।

मारिया का चेहरा गर्म हो उठा,
वो नजरें फेर कर खिड़की के बाहर देखने लगी,
मगर उसकी पलकों पर हल्की सी कंपकंपी थी,
जो उसके अंदर उठते तूफान का सबूत थी।

मीर ने सुकून से गाड़ी चलाते हुए कहा:

"अगर तुम्हारी दीदी हाँ कहे... तो मैं अपनी ज़िंदगी भी उसके नाम कर दूँ।"

छोटे ने ताली बजाई, हँसा।
फिर उसने मासूमियत से पूछा:

"लेकिन दीदी तो शरमाती है... कैसे कहेंगी हाँ?"

इस बार मीर ने कार धीमी करते हुए कहा:

"तुम मदद करोगे ना भाई की?"

छोटा गर्व से सीना चौड़ा करते हुए बोला:

"मैं करवाऊंगा ना... पक्का!"

मारिया की आँखें भीग गईं —
नमी खुशी की थी, शर्म की थी, और एक मीठे से डर की थी...
जिसमें दिल हारने का डर नहीं था —
दिल मिलने का एहसास था।

गाड़ी अब घर के करीब थी।
मगर रास्ता इतना छोटा क्यों लगने लगा था?

मीर ने एक आखिरी बार शीशे से मारिया को देखा —
वो खामोश थी, मगर उसकी आँखें सब कह रही थीं।

शायद पहली बार — बिना कहे —
उसकी खामोश हाँ मीर ने सुन ली थी।

मारिया का कमरा...

चाँद की हल्की चाँदी खिड़की से छनकर कमरे में बिखर रही थी।
कमरे का एक कोना, जहाँ मारिया बैठी थी — उसकी खामोश दुनिया की तरह थमा हुआ था।
छोटा गहरी नींद में था।
उसकी मासूम साँसें पूरे कमरे में एक धीमा संगीत बिखेर रही थीं।
मगर मारिया की आँखों से नींद कोसो दूर थी।

उसके हाथों में एक पुरानी डायरी थी,
मगर आज न उसमें लिखने का दिल था,
न कुछ पढ़ने का।
आज बस उसकी सोचों में मीर सुल्तान का चेहरा तैर रहा था।

छोटे की मासूम बातें उसे बार-बार याद आ रही थीं —
"भाई दीदी से बहुत प्यार करते हैं..."

उसकी पलकों पर हल्की सी नमी थी,
जिसे वो खुद भी समझ नहीं पा रही थी —
खुशी की थी या किसी अनजाने डर की।

मारिया ने धीमे से अपना सिर खिड़की के पल्ले से टिका दिया।
ऊपर आसमान में तारे चमक रहे थे,
चाँद अपने पूरे शबाब पर था —
जैसे खुद भी इस नए जज़्बात की गवाही दे रहा हो।

उसने अपने सीने पर हाथ रखा —
दिल की धड़कनें तेज थीं,
बेहद तेज।

उसकी आँखें अपने आप बंद हो गईं।
और मीर की आवाज़ उसके कानों में गूंजने लगी —

"अगर तुम्हारी दीदी हाँ कहे... तो मैं अपनी ज़िंदगी भी उसके नाम कर दूँ।"

उसने हल्के से खुद को जकड़ लिया,
जैसे मीर के उन लफ्ज़ों की गर्माहट को अपनी बाहों में समेटना चाहती हो।

फिर अचानक उसे अपनी बेख्याली पर हँसी आ गई।
छोटी सी, थरथराती हुई हँसी,
जिसे उसने अपने दोनों हाथों से छुपा लिया —
जैसे कोई चोरी करते पकड़ा गया हो।

"ये क्या हो रहा है मुझे..."
उसने दिल में सोचा।

पर जितना भी खुद को समझाने की कोशिश करती,
मीर की आँखों की गहराई,
उसके लफ्जों की सच्चाई,
छोटे की मासूम जिद —
सब मिलकर उसकी दुनिया को धीरे-धीरे बदल रहे थे।

उसने उठकर अपने तकिए के नीचे से एक छोटी सी तस्वीर निकाली —
वो तस्वीर जो क्लब के एक इवेंट के वक़्त ली गई थी,
जहाँ मीर हल्की सी मुस्कान के साथ उसे देख रहा था।

मारिया ने तस्वीर को अपनी छाती से लगा लिया,
आँखें बंद कर लीं,
और एक लंबी, सुकून भरी साँस ली...

उस रात,
चाँद भी थोड़ा और उजला लगा,
और तारे थोड़े और करीब।

क्योंकि किसी के दिल में पहली बार मोहब्बत ने पूरी तरह से दस्तक दी थी —
चुपचाप,
धीरे से,
मगर हमेशा के लिए।