रात का वक्त था।
स्टूडियो की सारी रिकॉर्डिंग्स खत्म हो चुकी थीं।
मारिया अपना सामान समेट रही थी कि तभी सामने से मीर आया
आज कुछ अलग था उसकी चाल में, उसकी आँखों में।
एक गर्मी... एक मासूम सा आग्रह।
मीर ने जेब से एक छोटा-सा कार्ड निकाला,
और बड़ी नरमी से मारिया की ओर बढ़ाया।
उस पर बस इतना लिखा था:
"डिनर विद मी?"
मारिया ने कार्ड पढ़ते हुए शरारत भरी नज़रों से मीर को देखा।
उसकी आँखों में जैसे चाँदनी उतर आई हो।
हौले से मुस्कुराई, फिर गर्दन झुकाकर धीरे से हामी भर दी।
"अभी?"
मारिया ने पूछा, उसकी आवाज़ खुद उसके धड़कते दिल से लरज रही थी।
"हाँ, अभी,"
मीर ने कहा,
"बस तुम और मैं... कुछ बातें, कुछ खामोशियाँ..."
मारिया ने हल्के से सिर झुकाया,
और फिर दोनों स्टूडियो के पिछवाड़े खड़ी मीर की ब्लैक कार की ओर बढ़े।
रास्ते भर खामोशी थी।
लेकिन वो बोझिल नहीं थी —
वो खामोशी एक रेशमी एहसास की तरह थी,
जो दोनों के बीच बह रही थी।
मारिया खिड़की से बाहर तारों भरे आसमान को देखती रही,
जबकि मीर अपनी चोरी-चोरी निगाहें उस पर डालता रहा —
जैसे हर लम्हे को अपने सीने में सहेज लेना चाहता हो।
"तुम चुप क्यों हो?"
मीर ने आखिर पूछा।
मारिया ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा —
"कभी-कभी खामोशियाँ ज़्यादा बोलती हैं..."
मीर उसकी इस बात पर बस मुस्कुरा दिया,
एक वो मुस्कान जो दिल की गहराइयों से निकली थी।
डिनर का स्पॉट कोई महँगा रेस्टोरेंट नहीं था,
बल्कि शहर के बाहर एक छोटी-सी झील के किनारे,
मीर ने खुद से एक टेबल सजवाई थी —
चाँदनी के नीचे, हल्की-हल्की टिमटिमाती फेयरी लाइट्स के बीच।
टेबल पर एक कैंडल जल रही थी,
और पास ही हल्की हवा में चहचहाते कुछ वायलिन के सुर।
मारिया इस नज़ारे को देखकर दंग रह गई।
उसकी आँखें छलक पड़ीं —
इतना सुकून, इतना प्यार किसी ने उसके लिए कभी नहीं रचा था।
मीर ने उसके लिए कुर्सी खींची और बहुत अदब से बैठाया,
फिर उसके सामने खुद बैठ गया।
"आज तुम सिर्फ मेरी गेस्ट नहीं हो..."
मीर ने धीमे से कहा,
"आज तुम मेरी ख्वाहिश हो..."
मारिया का चेहरा शर्म से खिल उठा। उसके गालों पर चाँदनी उतर आई थी।
चाँद सिर पर चमक रहा था, और झील की सतह पर उसकी दूधिया परछाइयाँ हौले-हौले थिरक रही थीं।
हल्की-हल्की ठंडी हवा चल रही थी, जो मारिया की लटों से खेल रही थी।
टेबल पर एक सफेद रेशमी कपड़ा बिछा था, उसके बीचों-बीच एक छोटी-सी मोमबत्ती जल रही थी,
जिसकी लौ मद्धम होकर झिलमिला रही थी, जैसे वो भी इस पल की नर्मी को महसूस कर रही हो।
मारिया थोड़ा सकुचाई सी बैठी थी, अपनी उंगलियों को आपस में उलझाए हुए।
मीर ने बहुत अदब से उसकी प्लेट में सलाद और पास्ता सर्व किया,
फिर उसके सामने बैठ गया।
"इतनी खूबसूरती के सामने... हर स्वाद फीका पड़ जाता है।"
मीर की आवाज़ जैसे किसी रेशमी धागे से बुनी हुई थी।
मारिया ने मुस्कुराकर नज़रें झुका लीं।
उसकी पलकों पर जैसे कोई खामोश फूल खिला हो।
वो कुछ कहने लगी थी मगर शब्द गले में अटक कर रह गए।
दोनों के बीच बातचीत ज्यादा नहीं हो रही थी —
बस, वो मुस्कुरा रहे थे, वो नज़रें चुरा रहे थे,
और बीच-बीच में मोमबत्ती की लौ के पार एक-दूसरे को देखते हुए दिल ही दिल में बातें कर रहे थे।
मीर ने देखा कि मारिया हल्की-हल्की काँप रही थी, शायद हवा कुछ ज्यादा ठंडी हो गई थी।
बिना कुछ कहे, उसने अपनी जैकेट उतारी और बहुत नरमी से उसके कंधों पर डाल दी।
"तुम्हारे ख्याल रखने का हक़... मुझे बहुत पहले से चाहिए था,"
मीर ने धीमे से कहा।
मारिया की साँसें उलझ गईं।
चेहरा शर्म से लाल हो गया, जैसे उसपर कोई गुलाबी परछाई उतर आई हो।
उसने हौले से अपना सिर झुकाया,
मगर मुस्कुराहट उसकी होंठों से छुपी नहीं थी।
थोड़ी देर बाद, वेटर एक ट्रे लेकर आया।
ट्रे पर एक छोटा-सा गुलाबी डिब्बा रखा था, जिसपर सुनहरे रिबन से एक प्यारा सा बॉउ टिका था।
"ये तुम्हारे लिए..."
मीर ने वो डिब्बा उसकी तरफ बढ़ाया।
"मेरे लिए?"
मारिया ने हैरानी से पूछा, उसकी आवाज़ खुद से भी धीमी हो गई थी।
"हाँ,"
मीर ने नज़रों से कहा, आवाज़ से नहीं।
उसकी निगाहों में वो सब कुछ था जो अल्फाज़ कभी बयान नहीं कर सकते थे।
मारिया ने जैसे ही रिबन खोला, नन्हा गुलाबी डिब्बा उसके काँपते हाथों में था।
उसने दिल थामकर ढक्कन उठाया —
अंदर एक बेहद नाज़ुक, चमचमाती चैन थी।
उसमें एक दिल के आकार का डायमंड लॉकेट झूल रहा था, छोटा सा, बहुत प्यारा... मगर असली जादू अंदर था।
मीर ने धीमे से कहा,
"खोलो इसे..."
मारिया ने थोड़ा झिझकते हुए लॉकेट खोला और उसकी आँखें हैरानी और प्यार से भर आईं।
लॉकेट के एक तरफ मीर की तस्वीर थी — वही गहरी आँखें, वही हल्की सी मुस्कान, जो किसी की भी रूह छू ले।
और दूसरी तरफ... उसकी खुद की तस्वीर थी, वो तस्वीर जो शायद उसे भी याद नहीं थी,
शायद मीर ने चोरी से खींची होगी, जब वो बेख्याली में मुस्कुरा रही थी।
उन दोनों की तस्वीरें बिल्कुल करीब-करीब थी, जैसे एक दिल में दो धड़कनें।
मारिया के होंठ थरथराए, उसकी पलकों पर नमी की चमक तैर गई।
उसने बिना बोले लॉकेट को दिल से लगा लिया —
जैसे सारी दुनिया से छुपाकर उस पल को अपने भीतर बंद कर रही हो।
मीर थोड़ा झुका, बेहद नर्मी से उसके बालों की एक लट को उसके चेहरे से हटाया और फुसफुसाया —
"अब तुम्हारा दिल मेरा, और मेरा दिल तो ऑलरेडी तुम्हारा..."
उसकी आवाज़ में ऐसा यकीन था, जैसे कायनात भी सिर झुका लेती।
मारिया की साँसें रुक सी गईं।
उसका चेहरा शर्म से, एहसास से, खुशी से गुलाब की तरह लाल हो गया।
वो चाहकर भी अपनी मुस्कान छुपा नहीं सकी।
नज़रे उठाकर देखा तो मीर पहले ही उसे ऐसे देख रहा था, जैसे हर दुआ कबूल हो गई हो।
दोनों के बीच कुछ पल खामोशी के थे — मगर उस खामोशी में भी इश्क़ का शोर था,धीमा, गहरा, बस उनका अपना।