तपती दोपहरी सड़के सुन सान जैसे सन्नाटा पसारा हो सूर्य देव कि भृगुटी ढेड़ी पुरे ब्राह्मण्ड से सूर्य देव कुपित हो कभी कभार सड़क पर मजदूर मजबूर जिनका अंगार उगल रही गर्मी में भी पेट ज्वाला शांत करने के लिए बाहर निकलना विवशता थी नजर आते जैसे सीधे सारे पाप धोने के लिए गंगा स्नान करके जा रहे हो और बदन से गंगा कि बुँदे पसीने कि बूंद ओस कि सबनम जैसे टपक रही है पसीना पोछते परमात्मा से राहत कि उम्मीद कि गुहार करते आते जाते दिख जाते!
मै भी वेवसी लाचारी के हालात के कारण आग उगलते सूर्य कि ज्वाला में जलते पसीना पोंछते चला जा रहा था तभी एकाएक एक खोडसी बाला भागते हुए मुझसे टकरा गयी और लड़खड़ाते हुए जलती सड़क पर गिरने भूनने से बचती बोली साहब मुझे बचा लीजिए मौने गौर से उसे देखा तीखे नक्स नयन कि संवली बेहद आकर्षक लड़की वदन पर फ़टे कपड़े जैसे उसे ही नोच नोच चीथड़े में तब्दील करने को आमादा हो!
मैंने उससे पूछा भयंकर तपीस में कहाँ से भगती हाफती आ रही हो बिना मेरे प्रश्न का उत्तर दिए सिर्फ यही कह रही थी साहब मुझे बचा लीजिए मैंने पुनः उससे पूछा किससे बचा लीजिए वह बोली साहब चार पांच लोफर मेरी इज्जत लूटना चाहते है!
मुझे वह अपनी रक्षा कि गुहार लगा ही रही थी तभी लगभग पांच किशोर जिनकी उम्र लगभग तेरह से पंद्रह वर्ष के मध्य थी मेरे पास आए और बोले महोदय आपका इस लड़की से क्या वास्ता मैंने पांचो किशोरो से एक ही प्रश्न किया तुम लोंगो का इस लड़की से क्या वास्ता पांचो एक स्वर में बोले यह लड़की चोरी करके भाग रही है!
मैंने उस लड़की से पूछा ये लोग सही कह रहे है वह फ़फ़क कर रोती हुई पांचो किशोरो में एक कि तरफ इशारा करती बोली साहब यह शमीर है इसके घर मै झाड़ू पोंछा वर्तन मांजती हूँ इसकी नियत बहुत दिनों से खराब है यह प्रतिदिन लालच देकर मेरी इज़्ज़त से अपनी हवश पूरी करना चाहता है!
सेठ जमुना दास जी एवं शांति इसके माता पिता दो दिन के लिए बाहर गए है और जाने से पहले इसके खाने कि जिम्मेदारी हमें सौंप गए थे आज ज़ब मै घर में दाखिल हुई तो शमीर के साथ ऐ चारो पहले से मौजूद थे मेरे घर में दाखिल होते ही चारो ने दरवाजा बंद किया दुर्भाग्य से एवं इन पांचो कि तेजी से पूरी तरह बंद नहीं हो पाया था!
पांचो भूखे भेड़िए कि तरह मुझे नोंचने के लिए एक साथ टूट पड़े मै स्वंय को बचाने कि बहुत कोशिश करती रही लेकिन मै कर भी क्या सकती थी?
ईश्वर कि कृपा इन पांचो भेड़ियों कि वासाना कि आग में जलने कि गलती से दरवाजा खुल गया और मै भागने लगी वासाना कि ज्वाला के भूखे भेड़ियों से बचते सूरज कि ज्वाला से इन्हे भस्म करने कि पुकार गुहार करते आप तक पहुंची हूँ!
मै शमीर से बोला शमीर तुम अपने साथियों के साथ लौट जाओ इसी में तुम्हारी भलाई है शमीर बोला अंकल आप जो कर सकते है करिये मोहिनी को हम लोंगो के हवालें कर दीजिए!
मैंने क्रोध में जोरदार तमाचा शमीर के गाल पर जडा वह सड़क पर ऐसे तड़फड़ा रहा थे जैसे कोई मरने वाला यह नजरा देखते ही शमीर के चारो साथी भाग खडे हुए शमीर साथियों के साथ छोड़ते ही भीगी बिल्ली कि तरह गिड़गिड़ाने लगा मैंने उसे भी छोड़ दिया तब मै मोहिनी कि तरफ मुख़ातिब होकर बोला तुम ऐसे लोंगो के यहाँ काम ही क्यों हो मोहिनी बोली साहब मालिक और मेम साहब और परिवार बहुत अच्छा है यह तो शमीर ही ऐसे सज्जन परिवार में दुष्टआत्मा है!
कुछ दिन बाद समीर के बाप सेठ जमुना दास जी से ज़ब मेरी मुलाक़ात हुई और मैंने उनके बेटे कि हकीकत बताई तो स्तब्ध रह गए और उन्होंने शमीर को जर्मनी भेज दिया जो भारत नहीं लौटा और मोहिनी से विवाह कर जर्मनी बस गया!!
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश!!