कबीर जन्मोत्सव विशेष--
कबीर दास जी का जन्म वर्ग जाती के सूत्रपात या उत्कर्ष काल में नहीं हुआ था!कबीर दास जी सन 1398 में बालक रूप में लहरतारा तालाब पर पाए गए थे तत्कालीन समय तैमूर लंग कि क्रूरता से भारत वर्ष त्रस्त ससंकित भयाक्रांत था और भरतीय समाज अपनी रक्षा कि आस में दर बदर भटक रहा था तत्कालीन समय सनातन भरतीय बहुसंख्य भयाक्रांत था जाती व्यवस्थाओ का समाजिक अतिक्रमण नहीं था और अस्थिर शासन प्रणाली आपस में लड़ते झगड़ते शासक और आपस के द्वन्द में बिल्ली न्यायाधीश कि भूमिका निभाते ईरान इराक अफगानिस्तान मध्य एशिया के क्रूर नव धर्म इस्लामिक अलम्बरदार जिसके कारण सांस्कृतिक सामाजिक धार्मिक भाषाई वर्ण शकरता आज भी पीछा नहीं छोड़ रही है ठीक
इस्लाम के जन्म के ठीक सौ वर्ष बाद ही इसका प्रभाव भारत पर बड़ी गहराई से पड़ा और सातवीं शताब्दी में प्रथम इस्लामी शासक द्वारा भरत में भरतीय शासक को परास्त कर केरल में धर्म परिवर्तन का सूत्रपात करते हुए ग्यारह मस्जिदे बनवाई और भारत को आंशिक इस्लामिक गुलाम बनाकर गुलामी कि नीव रखी जिसके परिणाम स्वरूप गजानवी गोरी ने आक्रमण किया लुटा जिसकी परम्परा का ही तैमूर लंग था जो ही चाहता लूट कर क्रूरता दुष्टता कि सारी हदे पार कर चला जाता चौदहवी शताब्दी भारत सातवीं शताब्दी तक भारत कि भाषा साहित्य संस्कृत थी और महाराज भोज जैसे शक्तिशाली शासक और कालिदास जैसे विद्वान थे ज्यो ज्यो इस्लामिक क्रूरता और दमन बढ़ा त्यों त्यों भरतीय धर्म दर्शन संस्कृत भाषा का अवसान होने लगा परिणाम स्वरूप भाषाई एवं सांस्कृतिक संक्रमण का बेहद दर्दनाक क्रूर दौर शुरू हुआ जिसका परिणाम होने वाला था एक धर्म आदि अनंत सनातन का अंत एवं आर्याब्रत भरत भारत नाम के भू भाग का अंत जो सम्भव तों नहीं हुआ लेकिन अपने गंभीर प्रभाव छोड़ गया! भारतीय संस्कृति धर्म विरासत एवं संक्रमण काल कि पड़ती बुनियाद सन 1398 में कबीर दास जी का जन्म हुआ था!
तत्कालीन भारतीय समाज में जाती व्यवस्था कि जकड़न कि छटपटाहट या उससे निकलने या तोड़ने कि उत्कठा नहीं थी क्योंकि वर्ण व्यवस्था क़ायम थी!
कबीर दास जी कि परिवरिस एक जुलाहा परिवार में हुई उन्होंने कर्ण कि तरह अपने माता पिता को कभी खोजने कि कोशिश नहीं कि उन्होंने अपने विषय में लिखा है --
(काशी का बासी ब्राह्मण मै नाम मेरा प्रबीना एक बार हरि नाम न
लिंहा पकरी जुलाहा किन्हा)!!
ठीक सौ सवा सौ वर्ष महान संत कबीर दास जी के बाद 1478 में सूरदास, 1497 तुलसी दास, 1498 मीरा बाई का जन्म हुआ
तीनो भक्त काल कबीयो का जीवन मुग़ल शासन शासक कि क्रूरता दमन के मध्य बिता!
चुंकि भारत के सबसे निकट मध्य एशिया के देश है जहाँ के आक्रमणकारियों ने भारत को लूटा उसकी धार्मिक संस्कारिक विरासतो को ध्वस्त किया तब तक संचार परिवहन कि सिमित सुविधाओं के कारण मध्य एशिया और भारत का सम्पर्क शेष विश्व से नहीं था वस्को डिगामा के बाद जिसने भारत को एवं वहाँ तक पहुंचने का मार्ग खोजने के बाद यूरोपिय देशों ने भारत कि तरफ रुख किया और जो सबल सक्षम हुआ उसने पुनः गुलाम बनाया!
भारत आर्या ब्रत भरत खंडे जम्बू द्विपे तों अब हैँ ही नहीं जो बचा है उसे क्रूर संक्रमण काल में बचाने का कार्य महान संत महात्मा कबीर ने किया सूरदास जी ने किया तुलसी दास जी ने किया मीरा बाई जी किया!सम्पूर्ण विश्व में एक कहावत मशहूर है जिसका कोई नहीं उसका खुदा भगवान ही मालिक होता है जो भारत के अस्तित्व के लिए विल्कुल सही है भगवान ने भरत भारत कि पवित्र भूमि कि पवित्रता के अस्तित्व को बचाये बनाये रखने के लिए अपने प्रतिनिधि के रूप मानव स्वरूप में महान संत कबीर, सूर दास जी, तुलसी दास जी, मीरा बाई को भेजा जिन्होंने अपनी भक्ति निरपेक्षता धैर्य से आर्या ब्रत भारत खंड के मूल स्वरूप संस्कृति को बचा सकने में महत्वपूर्ण भूमिकाओ का निर्वहन किया जिसे कालांतर में महात्मा गाँधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, नेता जी सुभाष चंद्र बोस डॉ राजेंद्र प्रसाद, बाबा साहब भीम राव अंवेदकर एवं युवा कृतिकारियों ने अपने त्याग बलिदान आदि ने सहेजा जो वर्तमान एवं भविष्य पीढ़ियों के लिए दिशा दृष्टिकोण एवं प्रेरणा प्रदान करता रहेगा!!
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश!!