भाग 1: पहली मुलाकात
शिवम एक साधारण सा लड़का था, जिसे किताबें पढ़ना, सादा जीवन और शांत माहौल बहुत पसंद था। वह इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में एम.ए. कर रहा था। वहीं उसकी पहली मुलाकात स्नेहा से हुई — एक चंचल, खुशमिजाज और बेहद खूबसूरत लड़की, जो अपने सपनों की दुनिया में जीना पसंद करती थी।
लाइब्रेरी के एक कोने में जब पहली बार उनकी नज़रें टकराईं, तो दोनों ने एक हल्की सी मुस्कान दी और फिर किताबों में खो गए। लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतते गए, वो मुस्कानें बातें बनने लगीं और बातें दोस्ती में बदल गईं।
भाग 2: दोस्ती से मोहब्बत तक
शिवम को स्नेहा की हर बात पसंद आने लगी थी। उसकी हँसी, उसका बात करने का तरीका, यहाँ तक कि उसका गुस्सा भी। स्नेहा को भी शिवम की समझदारी, उसकी गहराई, और उसकी सादगी में एक अलग ही सुकून महसूस होता था।
वो दोनों रोज़ लाइब्रेरी में मिलते, कैंटीन में साथ चाय पीते और यूनिवर्सिटी के गार्डन में घंटों बातें करते। उन्हें अब एहसास हो चुका था कि ये सिर्फ दोस्ती नहीं रही।
एक शाम, जब बारिश हो रही थी और दोनों एक ही छतरी के नीचे खड़े थे, शिवम ने धीरे से कहा,
“स्नेहा, क्या तुम्हें कभी ऐसा लगता है कि हम एक-दूसरे के लिए बने हैं?”
स्नेहा की आँखों में नमी थी, लेकिन होठों पर मुस्कान — “शायद हाँ, शिवम। पर डर भी लगता है… कहीं ये सब बस एक फेज़ न हो?”
शिवम ने उसका हाथ थाम लिया, “अगर ये फेज़ है, तो मैं चाहता हूँ कि ये उम्रभर चले।”
भाग 3: रिश्ते की कसौटी
सब कुछ अच्छा चल रहा था, लेकिन जैसे-जैसे पढ़ाई खत्म होने लगी, जिंदगी की असल चुनौतियाँ सामने आने लगीं। स्नेहा के पापा ने उसकी शादी तय कर दी — एक NRI लड़के से, जो कनाडा में रहता था। उन्हें लगता था कि यही स्नेहा के भविष्य के लिए सही होगा।
जब स्नेहा ने ये बात शिवम को बताई, तो जैसे उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। वो एक पल को चुप रह गया, फिर बोला,
“क्या तुम उससे शादी कर पाओगी, जब तुम्हारा दिल मेरे पास है?”
स्नेहा ने आँसू पोंछते हुए कहा,
“शिवम, मैं चाहती हूँ कि हम साथ रहें… पर पापा की उम्मीदें, उनके सपने… उन्हें कैसे तोड़ूँ?”
शिवम चुप था। उसने स्नेहा को गले लगाया और कहा,
“अगर हमारी मोहब्बत सच्ची है, तो वक़्त उसे कभी जुदा नहीं कर सकता।”
भाग 4: जुदाई
स्नेहा की शादी की तारीख तय हो गई थी। आख़िरी बार मिलने के लिए वो यूनिवर्सिटी के उसी गार्डन में मिले जहाँ पहली बार खुलकर बातें की थीं। वो दोनों चुप थे। सिर्फ़ हवा की सरसराहट और दिल की धड़कनों की आवाज़ थी।
“शिवम,” स्नेहा ने धीरे से कहा, “क्या तुम मुझे भूल जाओगे?”
शिवम ने उसकी आँखों में देखा और बोला,
“अगर किसी को भुलाना इतना आसान होता, तो मोहब्बत कभी इतनी गहरी न होती। मैं तुम्हें अपनी हर सांस में याद रखूंगा।”
स्नेहा रोते हुए उसके सीने से लग गई। फिर बिना पीछे देखे चली गई।
भाग 5: वक़्त का पहिया
कई साल बीत गए। शिवम अब एक प्रोफेसर बन गया था। उसने अपने दर्द को अपनी कहानियों में ढाल लिया। उसकी लिखी कविताएँ और कहानियाँ अब किताबों में छपने लगी थीं, लेकिन हर शब्द में कहीं न कहीं स्नेहा की याद छुपी होती थी।
एक दिन, एक बुक लॉन्च इवेंट में एक महिला आई — उसकी आँखों में वही चमक थी, जो सालों पहले स्नेहा की हुआ करती थी। वो स्नेहा ही थी।
“शिवम…” उसने धीमे से कहा।
शिवम की आँखों में आंसू आ गए।
“तुम खुश हो?” उसने पूछा।
स्नेहा मुस्कुराई, लेकिन वो मुस्कान अधूरी थी।
“शायद… जितना दूसरों को दिखा सकती हूँ। पर सच कहूँ, दिल अब भी तुम्हारे पास ही है।”
शिवम ने उसकी ओर देखा और कहा,
“कभी-कभी अधूरी मोहब्बतें भी पूरी कहानियाँ बन जाती हैं।”
अंतिम पंक्तियाँ:
शिवम और स्नेहा की मोहब्बत अधूरी रही, लेकिन उनकी यादें, उनके पल और उनका रिश्ता कभी खत्म नहीं हुआ। वो दोनों एक-दूसरे के दिल में ज़िंदा रहे — एक ऐसे एहसास की तरह, जो कभी न मिटे।
क्योंकि मोहब्बत का मतलब हमेशा साथ रहना नहीं होता,
कभी-कभी… मोहब्बत बस एक नाम बनकर उम्रभर दिल में बस जाती है।