"हर सुबह स्टेशन पर मिलती थी वो… पर एक दिन कुछ ऐसा कहा कि सब बदल गया"
Episode 2 — "कल बताऊंगी…"
🚉 स्टेशन की वही सुबह, लेकिन आज कुछ अलग था… कुछ अधूरा, कुछ डराता हुआ।
रात ठीक से नींद नहीं आई।
बार-बार वही आवाज़ कानों में गूंजती रही —
"कल बताऊंगी…"
क्या बताना चाहती थी वो?
क्या कोई राज़ था?
या फिर... कोई ऐसी बात जिसे मैं सुनना नहीं चाहता?
सुबह 7:55 AM
मैं स्टेशन पर पहुंच चुका था।
हाथ में वही पुरानी चाय, पर दिल में बेचैनी।
हर लोकल पर नजर थी…
हर चेहरे पर उम्मीद…
पर वो नहीं आई।
8:15 वाली लोकल निकल चुकी थी…
मैं वहीं खड़ा रहा — खामोश, उलझा हुआ।
"भाई, ट्रेन निकल गई। अब चलो!"
विक्की ने कहा।
मैंने जवाब नहीं दिया।
कुछ चीज़ें होती हैं…
जो किसी शेड्यूल पर नहीं चलतीं —
जैसे दिल का इंतज़ार।
तीन दिन बीत गए।
वो नहीं आई।
हर सुबह मैं वहीँ खड़ा होता,
हर शाम खाली लौटता।
स्टेशन अब वीरान लगता था — भीड़ के बावजूद।
चौथे दिन, जब मैं लौटने ही वाला था…
एक हलकी आवाज़ सुनाई दी।
"आरव?"
मैं पलटा…
वो थी।
पर आज… वो पहले जैसी नहीं थी।
आंखों के नीचे हल्के काले घेरे, बाल बिखरे हुए, चेहरा उतरा हुआ।
"तुम ठीक हो?"
वो कुछ पल चुप रही।
फिर बोली —
"माफ़ करना… मैं कुछ दिनों के लिए बाहर चली गई थी।
"कहां?"
मैंने तुरंत पूछा।
"बस… थोड़ा दूर।"
उसका ये ‘थोड़ा दूर’… मेरे लिए बहुत दूर था।
मैंने कुछ और पूछना चाहा,
पर उसने बात बदल दी।
"चलिए… आज प्लेटफॉर्म 3 पर चलते हैं।"
हम दोनों चुपचाप चल दिए।
प्लेटफॉर्म 3 पर भीड़ कम थी।
वो बैठ गई।
मैं उसके पास।
"तुम मुझसे कुछ कहना चाहती थी… याद है?"
उसने मेरी तरफ देखा…
और फिर नजरें फेर लीं।
"आरव… तुमने कभी किसी अपने को खोया है?"
मैं चौंका।
"क्यों पूछ रही हो?"
"बस यूं ही… कभी-कभी कुछ सवाल जवाब से ज़्यादा ज़रूरी होते हैं।"
वो उठी।
चलने लगी।
मैं उसके पीछे-पीछे।
"नेहा…"
(हाँ, मैंने आखिरकार उसका नाम पूछ ही लिया था — तीन दिन पहले।)
"अब तो बता दो।"
वो रुक गई।
धीरे से बोली —
"क्या तुम्हें लगता है… हर कहानी का हैप्पी एंड होता है?"
"नहीं… लेकिन कोशिश तो कर सकते हैं?"
"कभी-कभी कोशिशें भी कमजोर पड़ जाती हैं… जब किस्मत पहले से फैसला ले चुकी हो।"
वो जाने लगी।
"नेहा… क्या हम फिर मिलेंगे?"
वो बिना मुड़े बोली —
"अगर किस्मत ने चाहा… तो ज़रूर।"
और वो चली गई… एक बार फिर।
एक हफ्ता बीत गया।
वो नहीं आई।
ना कोई मैसेज,
ना कोई इशारा।
मैं लगभग मान चुका था कि वो कभी वापस नहीं आएगी।
फिर एक दिन…
मुझे स्टेशन पर एक बुज़ुर्ग मिलते हैं।
"बेटा, ये किताब गिर गई थी… एक लड़की छोड़ गई थी… शायद तुम्हारे लिए।"
मैंने किताब खोली।
पहला पन्ना पलटा।
और वहां लिखा था —
"अगर जानना चाहते हो कि मैं क्यों आती थी हर सुबह…
तो कल स्टेशन पर आना… प्लेटफॉर्म 5 पर… ठीक 9 बजे।"
— नेहा
मेरा दिल जोर से धड़कने लगा।
कल क्या होगा?
क्या वो वापस आई है?
या ये सिर्फ कोई इत्तेफाक है?
🧠 या फिर कोई राज़ है… जो अब तक छुपा हुआ था?