Aakhiri Aalingan in Hindi Fiction Stories by Shivangi Pandey books and stories PDF | आखिरी आलिंगन

Featured Books
Categories
Share

आखिरी आलिंगन

 लिखने से पहले मैं आपसे माफी चाहूंगी क्योंकि मेरे पास शब्दों की गहराई इतनी ज्यादा नही है ना ही गहरा अनुभव, न ही यात्रा वृतांत। यह अपने इर्द गिर्द भटकती भावनाओं को समेट पाने की एक कोशिश है। यह मेरी लेखनी का पहला सफर है उस सफर में मैं बहुत सारी गलतियां भी करूंगी आप उसे अंडरलाइन करते जाना ताकि अगली उपन्यास कम गलतियों के सफर पर हो ।

धन्यवाद

शिवी

29 /04/ 2023"

" गले लगना प्रेम में दिलाए गए सबसे खूबसूरत एहसासों में से एक है "

गले लगने का रिवाज यूं तो बहुत सरल है लेकिन एक उम्र तक ।

एक बच्चे के लिए गले लगना उतनी ही आम बात है जितना युवा के लिए मां बाप से गले लगना एक घटना सुखद या दुखद ।

एक बेटी को अपने पिता से गले लगने के लिए बिदाई का इंतजार करना पड़ता है और बेटे को सफलता का कई घरों में तो सिर्फ पैर छूने का ही रिवाज है मुझे तो ऐसा लगता है पैर छूने से अच्छा है कि उन्हें गले लगाकर एहसास दिलाया जाए कि इस बच्चे को पैदा करना उनके लिए एहसान नही था और ना ही पालकर कर बड़ा करना उनका महज फर्ज। ये एक बंधन है प्रेम का , खून का और सम्मान का भी जो है और रहेगा । गले लगने का रिवाज इतना संकोच से भरा न होता तो वृद्धा आश्रम एक आश्चर्य वाली बात होती । शायद !

फिल्मों में, नोवेल्स में दिखाई गए वो रिश्ते जमीनी हकीकत पर उतने भी सच नहीं । आपको याद है आपने अपने पिता को कब गले लगाया अगर आप बेटे है तो मां को कब लगे लगाया। कई बेटे तो मां को गले उनके मरने पर लगाते है उनकी समझ का विकास होने पर शायद पहली और आखिरी बार । बेटियां गले लगा लेती हैं अपनी माँ को कभी मजाक में , कभी प्यार से, कभी दुलार से लेकिन बहुत मुश्किल होता है आंखों में गहरी उदासी लेकर मां को गले लगाना । माता पिता और युवा बच्चों का रिश्ता कब फ़र्ज़ , लिहाज, मर्यादा और डर से जकड़ जाता है पता भी नही चलता । समझ में ही नही आता पाल पोश के बड़ा किया सिर्फ इसी एहसान को प्यार का नाम नही देना होता ।

इस उपन्यास में शायद आपको वो मसाला ना मिल पाए जो आप चाहते है लेकिन उन भावनाओं से जरूर मिल पाएंगे जो आप कभी न कभी स्वयं में ढूंढते हैं

एक गंभीर, सख्त और कम बोलने वाला पिता जो कभी इक्कीस बाईस वर्ष का अल्हड़, चंचल और मस्त मलंग लड़का था । उस लड़के के नाम । ........



••••••••••••••••••••••

यूं तो नवाबों की नगरी कहे जाने वाले लखनऊ में नवाबी बची नही है और तहजीब भी,,,,,, ‘ थी ’ के श्रेणी में आने को आतुर है ।

लेकिन मैं का हम वाली पहचान अभी बाकी है  और इस नए लखनऊ की सारी आदतें मधुर के अन्दर मौजूद हैं अरे रे मधुर को अपना ये नाम पसंद नही है क्योंकि वो अपने नाम से बिल्कुल ही विपरीत है लेकिन अब क्या कर सकते है मधुर का शॉर्ट नेम मधु जो हो जाएगा इक लड़के के लिए ये नाम थोड़ा फनी तो है। तो मधुर का मधुर ज्यादा अच्छा है अब भले ही इसके दोस्त मधुर का माधुरी कर देते थे ।

चौबे जी जोर जोर से चिल्ला रहे थे उठ जा नालायक कभी तो अपनी जिम्मेदारी समझ बेसुध मगरमच्छ की तरह पड़ा रहता है मैं दुकान के लिए लेट हो रहा हूं तू दो मिनिट में रेडी नही हुआ तो मैं चला जाऊंगा कॉलेज जाने के लिए पैसे भी नही दूंगा जाना फिर बस में चिल चिलाती गर्मी में।

महावीर चौबे की हजरत गंज में एक कपड़े की दुकान थी हम उसे छोटा मार्ट कह सकते है महावीर जी फौज के रिटायर थे तो समय के पाबंद तो होंगे ही । लेकिन सुरीली के जाने के बाद शायद मधुर की परवरिश वो अच्छे से नही कर पाए उन्हें इस बात का हमेशा खेद रहता था ।

लेकिन ऐसा नही था .....