MAIN JO KAH NA SAKI in Hindi Short Stories by MINAKSHI books and stories PDF | मैं जो कह न सकी

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मैं जो कह न सकी

भाग 1: बचपन की खामोशी
रेवा एक शांत स्वभाव की लड़की थी। वो बहुत कुछ महसूस करती थी, पर बोलती कम थी। उसे लगता था कि उसके मन की बातें कोई सुनता ही नहीं, या सुनकर भी समझना नहीं चाहता। उसका मन एक समंदर था — गहरा, भावुक, लेकिन बाहर से एकदम शांत।

उसका परिवार गरीब था। माँ से उसका रिश्ता वैसा नहीं था जैसा अक्सर बेटियों का होता है — नजदीकी, स्नेहभरा और खुला हुआ। वो अपनी माँ से अपने दिल की बातें नहीं कह पाती थी। घर की स्थिति और जिम्मेदारियाँ उसे समय से पहले बड़ा बना रही थीं।

पिता अनपढ़ थे, सीधे-सादे, लेकिन उसे समझ नहीं पाते थे। फिर भी, उनसे थोड़ी बहुत बातें कर लेती थी। बचपन में दूसरी कक्षा के समय उसके साथ एक ऐसी घटना घटी, जिसने उसका आत्मविश्वास तोड़ दिया। उस घटना ने उसे और भी ज्यादा चुप कर दिया। स्कूल में सभी से बातें करती थी, पर कोई उसका दोस्त नहीं बनता। धीरे-धीरे वो खुद से ही दूर होती गई।


 भाग 2: घर की दुनिया
रेवा के परिवार में माता-पिता और दो छोटी बहनें थीं। फिर एक और बहन का जन्म हुआ। अब खर्च और बढ़ गया, जबकि कमाने वाला केवल पिता ही था। माँ ने भी काम करना शुरू किया, जिससे छोटी बहन की देखभाल के लिए कभी रेवा, कभी दूसरी बहन को स्कूल से छुट्टी लेनी पड़ती थी।

घर में अक्सर लड़ाई होती थी, खासकर इस बात पर कि बेटा क्यों नहीं है। माँ हमेशा गुस्से में रहतीं, थकी हुई, बीमार और तनावग्रस्त। रेवा इस सबके बीच खुद को कहीं खोती जा रही थी।

भाग 3: कस्तूरबा विद्यालय — एक नई शुरुआत
एक दिन मोहल्ले में कुछ अधिकारी आए जो कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में लड़कियों का चयन कर रहे थे। रेवा का नाम भी उस सूची में आ गया। वह बेहद खुश थी — पहली बार उसे लगा कि वो घर से दूर जाकर चैन से पढ़ सकेगी। रोज़-रोज़ की डांट, ताने और जिम्मेदारियों से थोड़ा तो बच पाएगी।

उसे अपनी एक पड़ोसी सहेली के साथ वहाँ जाने का मौका मिला, जिससे उसे और हिम्मत मिली। लेकिन वह केवल एक जोड़ी कपड़े लेकर स्कूल पहुँची — वहाँ पहुँचकर कुछ अमीर घर की लड़कियाँ उसके कपड़ों और सादगी का मज़ाक उड़ाने लगीं।

पर रेवा ने जवाब में कुछ नहीं कहा। उसने अपनी सारी ताकत पढ़ाई में लगा दी। वह हर विषय में प्रथम आई। जो लोग कभी उसका मजाक उड़ाते थे, अब उससे सवाल पूछते, बातें करते, उसके पास बैठते।

जब टीचर कक्षा में नहीं होतीं, तो रेवा ही सबको पढ़ाती।

भाग 4: आवाज़ बनने लगी पहचान
अब उसे लगने लगा कि उसकी चुप्पी टूट रही है। पहली बार उसकी आवाज़ को महत्व मिल रहा था। अब वो सिर्फ एक गरीब लड़की नहीं थी — वो एक बुद्धिमान, मेहनती और समझदार छात्रा बन चुकी थी, जिसकी इज्जत होती थी।

उसकी मासूमियत अब उसकी कमजोरी नहीं, उसकी पहचान बन चुकी थी।

भाग 5: अभिव्यक्ति का अर्थ
एक दिन उसका चयन "मूल अधिकार" विषय पर राज्य स्तरीय सेमिनार के लिए हुआ। आयोजन लखनऊ में था। पर जब उसकी माँ को पता चला, उन्होंने डर के कारण मना कर दिया:

"मेरी बेटी अकेली लखनऊ नहीं जाएगी।"
पर उसकी शिक्षिकाओं ने माँ को समझाया, और अंततः माँ मान गईं। रेवा अपनी प्रिय अध्यापिका शबनम जहाँ मैडम के साथ लखनऊ गई।

सेमिनार में उसका विषय था: "अभिव्यक्ति का अधिकार"

जब वो मंच पर खड़ी हुई, तो उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था। लेकिन जब उसने बोलना शुरू किया, तो सब शांत हो गए।

उसने कहा:

"अभिव्यक्ति का अर्थ केवल बोलना नहीं है…
यह अपने अस्तित्व को पहचानना है।
सरकार ने मुझे बोलने का अधिकार दिया है,
लेकिन समाज और हालात ने मुझे चुप कराया है।
आज मैं सिर्फ अपने लिए नहीं,
उन सब लड़कियों के लिए बोल रही हूँ
जो अब भी चुप हैं, दबाई जा रही हैं,
और सुनने वाला कोई नहीं।"
पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा।

अंत: अब रेवा चुप नहीं है
अब रेवा वो नहीं रही जो सब कुछ सहती थी और कुछ कहती नहीं थी।
अब वो जान गई है — उसकी आवाज़ उसका अस्तित्व है।

वो समझ चुकी है कि:

"मैं जो कह न सकी... अब कह सकती हूँ।"
वो अब उन सभी को प्रेरणा देती है जो चुप हैं, जो डरते हैं, जो खुद को नहीं पहचानते।
क्योंकि अब रेवा ने अभिव्यक्ति का अर्थ जान लिया है।

समाप्त