Tees - 3 in Hindi Classic Stories by Shayar KK Shrivastava books and stories PDF | टीस - पहली बार देखा था उसे - 3

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टीस - पहली बार देखा था उसे - 3

 "ज़िंदगी कभी-कभी वो सवाल पूछती है जिसका जवाब किताबों में नहीं मिलता...मगर आँखें  सब बयां कर देती हैं "


कॉलेज का वो दिन किसी और ही तरह शुरू हुआ था। मेरे अंदर कुछ बदल रहा था — शायद धीरे-धीरे....और बिन बताए.... ।

लाइब्रेरी का वही कोना, वही खिड़की जहाँ से साहिल नज़र आता था, ये आज भी वही थे और वहीं थे। मगर आज कुछ अलग था... हर दिन से अलग। शायद कुछ इस तरह -- 

आज कुछ हसरतें थीं
जो पलने लगी थीं...

कुछ ख़्वाब थे
जिन्हें मैं संजोने लगी थी...

कुछ उम्मीद थी, जो चाहत बनकर
मेरी सांसों में उतरने लगी थी...

ये एहसास भी कोई जादू है न... सबकुछ बदल देता है...
हमारी सोच हमारे सपने, पहला -सा कुछ नहीं रहने देता है...

आज मैं किसी किताब के बग़ैर आई । आज निगाहों को हाथ में पकड़े किसी काग़ज़ के अक्षरों की ज़रूरत नहीं थी, आज प्यास किसी आँखों की थी जिनमें नज़र आता हर लफ़्ज़ मुझे अपनी तरफ़ खींचता है।
वो निगाहें जिनमें उतरते ही मुझे एक ज़रिया नज़र आता है जिसके रास्ते उस मकाम तक पहुँचा देते हैं जहाँ मैं सुबह की अंगड़ाइयां लेती हुई मुस्कुराती नज़र आती हूँ। 

मुझे पता नहीं चला इस जगह मौजूद हर शख़्स कब मेरी निगाहों से ओझल हो गया और मुझे सिर्फ़ साहिल नज़र आने लगा। मुझे किसी की लिखी शायरी याद आ गई जिनके कुछ शब्द उतरकर उन्हें मेरे सांचे में ढल रहे हों....

तुम कमाल करते हो...
यूं धड़कनों का मेरी इस्तेमाल करते हो...

यूं ख्वाबों में आकर...
हक़ीक़त में परेशान करते हो...

अचानक से कुछ गिरने की आवाज़ आई , मैं यकायक ख़्वाब की दुनियां से वापस आई। मैंने देखा कमरे में काफ़ी चहल- पहल थी। मैंने चारों तरफ़ नज़र दौड़ाकर कुछ छिपाने की कोशिश की जिसे किसी ने नहीं देखा। सबका ध्यान अपनी किताब या कॉपी पर था। 

मैंने दोबारा उस खिड़की की तरफ़ नज़र दौड़ाई , वहां कोई नहीं था। मेरे चेहरे की रंगत कुछ यूं उतरी जैसे कोई दो दिन से बीमार हो गया हो। साहिल आज आया नहीं... । सब ठीक तो है... कहीं कोई बात तो नहीं...। वो absent तो नहीं करता है...

मैं भी कितनी पागल हूँ... रोज़ मिलती हूँ मगर कभी पूछा तक नहीं । कहाँ रहता है, कितनी दूर से आता है, किस चीज से आता है...मुझे कुछ पता नहीं। किस्से पूछूं...किसी से बात भी तो नहीं करता । ऐसा तो लड़का ही नहीं देखा...कोई तो दोस्त होता, आख़िर किसी से तो बात करता। मैं क्या करूं किस्से पूछूँ....!! किसी से क्यों उसने मुझसे क्यों नहीं बताया... मैंने पूछा नहीं तो क्या ख़ुद से तो बता सकता था। आख़िर यहां उसका है ही कौन मेरे सिवा...!

अच्छा न...आए न सिर्फ़ उसकी सारी ख़ामोशी मैं ख़त्म करती हूँ।  ख़ामोश रहो और महसूस करो - उसने कह दिया और मैं रह लूँ खामोश....! कहना आसान है कह दिया , मैं क्या महसूस कर रही मैं ही जानती हूँ। उसे कुछ पता भी है कि मुझे क्या महसूस होता है... नहीं आने का था नहीं आया और मैं यहाँ कितनी परेशान हूँ उसे पता भी है....?

मैंने तो कहा भी जो महसूस करती हूँ.... कई बार अपनी आँखों से कई बार हरकतों से ।

उसने कब खुलकर कहा कि मैं भी उसकी कोई लगती हूँ...? दिल में कुछ रहे तब तो कहेगा...आज सिर्फ़ आ जाए... मैं सब पूछ के रहूंगी कहां रहता है, लेट क्यों हुआ.... सिर्फ़ बोले इसबार अदिति कुछ मत कहो बस महसूस करो............