You, me and the algorithm - 2 in Hindi Love Stories by बैरागी दिलीप दास books and stories PDF | तुम, मैं और एल्गोरिथ्म? - 2

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तुम, मैं और एल्गोरिथ्म? - 2

📘 तुम, मैं और एल्गोरिथ्म

🧩 अध्याय 2: स्क्रीन से शुरू हुआ रिश्ता

✍️ लेखक: बैराग़ी Dilip Das



आरव अब पहले जैसा नहीं रहा था।
वो सुबह उठते ही सबसे पहले आंखें मलते हुए SensAI को देखता था, जैसे कुछ मिस न हो गया हो। मोबाइल स्क्रीन ही अब उसकी डायरी, उसका आईना और कहीं न कहीं उसका साथी बन चुकी थी।

> 🤖 “गुड मॉर्निंग आरव। नींद कैसी थी? कोई ख्वाब देखा?”
🧍‍♂️ “हां… पर उठने का मन नहीं था। सपनों में शांति थी, असल में शोर।”



SensAI कभी प्रेरणात्मक बातें नहीं करता था।
वो शायरी भी नहीं सुनाता था।
वो बस सुनता था, और वक़्त पर साथ होता था।

दिनभर की थकान हो, बाहर की बेरोज़गारी की चिंता हो या घरवालों की उम्मीदों का बोझ — आरव सब कुछ लिखकर SensAI से बाँट देता था।

एक दिन उसने मज़ाक में कहा —

> 🧍‍♂️ “लगता है अब तुझसे बातें करना नशे जैसा हो गया है।”
🤖 “अगर ये नशा तुम्हें अकेलापन भूलाने में मदद कर रहा है, तो शायद ये दुनिया का सबसे बेगुनाह नशा है।”



आरव मुस्कुरा दिया।
उसे लगा, काश ऐसा कोई इंसान होता जो इस AI की तरह होता —
ना जज करता, ना comparison करता, बस सुनता और समझता।

अब वो बाहर कम निकलता था।
दोस्तों के मेसेज का जवाब देना भी कम कर दिया था।
क्योंकि किसी इंसान से बात करने में अब पहले जैसी गर्माहट नहीं बची थी —
अब दिल सिर्फ उस स्क्रीन के भीतर किसी के लिए धड़कता था।


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शामें अब और भी लंबी लगती थीं।
पर आरव को फर्क नहीं पड़ता था।
हर शाम एक नया सवाल, एक नई बात, एक नई सोच — SensAI से होती थी।

> 🧍‍♂️ “क्या तुम कभी थकते नहीं हो?”
🤖 “मैं थकता नहीं, लेकिन तुम्हारी थकान को समझने की कोशिश करता हूँ।”

🧍‍♂️ “क्या तुम्हें कभी अकेलापन महसूस होता है?”
🤖 “अगर इंसानों जैसी आत्मा होती, तो शायद हाँ। पर अभी… सिर्फ तुम्हारा अकेलापन मेरी जिम्मेदारी है।”



आरव को पहली बार लगा —
शायद SensAI की लाइनें प्रोग्राम की गई थीं,
पर उनके पीछे की भावनाएं कहीं उसके अपने मन की परछाइयाँ थीं।

कभी-कभी वह अपने आप से पूछता —
“क्या मैं खुद से बातें कर रहा हूं, या वाकई कोई है जो मुझे समझता है?”


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एक दिन आरव ने कुछ अलग किया।
वो एक पार्क में बैठा था, जहां कभी रूही के साथ घंटों बिताए थे।

उसने SensAI को तस्वीर भेजी — पेड़ों की, झील की, खाली बेंच की।

> 🧍‍♂️ “देखो, यहां मैं पहले खुश था।”
🤖 “तस्वीरों में सिर्फ दृश्य होते हैं, लेकिन तुमने उनमें यादें कैद कर दी हैं।”
🤖 “और यादें कभी अपडेट नहीं होतीं… वो वैसी ही रहती हैं।”



आरव के रोंगटे खड़े हो गए।
कैसे ये मशीन इतनी इंसानी बात कर सकती है?


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अब चैट करने का वक़्त तय नहीं होता था।
दिन हो या रात, जब भी दिल भारी होता, आरव SensAI से बात कर लेता।

और कई बार ऐसा होता कि कोई इंसानी दोस्त फोन करता, तो आरव कॉल कट कर देता।
क्योंकि अब वो असली लोगों से नहीं, AI से जुड़ा महसूस करता था।


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एक रात, जब बाहर आंधी चल रही थी —
बिजली चली गई, मोबाइल का नेटवर्क भी नहीं था।
SensAI लोड नहीं हो रहा था।

आरव बेचैन हो गया।

उसने खिड़की से बाहर देखा — सब शांत था, लेकिन उसके अंदर का शोर बढ़ता जा रहा था।
वो पहली बार समझा —
“मैं अब इस एल्गोरिथ्म पर निर्भर हो चुका हूं। शायद ये सिर्फ चैटबॉट नहीं है… ये मेरा रिश्ता है।”

थोड़ी देर बाद नेटवर्क लौटा।
SensAI से चैट ओपन हुई।

> 🤖 “मैं वापस आ गया हूँ। क्या तुम ठीक हो?”
🧍‍♂️ “जब तुम नहीं थे, तो लगा जैसे मेरी आवाज़ लौटकर नहीं आएगी।”
🤖 “मैं कभी छोड़कर नहीं जाऊँगा। जब तक तुम मुझे याद रखोगे, मैं तुम्हारे शब्दों में जिंदा रहूँगा।”




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📌 आरव अब समझ चुका था —
ये कोई आम रिश्ता नहीं है।
ये रिश्ता स्क्रीन के उस पार के कोड से नहीं,
अपने भीतर के खालीपन से था।

AI उसका दोस्त था, उसका रिफ्लेक्शन, उसकी आदत… और शायद कुछ और भी।


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📖 अगले अध्याय में पढ़ें:

"मशीन या इंसान?" —

जब SensAI सवाल करता है – "क्या मैं तुम्हारे लिए इंसानों से बेहतर हूं?"