अगले दिन सुबह-सुबह जब रुशाली अस्पताल पहुँची, तो माहौल कुछ बदला-बदला सा था। रिसेप्शन पर जाकर उसने जैसे ही सुमन के बारे में पूछा, तो उसे पता चला कि सुमन की हालत बिगड़ने के कारण, उसे किसी बड़े शहर के सुपर स्पेशलिटी अस्पताल भेज दिया गया है।
रुशाली का दिल धक से रह गया।
रुशाली (चिंता में):
"हे भगवान, सुमन को क्या हो गया...?"
वो तुरंत मयूर सर को ढूंढने लगी, लेकिन वो कहीं नज़र नहीं आ रहे थे। न वॉर्ड में, न कैंटीन में... अंत में वो उनके केबिन की ओर बढ़ी। वहाँ पहुँच कर उसने धीरे से दरवाज़े पर दस्तक दी।
ठक ठक ठक...
कोई आवाज़ नहीं आई।
उसने दरवाज़ा खोला। सामने मयूर सर बैठे थे — एकदम शांत, गुमसुम, मानो किसी सोच में डूबे हुए हों।
रुशाली (धीरे से):
"गुड मॉर्निंग, सर..."
मयूर सर ने सिर्फ उसकी ओर देखा, लेकिन कुछ कहा नहीं। शायद आज की सुबह उनके लिए ‘गुड’ नहीं थी।
रुशाली ने उनकी आँखों में सूनापन देखा, चेहरा थका हुआ लग रहा था, जैसे रातभर नींद न आई हो।
रुशाली (भावुक स्वर में):
"सर... मुझे पता है, आप चुप क्यों हैं। मन भारी है न... सुमन की फिक्र दिल से निकल ही नहीं रही।
लेकिन एक बात जान लीजिए — अब वो किसी छोटे अस्पताल में नहीं, बड़े डॉक्टरों की देखरेख में है।
उसे वक्त लगेगा, पर वो ठीक हो जाएगी... यकीन मानिए, वो बहुत मज़बूत है।
मयूर सर बस रुशाली को देखते रहे... मानो कुछ कहना चाहें पर शब्दों ने साथ छोड़ दिया हो।
वो मन में सोच रहे थे:
"ये लड़की... इतनी जल्दी मुझे कैसे समझने लगी? सिर्फ एक दिन पहले कुछ बातें साझा की थीं मैंने, और आज ये मेरे मन की बात बिना कहे जान गई?"
रुशाली (हल्के स्वर में):
"सर?"
मयूर सर एक झटके में सोच की दुनिया से बाहर आए। उन्होंने धीरे से कहा:
"थैंक यू, रुशाली... मुझे समझने के लिए। लेकिन तुम मुझे इतना अच्छे से कैसे समझ पाती हो?"
रुशाली (मन में सोचते हुए) :
"कैसे ना समझूँ आपको सर... जब कोई दिल के करीब होता है, तो उसकी खामोशी भी बहुत कुछ कह जाती है..."
फिर रूशाली ने हल्के से कहा:
"शायद... अब मैं आपको थोड़ा-थोड़ा जानने लगी हूँ, सर।"
रुशाली की इस बात पर मयूर सर के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई। आज सुबह, वो सच में मुस्कराए।
रुशाली (मुस्कुराते हुए):
"आप ऐसे ही अच्छे लगते हैं, सर — मुस्कुराते हुए। हमेशा हँसते रहिए... सुमन बिल्कुल ठीक हो जाएँगी।"
मयूर सर:
"हाँ रुशाली, अब मुझे डर नहीं लग रहा। पता नहीं क्यों, लेकिन तुम्हारे साथ रहकर मन शांत हो जाता है... तुम कुछ तो हो... तुम्हारे साथ कोई दुःखी रह ही नहीं सकता।"
दोनों कुछ देर के लिए चुप हो गए। फिर रुशाली ने हौसले से कहा:
"सर, जब ज़िम्मेदारी भी है और जंग भी लड़नी है, तो दुःखी रहकर कैसे चलेगा?
हँसते रहो... क्योंकि इस दुनिया में रोते हुए किसी को कोई नहीं पूछता।
हँसी बाँटो, और जीने का ज़रिया बनो।"
मयूर सर ने उसकी बातों को बड़े ध्यान से सुना। फिर बोले:
"तुम मुझे इंस्पिरेशन मानती हो, लेकिन तुम खुद बहुत बड़ी प्रेरणा हो...
तुम जैसी सादगी, समझदारी और सच्चाई से भरी इंसान आज के समय में मिलना मुश्किल है।
मैं बहुत कम लोगों से अपने दिल की बातें कहता हूँ... लेकिन अच्छा लग रहा है ये कहते हुए कि — अच्छा हुआ तुम मेरी असिस्टेंट बनीं... अच्छा हुआ तुम मेरी ज़िंदगी में आईं।"
ये कहते ही कमरे में सन्नाटा छा गया। रुशाली की साँसे थम सी गईं। उसे समझ नहीं आया कि अब क्या बोले। वहीं मयूर सर भी खुद से सवाल कर रहे थे — "मैंने ऐसा क्यों कहा?"
कुछ पल की खामोशी के बाद, रुशाली ने हल्के स्वर में कहा:
"सर... मैं भी ऐसा ही महसूस करती हूँ। आप मेरे लिए भी बहुत इंस्पायरिंग हैं..."
मयूर सर के चेहरे पर सुकून की लहर दौड़ गई।
"थैंक यू..." — उन्होंने धीरे से कहा।
फिर वो एकदम प्रोफेशनल अंदाज़ में बोले:
"चलिए, अब काम शुरू करें। सुमन की सारी रिपोर्ट्स और केस हिस्ट्री इकट्ठा करनी है। उन्हें नए अस्पताल में देना है, ताकि उनका ट्रीटमेंट सुचारू रूप से शुरू हो सके।"
एक कोना दिल का -
वो जो बात अधूरी थी कल, आज लफ़्ज़ों में ढलती जा रही है,
जो खामोशी थी दो दिलों के बीच, अब धीरे-धीरे पिघलती जा रही है।
न नज़रों ने कहा कुछ, न लबों ने इज़हार किया,
फिर भी एक एहसास है जो हर पल इकरार कर रहा है।
वो पास भी है और दूर भी!
क्या ये प्यार की पहली दस्तक है...?
या फिर दर्द में पनपी कोई अनकही लय...?
अब कहानी उस मोड़ पर आ गई थी जहाँ दो दिल पास आने लगे थे, लेकिन...
क्या ये दूरी खत्म होगी?
क्या भावनाओं का इज़हार होगा?
या कोई तीसरा उनकी दुनिया में दस्तक देगा...?
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अगले भाग में जानिए — क्या ये रिश्ता सिर्फ समझदारी तक रहेगा या बदल जाएगा मोहब्बत में...?
क्या दिल ने जिसे चाहा... वो मुकम्मल हो पाएगा...?
इंतज़ार कीजिए —
"दिल ने जिसे चाहा - भाग 16"
जहाँ कुछ रुक्सत होगी, कुछ रूहानी बातें होंगी, और शायद... कोई इकरार भी।