🌿 भाग 1: नज़रों से शुरू हुई दास्तान
सत्या… एक साधारण लेकिन समझदार लड़का। छोटे से गाँव में रहने वाला, पढ़ाई में अच्छा, लेकिन दिल का और भी अच्छा। जब वह कक्षा 7 में पढ़ने के लिए अपने गाँव से लगभग 5-6 किलोमीटर दूर एक स्कूल में दाखिला लेता है, तब उसे नहीं पता होता कि ज़िंदगी में एक नई कहानी शुरू होने वाली है।
हर रोज़ वह ऑटो से स्कूल जाता। तो बस पढ़ाई और मेहनत ही उसका लक्ष्य होता।
लेकिन सब कुछ बदल गया, जब अगली साल — कक्षा 8 में — एक नई लड़की स्कूल में आई। उसका नाम था सोनाक्षी। सत्या के घर से लगभग 2 किलोमीटर पहले उसका घर पड़ता था। पहली बार जब सत्या ने सोनाक्षी को स्कूल की गेट से अंदर आते देखा, तो जैसे वक्त थम गया हो।
उसकी सादगी, उसकी मुस्कान, उसकी झुकी हुई नज़रें — सत्या का दिल चुपचाप कह उठा: "यही है वो…"
धीरे-धीरे सत्या उसे रोज़ देखने लगा। कभी स्कूल जाते वक्त ऑटो में, कभी छुट्टी के समय स्कूल गेट पर। शायद सोनाक्षी भी कुछ महसूस करती थी, क्योंकि कभी-कभी वह भी नज़रें मिलाकर हल्की-सी मुस्कान दे देती थी।
पर दोनों में से किसी की भी हिम्मत नहीं हुई कि अपने दिल की बात कह सके।
सत्या ने सोच लिया था — "आख़िरी पेपर के दिन मैं उसे प्रपोज़ कर दूँगा।"
लेकिन ज़िंदगी ने फिर एक मोड़ लिया — ठीक पहले पेपर के दिन कोरोना के कारण लॉकडाउन लग गया, और स्कूल बंद हो गया।
जो कहानी आँखों की भाषा में शुरू हुई थी, वो अब एक अधूरी ख़ामोशी बनकर रह गई।
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🍂 भाग 2: चुपचाप बसी मोहब्बत
कई महीने बीत गए। सब कुछ बंद था — स्कूल, रास्ते, मुलाकातें… सिर्फ़ दिल की धड़कनें चल रही थीं, और यादें।
लॉकडाउन खुलते ही एक दिन सत्या स्कूल जाने के लिए ऑटो में बैठा। सौभाग्य से उसी ऑटो में सोनाक्षी भी थी। दोनों की नज़रें मिलीं… लेकिन सोनाक्षी ने झेंप कर अपनी नज़रें झुका लीं।
वो ख़ामोशी अब और भी गहरी लगने लगी थी।
अब हर दिन स्कूल आते-जाते वक्त दोनों एक ही ऑटो में होते। कोई बात नहीं होती — सिर्फ़ नज़रें।
कभी हल्की-सी मुस्कान, कभी सिर्फ़ झुकी हुई पलकें।
एक दिन जब स्कूल की छुट्टी हो रही थी, सत्या किसी दूसरी स्कूल की बस के पास खड़ा था। सोनाक्षी बस में बैठी थी। उसने सत्या को देखा और तुरंत अपनी नज़रें झुका लीं — लेकिन चेहरा बता रहा था कि दिल में बहुत कुछ छिपा है।
समय बीतता गया। अब दोनों की कक्षाएं अलग-अलग हो चुकी थीं।
सत्या ने कई बार सोचा कि बात करे, लेकिन डर और झिझक हमेशा रास्ता रोक लेते। दोनों अब सिर्फ़ "चुपचाप देखना" जानते थे।
वक़्त यूँ ही गुजरता रहा और फिर कब 12वीं कक्षा आ गई, पता ही नहीं चला।
अब दोनों अपनी-अपनी ज़िम्मेदारियों में व्यस्त हो गए थे — परीक्षा, करियर, परिवार का दबाव। पर दिल अब भी वहीं अटका था, उस एक मुस्कान में, उस एक झुकी हुई नज़र में।
12वीं के आख़िरी दिन, फ़ेयरवेल पर सत्या ने ठान लिया — "आज कुछ कह दूँगा।"
लेकिन सोनाक्षी अपने दोस्तों के साथ फोटो खिंचवाकर जल्दी चली गई।
सत्या ने जाते-जाते उसका बैग चुपचाप खोलकर एक छोटा सा काग़ज़ डाला —
> "अगर कभी फिर से मिलें... तो शायद मैं अपने जज़्बात लफ़्ज़ों में कह सकूं — जो अब तक सिर्फ़ नज़रों ने कहा है..."