2012 का साल...
जीवन उस समय एक साधारण सी कहानी थी।
मैं अपने घर का सबसे छोटा बेटा था — छह भाई और तीन बहनों के बीच सबका लाड़ला।
पापा की आंखों का तारा और अम्मी की ममता का सहारा।
लेकिन उस साल... सबकुछ बदल गया।
पापा इस दुनिया को छोड़ गए।
ऐसी खामोशी घर में छा गई जिसे कोई तोड़ नहीं सकता था।
जब सब लोग रो रहे थे, मैं चुप था... जैसे मेरे अंदर कुछ टूट कर बिखर गया हो।
वो साया जो हर मुसीबत में मेरे सिर पर था — उसी दिन मुझसे छिन गया।
घर का हर कोना उनकी यादों से भरा हुआ था — चाय की खुशबू से लेकर नमाज़ की दुआ तक।
और मैं? मैं खुद से दूर होता जा रहा था।
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फिर उसकी ज़िन्दगी में आई — तरन्नुम।
जैसे ज़िन्दगी ने फिर से मुस्कुराना सीख लिया हो।
वो लड़की उसकी ज़िन्दगी में एक रोशनी बनकर आई — दर्द भरे सालों के बाद एक सुकून जैसी।
हम पहले सिर्फ दोस्त थे... पर दिल दोस्ती में कब रुकता है?
उसकी हँसी मेरे लिए दवा थी, और उसकी बातें मेरे टूटे दिल की मरहम।
वो कहती थी —
"शोएब, तुम्हारे साथ वक्त कटता नहीं, उड़ जाता है..."
और मैं कहता था —
"तरन्नुम, अगर तुम नहीं होती तो शायद मैं जी भी न पाता..."
कब मोहब्बत हो गई, पता ही नहीं चला।
वो मेरे हर दिन का पहला हिस्सा बन गई थी... और हर रात का आख़िरी ख़्याल।
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लेकिन मोहब्बत हमेशा साथ नहीं चलती।
एक दिन उसने बस इतना कहा —
"शोएब, मेरी शादी तय हो गई है... मम्मी-पापा की रज़ामंदी से। मैं मना नहीं कर पाई..."
उस पल सब कुछ थम सा गया।
जैसे दिल किसी ने सीने से निकालकर फेंक दिया हो।
मैं उस रात बहुत रोया... अकेले, चुपचाप...
ना किसी से शिकायत, ना किसी से सवाल — बस खुद से लड़ाई थी।
वो चली गई... किसी और की ज़िन्दगी में — और मुझे छोड़ गई, मेरे तनहा दर्द के साथ।
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फिर मैं बिगड़ गया... सच में।
घरवालों से दूर, खुद से और भी ज़्यादा।
ना कोई मकसद था, ना कोई मंज़िल।
हर रोज़ जैसे बिना वजह जीता था।
लोगों ने कहा मैं बदल गया हूं —
लेकिन सच्चाई ये थी कि मेरा असली रूप अब सामने आया था:
टूटा हुआ, खाली, और अधूरा।
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फिर दो साल पहले... अफरीन आई।
एक नई रौशनी... एक नई दुआ।
अफरीन मेरी ज़िन्दगी में ऐसे आई जैसे किसी अंधेरे कमरे में अचानक उजाला हो जाए।
वो शांत थी, समझदार थी... और सबसे खास बात — उसकी आंखों में मेरी टूटी हुई रूह को समझने वाली मासूमियत थी।
उसने मुझसे कुछ नहीं पूछा।
ना तरन्नुम के बारे में, ना मेरे बीते वक्त के ज़ख्मों के बारे में।
वो बस रही... मेरे हर छोटे सुख में, हर थकी शाम में।
उसने मुझे दोबारा ज़िंदा किया।
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लेकिन आज भी संघर्ष जारी है।
अफरीन के साथ ज़िन्दगी ठीक है... पर अंदर का दर्द आज भी कभी-कभी उभर आता है।
मैं अब भी हर रात एक लंबी सांस लेता हूं — उस बीती मोहब्बत के लिए, और उस मोहब्बत के लिए जो अब मेरे पास है।
शोएब अब एक पति है, एक जिम्मेदार इंसान है —
पर दिल के किसी कोने में अब भी एक शोएब है जो तरन्नुम से मिलना चाहता है… बस इतना कहने के लिए:
"तेरे जाने के बाद भी मैं तेरा ही रहा..."
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अफरीन मुझे हर दिन जीना सिखा रही है।
उसके हाथ की चाय, उसका खामोश साथ, उसका मेरा नाम लेना —
ये सब मेरी ज़िन्दगी का नया संगीत बन चुके हैं।
मैं उससे मोहब्बत करता हूं... शायद उतनी नहीं जितनी उसने डिज़र्व की,
पर जितनी मेरी टूटी रूह दे सकती थी — उतनी ज़रूर दी।
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📌 आख़िरी पंक्तियाँ:
ज़िन्दगी ने मुझे दो दिल दिए…
एक जिसमें तरन्नुम थी… और एक जिसमें अफरीन है।
पहले दिल ने मुझे जीना सिखाया,
दूसरे दिल ने मुझे बिखरे हुए जीवन को समेटना सिखाया।
और मैं?
मैं आज भी चल रहा हूं…
क्योंकि सफर रुकता नहीं, चाहे रास्ते कितने भी अंधेरे क्यों न हों।