Mahashakti - 46 in Hindi Mythological Stories by Mehul Pasaya books and stories PDF | महाशक्ति - 46

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महाशक्ति - 46


🌺 महाशक्ति – एपिसोड 46

"भीतर की छाया और जीवन की कसौटी"



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🕯️ प्रस्तावना – जब बाहरी युद्ध समाप्त होता है, तो भीतर की छाया जागती है…

मानवकुल का द्वार खुल चुका था।

यह कोई महल, कोई शिविर या कोई संग्रामभूमि नहीं था।
यह था —
जीवन के बीचों-बीच बसा एक सादा, शांत गाँव…
जहाँ लोग ना युद्ध जानते थे, ना तपस्या —
सिर्फ जीना जानते थे।

गुरुजी ने कहा:

> "अब तुम्हें स्वयं को उन लोगों के बीच देखना होगा —
जो बिना ज्ञान, बिना शक्ति,
फिर भी सबसे संपूर्ण होते हैं।"




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🌾 मानवकुल – साधारण लोग, असाधारण दृष्टि

गाँव के लोग मुस्करा रहे थे।
उनकी आँखों में भय नहीं,
बल्कि एक सीधा अपनापन था।

एक वृद्धा ने अर्जुन से पूछा:
"तुम कौन हो बेटा?"

अर्जुन: "मैं… एक युग के युद्ध में भाग ले रहा हूँ।"

वृद्धा हँसी:
"युद्ध? कौन सा?
यहाँ तो हम हर दिन की रोटी के लिए लड़ते हैं…
क्या वो कम बड़ा संग्राम है?"

अनाया को एक युवा लड़की मिली —
जो अपनी शादी टूटने के बाद भी
फूल बेच रही थी।

"मेरा प्रेम अधूरा रहा, दीदी…
पर जीवन नहीं रुकता।
प्रेम भी कभी-कभी अकेले ही निभाना पड़ता है।"

अनाया मौन हो गई।


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🧿 ओजस – नेतृत्व बनाम विनम्रता

गाँव के लोग ओजस को घेर लेते हैं।

"तुम दिव्य लगते हो…
क्या तुम हमारे नेता बनोगे?"

ओजस चौंकता है।
पहली बार किसी ने
उसे शक्ति के लिए स्वयं बुलाया।

पर गुरुजी की बात याद आई:

> "नेतृत्व वो नहीं जो ऊँचाई से आदेश दे,
बल्कि वो है जो नीचे झुककर सबको उठा ले।"



ओजस ने पूछा:
"क्या तुम्हें नेता चाहिए…
या कोई साथी जो तुम्हारे साथ काम करे?"

गाँव वालों ने कहा:
"हमें वो चाहिए जो हमारे जैसा हो,
ना कि हमसे अलग।"

ओजस मुस्कराया।

“तो मैं सबसे पहले तुम्हारे साथ खेतों में उतरूँगा।”


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🖤 शल्या – अतीत की सजा और आत्ममुक्ति

शल्या ने गाँव की एक बूढ़ी औरत को देखा —
जो दिन भर मिट्टी खोदती रही।

"आपका बेटा नहीं संभालता आपको?"

"बेटा तो बहुत पहले चला गया।
मैं खुद को ही संभालना सीख गई।"

शल्या की आँखों में जलन थी।
उसे याद आया —
कैसे उसने अपने भ्रमित अतीत में
कई निर्दोषों को चोट दी थी।

"क्या आपने कभी खुद को दोष दिया?"

"हाँ… बहुत सालों तक।
पर एक दिन जब आईने में चेहरा नहीं पहचान पाई…
तब खुद को माफ कर दिया।"

शल्या फूटकर रो पड़ी।

"मैं अब तक छाया के अपराध खुद पर ढोती रही।
पर शायद अब समय आ गया है —
खुद को मुक्त करने का।"


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🔮 छाया की अगली चाल – चेतना में प्रवेश

रात्रि को जब चारों सो रहे थे,
एक-एक कर सभी की चेतना में
छाया स्वयं उतर आई।

पर इस बार वह परछाई नहीं थी।
वह हर एक के भीतर की सबसे गुप्त आवाज़ बन गई थी।


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🌑 अर्जुन का सपना:

> “तू अनाया को खो देगा…
क्योंकि तू निर्णय लेते वक्त अक्सर भावनाएँ भूल जाता है।
क्या तू उसे अपनी यात्रा में पीछे छोड़ देगा?”



अर्जुन ने उत्तर दिया:

> “अगर मेरी यात्रा में वो पीछे है,
तो मैं वापस मुड़कर…
उसके साथ चलना पसंद करूँगा।”




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🌑 अनाया का सपना:

> “क्या तू बिना अर्जुन के जी पाएगी?
या तेरा अस्तित्व उससे बंधा है?”



अनाया ने कहा:

> “मेरा प्रेम उसका दर्पण है —
पर मेरा वजूद मेरी आत्मा से जुड़ा है।
मैं उसके साथ पूर्ण हूँ,
पर उसके बिना खाली नहीं।”




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🌑 ओजस का सपना:

> “तू शक्ति है…
लेकिन क्या तू उस शक्ति को कभी छोड़ सकेगा…
अगर तुझसे कहा जाए कि
किसी और को आगे बढ़ाना है?”



ओजस ने आँखें बंद कीं और बोला:

> “अगर मेरा झुकना
किसी और के उठने की वजह बने…
तो मैं धन्य हूँ।”




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🌑 शल्या का सपना:

> “तू अब भी खुद को छाया का अंश मानती है।
क्या तू कभी खुद को पूर्ण प्रेम के योग्य मानेगी?”



शल्या ने कहा:

> “ओजस ने मुझे अपनाया…
गाँव ने मुझे स्वीकारा…
अब समय है मैं भी खुद को प्यारा कह सकूँ।”




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✨ प्रभात – नई चेतना, नया जीवन

सुबह हुई।

चारों की आँखों में अलग तेज़ था।

मानवकुल के द्वार अब पूरी तरह खुल चुके थे —
पर बाहर जाने नहीं,
भीतर उतरने के लिए।

गुरुजी प्रकट हुए:

> “तुम अब मानव नहीं,
ना ही यक्ष या देव।
तुम अब वो हो
जो हर कुल की गहराई से गुज़रा है।”



"पर अंतिम परीक्षा शेष है —
संसार में लौटना।
तुम्हारा प्रेम तब सच्चा होगा…
जब वो किसी मंदिर या युद्ध में नहीं,
बल्कि साधारण जीवन में खड़ा रह पाए।"


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✨ एपिसोड 46 समाप्त