Mahashakti - 47 in Hindi Mythological Stories by Mehul Pasaya books and stories PDF | महाशक्ति - 47

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महाशक्ति - 47


🌺 महाशक्ति – एपिसोड 47

"वापसी और अधूरे उत्तर"



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🌅 प्रस्तावना – जहाँ यात्रा शुरू हुई थी, वहीं लौटना ही सच्चा परिवर्तन है…

यक्षगुरु ने अपनी करुणा से आशीर्वाद देते हुए कहा:

> "तुमने सात कुलों की यात्रा की…
लेकिन अब वक्त है लौटने का —
वहाँ, जहाँ से तुम निकले थे।
तुम्हारी जीत वहाँ नहीं,
बल्कि अपने लोगों के बीच सिद्ध होगी।"



चारों — अर्जुन, अनाया, ओजस और शल्या —
अब अपनी-अपनी भूमि की ओर रवाना हो गए।
लेकिन रास्ता अब वैसा नहीं रहा।

हर दिशा में अब छाया की एक अंतिम चाल प्रतीक्षा कर रही थी…


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🔥 अर्जुन की भूमि – अधूरा युद्ध

अर्जुन जब अपने नगर में लौटा,
तो द्वार पर ही उसे सैनिकों ने घेर लिया।

"तुम्हारी अनुपस्थिति में राजकाज बिगड़ चुका है, स्वामी।
एक राजनायक — शिवान्द — अब तुम्हारे नाम से शासन कर रहा है।"

अर्जुन को क्रोध नहीं आया।
उसने पूछा: "क्या जनता सुखी है?"

"नहीं," एक वृद्ध बोला,
"अब सिर्फ भय है…
और वो कहते हैं —
कि तुम लौट भी आओ, तो अब अनावश्यक हो।"

अर्जुन सिंहासन की ओर नहीं गया।

वह सीधे जनता के बीच बैठ गया —
और कहा:

> "अगर मैं तुम्हारा राजा नहीं,
तो चलो, मुझे सेवक ही मानो।
मैं तुम्हारे खेत जोतूँगा,
मैं तुम्हारे साथ नीर बहाऊँगा।
मुझे राज नहीं,
तुम्हारा विश्वास चाहिए।"



लोगों की आँखें भर आईं।
किसी ने चुपचाप उसका हाथ थामा।
अर्जुन मुस्कराया —
युद्ध नहीं हुआ, फिर भी विजय मिल गई।


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🌧️ अनाया की वापसी – भटका हुआ बालक

अनाया गाँव के पुस्तकालय पहुँची —
जहाँ पहले प्रेम पर आधारित ग्रंथ रक्षित थे।

अब वह जगह वीरान थी।
धूल जमी किताबें,
टूटी खिड़कियाँ, और मौन।

तभी एक बच्चा दौड़ता हुआ आया —
उसके कपड़े फटे थे, और वह भूखा लग रहा था।

"माँ…!"
उसने अनाया को गले लगा लिया।

अनाया चौंकी:
"मैं… तुम्हारी माँ नहीं…"

"लेकिन माँ भी तो कभी मेरी नहीं थी।
वो मुझे अकेला छोड़ गई थी।
आपके हाथों में वही… गर्माहट है।"

अनाया की आँखें भर आईं।
वो पहली बार खुद को केवल एक स्त्री नहीं,
बल्कि माँ की ऊर्जा में बदलता हुआ अनुभव करने लगी।

वो बच्चे को अपने पास बैठाकर बोली:

> "मैं नहीं जानती तेरा अतीत क्या है…
पर अब मैं तेरा भविष्य बनूँगी।"




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⚖️ ओजस की परीक्षा – जीवन या बलिदान

ओजस एक पहाड़ी गाँव में पहुँचा,
जहाँ छाया ने अपने शरणार्थियों को बंदी बना रखा था।

गाँव के मुखिया ने कहा:

"अगर तू सच में शक्ति है…
तो हमारे लिए युद्ध कर।"

पर वहीं एक वृद्धा ने कहा:

"अगर तू युद्ध करेगा,
तो और मासूम मरेंगे।"

ओजस के सामने दो रास्ते थे —

1. तलवार उठाकर गाँव को मुक्त कराना


2. या खुद जाकर छाया से शांति की शर्तों पर बात करना



उसने दूसरी राह चुनी।

छाया की शक्ति से भरी गुफा में
ओजस अकेले गया और बोला:

> "तू चाहती है लोग तुझे समझें…
पर तू कभी खुद को व्यक्त नहीं करती।
युद्ध नहीं —
अगर तुझे भी सुना जाए,
तो शायद तू शांत हो जाए।"



छाया पहली बार बोली नहीं —
बस आँखें बंद कर ग़ायब हो गई।

गाँव मुक्त हो गया —
बिना एक भी तलवार चले।


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🖤 शल्या – अंतिम संदेश और आत्ममुक्ति

शल्या वापस उसी वन में पहुँची,
जहाँ कभी उसने
छाया की सेविका बनकर निर्दोषों को मारा था।

वन शांत था —
लेकिन एक वृक्ष पर
काले अक्षरों में कुछ उभरा:

> "अगर तू सच में मुक्त है,
तो फिर इस वन में क्यों आई?
तू अभी भी मुझसे जवाब चाहती है।"
– छाया



शल्या फूट पड़ी।

"हाँ, मैं उत्तर चाहती हूँ…
कि मैंने तुझसे क्यों प्रेम किया…
क्यों तुझे माँ जैसा समझा…
जब तू केवल भय की मूर्ति थी!"

एक धीमा स्वर आया:

> "क्योंकि तू टूटी थी,
और मैं भी…
हम दोनों ने एक-दूसरे को
जैसा था, वैसा ही स्वीकारा।"



"तू अब मुझसे दूर हो गई है, शल्या…
इसलिए मैं अब तुझे मारना नहीं चाहती…
अब मैं तुझसे सिर्फ विदा लेना चाहती हूँ।"

शल्या ने हाथ जोड़े —
ना क्रोध था, ना भय…
केवल एक मौन विदाई।


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🌈 समापन – चार दिशाएँ, एक ऊर्जा

चारों लौट चुके थे।

लेकिन अब वे योद्धा नहीं,
बल्कि प्रेरणाएँ थे।

अर्जुन: एक नेता जिसने सेवा को चुना

अनाया: एक प्रेमिका जो अब माँ बन चुकी थी

ओजस: एक योद्धा जिसने संवाद को अपनाया

शल्या: एक राक्षसी-अंश वाली, जिसने माफी से मुक्ति पाई


गुरुजी दूर से देख रहे थे —
उनके होठों पर एक स्मित मुस्कान थी।

> "अब अंतिम युग आएगा…
जब छाया स्वयं एक देह में अवतरित होगी…
और तब युद्ध नहीं —
त्याग, सबकुछ तय करेगा।"




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✨ एपिसोड 47 समाप्त