जब भी कोई व्यक्ति जीवन मे समाज राष्ट्र के विकार विकास उद्भव अवसान को स्वंय देखता अनुभूति करता है और स्थिति काल परिस्थिति में अपने पराक्रम पुरुषार्थ कि अनुभूति करता है या कराने का प्राण पण से प्रयत्न करता है तो उसके प्रयत्न को समय काल अपनी पैनी दृष्टि से निहारता है और राष्ट्र समाज के समक्ष निर्णय हेतु प्रस्तुत कर देता है!जिसकी व्यख्या समयानुसार बदलते काल वक्त में होता रहता है साथ ही साथ उसके प्रभावों को पुनर्जीवित करने हेतु पुनरक्षित करने का दृढ़ता पूर्वक प्रयास करता है!व्यक्ति किसी भी क्षेत्र का सफल शिखर व्यक्ति हो सकता है कला या कलाकार ,विज्ञानवैज्ञानिकों ,लेखक चिंतक विचारक, व्यवसायी या राजनीति ,प्रशासक ऐसा व्यक्ति जब अपने जीवन पथ के मूल आचरण से हटकर कोई उपलब्धि हासिल करने हेतु प्रयासरत रहते हुए कार्य करता हैं तो निश्चित रूप से उसके अनुभव अनुभूति के पटल पर अतीत अवस्थापित एव प्रभावी रहता है उदाहरण के लिए यदि कोई कलाकार जो सफलता के शिखर पर हो और वह राजनीति में आ जाएं ऐसे उदाहरण भारत मे बहुत है जैसे सुनीलदत्त ,गोविंदा, अमिताभ बच्चन,विनोद खन्ना,शत्रुघ्न सिन्हा, नर्गिस दत्त ,हेमामालिनी आदि ना जाने कितने नाम जब ये हस्तियां राजनीति में आई तो इनकी विरासत मात्र भरतीय सिनेमा की सफलता के चका चौंध को छोड़कर जन सेवा का कोई उपलब्धि नही थी और राजनीति में भी इनके द्वारा अपनी कलात्मक जीवन शैली का प्रयोग किया गया जो कभी सफल कभी असफल रहा इसी प्रकार खेल जगत से कीर्ति आजाद, चौहान, आदि ने राजनिति में जहां क्रिकेट की तरह ना आन ना आफ ना लेग लांग लेग ना गुगली ना पेश नही होता क्रिकेट की पिच की तरह ही सार्वजनिक जीवन मे राजनीति का प्रयोग किया इसी प्रकार बहुत महत्वपूर्ण प्रशासकों द्वारा राजनीती में आकर अपनी शेष आकांक्षाओं को पोषित कर प्राप्त किया गया और किया जा रहा है! किसी भी क्षेत्र का सफल शिखर व्यक्तित्व राजनीति में शिखर से ही शुभारंभ करता है चाहे कलाकार हो खिलाड़ी हो प्रशासक हो या अन्य कोई लेकिन सफल राजनेता या राजनीतिज्ञ सफल कलाकार ,सफल खिलाड़ी बन जाय सर्वथा असम्भव यहाँ तक कि बड़े बड़े धर्माधिकारी राजनेता बन गए किंतु कोई राजनेता धर्माधिकारी या धर्मसेवक बना हो वैश्विक स्तर पर अबतक कोई उदाहर नही है!!जब भी कोई व्यक्ति जीवन मे समाज राष्ट्र के विकार विकास उद्भव अवसान को स्वंय देखता अनुभूति करता है और स्थिति काल परिस्थिति में अपने पराक्रम पुरुषार्थ कि अनुभूति करता है या कराने का प्राण पण से प्रयत्न करता है तो उसके प्रयत्न को समय काल अपनी पैनी दृष्टि से निहारता है और राष्ट्र समाज के समक्ष निर्णय हेतु प्रस्तुत कर देता है जिसकी व्यख्या समयानुसार बदलते काल वक्त में करता रहता है साथ ही साथ उसके प्रभावों को पुनर्जीवित करने हेतु पुनरक्षित करने का दृढ़ता पूर्वक प्रयास करता है!व्यक्ति किसी भी क्षेत्र का सफल शिखर व्यक्ति हो सकता है कला या कलाकार ,विज्ञान वैज्ञानिकों ,लेखक चिंतक विचारक, व्यवसायी या राजनीति ,प्रशासक ऐसा व्यक्ति जब अपने जीवन पथ के मूल आचरण से हटकर कोई उपलब्धि हासिल करने हेतु प्रयासरत रहते हुए कार्य करता हैं तो निश्चित रूप से उसके अनुभव अनुभूति के पटल पर अतीत अवस्थापित एव प्रभावी रहता है उदाहरण के लिए यदि कोई कलाकार जो सफलता के शिखर पर हो और वह राजनीति में आ जाएं ऐसे उदाहरण भारत मे बहुत है जैसे सुनीलदत्त ,गोविंदा, अमिताभ बच्चन,विनोद खन्ना,शत्रुघ्न सिन्हा, नर्गिस दत्त ,हेमामालिनी आदि ना जाने कितने नाम जब ये हस्तियां राजनीति में आई तो इनकी विरासत मात्र भरतीय सिनेमा की सफलता के चका चौंध को छोड़कर जन सेवा का कोई उपलब्धि नही थी और राजनीति में भी इनके द्वारा अपनी कलात्मक जीवन शैली का प्रयोग किया गया जो कभी सफल कभी असफल रहा इसी प्रकार खेल जगत से कीर्ति आजाद, चौहान,संस्कृति के अनुसार स्थल को थल और ढा ट को थर थार कहा जाता है!ढाट का इतिहास को भारत की स्वतंत्रता से पूर्व थरपारकर सिंध प्रांत में दो भागों में विभक्त एक भाग ऊबड़ खाबड़ टीलों वाला मरु भूमि जिसे थार ढाट के नाम से ख्याति प्राप्त है दूसरा भाग सख्त समतल है जिसे नारा नाम से प्रसिद्ध है!ढाट का इतिहास डॉ तरुण राय कागा द्वरा रचित समाज राष्ट्र के वर्तमान का यथार्थ एव उनकी राजनीतिक अनुभूति अनुभव कि बेबाक अभिव्यक्ति है !आदरणीय कागा जी राजस्थान के बाड़मेर जनपद से है राजस्थान राजपुताना इतिहास एव गौरव का भरतीय जीवन दर्शन,भरतीय राष्ट्र दर्शन भारतीय धर्म दर्शन भारतीय समाज कि अंतर्मन स्वतंत्र चेतना कि वेदना छटपटाहट और उसके त्याग बलिदानों जौहर की पावन माटी सम्पूर्ण भारतीयता का गौरव शौर्य एव अभिमान है राजस्थान का बाड़मेर जल विहीन जल जीवन के सिद्धांत का शाश्वत सत्य है जहाँ से डॉ तरुण कागा जी ने अपने बचपन से पचपन एव जीवन पथ के संघर्षों के पल प्रहर को जिया है देखा है एव उसकी त्रुटि एव विकृतियों के समापन के ध्येय उद्देश्य से जीवन मे एक लंबी राजनीतिक पारी के पराक्रम पुरुषार्थ है जिसके आभा मण्डल में उन्हें राजनीतिक परम्परा का महत्वपूर्ण विधा विद्यायक की अनुभूति अनुभव का प्रत्यक्ष सत्यार्थ बनाया जो ढाट के इतिहास में बहुत स्प्ष्ट रूप से परिलक्षित है!यदी ढाट के इतिहास के प्रथम गद्य भाग को गंभीर साहित्य कि दृष्टि से विवेचना किया जाय तो यह भाग स्मरण या यात्रा बृतान्त ही प्रासंगिक लगता है ढाट का इतिहास वर्तमान राजस्थान कि विशिष्ट पहचान को विभिन्न मानकों से उसकी सामाजिकता भौगोलिकता ऐतिहासिकता के परिपेक्ष में डॉ तरुण कागा द्वरा वर्तमान एव समाज के समक्ष प्रस्तुत किया गया है !ढा ट का इतिहास दो भागों में वर्णित है प्रथम भाग गद्य हैं जिसमे राजस्थानी स्थानीय भाषाओं शब्दो का प्रयोग किया गया है जिससे स्प्ष्ट हैं कि प्रथम भाग स्थान विशेष ढा ट के गौरवशाली इतिहास धरोहरों एव विरासतों पर केंद्रित हैं !जब भी कोई व्यक्ति जीवन मे समाज राष्ट्र के विकार विकास उद्भव अवसान को स्वंय देखता अनुभूति करता है और स्थिति काल परिस्थिति में अपने पराक्रम पुरुषार्थ कि अनुभूति करता है या कराने का प्राण पण से प्रयत्न करता है तो उसके प्रयत्न को समय काल अपनी पैनी दृष्टि से निहारता है और राष्ट्र समाज के समक्ष निर्णय हेतु प्रस्तुत कर देता है जिसकी व्यख्या समयानुसार बदलते काल वक्त में करता रहता है साथ ही साथ उसके प्रभावों को पुनर्जीवित करने हेतु पुनरक्षित करने का दृढ़ता पूर्वक प्रयास करता है!व्यक्ति किसी भी क्षेत्र का सफल शिखर व्यक्ति हो सकता है कला या कलाकार ,विज्ञान वैज्ञानिकों ,लेखक चिंतक विचारक, व्यवसायी या राजनीति ,प्रशासक ऐसा व्यक्ति जब अपने जीवन पथ के मूल आचरण से हटकर कोई उपलब्धि हासिल करने हेतु प्रयासरत रहते हुए कार्य करता हैं तो निश्चित रूप से उसके अनुभव अनुभूति के पटल पर अतीत अवस्थापित एव प्रभावी रहता है उदाहरण के लिए यदि कोई कलाकार जो सफलता के शिखर पर हो और वह राजनीति में आ जाएं ऐसे उदाहरण भारत मे बहुत है जैसे सुनीलदत्त ,गोविंदा, अमिताभ बच्चन,विनोद खन्ना,शत्रुघ्न सिन्हा, नर्गिस दत्त ,हेमामालिनी आदि ना जाने कितने नाम जब ये हस्तियां राजनीति में आई तो इनकी विरासत मात्र भरतीय सिनेमा की सफलता के चका चौंध को छोड़कर जन सेवा का कोई उपलब्धि नही थी और राजनीति में भी इनके द्वारा अपनी कलात्मक जीवन शैली का प्रयोग किया गया जो कभी सफल कभी असफल रहा इसी प्रकार खेल जगत से कीर्ति आजाद, चौहान,इस प्रकार ढाट इतिहास सोलह अध्याय में अपनी बिभिन्नताओ को समेटे लेखक द्वरा इस प्रकार वर्णित किया गया है जैसे पाठक के समाने ढा ट का समूचा शहर गाँव कस्बा इतिहास से गुजर रहा हो या ऐसी अनुभूति होती हैं कि पाठक स्वंय ढाट कि माटी का ही सुगन्ध है डॉ तरुण कागा जी ढाट का परिचय सम्पूर्ण विश्व से कराने के अपने प्रयास में सक्षम सफल प्रतीत होते हैं यही लेखक की विशेषता होनी भी चाहिए की जो भी वह जन मानस के समक्ष प्रस्तुत कर रहा है वह जन मानस कि आवश्यकता अनिवार्यता बन जाय बड़ी चतुराई से डॉ तरुण कागा जी ने इसमें सफलता पाई हैं!!त्रिपाठी: ढाट का इतिहास के प्रथम गद्य भाग में ढाट का इतिहास ही प्रथम अध्याय है दूसरा अध्याय है कारू झर पहाड़ी तीसरा है तालाब चौथा है ढाट का भाग पांचवा है ढाट का ढंग ढाल छठा है राजपूत सातवां ढाट राणा शासन आठवा राणा अवतारदे नवा है हुमायूं बादशाह दसवां है अमर कोट दिल्ली के अधीन ग्यारहवां है सोढा हुकूमत का नमूना बरहवा है सोढो का पारकर आगमन तेरहवाँ हैं सोढो कि साखे चौदहवाँ है ढाट के शहर पन्द्रहवा है हिन्दू सोलहवाँ ढाट के हुनर ढाट के प्रमुख स्थानसंस्कृति के अनुसार स्थल को थल और ढा ट को थर थार कहा जाता है! ढाट का इतिहास को भारत की स्वतंत्रता से पूर्व थरपारकर सिंध प्रांत में दो भागों में विभक्त एक भाग ऊबड़ खाबड़ टीलों वाला मरु भूमि जिसे थार ढाट के नाम से ख्याति प्राप्त है दूसरा भाग सख्त समतल है जिसे नारा नाम से प्रसिद्ध है!ढाट का इतिहास डॉ तरुण राय कागा द्वरा रचित समाज राष्ट्र के वर्तमान का यथार्थ एव उनकी राजनीतिक अनुभूति अनुभव कि बेबाक अभिव्यक्ति है !आदरणीय कागा जी राजस्थान के बाड़मेर जनपद से है राजस्थान राजपुताना इतिहास एव गौरव का भरतीय जीवन दर्शन,भरतीय राष्ट्र दर्शन भारतीय धर्म दर्शन भारतीय समाज कि अंतर्मन स्वतंत्र चेतना कि वेदना छटपटाहट और उसके त्याग बलिदानों जौहर की पावन माटी सम्पूर्ण भारतीयता का गौरव शौर्य एव अभिमान है राजस्थान का बाड़मेर जल विहीन जल जीवन के सिद्धांत का शाश्वत सत्य है जहाँ से डॉ तरुण कागा जी ने अपने बचपन से पचपन एव जीवन पथ के संघर्षों के पल प्रहर को जिया है देखा है एव उसकी त्रुटि एव विकृतियों के समापन के ध्येय उद्देश्य से जीवन मे एक लंबी राजनीतिक पारी के पराक्रम पुरुषार्थ है जिसके आभा मण्डल में उन्हें राजनीतिक परम्परा का महत्वपूर्ण विधा विद्यायक की अनुभूति अनुभव का प्रत्यक्ष सत्यार्थ बनाया जो ढाट के इतिहास में बहुत स्प्ष्ट रूप से परिलक्षित है!आदि ने राजनिति में जहां क्रिकेट की तरह ना आन ना आफ ना लेग लांग लेग ना गुगली ना पेश नही होता क्रिकेट की पिच की तरह ही सार्वजनिक जीवन मे राजनीति का प्रयोग किया इसी प्रकार बहुत महत्वपूर्ण प्रशासकों द्वारा राजनीती में आकर अपनी शेष आकांक्षाओं को पोषित कर प्राप्त किया गया और किया जा रहा है! किसी भी क्षेत्र का सफल शिखर व्यक्तित्व राजनीति में शिखर से ही शुभारंभ करता है चाहे कलाकार हो खिलाड़ी हो प्रशासक हो या अन्य कोई लेकिन सफल राजनेता या राजनीतिज्ञ सफल कलाकार ,सफल खिलाड़ी बन जाय सर्वथा असम्भव यहाँ तक कि बड़े बड़े धर्माधिकारी राजनेता बन गए किंतु कोई राजनेता धर्माधिकारी या धर्मसेवक बना हो वैश्विक स्तर पर अबतक कोई उदाहर नही है!!ढाट का इतिहास के प्रथम गद्य भाग में ढाट का इतिहास ही प्रथम अध्याय है दूसरा अध्याय है कारू झर पहाड़ी तीसरा है तालाब चौथा है ढाट का भाग पांचवा है ढाट का ढंग ढाल छठा है राजपूत सातवां ढाट राणा शासन आठवा राणा अवतारदे नवा है हुमायूं बादशाह दसवां है अमर कोट दिल्ली के अधीन ग्यारहवां है सोढा हुकूमत का नमूना बरहवा है सोढो का पारकर आगमन तेरहवाँ हैं सोढो कि साखे चौदहवाँ है ढाट के शहर पन्द्रहवा है हिन्दू सोलहवाँ ढाट के हुनर ढाट के प्रमुख स्थान आदि ढाट के इतिहास के प्रथम गद्य भाग को गंभीर साहित्य कि दृष्टि से विवेचना किया जाय तो यह भाग स्मरण या यात्रा बृतान्त ही प्रासंगिक लगता हैढाट का इतिहास वर्तमान राजस्थान कि विशिष्ट पहचान को विभिन्न मानकों से उसकी सामाजिकता भौगोलिकता ऐतिहासिकता के परिपेक्ष में डॉ तरुण कागा द्वरा वर्तमान एव समाज के समक्ष प्रस्तुत किया गया है !ढाट का इतिहास दो भागों में वर्णित है प्रथम भाग गद्य हैं जिसमे राजस्थानी स्थानीय भाषाओं शब्दो का प्रयोग किया गया है जिससे स्प्ष्ट हैं कि प्रथम भाग स्थान विशेष ढा ट के गौरवशाली इतिहास धरोहरों एव विरासतों पर केंद्रित हैं !इस प्रकार ढाट इतिहास सोलह अध्याय में अपनी बिभिन्नताओ इस प्रकार वर्णित किया गया है जैसे पाठक के समाने ढाट का समूचा शहर गाँव कस्बा इतिहास से गुजर रहा हो या ऐसी अनुभूति होती हैं कि पाठक स्वंय ढाट कि माटी का ही सुगन्ध है डॉ तरुण कागा जी ढाट का परिचय सम्पूर्ण विश्व से कराने के अपने प्रयास में सक्षम सफल प्रतीत होते हैं यही लेखक की विशेषता होनी भी चाहिए की जो भी वह जन मानस के समक्ष प्रस्तुत कर रहा है वह जन मानस कि आवश्यकता अनिवार्यता बन जाय बड़ी चतुराई से डॉ तरुण कागा जी ने इसमें सफलता पाई हैं!!
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुरपुर!!