अपनी सासू माँ के इस तरह के कटु वचन सुनकर आँखों में आंसू लिए माही ने रीतेश की तरफ़ देखा तो उसने नज़र फेर ली।
नताशा भी गुस्से में उठकर खड़ी हो गई और कहा, "मम्मी, मुझे नहीं करना नाश्ता, मुझे कॉलेज के लिए देर हो रही है। भाभी से कह दो कल से जल्दी नाश्ता तैयार करें।"
विनय ने माही को घूरते हुए कहा, "अब जल्दी नताशा से माफ़ी मांगो वरना वह सच में भूखी ही चली जाएगी।"
माही ने बिना कुछ कहे, बिना देर लगाए कहा, "नताशा, सॉरी, मैं कल से और जल्दी उठ जाऊंगी। प्लीज, तुम बिना खाए मत जाओ। आज पहला दिन था ना, इसीलिए देर हो गई।"
"ठीक है भाभी, पर कल से सुबह सात बजे मुझे नाश्ता मिल जाना चाहिए। आज मैं एक पीरियड देरी से कॉलेज चली जाऊंगी।"
सब को नाश्ता देकर, किचन साफ़ करके माही अपने कमरे में चली गई। लेकिन उसके जाने से पहले किसी ने भी उसे नाश्ते के लिए नहीं रोका। माही इस तरह अपना अपमान होने से बहुत दुःखी थी। उसके आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। वह रीतेश का इंतज़ार कर रही थी।
जब रीतेश कमरे में आया तो माही कुछ कहे उससे पहले ही उसने कहा, "अरे, तुम तो ऐसे रो रही हो जैसे किसी ने तुम्हारे ऊपर अत्याचार किया हो।"
माही दंग होकर रीतेश की तरफ़ देखने लगी। उसकी आंखें लाल हो रही थीं। उनसे टप-टप करके आंसू टपकते ही जा रहे थे।
रीतेश ने फिर कहा, "देख माही, मुझसे यह उम्मीद मत रख कि मैं अपनी माँ और बहन के खिलाफ जाऊंगा, समझी। यह तेरी ससुराल है, मायका नहीं। काम तो करना ही पड़ेगा।
"काम से कौन एतराज कर रहा है रीतेश, पर अपमान ...? ऐतराज तो उस अपमान पर है, जो अभी-अभी तुम्हारी आंखों के सामने मेरा हुआ है।"
"अरे, इसमें अपमान की क्या बात है? तुमने नाश्ता लेट दिया तो तुम्हें ख़ुद सॉरी बोल देना चाहिए था, पर तुम्हें तो शायद वह संस्कार ही नहीं दिए गए हैं।"
"रीतेश, तुम हद से आगे बढ़ रहे हो।"
"अच्छा, तुम मुझे मेरी हद समझाओगी। एक तो कुछ लेकर नहीं आईं और मुझे मेरी हद सिखाने की हिम्मत कर रही हो। मेरी हद तुमने अभी देखी कहाँ है कि मैं क्या कर सकता हूँ?"
"क्या कर सकता हूँ मतलब ...? तुम कहना क्या चाहते हो रीतेश? शादी से पहले तो तुम बहुत प्यार बरसा रहे थे। शादी होते से यह क्या हो गया है तुम्हें?"
"अरे, प्यार नहीं बरसाता तो तुम मेरे शिकंजे में फंसती कैसे?"
"यह क्या कह रहे हो तुम?"
तभी शोभा उनके कमरे में आ धमकी और रीतेश को डांटते हुए कहा, "अरे, सर पर बिठाएगा क्या उसे? इतनी बकबक कर रही है, मैं कब से सुन रही हूँ। लगा दो हाथ उसके गालों पर तो बोलती बंद हो जाए। कल की आई छोकरी हमारे बीच कलह करवाना चाहती है।"
रीतेश ने अपनी माँ की बात मानकर उन्हें खुश करने के लिए सच में माही के गाल पर तमाचा मारा और कहा, "हम लोगों से उलझना मत समझी तुम ...!"
फिर शोभा की आवाज़ आई, "अरे रीतेश, मैंने दो हाथ कहा था, तुमने ...!"
यह सुनते ही रीतेश ने अपने उल्टे हाथ से माही के दूसरे गाल पर भी तमाचा मार दिया। माही ऐसा सोच भी नहीं सकती थी कि रीतेश इस तरह से उस पर हाथ उठाएगा। अब तक वह समझ चुकी थी कि उसके साथ धोखा हुआ है।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः