हर रिश्ता जरूरी नहीं कि नाम पाए... कुछ रिश्ते बस अहसास होते हैं – और कुछ... **भ्रम।**
करण के जाने के बाद, मेरी दुनिया एकदम ठहर गई थी। सबको लगता था कि वो कहीं चला गया, लेकिन मुझे नहीं। मुझे अब भी हर सुबह उसकी मौजूदगी महसूस होती थी। मेरे तकिये की दूसरी तरफ उसका एहसास होता, मेरी पलकों पर उसकी उंगलियां फिरतीं... मेरी सुबह उसकी आवाज़ से होती – **"नेहा, उठो... तुम्हारी कॉफी ठंडी हो रही है।"**
लेकिन जब मैं आईने में देखती थी – मेरे पीछे कोई नहीं होता था।
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**"तुम उसे भूली नहीं हो, ना?"**
रिया मुझसे पूछती थी। उसकी आवाज़ में सहानुभूति कम, सवाल ज्यादा होता।
रिया, करण की पुरानी दोस्त... या शायद उससे बढ़कर कुछ। जब करण पहली बार मुझसे मिला था, तब उसने उसका नाम लिया था – बस एक बार, जैसे कोई अधूरी कविता अधूरे लफ्ज़ों में छूट जाती है।
मैंने करण को हर दिन देखा... रिया के साथ भी देखा। लेकिन अब मैं उसे सिर्फ अपनी कल्पनाओं में देखती थी – और वहाँ, वो मेरा ही था।
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एक रात, घर की लाइट चली गई। मैं किचन से बाहर निकली तो लगा जैसे कोई खड़ा है – मेरी सांसें थम गईं।
**"करण?"** मैंने फुसफुसाया।
जवाब नहीं मिला, पर तभी किसी ने मेरे सिर पर वार किया।
मैं जब होश में आई, तो जमीन पर लेटी थी। सिर से खून बह रहा था। पास में एक चिट्ठी थी –
**"तुम्हारी दुनिया झूठ है, नेहा। अब भी अगर सच्चाई देखना चाहती हो, तो तैयार हो जाओ टूटने के लिए।"**
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डॉक्टर ने मुझे बताया – **"आप डिल्यूजन में जी रही हैं। जो आप महसूस करती हैं, वो सब नहीं है। करण अब आपके पास नहीं है।"**
मैंने डॉक्टर को घूरा –
**"अगर करण नहीं है, तो फिर हर रात मेरे पास कौन आता है? कौन मेरी कॉफी में शक्कर डालता है? कौन मेरी कविताएं पूरा करता है?"**
डॉक्टर चुप हो गया। क्योंकि शायद वो जानता था – अब मुझे समझाना बेकार है।
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इसी दौरान, मुझे एक और खबर मिली – **"करण गायब है। अब रिया भी उसे खोज रही है।"**
मैंने रिया से पूछा – **"तुम्हें अब उसकी याद क्यों आई?"**
रिया का चेहरा सफेद पड़ गया। **"क्योंकि अब उससे मेरा भी संपर्क टूट चुका है। और शायद... कोई है, जो हम दोनों को उसकी याद में कैद करके खेल खेल रहा है।"**
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कहानी तब पलटी, जब करण खुद एक खतरनाक जगह से भागकर वापस लौटा। बिखरे कपड़े, घायल शरीर, थकी हुई साँसें... लेकिन ज़िंदा।
मैं उसके सामने खड़ी थी। मेरी धड़कनें तेज थीं।
**"नेहा..."** वो बोला, **"मैं आ गया..."**
मैं मुस्कराई, फिर फुसफुसाई – **"चलो, आज हम शादी कर लें। तुमने आज फिर गुलाब लाया ना?"**
करण की आँखें भर आईं। उसे एहसास हुआ – **मैं अब उस नेहा में नहीं रही जिसे वो जानता था।**
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करण अब रिया के पास गया – जवाब माँगने।
रिया ने सब बताया – कि **राज यादव**, करण का पुराना सहकर्मी, उससे जलता था। करण की सफलता, उसका व्यक्तित्व – राज को सहन नहीं होता था। उसने रिया को धीरे-धीरे अपने असर में लिया।
राज ने रिया को फुसलाया, उसका इस्तेमाल किया – भावनात्मक और शारीरिक रूप से।
**"मैंने करण से दुबारा जुड़ने की कोशिश की थी,"** रिया ने बताया, **"पर राज ने सब बर्बाद कर दिया। वो चाहता था कि करण टूट जाए। और अब... वो मुझे भी बर्बाद कर रहा है।"**
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**राज यादव**, अब कहानी का नया चेहरा बन चुका था। चेहरे पर नकली मुस्कान, लेकिन आँखों में घात।
**"रिया, जो खेल शुरू हुआ था, वो अब खत्म नहीं होगा। तुम मेरी हो, करण गया गुजरा कल है।"**
रिया डरती थी, पर अब उसमें भी विद्रोह था। उसे पता था – अगर अब कुछ नहीं किया, तो वो भी किसी दिन **नेहा की तरह पागलखाने में होगी**, और करण – फिर से गुम।
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अंतिम दृश्य में...
**मैं**, एक मानसिक अस्पताल के बगीचे में बैठी थी – करण के पुतले से बातें कर रही थी।
**"आज तुमने मुझे गुलाब नहीं दिया, नाराज़ हो क्या?"**
मैं हँसी – खुद ही हँसी, खुद ही रोई।
वहीं दूसरी तरफ, **रिया**, एक फ्लैट की सीढ़ियाँ चढ़ रही थी – राज के बुलावे पर। चेहरा डर और नफरत से भरा था।
और दूर, छत पर **करण**, अकेला खड़ा था – सब कुछ खो देने के बाद भी खामोश। उसके पास अब न नेहा थी, न रिया – और शायद खुद वो भी नहीं।
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## 📘 **अनकहे रिश्ते – सीजन 2 समाप्त**
**"कुछ रिश्ते कभी पूरे नहीं होते –
कुछ रिश्ता बन ही नहीं पाते।
और कुछ...
सिर्फ भ्रम बनकर ज़िंदगी को जला जाते हैं।"**