Age Doesn't Matter in Love - 2 in Hindi Drama by Rubina Bagawan books and stories PDF | Age Doesn't Matter in Love - 2

Featured Books
Categories
Share

Age Doesn't Matter in Love - 2

गुस्से से भरा एक दिन, और एक अनजानी शुरुआत...
अभिमान अपनी बुलेट पर गुस्से में बैठा, जैसे किसी आग की लपटों पर सवार हो। बिना किसी से कुछ कहे, उसने बुलेट स्टार्ट की और झटके से बाहर निकल गया। आसमान आज बेहद साफ़ था, पर उसके माथे पर पसीने की हल्की परत थी — गुस्से और बेचैनी की मिली-जुली निशानी।

तेज़ रफ्तार से सड़कें भाग रही थीं, पर उसके मन में उठते तूफान की आवाज़ उन सड़कों के शोर से कहीं ज्यादा तेज़ थी।

कुछ ही मिनटों में वह 'जोधा रेस्टोरेंट' के सामने पहुंचा — वही रेस्टोरेंट जिसे उसके पिता और उसने मिलकर एक सपना मानकर खड़ा किया था। आज वह सपना इंदौर की पहचान बन चुका था।

रेस्टोरेंट दो हिस्सों में बंटा था — एक तरफ देसी खाने का सेक्शन, जहाँ घर जैसी थाली और पारंपरिक व्यंजन परोसे जाते थे। दूसरी ओर था मॉडर्न कैफे — पेस्ट्रीज़, बर्गर, पिज़्ज़ा, आइसक्रीम, और कॉफी की खुशबू से महकता हुआ। बाहर एक छोटा लेकिन व्यस्त पार्किंग एरिया था, जहाँ हर दिन ग्राहकों की चहल-पहल रहती थी।

अभिमान मोबाइल पर कोई ज़रूरी मेल चेक करता हुआ बुलेट से उतर रहा था। उसकी नजरें स्क्रीन पर थीं जब...

ठक!

कोई उससे टकरा गया।

एक स्कूली लड़की — नीली यूनिफॉर्म, दो मोटी चोटी, कंधे पर भारी बैग, मासूम गोल चेहरा और बड़ी-बड़ी चमकती आँखें। उसका सिर सीधे अभिमान के सीने से जा टकराया।

अभिमान भड़क उठा,
"व्हाट द हेल!" उसने गुस्से से कहा।

लड़की घबरा गई। उसकी मासूम आँखों में डर की लहर दौड़ गई। कांपती आवाज़ में बोली,
“आपकी बुलेट की वजह से मेरी साइकिल फँस गई थी... मैं गिरते-गिरते बची।”

अभिमान ने गुस्से में फोन जेब में रखा और झुंझलाकर बोला,
"ए, ये कोई पार्किंग की जगह है क्या?"

लड़की ने मासूमियत से हाँ में सिर हिलाया।

अभिमान आँखें बंद करके गहरी साँस लेते हुए बोला,
"ये मेरा रेस्टोरेंट है, समझीं?"

लड़की ने मूंह बनाते हुए पलटकर कहा,
"हाँ तो?"

अभिमान कुछ कहने ही वाला था कि तभी उसकी नज़र उस लड़की की आँखों से टकराई। कुछ तो था उनमें... एक सच्चाई, एक दबा हुआ दर्द — जो सीधा उसके भीतर उतर गया।

वो क्षण जैसे थम गया।

उसने कुछ नहीं कहा। चुपचाप बुलेट एक ओर खिसकाई ताकि लड़की की साइकिल निकल सके।

लड़की वहीं खड़ी रही, अब वो उसे हैरानी से देख रही थी।

अभिमान रेस्टोरेंट के भीतर चला गया — बाहर से अब भी सख्त, पर भीतर कोई हलचल ज़रूर हुई थी।

पीछे, लड़की धीमे से मुस्कुराई,
“इतना गुस्सा होने के बाद भी... रास्ता दे दिया?”

वो साइकिल सीधी करने लगी। जाते-जाते उसने अपने बैग से एक छोटा सा नोट स्टिकर निकाला, कुछ जल्दी-जल्दी लिखा और अभिमान की बुलेट की टंकी पर चिपका दिया।

“बाय बाय, मिस्टर एंग्री,” उसने फुसफुसाया और स्कूल की तरफ चल दी।

अंदर, अभिमान लैपटॉप खोलकर झुंझलाया,
"लिटर गर्ल... तुम्हारी वजह से मेरा मेल डिलीट हो गया..."

उसने फिर से मेल टाइप करना शुरू किया, पर मन बार-बार भटक रहा था। उस लड़की की आवाज़, मासूम चेहरा, और सबसे ज़्यादा — उसकी आँखें। सबकुछ किसी धीमी धुन की तरह उसके मन में बज रहा था।

शाम... एक छोटा सा स्टिकर और एक गहरी सोच
शाम ढलने लगी थी। अभिमान ने निकलते समय राघव से कहा,
“देख लेना, सब लॉक हो जाए।”

जैसे ही वह बाहर निकला और बुलेट स्टार्ट करने झुका, उसकी नजर बुलेट की टंकी पर पड़ी — एक छोटा नीला स्टिकर चिपका हुआ था।

साफ-सुथरी सुंदर लिखावट में लिखा था:

"यू मिस्टर एंग्री, आप इतने गुस्से में क्यों हो?
आपने आन्या को डांटा, पर फिर भी थैंक्यू — मेरी मदद करने के लिए। 😊"

उसने धीरे से वह स्टिकर उतारा। होंठों पर अनचाही पर प्यारी मुस्कान आ गई।

“आन्या...”

नाम पढ़ते ही कुछ हल्का-सा महसूस हुआ, जैसे किसी ने उसके भीतर की गांठों को थोड़ा सा खोल दिया हो। वह स्टिकर मोड़कर अपनी शर्ट की जेब में रख लिया।

बुलेट स्टार्ट की — और पहली बार, किसी दिन के मुकाबले — मन में थोड़ी शांति लेकर घर की ओर चल पड़ा।

शहर के दूसरे छोर पर — वो लड़की
एक पुराने से घर की दीवारों पर उम्र की थकावट दिखती थी, पर रसोई में खड़ी लड़की के चेहरे पर जीवन की जिद थी।

वो लड़की थी — आन्या मेहता।

सोलह साल की, पर आँखों में गहराई थी जो उसकी उम्र से बहुत बड़ी लगती थी। बर्तन धोते हुए उसके हाथों की उंगलियाँ रूखी थीं, पर उसके चेहरे पर कोई शिकवा नहीं था — बस एक खामोश सी आदत।

उसके पिता, तूकाराम मेहता — एक सख्त, पुराने खयालों वाले आदमी थे। उनके लिए बेटी सिर्फ एक बोझ थी। उनके पास जमीन थी, लेकिन दिल में अपनी बेटी के लिए जगह नहीं।

माँ, ममता — शांत स्वभाव की, अपने पति को ईश्वर मानने वाली स्त्री, जो बेटी से प्रेम तो करती थीं, पर वो प्रेम भी अनुशासन में लिपटा हुआ था।

घर में एक भाई था — अक्षत, जो अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढ़ता था। वही था जो कभी-कभी दीदी के सामने ढाल बन जाता।

आन्या की दुनिया सिमटी हुई थी — ना दोस्त, ना मोबाइल, ना बाहर की दुनिया। जैसे वो किसी कमरे में बंद कहानी हो, जिसका कोई पाठक नहीं।

लेकिन आज — उसका मन बेचैन था।

अभिमान का चेहरा, उसकी कठोर आँखें, और फिर उसका अचानक रास्ता देना — सब कुछ मन में किसी अजीब सी धड़कन पैदा कर रहा था।

रात को खाने के वक्त उसका ध्यान भटकता रहा। माँ ने टोका, तो मुस्कुरा दी और जल्दी से अपने कमरे में चली गई। खिड़की से झांकते हुए चाँद को देखा — अधूरा था वो, जैसे कोई बात अभी बाकी हो।

आन्या ने हल्की आवाज़ में कहा,
“भगवान जी, मुझे वो क्यों याद आ रहे हैं...?”

अभिमान — रात, सवाल और बेचैनी
उधर, अभिमान घर पहुंचा। माँ — सरस्वती जी दरवाज़े पर खड़ी थीं।

वो चिढ़कर बोला,
“क्या हुआ मॉम? यूं क्यों देख रही हो?”

अमित जोधा की आवाज़ आई,
“शायना के कॉल्स क्यों नहीं उठा रहा है?”

अभिमान ने बिना झिझके कहा,
“फोन की बैटरी खत्म हो गई होगी शायद।”
फिर तुरंत माँ की ओर मुड़ा,
“मॉम, भूख लगी है।”

डाइनिंग टेबल पर अमित जी शुरू हुए,
“मेरी जवानी में तो लड़कियां दीवानी थीं मेरे पीछे...”

सरस्वती ने टोकते हुए कहा,
“आज बाहर सोना, बहुत बकवास कर रहे हो।”

अमित ने मुँह बनाया,
“ये मेरा बेटा है — 26 साल का और अब तक गर्लफ्रेंड नहीं।”

अबकी बार अभिमान ने कटाक्ष से कहा,
“डैड, हर बात का मतलब शादी क्यों होता है?
क्या 26 की उम्र में इंसान की आज़ादी खत्म हो जाती है?”

बहस बढ़ने ही वाली थी कि सरस्वती उठ खड़ी हुईं,
“बस! अब कोई आवाज़ ऊँची नहीं होगी इस घर में।”

खामोशी छा गई।

पर उस चुप्पी में भी अभिमान के दिल में एक हलचल थी।

आन्या की आँखें... उसकी मासूमियत... वो स्टिकर।

रात को कमरे में जाकर बालकनी में खड़ा हुआ, सिगरेट जलाई और चाँद को देखा।

फोन बजा — शायना का कॉल।

उसने फोन देखा... और फिर उसे रिसीव किए बिना बेड पर फेंक दिया।

मन भटक रहा था — कहीं और... किसी और के पास।

“क्या मैं शायना को धोखा दे रहा हूँ?
या खुद से भाग रहा हूँ...?”

क्या ये मुलाकात... कुछ मायने रखती है?
कभी-कभी, ज़िंदगी सबसे गहरी बातें वहीं कहती है जहाँ सबसे कम शब्द होते हैं।

वो टक्कर... वो मासूम चेहरा... और एक छोटा सा स्टिकर...

क्या ये बस एक पल की कहानी थी?

या एक नई कहानी की पहली लाइन?

जारी...