घर वापसी
कई वर्ष पूर्व जब जमींदारी प्रथा विद्यमान थी। एक नगर के पास नर्मदा नदी के किनारे एक गांव था जिसमें एक जमींदार बहादुर सिंह अपने परिवार के साथ रहते थे और खेती किसानी करके अपने परिवार का पालन पोषण करते थे। वे बहुत ही विनम्र, मिलनसार व लोकहित के कार्यों में समय देकर सुख और शांति पूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। प्रभु कृपा से उन्हें जुडवा बच्चों की प्राप्ति हुयी जिनके नाम महेन्द्र और हरेन्द्र रखे गये, जिससे उनके जीवन में प्रसन्नता की नयी बहार आ गयी। जब बच्चे बडे हुय तो वे दोनों बच्चों को शहर के स्कूल में पढाई हेतू भेजना चाहते थे परंतु उनकी पत्नी को बच्चों को हाॅस्टल में रहकर पढाई करना पसंद नही था इसलिए एक बच्चे महेन्द्र को शहर में अध्ययन हेतु भेज दिया गया परंतु दूसरा बच्चा हरेन्द्र उनके साथ ही रहकर पास के ही शासकीय शाला में अध्ययन करने लगा और वह पढाई के साथ साथ बचपन से ही खेती किसानी में भी पिताजी की मदद करता था।
समय के साथ साथ दोनों बच्चों का विकास होने लगा परंतु दोनों की विचारधारा में बहुत अंतर था। शहर में अध्ययन करने कारण महेन्द्र अपने आप को अपने भाई हरेन्द्र से बेहतर समझता था। शहर में रहते रहते उसका मन भी अब शहर में ही ज्यादा लगने लगा था। वह अत्यंत कम अवसरों पर ही गांव आता था। समय व्यतीत होता गया और दोनों व्यस्क हो गये। महेन्द्र अब काॅलेज में आ गया था और साथ ही साथ राजनीति में भी उसका अधिक रूझान था। जबकि हरेन्द्र 12वीं तक ही अध्ययन करने के बाद अपनी खेती संभालने में व्यस्त हो गया। महेन्द्र काॅलेज में पढाई के बजाए राजनीति में अधिक रूचि लेने लगा और वह अपने काॅलेज का पे्रसीडेंट बन गया। छात्र राजनीति में अपनी अच्छी पकड के कारण वह एक सुप्रसिद्ध राजनीतिक दल से जुड गया और राजनीति में आ गया। राजनीति में अधिक व्यस्त रहने के कारण अब वह गांव नही जा पाता था और उसकी स्वयं की रूचि भी गांव जाने और माता पिता से मिलने में कम हो गयी थी क्योंकि वह राजनीति में एक चमकता हुआ सितारा बन रहा था। उसे उचित समय पर विधायक बनने का सुअवसर प्राप्त हो गया, उसकी राजनीतिक पार्टी ने उसे प्रत्याशी घोषित कर दिया। वह समय की धारा में सफलता प्राप्त करते हुए अच्छे मतों से चुनाव जीत गया और एक प्रखर नेता के रूप में स्थापित हो गया।
उसके स्वभाव में अचानक ही बदलाव आने लगा और वह जनसेवा के नाम पर अवैधानिक तरीके धन एकत्रित करने लगा। कुछ ही वर्षों में उसकी गिनती शहर के धनाढ्य व्यक्तियों में होने लगी। उसके स्वभाव में बहुत घमंड दिखने लगा। यहाँ तक कि वह अपने माता पिता भाई की भी उपेक्षा करने लगा। इसी प्रकार समय व्यतीत हो रहा था कि अगले चुनाव का दौर आ गया। महेन्द्र की रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार और दुव्र्यवहार की चर्चाएँ धीरे धीरे सारे शहर में फैल चुकी थी। इन्ही बातों को मुद्दा बनाकर विपक्षी दल ने एक बहुत ही दमदार प्रत्याशी को चुनाव में उतारा जिसकी साख बहुत मजबूत थी। महेन्द्र भी यह बात जानता था कि इस बार उसका चुनाव में जीतना थोडा मुश्किल है लेकिन उसे अपने धनबल और चाटुकारेां की बातों पर बहुत भरोसा था उसने इस आशा में अपना सारा धन चुनाव में दांव पर लगा दिया यहाँ कि बाजार से भी उधार पैसा ले लिया कि एक बार चुनाव जीतने के पश्चात वह सब कुछ वापस आसानी से चुका देगा।
चुनाव के परिणाम आने पर वह आश्चर्यचकित रह गया कि वह बहुत भारी मतों के अंतर से चुनाव हार गया। उसका सब कुछ लुट चुका था। कुछ समय पश्चात ही कर्जदारों ने उसे घेर लिया क्योंकि उन्हें डर था कि महेन्द्र शायद ही कर्ज चुका पाये ? महेन्द्र के उपर कर्ज चुकाने का दबाव बढता जा रहा था। वह सबको कुछ समय में कर्ज चुकाने का भरोसा देकर अपने गांव चल पडा। गांव पहुँचने पर उसने अपनी सारी स्थिति अपने माता पिता और भाई के सामने रखी। उसकी हालत जानकर सबको बहुत दुख हुआ। उसके पिताजी ने कहा कि तुम तो शहर जाकर बडे आदमी बनकर हम सबको भूल गये थे। तुम्हारी माँ जब बीमार हुयी तब भी तुम्हारे पास इतनी फुरसत नही थी तुम एक बार उनकी हालत देखने अस्पताल आते। अब तुम किस आशा में हम लोगों के पास आये हो ?
माता पिता की बातें सुनकर महेन्द्र को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसकी आँखों से आंसू निकल पडे। वह उनके पैरों में गिरकर उनसे क्षमा माँगने लगा। उसकी यह हालत देखकर हरेन्द्र ने उसे उठाया और कहा कि मत रो मेरे भाई। तुम्हें अपनी गलती का पछतावा है। हम सब मिलकर तुम्हें इन कठिन परिस्थितियों से निकालेंगे। यह सुनकर उनके पिताजी कहते है कि हम सारी जमीने बेच देते है जिससे इसका कर्ज चुक जाएगा। यह सुनकर महेन्द्र कहता है नही पिताजी हम जमीन नही बेचेंगे। मैं भी अपने भाई के साथ खेती किसानी करूँगा और धीरे धीरे अपना कर्ज चुका दूँगा। महेन्द्र ने खेती में आधुनिकीकरण को बढावा दिया और अपने राजनीतिक संबंधों का उपयोग करते हुए अनेक शासकीय योजनओं के अंतर्गत लाभ प्राप्त किया। इस प्रकार महेन्द्र और हरेन्द्र ने एकजुटता दिखाते हुए धीरे धीरे अपनी आमदनी को काफी बढा लिया जिस कारण महेन्द्र का सारा कर्जा चुका दिया और धीरे धीरे पुनः दोनो भाई काफी समृद्ध हो गये। अब वे गांव के अन्य किसानों को भी उन्नत खेती एवं शासकीय योजनाओं का लाभ दिलाने में सहयोग देने लगे। उनका गांव अपने आधुनिक खेती के कारण काफी समृद्ध होने लगा और समृद्धि के कारण गांव का स्वरूप ही बदल गया जिससे आसपास के क्षेत्रों में उनकी काफी प्रसिद्धि बढ गई।