Burned child in mother's lap in Hindi Classic Stories by Shiv Sahu books and stories PDF | माँ की गोद में जला बच्चा

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माँ की गोद में जला बच्चा


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भूमिका
भारत की भूमि पर इतिहास की रेत में दबे हुए अनगिनत आँसू हैं। कुछ कहानियाँ ऐसी होती हैं जो दस्तावेज़ों में नहीं मिलतीं, लेकिन लोककथाओं, बुजुर्गों की बातों और राख में दबी स्मृतियों से फूटती हैं। ऐसी ही एक कहानी गुजरात के एक छोटे से गाँव की है, जो मुग़ल आक्रमण के समय की है। यह कहानी सिर्फ आग और तलवार की नहीं, माँ के उस प्रेम की भी है जो अपनी अंतिम साँस तक अपने बच्चे को सीने से लगाए रही।


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1. गाँव जहाँ समय थम गया था
गुजरात के काठियावाड़ क्षेत्र में बसा वह गाँव एक समय बहुत शांत था। मिट्टी की दीवारें, कच्चे रास्ते, और गाँव के बीचोंबीच पीपल का विशाल वृक्ष — जिसके नीचे शाम को बुजुर्ग किस्से सुनाया करते थे। उसी गाँव में रहती थी गंगा, एक युवती जो हाल ही में माँ बनी थी। उसका बेटा, मात्र 9 महीने का, दूध की खुशबू और माँ के आँचल में जीवन ढूँढता था। पति खेतों में काम करता, और गंगा घर पर लोरी गाकर अपने बेटे को सुलाया करती।


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2. वो काली सुबह
एक दिन, सूरज निकलने से पहले गाँव में कुछ अजीब सी हलचल हुई। दूर से घोड़ों की टापें और तलवारों की झंकार सुनाई दी। यह कोई साधारण दौड़ नहीं थी, यह था — मुग़ल लुटेरों का हमला। वे गाँवों को जलाते, महिलाओं को उठाते और बच्चों तक को नहीं छोड़ते थे। गाँववालों के पास लड़ने की ताक़त न थी। चीख-पुकार मच गई। लोग अपने घर छोड़कर भागने लगे।

गंगा उस वक्त अपने बेटे को दूध पिला रही थी। अचानक गाँव की एक महिला चिल्लाई — "भाग गंगा! मुग़ल आ गए!"


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3. माँ की दौड़
गंगा ने अपने बच्चे को छाती से लगाया, उसका सिर आँचल से ढँका और नंगे पाँव दरवाज़े की ओर भागी। सामने धुआँ, आग, और तलवारें थीं। एक तरफ पति खेतों की ओर दौड़ता दिखा, लेकिन वह गंगा को रोक न सका। उसकी नज़रें सिर्फ अपने बेटे पर थीं।

गाँव का हर कोना जलने लगा। कई झोपड़ियाँ धू-धू कर राख हो गईं। रास्ते पर कई शव गिरे पड़े थे। पर गंगा नहीं रुकी। वह माँ थी। उसे केवल एक ही डर था — कहीं मेरा लाल जल न जाए…


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4. अंतिम संघर्ष
गंगा दरवाज़े तक पहुँची ही थी कि सामने से दो मुग़ल सिपाही आ गए। उनके हाथों में मशालें और तलवारें थीं। वे हँसते हुए उसकी ओर बढ़े। एक ने कहा — “भागती क्यों है? आग से पहले तुझे जला दूँ क्या?”

गंगा ने अपने बेटे को और ज़ोर से सीने से चिपका लिया। वह न चीखी, न रोई। बस पीछे मुड़ी और घर के एक कोने में दुबक गई। शायद उसे उम्मीद थी कि वो कोना जलने से बच जाएगा। पर मुग़लों ने पीछे से आग लगा दी।

आग तेज़ी से फैलती गई। लपटें दीवारों को निगलने लगीं। गंगा ने अपने आँचल को बच्चे के चारों ओर लपेटा, और खुद उसे ढँक लिया। कमरे में धुआँ भर गया। साँस लेना मुश्किल हो गया।


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5. चीख जो इतिहास में दर्ज हो गई
गाँववालों ने सुना — “मेरा बच्चा जल जाएगा! कोई बचा लो!”
पर वहाँ कोई नहीं था। जो थे भी, वे अपनी जान बचाने भाग चुके थे। मुग़ल हँसते रहे, जैसे ये सब मनोरंजन हो। एक सिपाही ने कहा — “जला दो इसे! देखो बच्चा कैसे तड़पता है माँ की गोद में।”

फिर एक ज़ोर की चीख आई… और फिर सब ख़ामोश।


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6. आग के बाद की राख
जब मुग़ल गाँव लूटकर निकल चुके थे और हवाओं में धुएँ की महक कम हो चुकी थी, तब कुछ बचे-खुचे लोग लौटे। वे किसी चमत्कार की उम्मीद में राखों को कुरेदने लगे।

गंगा के घर का कोना राख बन चुका था। लकड़ियाँ जल चुकी थीं। पर वहाँ एक आकृति अब भी साफ़ दिखती थी — माँ का जला हुआ शरीर, और उसकी गोद में चिपका वह बच्चा।

बच्चा भी जल चुका था, पर उसकी मुद्रा वैसी ही थी — जैसे माँ के सीने से चिपक कर सोया हो। आँखे बंद, शरीर सिकोड़ा हुआ, और माँ की बाँहें उसके चारों ओर अब भी फैली थीं, जली हुई मगर सुरक्षा की अंतिम मुद्रा में।


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7. गाँव की स्मृति में एक माँ
गाँववालों ने वह दृश्य देखा और रो पड़े। एक बुज़ुर्ग ने कहा — “हजारों माँएँ जन्म देती हैं, पर ऐसी माँ इतिहास में एक बार पैदा होती है जो जलते हुए भी अपने बच्चे को नहीं छोड़ती।”

उस राख को उसी जगह दफ़ना दिया गया। आज भी वहाँ एक नीम का पेड़ उग आया है, जिसके नीचे एक छोटा सा पत्थर रखा है — “गंगा माँ की समाधि”।


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8. इतिहास के दस्तावेज़ में ग़ैर-मौजूद, दिलों में अमर
कई इतिहासकार इस घटना को ‘प्राकृतिक आपदा’ या ‘सामान्य आक्रमण’ कहकर टाल जाते हैं। पर स्थानीय लोग, पीढ़ियों से यह कहानी अपने बच्चों को सुनाते आए हैं — ताकि उन्हें पता रहे कि माँ सिर्फ शरीर नहीं होती, माँ एक आग से लड़ने वाली ढाल होती है।


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उपसंहार
आज जब हम आरामदायक घरों में बैठकर माँ से झुंझलाते हैं, या उसकी बातों को नज़रअंदाज़ करते हैं, तो याद करिए उस गंगा माँ को — जिसने जलती आग में भी बच्चे को नहीं छोड़ा।

उसकी चीखें भले ही इतिहास के पन्नों में न लिखी गई हों, लेकिन हवा में आज भी उसकी ममता की गूँज सुनाई देती है।

वो ममता जिसने आग को भी मात दी।


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"माँ की गोद में जला बच्चा" — एक इतिहास जो राख में लिखा गया, और दिलों में जिन्दा है।

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