"एक छोटी सी मुलाकात – मीनसूहा और मीराज"
बस स्टॉप पर एक लड़की खड़ी थी — शॉर्ट कुर्ती और स्ट्रेट लूज़ जीन्स में, हल्के छोटे बालों को एक सिंपल पोनी में बांध रखा था। चेहरे पर नजर का चश्मा, कुछ पिंपल्स और हल्के से दाग — मगर एक अजीब सी खूबसूरती उसके चेहरे पर थी, शायद आत्मविश्वास की वजह से।
फोन की घंटी बज रही थी तभी बस आकर रुकी। वो लड़की जल्दी से उतरी। लेकिन तभी, एक लड़का उससे टकरा गया और गलती से उसके चश्मे पर पैर रख दिया।
"अंधे हो क्या? दिखाई नहीं देता?" लड़की गुस्से से चिल्लाई।
लड़का — ब्लैक जीन्स और ब्लैक शर्ट में, दिखने में स्मार्ट था, बोला — "सॉरी... मैं कहीं और देख रहा था।"
"भाड़ में गया तुम्हारा सॉरी! तुमने मेरा चश्मा तोड़ा है — अभी के अभी ठीक करवाकर दो!" लड़की बड़बड़ाई, "अब्बू ने अभी कुछ दिन पहले ही नया बनवाया था... तुम्हें पता है इसकी कीमत?"
लड़के ने चिढ़कर जेब से पैसे निकाले और बोला — "लो, खुद ही ठीक करवा लो।"
लड़की ने गुस्से से घूरते हुए कहा, "तोड़ो तुम, और मैं ठीक करवाऊँ? समझे तुम?"
लड़का हँसते हुए बोला — "ओह गॉड! लड़की हो ना, कितना गुस्सा करती हो!"
"बकवास बंद करो! तुम्हारी वजह से मेरा प्रैक्टिकल छूट गया," लड़की चिल्लाई।
लड़का बोला — "और मेरे लेक्चर भी!"
फिर वो बोला — "चलो, बताओ कहां है दुकान?"
लड़की ने अब्बू को कॉल किया — "अस्सलाम वालेकुम अब्बू, एक लड़के से टकराकर मेरा चश्मा टूट गया है। दुकान जाना है।"
दूसरी तरफ से जवाब आया — "हम्म, ठीक है।"
"चलो, जल्दी!" लड़की बोली।
लड़के ने बाइक स्टार्ट की, लड़की पीछे बैठ गई।
"नाम क्या है तुम्हारा?" लड़के ने पूछा।
"मीनसूहा," लड़की बोली।
"अच्छा है... मगर तुम्हारे लिए ‘ज्वालामुखी’ ज्यादा सूटेबल है," लड़का बोला। मीनसूहा चुप रही।
"और तुम?" मीनसूहा ने पूछा।
"मीराज ओबेरॉय।"
"आगे जाकर लेफ्ट लो," मीनसूहा बोली।
दुकान पहुँचे, मीनसूहा ने टूटा हुआ चश्मा दिखाया। दुकानदार बोला — "नहीं, ठीक नहीं हो सकता।"
मीराज बोला — "मतलब इसमें अब जान नहीं बची।"
"हम्म... फ्रेम दिखाइए," मीनसूहा बोली।
वो चश्मे ट्राय करने लगी — "ये देखो, कौन-सा अच्छा लगेगा?"
"खुद ही डिसाइड करो," मीराज झुंझलाकर बोला।
"बताओ जल्दी! तुम्हारी वजह से हम यहाँ हैं," मीनसूहा गुस्से में बोली।
आधा घंटा लगा, एक फ्रेम फाइनल हुआ। दोनों कॉलेज के बाहर पहुंचे।
मीनसूहा जल्दी से उतर कर जाने लगी, मीराज बोला — "अरे! स्नैपचैट या इंस्टा आईडी तो दो!"
"क्यों?" मीनसूहा ने पूछा।
"अरे दे दो यार!" मीराज बोला।
मीनसूहा धीमे से बोली — "I’m a hijab girl, understand? अगर कुछ हुआ तो टाइमपास हो जाता, और मैं वैसी लड़की नहीं हूँ।"
मीराज बोला — "मतलब अगर मैं तुम्हारी कास्ट का होता तो...?"
मीनसूहा हल्के से मुस्कुराई — "अच्छा, ये बताओ... तुम्हारे घरवाले एक मुस्लिम लड़की को अपनाएंगे?"
मीराज चुप रहा।
"नहीं ना? तो फिर क्यों एक-दूसरे को पसंद करके अपनी टेंशन बढ़ाएं? और अगर तुम मुस्लिम भी होते... तब भी शायद मैं सिर्फ एक बार सोचती, क्योंकि मैं अपने अब्बू का सिर कभी झुकने नहीं दूंगी।"
मीराज कुछ बोलना चाहता था, मगर शब्द नहीं मिले। मीनसूहा चली गई।
Disclaimer:
यह बस एक कल्पना है, किसी भी धर्म, भावना या व्यक्ति को ठेस पहुँचाने का कोई उद्देश्य नहीं है। कभी-कभी बस यूँ ही कॉलेज की एक छोटी सी झलक हमें बहुत कुछ सिखा जाती है — Self-worth, Boundaries, और Respect की कहानी।