Dil ne jise chaha - 19 in Hindi Love Stories by R B Chavda books and stories PDF | दिल ने जिसे चाहा - 19

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दिल ने जिसे चाहा - 19

सुबह के सात बजे थे…
सोमवार का दिन।
बाकी दुनिया के लिए ये एक आम सुबह थी, लेकिन डॉ. मयूर के लिए नहीं।

आज कई दिनों के बाद रुशाली वापस अस्पताल लौटने वाली थी।

 मयूर सर के मन की उलझनें...

आईने के सामने खड़े मयूर सर के चेहरे पर एक अलग ही रौनक थी।
सामान्य दिनों की तरह गंभीर नहीं, बल्कि एक हल्की सी मुस्कान उनके होठों पर थी, जिसे वो खुद से भी छुपाने की कोशिश कर रहे थे।

“दिल ने जिसे चाहा था,
आज फिर से सामने आने वाला है।
क्या वो मुस्कुराकर देखेगी?
या फिर... नज़रें फेर लेगी?”

उनका मन इन सवालों से भरा था।

आज उन्होंने जानबूझ कर वही white शर्ट पहनी,
जिसे रशाली ने एक दिन मज़ाक में "perfect doctor look" कहा था।

कंधे पर स्टेथोस्कोप टाँगते हुए उन्होंने शीशे में खुद को देखा और मन ही मन कहा:

"शायद आज वो पुरानी बातें भूल जाए...
शायद हम फिर से वैसे ही दोस्त बन जाएँ जैसे पहले थे..."

 दिल की वो हलचल, जो कोई नहीं जानता

मयूर सर ने भले ही कभी अपने मन की बात दुनिया से नहीं कही,
लेकिन आज उनकी आँखों की चमक,
उनके चलने के अंदाज़ में उत्सुकता साफ नज़र आ रही थी।

डॉ. मयूर (मन में सोचते हुए):
"मैंने खुद से भी कई बार झूठ बोला है,
पर आज नहीं...
आज रशाली के सामने मैं वैसा ही रहूँगा जैसा दिल चाहता है..."

जैसे ही मयूर सर अस्पताल पहुँचे, सामने से डॉ. कुणाल दौड़ते हुए आए।
चेहरे पर डर और चिंता साफ झलक रही थी।

डॉ. कुणाल (तेजी से, घबराए स्वर में):
“मयूर! मैं तुझे ही कॉल करने वाला था!”

मयूर सर (चौंककर):
“क्या हुआ कुणाल? सब ठीक तो है?”

डॉ. कुणाल (साँस लेते हुए):
“रुशाली... ICU में है...”

मयूर सर के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। जैसे किसी ने उनकी साँसें रोक दी हों। बिना कुछ कहे वो सीधे ICU की ओर दौड़े।

रशाली को देखकर उनका दिल टूट गया।

वो लड़की, जिसे देखकर उनका दिन बनता था, आज सफेद चादर के नीचे पड़ी थी, चेहरे पर पट्टियाँ, मशीनों की बीपिंग, और एक अजीब सी खामोशी।

ICU के बाहर उस वक़्त सब कुछ ठहर सा गया था।
मशीनों की आवाज़ें, स्ट्रेचर की आहटें और डॉक्टरों की बातचीत — सब धीमे हो गए थे,
क्योंकि मयूर सर का ध्यान अब सिर्फ उस एक नाम पर था — रुशाली।

डॉ. कुणाल ने जैसे ही जानकारी दी, उनकी आँखों में आँसू भर आए।

डॉ. कुणाल:
“वो जैसे ही घर से निकली, अस्पताल आने को,
एक तेज रफ़्तार बस ने उसे टक्कर मार दी।
बहुत खून बह गया...
और… हालत अभी स्थिर नहीं है। अब तो बस दुआ ही कर सकते है!”

मयूर सर के होठ कांप रहे थे। वो खुद को संभालने की कोशिश कर रहे थे।

मयूर सर (गुस्से और दर्द से भरे स्वर में):
“कुछ नहीं होगा उसे... कुछ भी नहीं! मैं उसे कुछ होने नहीं दूँगा... रशाली को मेरी ज़रूरत है… मैं यहाँ हूँ… मैं उसके साथ हूँ।”

कुछ देर बाद एक नर्स आई और बोली,

नर्स:
“सर… मरीज को होश आ गया है।”

ICU का दरवाज़ा खुला।

मयूर सर दौड़ते हुए कमरे में घुसे।
रुशाली की आँखें आधी खुली थीं।
होठ काँप रहे थे। साँसें धीमी थीं।

रुशाली (कमज़ोर आवाज़ में बड़बड़ाते हुए)
“मयूर सर… माँ… मयूर सर से मिलना है…”

मयूर सर का दिल चीर गया।
वो उसके पास जाकर उसका हाथ पकड़कर बोले…

मयूर सर (धीरे से)
“मैं यहाँ हूँ रुशाली… कुछ नहीं होगा तुम्हें… मैं तुम्हारे साथ हूँ…”

रुशाली ने हल्की सी मुस्कान दी।
और बमुश्किल बोली…

रुशाली (आँखों में नमी के साथ)
“आप जैसा डॉक्टर हो… तो कोई कैसे ठीक नहीं होगा…
मैंने हमेशा… आपको ही चाहा है… मैं आपसे बहुत प्या—”

उससे पहले ही उसकी साँसें थम गईं।

मयूर सर (चीखते हुए)
“रुशाली!!! नहीं! नहीं रशाली!!”

अचानक मयूर सर की नींद खुल गई।

चेहरे से पसीना टपक रहा था।
धड़कनें तेज़… साँसे उखड़ी हुईं।

उन्होंने इधर-उधर देखा,
ये कमरा था... वो अस्पताल नहीं।
रुशाली ICU में नहीं थी...
ये सब सिर्फ एक सपना था।

मयूर सर (अपने आप से):
“ये सपना… इतना सच्चा क्यों लगा?
कहीं कुछ बुरा तो नहीं होने वाला…?”

डर के मारे उन्होंने फौरन फोन उठाया और रुशाली का नंबर डायल किया।

कई घंटियाँ बजीं…
फिर किसी ने फोन उठाया।

रशाली की माँ:
“हेलो… मयूर बेटा?”

मयूर सर (जल्दी से):
“रुशाली...? वो कैसी है?”

रुशाली की माँ (हँसते हुए):
“सो रही है बेटा… अभी जगाने ही जा रही थी…
आज से फिर से अस्पताल जॉइन कर रही है ना… इतनी छुट्टी के बाद।”

मयूर सर (लंबी साँस लेते हुए):
“अच्छा… आप उसे कहिएगा कि तैयार रहे…
मैं उसे लेने आ रहा हूँ…”

रुशाली की माँ:
“ठीक है बेटा… कह दूँगी…”

फोन कटते ही मयूर सर की आँखों में आँसू आ गए।
वो बेड पर बैठकर अपनी डायरी खोलते हैं और लिखते हैं!!...

“एक ख्वाब ने मेरी ज़िंदगी का मतलब समझा दिया,
जिसे खोने का डर था,
अब उससे मिलने की हिम्मत मिल गई।
शायद अब और छुपाने का वक़्त नहीं…
अब दिल की बात कहनी होगी…
वरना कल फिर कोई सपना... हमेशा के लिए छीन न ले।”

यहीं तक इस हिस्से की कहानी थी…
मयूर सर ने बस एक निर्णय लिया है —
कि वो रुशाली को लेने जायेंगे।

लेकिन क्या वो उससे अपनी मन की बात कह पाएंगे?
क्या सपना उन्हें बदल देगा या वो फिर से वही शांत मयूर बन जाएंगे?

“जिसे खो देने का डर दिल में पल रहा था,
आज उसी के लिए दिल तेज़ धड़क रहा है।
शायद एक नया मोड़ आए…
शायद दिल की बात ज़ुबान तक पहुँच जाए…
या फिर... सब पहले जैसा ही रह जाए…”

जाने के लिए पढ़िए — "दिल ने जिसे चाहा – भाग 20"

क्या मयूर सर रुशाली को लेने जायेंगे?
क्या ये सपना महज़ डर था या कोई इशारा?
और क्या वो आखिरकार रशाली को अपने दिल की बात कह पाएगा?

जारी.....