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🌧️ एपिसोड 1: पहली मुलाक़ात की भीगी दास्तां
सावन का महीना था और आसमान बादलों से ढँका हुआ। हल्की बूँदाबाँदी शहर की सड़कों पर एक सुकूनभरी धुन बिखेर रही थी। वातावरण में मिट्टी की सोंधी खुशबू फैली थी, जो हर दिल को भिगोने के लिए काफी थी।
शहर का नाम था शिवपुरी, एक छोटा-सा, शांत लेकिन अपने अंदर हज़ारों कहानियाँ समेटे शहर। इसी शहर के डीएवी कॉलेज में आज नया सत्र शुरू हुआ था। नये छात्र-छात्राएँ, नए चेहरे, नए ख्वाब लिए कॉलेज के गलियारों में दाखिल हो रहे थे।
अन्वी शर्मा, सलवार-कुर्ते में सजी, एक सादी-सी लेकिन प्यारी मुस्कान लिए कॉलेज परिसर में दाखिल हुई। आँखों में एक झिझक, और मन में माँ के दिए गए संस्कारों की गूंज थी। वो हमेशा की तरह अपनी डायरी को थामे हुए थी — जिसमें वो हर छोटी-बड़ी बात दर्ज करती थी।
उसे नहीं मालूम था कि आज का दिन उसकी ज़िंदगी की दिशा बदल देगा...
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कॉलेज के लॉन में, एक नीम के पेड़ के नीचे बैठा था विवेक राठौड़। उसके हाथ में एक पुरानी किताब थी — "प्रेमचंद की कहानियाँ", लेकिन उसका ध्यान किताब से ज्यादा बारिश की बूँदों पर था। उसकी आँखें उस खाली आकाश में कुछ तलाश रही थीं... शायद किसी अधूरी कविता की पंक्तियाँ या किसी भूले हुए वादे की छाया।
उसी क्षण, कॉलेज के मेन गेट से अन्वी अंदर आई। एक क्षण के लिए उसकी चाल ठिठकी, जैसे बारिश की बूँदें उसे रोक रहीं हों। उसकी साड़ी के पल्लू को वो सँभालती हुई तेज़ी से भागी — ताकि भीग न जाए।
लेकिन तभी फिसल गई।
और इससे पहले कि ज़मीन से उसका रिश्ता जुड़ता, एक हाथ ने उसे थाम लिया।
विवेक था वो।
एक शांत मुस्कान, गंभीर आँखें और संयम से भरे शब्द —
"अगर बारिश में भीगने से डरती हैं, तो रास्ते थोड़े सँभालकर तय कीजिए।"
अन्वी को एक पल के लिए जैसे झटका लगा।
"धन्यवाद," उसने धीरे से कहा, और तुरंत अपने दुपट्टे को ठीक करते हुए पीछे हट गई।
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कुछ क्षण... पर एक अनकहा जुड़ाव
उस छोटी सी घटना ने दोनों के दिलों में एक हलचल पैदा कर दी थी। अन्वी को विवेक की पकड़ में सुरक्षा का एहसास हुआ, और विवेक को अन्वी की आँखों में कुछ ऐसा दिखा जो किताबों में नहीं मिलता — शुद्धता।
कॉरिडोर में दोनों एक-दूसरे से टकरा जाते। लाइब्रेरी में अन्वी की पसंदीदा किताब पहले से ही विवेक के पास होती। कैंटीन में दोनों को चाय पसंद थी — लेकिन बिना शक्कर की।
जैसे कोई अदृश्य डोर हो, जो धीरे-धीरे उन्हें करीब खींच रही हो।
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पहली बातचीत
एक दिन बारिश हो रही थी। कॉलेज की छुट्टी हो चुकी थी लेकिन अन्वी का भाई उसे लेने नहीं आ पाया। कॉलेज गेट के पास अकेली खड़ी अन्वी के हाथ में छाता नहीं था।
तभी एक बाइक रुकी।
"छोड़ दूँ घर तक?"
विवेक का वही शांत चेहरा और विनम्र स्वर।
अन्वी कुछ पल सोचती रही। माँ ने हमेशा सिखाया था कि किसी अनजान लड़के के साथ नहीं जाना चाहिए। लेकिन विवेक अब उसके लिए अनजान नहीं था।
शब्दों से ज़्यादा उसकी आँखों में जो ईमानदारी थी, उसी ने जवाब दिया।
"ठीक है... लेकिन सिर्फ घर तक।"
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रास्ते में...
"आप बहुत शांत रहते हैं। कुछ कहते नहीं," अन्वी ने बोला।
विवेक मुस्कुराया — "हर बात कहने के लिए शब्दों की ज़रूरत नहीं होती। कुछ चीज़ें सिर्फ महसूस की जाती हैं। जैसे ये बारिश..."
अन्वी ने पहली बार महसूस किया कि कोई उसकी सोच से मिलती सोच भी रख सकता है।
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घर के बाहर...
"शुक्रिया," अन्वी ने बाइक से उतरते हुए कहा।
"बारिश फिर होगी..." विवेक ने कहा।
"तो?"
"तो फिर मिलेंगे... शायद..."
वो एक वादा था — जो उन्होंने ज़ुबान से नहीं, बारिश की उन बूँदों के सहारे कर लिया था।
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डायरी में लिखा गया वादा
उस रात अन्वी ने अपनी डायरी में लिखा —
> "आज एक अजनबी ने बारिश में मुझे थामा... लेकिन न जाने क्यों, ऐसा लगा जैसे वर्षों से जानती हूँ उसे। उसने कुछ नहीं कहा, पर उसकी आँखों ने जो कहा, वो अब तक कहीं नहीं सुना था।
शायद ये पहली बारिश... एक वादा थी।"
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अंत नहीं, शुरुआत है...
यही वो लम्हा था जहाँ एक साधारण-सी शुरुआत ने जन्म लिया —
एक ऐसी प्रेम कहानी का, जो बारिश से शुरू होकर वादों की तपिश में तपेगी,
जुड़ाव से होकर जुदाई के मोड़ देखेगी,
और अंततः सिद्ध करेगी —
"सच्चा प्यार वो होता है, जो पहली बारिश के वादे की तरह — भीगकर भी साथ निभाता है।"
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📖 जारी रहेगा... एपिसोड 2 में...
जहाँ विवेक और अन्वी की दोस्ती धीरे-धीरे रिश्ते की पहली सीढ़ी चढ़ेगी।
पर क्या समाज, परिवार और समय उनके इस नाजुक से रिश्ते को परख पाएगा?
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लेखिका:रेखा रानी