नायक प्रकाश का परिचय
इस शहर की मिट्टी की खुशबू, यहाँ की गलियों की आवाज़ें, और यहाँ के लोगों की जिंदगी में जो सादगी है, वही बनारस की आत्मा है। और उसी आत्मा के बीच जन्मा है हमारा नायक, प्रकाश।
गंगा नदी के किनारे की उस पुरानी और संकरी सीढ़ियों पर सूरज की पहली किरणें अपने सुनहरे जादू से गंगा के जल को चमका रही थीं। दूर-दूर तक फैली घाटों की चहल-पहल धीरे-धीरे जाग रही थी। मछुआरे अपनी नौकाओं को संभाल रहे थे, घाट पर बच्चे नहाने में मशगूल थे, और हर तरफ से सुबह की मीठी-मीठी हलचल आ रही थी।
सीढ़ियाँ जिन पर हर दिन हजारों पैर चलते थे, आज भी अपनी पुरानी मानिंद फिसलन लिए थीं, और जब कोई ऊपर चढ़ता तो फिसलन की आहट के बीच उसकी क़दमों की नरमी से ये सीढ़ियाँ जैसे जीवित हो उठती थीं।
ठीक ऐसी ही एक क़दम अब ऊपर चढ़ रहा था, एक लड़का, जिसकी चाल में कुछ अलग सी नज़र थी — धीमी, पर संजीदा। उसकी गहरी, चमकीली काले रंग की आंखें, जिनमें एक तरह की हसरत और उम्मीद झलकती थी, सीधे सामने देखते हुए कुछ खोजती हुई लगती थीं। वह लड़का प्रकाश था।
उसके हल्के भूरे रंग के बाल, जो थोड़े घुंघराले थे, माथे पर कुछ लटकते थे जैसे वे उसके जज्बातों की तरह किसी से छुपना चाहते हों। सिर पर सफेद धोती और हल्का नीला कुर्ता था, जो बिल्कुल साफ और बिना कोई झंझट के था, जैसे उसकी सादगी और साफ़ दिल को बयां कर रहा हो। पैरों में सादे, पर साफ जूते, जो कई बार सीढ़ियों पर चलने की मजबूरी से थोड़े धूल-धूसरित थे।
प्रकाश की हर अदा में एक नरमी थी, जो उस गहन सोच को जाहिर करती थी जो उसके मन में हमेशा चलता रहता था। वह किसी से भी झुंझलाता नहीं था, न ही ज़ोर से बोलता; उसकी आवाज़ हमेशा धीमी, पर साफ़ और भरोसेमंद होती थी।
घर में सिर्फ उसकी माँ ही थीं — एकतरा सी और नर्म दिल वाली महिला। उनका चेहरा, जिस पर समय की मार झलकती थी, पर फिर भी मुस्कान के फूल खिलते रहते थे। माँ की आंखों में हमेशा चिंता और प्यार का मिश्रण रहता था। प्रकाश की दुनिया का केंद्र वे थीं।
उसका घर बनारस की संकरी गलियों में था — एक पुरानी हवेली जैसा, जहां दीवारें गंगा की ठंडी हवा से ठंडी होती थीं और खिड़कियों से बाहर पुराने पेड़ों की शाखाएं झांकती थीं। भीतर की सादगी और ग़रीबी साफ़ झलकती थी, पर माँ की मेहनत और प्यार ने उस घर को एक आशीर्वाद जैसा बना रखा था।
प्रकाश अपनी माँ के लिए सब कुछ था। उसकी छोटी-छोटी खुशियों का कारण वही थी, और हर सुबह जब वह सीढ़ियाँ चढ़कर गंगा की ओर निकलता, तो मन में उम्मीदों की नई किरणें लिए होता। उसकी आंखों में हमेशा कुछ कहने को चाहत, कुछ पाने की लगन थी।
वह लड़का, जो बनारस की गलियों के रंग में रंगा हुआ था, आज भी उन पुराने सीढ़ियों से चढ़कर आगे बढ़ रहा था — एक नई कहानी की ओर, जिसमें उसकी तकदीर भी कहीं छुपी थी।
प्रकाश की चाल में एक सुकून था, मानो वह हर कदम सोच-समझकर उठा रहा हो। उसके कदम धीमे, पर तय थे। वह कभी भी जल्दबाजी में नहीं चलता था, क्योंकि बनारस की गलियों में वक्त भी अपनी रफ्तार से चलता है। कभी-कभी वह अपने कंधे पर हल्का सा बोरा लेकर चलता था, जिसमें किताबें या माँ के लिए कुछ खरीददारी रहती।
उसकी आंखें — गहरे काले और चमकदार — बातों को छुपा नहीं पाती थीं। जब वह किसी को देखता, तो उसकी आंखों में एक मासूमियत के साथ-साथ एक अनकहा दर्द भी होता था। ये आंखें अक्सर दूर-दूर तक देखते हुए खो जातीं, जैसे कोई अनदेखा सपना तलाश रही हों।
प्रकाश का स्वभाव बड़ा ही नम्र और विनम्र था। वह न कभी किसी से लड़ता, न ही किसी की निंदा करता। पर उसके मन में जो चीज़ें होतीं, उन्हें वह केवल अपनी माँ के सामने ही खोलता। माँ के सामने उसकी हर चिंता, हर खुशी, हर उम्मीद बयां हो जाती।
माँ, जिसका नाम था साधना, एक मध्यम आयु की महिला, पर चेहरा थोड़ा थका हुआ, आंखों में परवरिश और त्याग की चमक लिए। वह हर रोज़ तड़के सुबह उठकर घाट पर जाकर गंगा के जल से पूजा करती, फिर घर आकर प्रकाश के लिए कुछ स्वादिष्ट पकवान बनाती। उनके लिए जीवन में सबसे बड़ी खुशी अपने बेटे की सफलता थी।
घर की दीवारों पर साधना की लगी हुई पुरानी तसवीरें, जो वर्षों से वहीं टंगी थीं, एक तरह से उनके परिवार की कहानी कहती थीं — संघर्ष, उम्मीद और प्यार की। घर का माहौल हमेशा शांत और सुकून भरा रहता था, भले ही बाहर की दुनिया कैसी भी हो।
प्रकाश की आदतें भी साधारण थीं। वह हर सुबह घाट पर जाकर गंगा की ठंडी हवा में गहरी सांस लेता, फिर अपनी पढ़ाई के लिए किताबें खोलता। वह पढ़ाई में तेज़ था, पर कभी दिखावा नहीं करता था। गाँव या शहर की कोई भी लड़की उसके बारे में यही कहती कि वह बेहद ईमानदार और सच्चा है।
उसका दिल बड़ा था, पर वह अपने जज़्बातों को छुपाना भी जानता था। खासकर बनारस की भीड़-भाड़ और गंगा की सांस्कृतिक रौनक के बीच, वह एक शांत किनारा था, जहां हर कशमकश का अंत होता था।