Tera Intzaar ab Bhi Hai - 2 in Hindi Love Stories by Ashutosh Moharana books and stories PDF | तेरा इंतज़ार अब भी है - 2

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तेरा इंतज़ार अब भी है - 2

वक़्त बीत गया… लेकिन यादें नहीं।

मायरा अब अमेरिका से लौट चुकी थी। मुंबई में एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में मैनेजर की पोस्ट पर थी। हर चीज़ बाहर से एक परफेक्ट लाइफ का हिस्सा लगती थी—कार, ऑफिस, छुट्टियाँ, सोशल मीडिया पर स्माइलिंग तस्वीरें… लेकिन दिल के एक कोने में अब भी एक "रिक्तता" थी, एक ऐसा स्पेस जहाँ कोई अब भी धड़कता था।

आरव।

उधर आरव ने दिल्ली में रहकर CAPF की तैयारी शुरू कर दी थी। वो अब पहले जैसा नहीं था—ना वो बेफिक्री, ना शरारतें। दिनभर लाइब्रेरी, कोचिंग, और फिर घर में चुपचाप डायरी में कुछ लिखना—बस यही उसकी दिनचर्या बन गई थी। लेकिन हर हफ्ते रविवार को वो अब भी उसी पार्क में ज़रूर जाता जहाँ उसने और मायरा ने पहली बार बारिश में चाय पी थी। उसी पेड़ के नीचे बैठकर वो अब भी अपनी वही पुरानी डायरी खोलता।

उस डायरी में आज भी पहला पन्ना वही था:

"तेरे बिना सब कुछ है… पर कुछ भी नहीं।"
— आरव

एक शाम मायरा अपने पुराने लैपटॉप की सफ़ाई कर रही थी। कुछ अनपढ़े ईमेल्स दिखे। एक मेल पर नजर गई—"From: Araw_92@gmail.com"

क्लिक किया तो वही शब्द फिर सामने थे।

उसके होंठ काँपे। स्क्रीन के उजाले में उसकी भीगी पलकें चमकने लगीं।

वो उठी, खिड़की के पास आई और आसमान की ओर देखा—जहाँ दिल्ली की हल्की बारिश फिर से शुरू हो चुकी थी। वही बारिश, वही मौसम… बस अब वो साथ नहीं था।

कुछ दिनों बाद मायरा दिल्ली ऑफिस की मीटिंग के सिलसिले में आई। शाम को बाहर घूमने निकली तो सामने बोर्ड लगा था:
"दिल्ली बुक फेयर — प्रगति मैदान"

उसे याद आया, आरव को किताबों की मेले बेहद पसंद थे। वो रुक गई… और अचानक दिल ने कहा:
"चलो, इस बार वक़्त को एक और मौक़ा देते हैं।"

बुक फेयर में कदम रखते ही नज़रें इधर-उधर कुछ तलाशने लगीं, जिसे खुद वो भी शब्द नहीं दे पा रही थी।

और फिर…

एक सेक्शन में खड़े एक लड़के की आवाज़ कानों में गूंजती है—
"तुम अब भी वही किताबें पढ़ती हो?"

वो पल जैसे ठहर गया। मायरा ने धीरे से सिर घुमाया।
आरव वहीं था—जैसे सालों बाद भी समय ने उसे नहीं बदला हो। वही गहरी आँखें, वही हल्की मुस्कान… और वही अपनापन।

"हाँ… और अब भी वही कविताएँ पढ़ते हुए कोई याद आ जाता है," मायरा ने जवाब दिया, आँखों में नमी और होंठों पर मुस्कान के साथ।

कुछ क्षण दोनों यूँ ही एक-दूसरे को देखते रहे। आसपास की भीड़ धुंधली पड़ गई, जैसे सिर्फ वही दो लोग वहाँ थे।

पास ही एक कॉफ़ी शॉप में बैठते हुए बातों का सिलसिला फिर शुरू हुआ—लेकिन इस बार बचपना नहीं था, मासूमियत की जगह समझदारी थी।

"क्या तुम अब भी वही डायरी लिखते हो?" मायरा ने पूछा।

आरव ने बैग से वही पुरानी डायरी निकाली और उसे थमा दी।

मायरा ने उसे खोला। आख़िरी पन्ने पर लिखा था:

"अगर फिर मिलोगी, तो पूछूँगा—क्या अब भी मेरा इंतज़ार है?"

उसने धीरे से डायरी बंद की, आरव का हाथ थामा और कहा:

"हाँ... तेरा इंतज़ार अब भी है।"

आरव की आँखों में चमक आ गई। ये सिर्फ एक जवाब नहीं था—ये उस अधूरी मोहब्बत का पुनर्जन्म था।

"इस बार हम वक़्त को अपना बनने नहीं देंगे," उसने मुस्कुराते हुए कहा।


कभी-कभी मोहब्बत को बस वक़्त चाहिए होता है—टूटने के लिए नहीं, बल्कि दोनों को खुद को समझने और फिर से जुड़ने के लिए।

क्योंकि सच्चा प्यार ना मिटता है, ना मरता है। वो बस इंतज़ार करता है…
जैसे आरव ने किया… और मायरा लौट आई।