🌷🌷🌷हुक्म और हसरत 🌷🌷
“ये महल मेरी कैद बनता जा रहा है…”
सिया ने आइने में खुद को देखते हुए बुदबुदाया।
लाल रंग की फ्लोरल लहंगे में, बालों को खोले वो जैसे किसी राजकुमारी की ही तरह लग रही थी।
टकराव की दस्तक बाहर खड़ी थी। और उसका नाम था — अर्जुन।
"राजकुमारी जी, अर्जुन सर आपका इंतज़ार कर रहे हैं,”
काव्या ने धीमे स्वर में कहा।काव्या उसकी असिस्टेंट थी।
“इतनी सुबह?
सिया ने कहा।
"आपकी सुरक्षा की मीटिंग है, मैम।"
सिया बाहर निकली तो मुख्य हॉल में अर्जुन पहले से खड़ा था।
काली फुल-स्लीव शर्ट, सधे हुए बाल, और आँखें... बिल्कुल वैसी — कठोर, शून्य।
“आपने बिना पूछे मुझे सुबह बुलाया?”
“मैं अनुमति नहीं, जानकारी देता हूँ।”
अर्जुन की आवाज़ शांत, मगर तीखी थी।😑
“आपको बॉडीगार्ड बनाया गया है, बॉस नहीं।”😏
“और आपको रानी बनाया जाएगा, मगर आप अभी राजकुमारी हैं — जिसका ताज अभी मिला नहीं है।”😐
सिया का चेहरा तमतमा गया।😳
“तो आप मुझे हर पल याद दिलाएंगे कि मैं अधूरी हूँ?”
“नहीं, मैं आपको भरम में नहीं रखता।”😑अर्जुन ने कहा।
वही भाव हीन चेहरा।😐
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भोजन कक्ष:
भोजन कक्ष में बैठक हो रही थी।
राजा वीर सिंह, मीरा रानी, दादी कल्याणी,सिया — सभी मौजूद।
"राजनीतिक मामलों में तुम्हें हिस्सा लेना चाहिए, सिया," राजा वीर सिंह ने कहा।
"पिता जी, अभी लौटे 24 घंटे भी नहीं हुए, और आप मुझे सत्ता में घसीट रहे हैं?"
सिया ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा।
“सत्ता नहीं, जिम्मेदारी,” रानी मीरा ने शांत स्वर में कहा।
टेबल पर नौ व्यंजन सजे थे।
रानी मीरा देवी – सिया की माँ – चुपचाप उसकी थाली में परोसने लगीं।
"ज़िम्मेदारी तब देनी चाहिए जब इंसान के पास निर्णय लेने की आज़ादी हो।"
सिया की आवाज़ में कड़वाहट थी।
दादी कल्याणी ने हल्के से कहा, "रानी बनना इतना आसान नहीं होता, बेटी।"
"मुझे रानी नहीं बनना। मुझे खुद को बनाना है।"
माहौल गंभीर होता देख रानी मां ने सिया को शांत रहने का इशारा किया।रानी मां अपनी जगह से उठ सिया के पास आकर थाली में खाना परोसने लगी।
“इतना सब? मैं कोई युद्ध लड़ने नहीं जा रही माँ,” सिया ने मुस्कराते हुए कहा।
"अरे!होने वाली रानी हो! युद्ध से बड़ी चीज ये है।
मीरा ने उसके बालों को पीछे करते हुए कहा, “और तुम मेरी रानी हो, मगर सबसे पहले मेरी बेटी।”
तभी अर्जुन कमरे में प्रवेश करता है — वही काली शर्ट, वही खामोश चेहरा।
"आपको बैठक में आने से पहले अनुमति लेनी चाहिए थी," सिया ने कहा।😒
"सुरक्षा विभाग की अनुमति सिर्फ़ आदेश लेती है, क्षमा नहीं,"😐
उसकी आवाज़ में न कोई भय, न कोई झिझक थी।
टेबल के दूसरे छोर पर बैठे राजा वीर सिंह ने एक नज़र सिया पर डाली और गंभीर स्वर में बोले –
“कल प्रेस है, पत्रकार तुमसे सवाल करेंगे। तैयारी करो।”
“सवाल तो मैं खुद से पूछ रही हूँ, पापा…”
सिया ने रोटी तोड़ते हुए मन में कहा, “क्या ये मेरी ज़िंदगी है या कोई एजेंडा?” सिया के ठीक दो कदम पीछे अर्जुन खड़ा था। वो भोजन कक्ष को अच्छे से जांच रहा था,उसकी आंखे चौकन्नी थी।😎
"ऊपर से ये रोबोट!🙄 जिसे प्यार से बात क्या? बात ही करना आता नही है? बस होठ चुपके रहेंगे,और आंखे घूरती रहेगी।😑
" खडूस! इंसान😏"
"राजकुमारी मुझे कोसने की जगह खाना खाइए।😎अर्जुन ने पीछे से सिया के कान के पास कहा। सिया सकपका गई,वो जल्दी जल्दी खाने लगी।सिया के गले में खाना फस गया,वो खासने लगी।🫣
"है! ये मन भी पड़ता है क्या?🙄सिया मन ही मन बोली।🤫
"बिलकुल"! राजकुमारी । अर्जुन ने सिया को पानी का गिलास दिया और उसकी पीठ पर थपकी की।
सिया ने पानी पीते हुए अपनी आंखे बड़ी कर ली।🫣
अर्जुन उसकी इस हरकत पर हल्के से मुस्कुराया।
"उफ्फ! राजकुमारी,आप इतनी मासूम है या बनती है?🤔
अर्जुन वापिस अपनी जगह पर खड़ा हो गया, पर उसके परफ्यूम के साथ सिया की खुश्बू मिल गई।
"गुलमोहर "🌷✨अर्जुन ने खुसबू से एक पल को अपनी आंख बंद की ,पर आंखे के सामने एक दृश्य देख कर उसकी आंखे अब लाल हो गई।उसके जबड़े कस गए,जैसे की उसे कुछ याद आ गया हो, उसके होठों से मुस्कुराहट जा चुकी थी,उस के होठ चिपक गए।चेहरा भाव हीन।
उधर सिया मन ही मन बोली" ये तो बड़ा खतरनाक इंसान है ,
खडूस🙄!!पर सिया को एक पल को अर्जुन को करीब पाकर दिल की धड़कने तेज होना याद आ गया।💗💗
अर्जुन का स्पर्श ,खुश्बू और उसका एहसास !!
" ये क्या हो रहा है??🙄सिया फोकस ,,,ये इंसान नही कोई जिन है इस से दूर रहने में ही भलाई है।
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खाने के बाद रोशनी ने सुझाव दिया,
"चलो दीदी, मैं तुम्हें महल का रिनोवेटेड हिस्सा दिखाती हूँ।"
सिया चल पड़ी, अर्जुन साथ चला।
"मुझे आपकी निगरानी की ज़रूरत नहीं है," सिया बोली।
"मैं आपका अंगरक्षक हूँ, नज़दीकी मेरी मजबूरी है,"
उसने शांत स्वर में जवाब दिया।
"आपको कभी किसी बात पर मुस्कुराहट आती है?"🤔
"हँसी ज़ख़्मों की लग्ज़री है, जो मेरी ज़िंदगी में अब बची नहीं।"😑
सिया उसकी बात पर चुप हो गई।
वो जानती थी, ये आदमी रहस्यों से भरा है… और बेहद अकेला।
*****""
सिया अपने कमरे में बैठी एक किताब देख रही थी, जब रोशनी अंदर आई काव्या के साथ।
“दीदी, आजकल सब आपको ‘रॉयल’ कह रहे हैं, लेकिन अर्जुन भाई तो आपको सीरियसली नहीं लेते।”
“वो किसी को नहीं लेते — शायद खुद को भी नहीं।”
सिया ने हँसते हुए कहा, “उसका चेहरा देखो, जैसे गूगल मैप में रास्ता खो गया हो।”
रोशनी हँसी।
“दीदी, आप उस पर क्यों गुस्सा हो जाती हैं?”
“क्योंकि वो हर बात पर मुझे कमज़ोर समझता है।”
कव्या, जो सिया की पर्सनल असिस्टेंट बन चुकी थी, मुस्कुरा दी,
"लेकिन वो काम के मामले में बहुत सख़्त हैं। सब लोग उनसे डरते हैं।"
"मैं नहीं डरती।"
"और यही बात उन्हें परेशान करती है," कव्या ने धीरे से कहा।
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उधर महल के एक कोने में :
एक लैपटॉप खुला पड़ा था — स्क्रीन पर चल रही थी एक इंटरनेशनल वीडियो मीटिंग। एक शख्स उस लैपटॉप को घूर रहा था।
“Mr. Suryavanshi, the Tokyo merger is waiting for your confirmation…”
“Tell them I don’t wait. And I don’t ask.”
(“उन्हें बताओ मैं इंतज़ार नहीं करता, और माफ़ी नहीं मांगता।”) उस शख्स ने जवाब दिया।हाथ में घड़ी बांधते हुए उसने एक फ़ाइल खोली — जिसमें था:
“राजा ए.एस.आर.— उदयपुर के शाही वंशज।
तभी लैपटॉप में एक इंसान ने कुछ कहा जिसे सुन कर उस शख्स के दांत भींच गए।
"शेयर वैल्यू 3% गिरी है, लेकिन हम अगले महीने में दुगना रिकवरी करेंगे।"
शख्स ने सटीक शब्दों में प्लान रखा।
"सर, जयगढ़ में आपकी पोस्टिंग ठीक है न?"
किसी डायरेक्टर ने पूछा।
"मेरे दोनों किरदार… बख़ूबी निभा रहा हूँ।"
उसने वीडियो कॉल बंद किया और सामने रखा हुआ एक पन्ना देखा —
सिया की तस्वीर और नीचे लिखा था:
“टारगेट: जयगढ़ की विरासत।”
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महल के कक्ष में एक मीटिंग चल रही थी।
मीरा वर्मा, तेज़तर्रार वकील और सिया की सलाहकार वहां बैठी हुई थी । उसके सामने एक शख्स बैठा था।विक्रांत सिंह, विपक्षी पार्टी का नेता।
“आप हर प्रस्ताव को असंवैधानिक क्यों कहते हैं?”
मीरा बोलीं।
विक्रांत ने तिरछी मुस्कान दी —
“क्योंकि सत्ता की भूख संविधान से बड़ी होती है, मैडम।”
“और नैतिकता उससे भी बड़ी होती है, सर।”
कमरा एक पल को शांत हो गया।
दो आंखें टकराईं थीं — और लड़ाई की शुरुआत हो चुकी थी।
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सिया बालकनी में बैठी थी — चाँद को निहारते हुए, जब अर्जुन आया।
“आप यहाँ क्यों हैं?”
“सुरक्षा के लिए। एक हमले की खबर मिली है।”
“आपको क्या लगता है? मैं डर जाऊंगी?”
“मुझे फर्क नहीं पड़ता आप डरें या नहीं। फर्क सिर्फ़ पड़ता है कि आप बचें।”
सिया उठी, गुस्से से कहा —
“आपका हर शब्द ठंडा, हर नज़रिया शून्य है।”
“क्यों? क्या कभी किसी ने आपके अंदर कुछ जला नहीं दिया?”
अर्जुन की आँखों में हल्की चिंगारी आई।
“जो जलता है, वो बुझता भी है। मैंने खुद को राख बना दिया है… ताकि कोई फिर से जला न सके।”
सिया चुप हो गई।
सिया ने उसकी ओर देखा — पहली बार ध्यान से।
“ये आदमी सिर्फ़ सख्त नहीं है… ये टूटा हुआ भी है।”
अर्जुन उसकी ओर मुड़ा,
“सो जाइए, राजकुमारी। कल और भी थकाऊ होगा।”
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"जिस इंसान को वो अपना अंगरक्षक समझ रही हो… वो ही उसकी ताजपोशी का सबसे बड़ा शत्रु बन चुका है।”💗💗
©Diksha
जारी(...)
✨ मेरे प्यारे Para❤️hearts(readers) के नाम
आप सभी का शुक्रिया, जिन्होंने मेरी कहानी "हुक्म और हसरत" को पढ़ा, महसूस किया और सिया व अर्जुन की जंग में अपने दिल की धड़कनों को बाँध लिया। 💗
हर कमेंट, हर रेटिंग, हर छोटी सी प्रतिक्रिया — मेरे लिए एक नया उत्साह बनती है।
कभी अर्जुन की खामोशी में आप साज़िश ढूँढते हैं, तो कभी सिया की मासूमी में खुद को…
बस यूँ ही मेरे किरदारों से जुड़े रहिए… क्योंकि असली खेल अब शुरू होगा! 🔥
आपकी हिम्मत मेरा हौसला है।
आपकी धड़कन मेरी स्याही है।
सिर्फ एक छोटी सी गुज़ारिश —
रेटिंग्स देना मत भूलिएगा, ये मेरे जैसे लेखक के लिए सबसे बड़ी ताकत होती है। ✍️💞
प्यार और लेखन में,
हमेशा आपकी —
~Diksha mis kahani 🌷
#ParaHeartsForever 💖
#TeamArjunOrTeamSiya? 👇
बताना जरूर!