From self to self – the heroine is her in Hindi Motivational Stories by R B Chavda books and stories PDF | खुद से खुद तक – नायिका अपनी

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खुद से खुद तक – नायिका अपनी

वो प्यार में नहीं टूटी, बल्कि खुद को जोड़ने लगी।
जिसे सबने अधूरी कहानी समझा, वो असल में एक पूरी और मजबूत औरत की शुरुआत थी।

किरण की कहानी कोई फिल्मी रोमांस नहीं है।
ये कहानी है एक लड़की की — जिसने प्यार किया, खोया, और फिर खुद को पाया।
जिसने सीखा कि हर कहानी को शादी में बदलना ज़रूरी नहीं, और हर अकेलापन अधूरा नहीं होता।

जब दुनिया ने उसकी कहानियों में उसकी ज़रूरतें तलाशीं,
तो वो खुद को शब्दों में समेटकर जवाब बन गई।

ये सफर है — दिल टूटने से लेकर आत्म-साक्षात्कार तक,
एक लड़की की अपनी पहचान को गढ़ने का।
एक ऐसी नायिका की जो किसी और की तलाश में नहीं,
बल्कि खुद की खोज में है।

किरण… एक आम लड़की लेकिन असाधारण सोच वाली। उसकी उम्र जब बीस साल की थी, तो उसने पहली बार किसी को दिल से चाहा था। उस वक्त वो कॉलेज के अंतिम वर्ष में थी और अपने भविष्य को लेकर बहुत गंभीर थी। पढ़ाई, करियर और एक अच्छा जीवन – बस यही उसके लक्ष्य थे। लेकिन कहते हैं न, ज़िंदगी कभी-कभी बिना दस्तक दिए कुछ एहसासों को दिल में उतार देती है। ऐसा ही कुछ हुआ था उसके साथ भी।

वो लड़का जिससे क़िरण को प्यार हुआ था, कोई दोस्त या क्लासमेट नहीं था। वो तो बस एक प्रोफेशनल मुलाकातों की वजह से चार बार उसकी ज़िंदगी में आया और फिर चला गया। लेकिन उन चार मुलाकातों ने क़िरण के दिल में जो जगह बना ली थी, वो शायद हमेशा के लिए थी। क़िरण ने एक दिन हिम्मत जुटाकर उस लड़के से कह दिया – “मुझे तुम पसंद हो।”

लेकिन जवाब कुछ ऐसा मिला जो दिल को चीर देने वाला था – “तुम मुझे भूल जाओ, मेरी शादी तय हो चुकी है।” बिना कोई ठहराव, बिना कोई सोच-विचार, उस लड़के ने एक ही पल में उसकी उम्मीदें तोड़ दीं। लेकिन क़िरण का दिल मानने को तैयार नहीं था। उसे लगा, शायद वो झूठ बोल रहा है... शायद डर गया हो... शायद कुछ मजबूरी हो... शायद कोई तो वजह होगी।

बस, इन्हीं "शायदों" ने उसके मन में एक छोटी सी उम्मीद जगा दी – एक उम्मीद कि शायद एक दिन वो लड़का उसे समझेगा, वापस आएगा।

लेकिन वक्त ने धीरे-धीरे उसे सिखा दिया कि जो उम्मीद अधूरी हो, उसे बोझ नहीं बनने देना चाहिए। क़िरण ने उस लड़के से संपर्क करना ही बंद कर दिया। लेकिन दिल में जो एहसास थे, उन्हें कहीं तो बहार निकालना था। वो उन्हें अपने शब्दों में ढालने लगी – कहानियों के रूप में।

उसने अपनी कल्पनाओं की दुनिया रच डाली, जहां वो उस लड़के के साथ एक सुखद प्रेम कहानी जीती थी। उसकी कहानियों में प्यार था, संवाद थे, जज़्बात थे, और अंत में – शादी। एक ऐसी शादी जो हकीकत में कभी नहीं हो सकी।

और फिर एक दिन, क़िरण को यह भी पता चला कि उस लड़के की सच में शादी हो चुकी है। यह जानकर उसका दिल टूट गया। लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने लिखा... और लिखा... एक-एक लफ्ज़ में अपने टूटे दिल की किरचें समेटी। अब वो अपनी कहानियों में खुद को उस दुनिया में ले जाती, जहाँ वो चाहती थी कि उसका प्यार एक हैप्पी एंडिंग पाए।

उसकी कहानियाँ पढ़कर लोग यही सोचते – "किरण को शादी करनी है, कोई अच्छा लड़का नहीं मिला इसलिए अकेली है।"

पर क्या ये सच था?

नहीं।

क़िरण की दुनिया इन कहानियों से अलग थी। वो बस अपने दिल के अधूरे पन्नों को लिखकर पूरा करना चाहती थी। उसके शब्दों की दुनिया उसकी असलियत नहीं थी, बल्कि एक ऐसा आईना थी जिसमें वो अपनी भावनाओं को देखती थी।

वो हर उस लड़की की तरह नहीं थी जिसे ज़िंदगी में सिर्फ एक अच्छा पति चाहिए होता है। हाँ, उसने एक बार कल्पना ज़रूर की थी कि उसका साथी कैसा हो – समझदार, संवेदनशील, उसके ख्वाबों का हमसफर। लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि उसे शादी की दरकार है। असल में, उसे शादी से डर लगता था।

उसने अपने आसपास देखा था – कई शादियाँ... कई रिश्ते... जिनमें मुस्कुराहटें कम और समझौते ज़्यादा थे। वो जानती थी, शादी एक सुंदर बंधन है लेकिन तब, जब दोनों लोग एक-दूसरे के ख्वाबों और अस्तित्व को समान मानते हों। पर अधिकतर मामलों में, यह सिर्फ एक सामाजिक रस्म बनकर रह जाती है जहाँ लड़की के सपने पीछे छूट जाते हैं।

इसलिए क़िरण ने अपने लिए एक अलग राह चुनी।

वो चाहती थी कि उसका नाम उसकी पहचान बने, न कि किसी रिश्ते की वजह से लोग उसे जानें। उसे अपने पैरों पर खड़ा होना था, अपना एक मुकाम बनाना था। उसे खुद से खुद को साबित करना था – कि वो अकेली होकर भी पूरी है।

कभी-कभी लोग उससे पूछते – "अब तक शादी क्यों नहीं की?"
वो मुस्कुरा कर कहती – "जब करनी होगी, कर लूंगी।"

पर सच ये था कि वो खुद भी नहीं जानती थी कि वो शादी करेगी या नहीं। शायद कभी नहीं। और ये उसका डर नहीं था, उसकी चुनाव की आज़ादी थी।

कभी-कभी जब वो अपने दोस्तों से या करीबी लोगों से बात करती तो उनके सवाल बड़े सीधे होते –
"तू इतना अकेलापन क्यों महसूस करती है?"
"क्यों तुझे कोई मिल नहीं रहा?"
"तेरी कहानियों से लगता है तुझे हमसफर का इंतजार है और शादी करनी है!"

वो चुप रह जाती। वो जानती थी कि उसकी कहानियाँ सिर्फ कल्पना हैं, एक भावनात्मक पुल जिनसे वो अपने अधूरे प्यार को पार कर रही थी। लेकिन लोगों को ये समझाना मुश्किल था।

उसे दुख तब होता जब उसकी स्वतंत्रता को उसके अकेलेपन का नाम दे दिया जाता। उसकी कहानियाँ उसे कमज़ोर नहीं, बल्कि मज़बूत बनाती थीं। वो उस दर्द से निकलने की कोशिश थी जिसे वो कभी ज़ाहिर नहीं कर पाई।

वो एक आज़ाद लड़की थी – जो प्यार में बंधी ज़रूर थी लेकिन किसी बंधन में रहना नहीं चाहती थी।

उसने ये तय किया था कि जब तक उसका करियर ऊँचाइयाँ नहीं छू लेता, जब तक उसका सपना साकार नहीं हो जाता – तब तक उसे किसी रिश्ते की ज़रूरत नहीं। और हो सकता है कि जब वो उस मुकाम पर पहुँचे, तब भी उसे किसी साथी की तलाश न हो।

क्योंकि उसकी सबसे बड़ी साथी थी – उसकी स्वतंत्रता।

वो इस समाज की उस लड़की की तस्वीर नहीं थी जिसे 'कुंवारी' कहकर तंज कसे जाएँ। वो उस सोच से परे थी, जहाँ एक लड़की की पहचान उसके वैवाहिक दर्जे से तय होती है। वो जानती थी कि समाज उसे जज करेगा, बातें बनाएगा, लेकिन अब वो इन बातों से डरती नहीं थी।

उसे अब फर्क नहीं पड़ता कि लोग क्या सोचते हैं।
उसे फर्क पड़ता है कि वो खुद अपने बारे में क्या सोचती है।

और यही सोच उसे औरों से अलग बनाती थी।

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क़िरण का अंत नहीं, एक शुरुआत है...

आज जब लोग उसकी कहानियाँ पढ़ते हैं, तो उन्हें उसमें एक प्रेमी लड़की दिखती है – जिसे प्यार चाहिए, शादी चाहिए, एक साथी चाहिए।
लेकिन सच्चाई ये है कि क़िरण को सिर्फ खुद से प्यार करना आता है।

उसने ये सीखा है कि अधूरा प्यार भी एक मुकम्मल एहसास दे सकता है, बशर्ते तुम उसे स्वीकार करना सीख लो। और उसने स्वीकार कर लिया है – उस लड़के का न मिलना, अपनी तन्हाई, और अपनी आज़ादी।

शायद एक दिन वो शादी करे, और शायद कभी न करे।

लेकिन जब भी कोई फैसला लेगी, वो उसका खुद का होगा – समाज की सोच या कहानियों की व्याख्या से प्रेरित नहीं।

क्योंकि क़िरण अब सिर्फ एक प्रेम कहानी की नायिका नहीं है...
वो अब अपनी ज़िंदगी की लेखिका है।

एक लेखक की कलम सिर्फ़ कहानी नहीं बुनती, वो अपने जज़्बातों को शब्दों में ढालने का जरिया होती है।
जो लिखा गया है, वो कल्पना भी हो सकती है, अनुभव भी — लेकिन जो महसूस किया गया है, वो सिर्फ़ लिखने वाला ही जानता है।

कहानियाँ अक्सर पढ़ने वालों को भ्रमित कर देती हैं —
उन्हें लगता है कि लेखक वही चाहता है जो उसने लिखा है।

लेकिन सच्चाई ये है कि कहानी महज़ एक आईना है, ज़िंदगी नहीं।
कभी दिल का बोझ हल्का करने के लिए लिखी जाती है,
तो कभी वो एहसास उतारने के लिए जिन्हें कोई और समझ नहीं सकता।

इसलिए अगर कोई सिर्फ़ कहानियों से किसी को समझने की कोशिश करता है,
तो वो सिर्फ़ काग़ज़ पढ़ रहा होता है, इंसान नहीं।

किरण की भी यही बात है —
वो क्या चाहती है, किस राह पर है, किस तलाश में है —
ये सिर्फ़ वही जानती है। और उसे भी हक़ है कि वो बिना जज किए अपने मन के सफर पर चले।

उसने कहानियाँ इसलिए नहीं लिखीं कि उसे कोई चाहिए,
बल्कि इसलिए लिखीं — ताकि वो खुद को समझ सके...
और हाँ, जो लिखा है, उसी से उसे मत समझो —
क्योंकि वो उससे कहीं ज़्यादा है।"