Chapter 1 – तूफान से पहले की शांतिपुणे के "राजीव गांधी कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड साइंस" का कैंपस धूप में नहा रहा था, लेकिन परीक्षा हॉल के भीतर एक अजीब सी शांति पसरी थी — जो अजय शर्मा के लिए किसी तूफान से कम नहीं थी।अजय, 19 साल का एक चुलबुला और मस्तीखोर लड़का, अपनी पढ़ाई से ज़्यादा दूसरों के नोट्स में भरोसा रखता था। उसका एक ही सपना था — किसी तरह पास हो जाए, ताकि पापा की डांट से बचा रह सके।उसने अपने दोस्त अरुण की तरफ देखा, जो आगे वाली बेंच पर सिर झुकाए पेपर लिखने में डूबा हुआ था।अजय के मन में एक ही सवाल गूंज रहा था—"अगर अरुण ने मदद नहीं की... तो आज मैं गया!"“अरुण...” अजय ने धीरे से फुसफुसाया, लेकिन अरुण ने उसकी तरफ देखा तक नहीं।अजय ने जल्दी से एक चिट लिखी और उसकी तरफ सरका दी:"आखिरी के दो जवाब बता दे... प्लीज़!"अरुण ने चिट पढ़ी, और गुस्से से घूरा। लेकिन अजय की आँखों में बस एक मासूम सी गुहार थी।थोड़ी देर झिझक के बाद, अरुण ने चुपचाप जवाब लिखकर चिट लौटा दी।तभी मिस्टर कुलकर्णी, जो कक्षा में घूम रहे थे, की नज़र उस चिट पर पड़ गई।उन्होंने उसे उठा लिया और दोनों लड़कों की ओर घूरते हुए बोले—"अजय शर्मा!"उनकी गरजती आवाज़ ने पूरी क्लास की शांति को चीर दिया।"तुम नकल कर रहे हो? ज़रा भी शर्म नहीं आती तुम्हें? अभी के अभी तुम्हारे माता-पिता को फोन करता हूँ!"अजय का चेहरा सफेद पड़ गया।कुलकर्णी सर ने चिट हवा में लहराई और तेज़ क़दमों से स्टाफ रूम की ओर बढ़ गए।---घर लौटना और पिता जी की डांटअजय जब घर पहुँचा, तो उसके पिता रमेश शर्मा पहले से उसका इंतज़ार कर रहे थे।कुलकर्णी सर का फोन आ चुका था, और अब बात छुपाने की कोई गुंजाइश नहीं थी।"अजय, ये सब क्या हो रहा है?"रमेश की आवाज़ गुस्से से थरथरा रही थी।"परीक्षा में नकल? ये तुझे मैंने सिखाया है?"अजय चुप रहा।धीरे से बोला, "पापा, मैं बस..."पर रमेश ने उसकी बात बीच में ही काट दी।"ज़िंदगी में कुछ बनना है तो मेहनत करनी पड़ेगी। ऐसे चलेगा तो आगे क्या करेगा?"अजय ने सिर झुका लिया।चेहरे पर शर्म, दिल में पछतावा।रसोई से माँ सब सुन रही थीं, लेकिन खामोश रहीं।"अब बस!" रमेश ने ठंडी आवाज़ में कहा।"अगले महीने से ट्यूशन शुरू होगी। हर रात चार घंटे पढ़ाई... समझे?"फिर वे अंदर चले गए।अजय चुपचाप अपने कमरे में गया, किताबें टेबल पर फेंकीं और बिस्तर पर औंधा गिर गया।---दूसरी दुनिया की हलचलउसी रात, पुणे से लगभग 50 किलोमीटर दूर, घने जंगल के बीच स्थित एक प्राचीन गुफा में कुछ अजीब घट रहा था।वो गुफा, जो सदियों से बंद थी, अचानक तेज़ रोशनी से चमक उठी।ज़मीन हल्के-हल्के कांपने लगी थी।हवा में एक अजीब सी गूंज थी—जैसे कोई रहस्यमय मंत्र फुसफुसा रहा हो।फिर अचानक...एक तेज़ धमाका!गुफा के भीतर रखी एक प्राचीन मूर्ति काँपने लगी।चारों ओर अँधेरा गहराने लगा, पर उसी अंधेरे में एक रहस्यमयी रोशनी लहराने लगी।गुफा के बाहर की दुनिया शांत थी, लेकिन भीतर कोई शक्ति जाग चुकी थी — जो अब तक सदियों से सो रही थी।---अजय की दुनिया... और वो गुफाअजय अपनी छोटी सी दुनिया के तनाव में डूबा था,उसे इस बात का ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि उसके शहर के पास एक गुफा में किसी दूसरी ही कहानी की शुरुआत हो चुकी है —एक ऐसी कहानी,जो उसकी ज़िंदगी को हमेशा के लिए बदल देने वाली थी।Chapter 2 – दस्तकअजय अपने कमरे में चुपचाप बैठा था।किताबें टेबल पर बिखरी थीं, लेकिन उसकी नज़रें कहीं और थीं।दिमाग में पापा की डांट और अपनी नाकामी का बोझ भारी होता जा रहा था।उसे लग रहा था जैसे सब कुछ खत्म हो चुका है।उसी वक्त उसकी माँ, सुनीता शर्मा, कमरे में दाखिल हुईं।हाथ में एक गिलास दूध था।“अजय,” उन्होंने प्यार से कहा,“इतना परेशान क्यों है? हर किसी से गलतियाँ होती हैं। इसका मतलब ये नहीं कि ज़िंदगी खत्म हो गई। खुद पर भरोसा रख, बेटा।”अजय ने धीरे से कहा,“माँ, पापा मेरी कभी बात क्यों नहीं समझते? वो हमेशा डांटते रहते हैं।”सुनीता ने उसका सिर सहलाया।“पापा तुम्हारे बुरे के लिए नहीं, भले के लिए डांटते हैं।वो चाहते हैं कि तुम कुछ बनो... लेकिन मेहनत तो तुम्हें ही करनी होगी, है न?”अजय ने एक गहरी साँस ली।माँ की बातों से थोड़ा सुकून मिला।तभी उसका फोन बजा।स्क्रीन पर नाम चमका— "रिया"।अजय ने कॉल उठाया:“क्या है रिया? अभी बात करने का मूड नहीं है।”“अरे, इतना उदास क्यों है?” रिया ने कहा।“सुन, कल सुबह मेरे साथ शहर की सबसे पुरानी लाइब्रेरी चल।वहाँ कुछ अनोखी किताबें हैं, मुझे रिसर्च करनी है। और मुझे तेरा साथ चाहिए।”अजय ने तुरंत मना किया,“मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है। और पापा ने कल से ट्यूशन शुरू करवा दी है।”“ओ प्लीज़, अजय!” रिया ने ज़िद करते हुए कहा,“तू जानता है, मैं तुझे बिना वजह बुलाती नहीं।सोच, लाइब्रेरी की पुरानी दीवारें, वो शांत हवा, और शायद कोई रहस्य... जो तुझे असल में पसंद आ जाए!”कुछ सेकंड की चुप्पी के बाद,अजय ने धीरे से कहा,“ठीक है... सुबह मिलता हूँ।”---लाइब्रेरी की यात्राअगली सुबह, अजय और रिया शहर की सबसे पुरानी लाइब्रेरी पहुँचे।जगह का माहौल अलग था।पुरानी लकड़ी की अलमारियों से किताबों की मिट्टी सनी खुशबू आ रही थी।हर कोना जैसे किसी रहस्य से भरा था।“देख, कितनी शानदार जगह है!” रिया ने उत्साहित होकर कहा।अजय ने एक सरसरी निगाह डाली और बेमन से किताबों के शेल्फ देखने लगा।वह गहराई से पढ़ने वालों में नहीं था,लेकिन उस लाइब्रेरी का माहौल कुछ अलौकिक सा लग रहा था।तभी उसकी नज़र एक कोने में रखी एक पुरानी धूलभरी किताब पर पड़ी।किताब के ऊपर सुनहरे अक्षरों में लिखा था—"शक्तिपुंज"।“शक्तिपुंज? ये क्या है?” अजय ने बुदबुदाया।कवर पर कुछ अजीब से चमकते निशान थे।अजय ने उत्सुकता से किताब उठानी चाही,तभी लाइब्रेरी इंचार्ज मिस्टर चौहान ने टोका—“ये किताब पढ़ने लायक नहीं है।”उनकी आवाज़ सख्त थी।“इसे वहीं छोड़ दो।”“लेकिन... क्यों?” अजय ने पूछा।चौहान साहब ने गहरी साँस ली।“ये किताब बहुत पुरानी है। और ऐसी किताबें कभी-कभी मुसीबतें साथ लाती हैं।इसे हाथ मत लगाना।”अजय ने बिना कुछ कहे किताब वापस रख दी,लेकिन उसका मन सवालों से भर चुका था।---घर पर अजीब घटनापूरा दिन अजय के दिमाग में उसी किताब का ख्याल घूमता रहा।शाम को वह अपने कमरे में लौटा और बिस्तर पर बैठते ही ठिठक गया।उसकी नज़र स्टडी टेबल पर पड़ी—“ये... ये कैसे हो सकता है?”"शक्तिपुंज" किताब वहीं रखी थी।ठीक उसी तरह, जैसे लाइब्रेरी में देखी थी।“ये यहाँ कैसे आई?”उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा।सांसें तेज़ हो गईं, और कमरा अचानक भारी सा महसूस होने लगा।---गुफा में बढ़ती हलचलउसी समय, पुणे से दूर जंगल के बीच स्थित गुफा मेंहलचल और भी तेज़ हो चुकी थी।अब वहां रोशनी की लहरें गरजने लगी थीं।ज़मीन बार-बार कांप रही थी।हवा में एक रहस्यमयी ऊर्जा भर गई थी।गुफा के बाहर की दुनिया अभी भी शांत थी,लेकिन अंदर—कोई शक्ति पूरी तरह जाग चुकी थी।---नई शुरुआतअजय ने डरे हुए लेकिन उत्सुक नज़रों से उस किताब को देखा।उसे नहीं पता था कि यह किताब...उसकी ज़िंदगी को हमेशा के लिए बदल देने वाली है।Chapter 3 – रहस्य की दरारअजय अपने कमरे में बैठा था, चुपचाप किताब के पन्ने पलटते हुए।पहले पन्ने पर नाम लिखा था—"देव", और उसके नीचे एक व्यक्ति की तस्वीर थी।उस चित्र में वह कोई रहस्यमयी वस्तु थामे हुए खड़ा था।तस्वीर के नीचे लिखा था:"शक्तिपुंज 1"।अजय ने अगला पन्ना पलटा।दूसरे पन्ने पर नाम था—"विक्रमादित्य", और उसके नीचे लिखा था:"शक्तिपुंज 2"।अजय को अब भी समझ नहीं आ रहा था कि ये किताब क्या बताना चाहती है।फिर उसकी नज़र तीसरे पन्ने पर पड़ी—जो आधा फटा हुआ था।"ये पन्ना फटा कैसे...? क्या ये कोई इत्तेफाक है?"उसी क्षण दरवाज़ा हल्के से खटका और रिया अंदर आई।उसकी आँखों में चिंता थी — जैसे कोई ज़रूरी बात करनी हो।"तुम क्या कर रहे हो, अजय?"उसने किताब की ओर इशारा करते हुए पूछा,"क्या तुम सच में इसे पढ़ रहे हो?"अजय ने झटपट किताब को टेबल पर सरका दिया।"नहीं, ये बस... कुछ पुरानी किताबें हैं। मुझे भी समझ नहीं आ रहा ये क्या है।"रिया ने उसकी बातों को अनदेखा करते हुए कहा,"तुम फिर कुछ छिपा रहे हो, है ना?तुम हमेशा ऐसे ही करते हो।जब भी कोई बड़ी बात होती है, तुम सब अपने अंदर ही दबा लेते हो।"अजय घबरा गया।"तुम नहीं समझ रही, रिया। ये कोई मामूली किताब नहीं है।मुझे नहीं पता ये यहाँ कैसे आई... लेकिन इसमें कुछ तो है, जो मुझे खुद समझ नहीं आ रहा!"रिया कुछ पल के लिए रुकी, फिर तेज़ स्वर में बोली:"तुम कह रहे हो कि ये किताब... अपने-आप तुम्हारे पास आ गई?क्या तुम मुझे बेवकूफ समझते हो?"उसकी आवाज़ में गुस्सा और फिक्र दोनों झलक रहे थे।अजय की आँखों में आक्रोश उभर आया,लेकिन उसने खुद को संभालते हुए कहा:"क्या तुम्हें लगता है मैं जानबूझकर ऐसा कर रहा हूँ?क्या तुम कभी मेरी तकलीफ़ समझ पाओगी?"रिया ने गहरी नज़रों से उसे देखा।"मैं तुम्हारी दोस्त हूँ, अजय। और एक दोस्त को सच्चाई जानने का हक़ है।इस किताब में कुछ है — और तुम्हें मुझे बताना ही होगा।"अजय ने गहरी साँस ली।"क्या तुम सोचती हो कि मैं सिर्फ इस किताब की वजह से परेशान हूँ?मैं अपनी ज़िंदगी से, लोगों से, खुद से लड़ रहा हूँ... और तुम मुझसे जवाब मांग रही हो!"रिया ने थोड़ी देर तक कुछ नहीं कहा।फिर संयम से बोली:"अगर तुम अपनी परेशानियों से भागते रहोगे, तो कभी जीत नहीं पाओगे।शायद... तुम्हें ये लड़ाई अकेले नहीं लड़नी चाहिए।"अजय ने पहली बार उसकी आँखों में सच्ची समझदारी देखी।"तुम सही कह रही हो, रिया...शायद हमें ये किताब... साथ में समझनी चाहिए।"---कॉलेज में मिस्टर कुलकर्णी का सामनाअगले दिन कॉलेज में,मिस्टर कुलकर्णी के ऑफिस के सामने खड़ा अजय का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था।उसे पता था, कुछ तो कहना बाकी था।कुलकर्णी सर ने उसकी ओर कठोर निगाह से देखा।"अजय, मुझे तुमसे बेहतर की उम्मीद थी।पढ़ाई की बजाय अगर तुम सिर्फ नकल में लगोगे, तो भविष्य में कुछ नहीं कर पाओगे।ये हरकतें अब और नहीं चलेंगी।"अजय अब चुप नहीं रहा।उसके भीतर उबाल था।"क्या आपको लगता है कि मैं सिर्फ नकल करता हूँ?क्या कभी आपने देखा है कि मैं कितनी कोशिश करता हूँ?आप सिर्फ मेरी गलतियाँ देखते हैं, मेरी मेहनत नहीं!"कुलकर्णी सर कुछ पल के लिए चुप रह गए।फिर बोले:"तुम्हारा व्यवहार सारी सीमाएँ पार कर चुका है, अजय।अब तुम्हारी बातों से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।तुम्हें अपनी राह खुद चुननी होगी — सही या गलत!"अजय ने कंधे सीधा किया और गहरी आवाज़ में कहा:"ठीक है, सर।आप अपने रास्ते पर चलिए,और अब मैं अपने रास्ते खुद तय करूँगा।"---गुफा में जागता अंधकारउसी समय, पुणे से दूर स्थित गुफा में हलचल अपने चरम पर पहुँच चुकी थी।ज़मीन बुरी तरह कांप रही थी,और हवा में एक डरावना कंपन गूंज रहा था।फिर...गुफा के अंधकार को चीरते हुए एक लंबा, मस्कुलर इंसान बाहर निकला।उसकी आँखें लाल और चमकती हुई थीं।चेहरे पर गंभीरता और इरादों की कठोरता थी।उसके हाथ में एक तारा-जैसा प्रतीक चमक रहा था—वही चिन्ह जो शक्तिपुंज किताब पर बना था।जैसे ही वो बाहर निकला,उसकी उपस्थिति ने आस-पास की हवा को भारी और भयभीत कर दिया।---आगामी तूफान की आहटअजय अब भी उस रहस्यमयी किताब के रहस्य को समझने की कोशिश में था,उसे नहीं पता था किजो शक्ति गुफा से बाहर निकली है — वो उसके जीवन की दिशा को हमेशा के लिए बदल देगी।Chapter 4 – समय का संकेतगुफा में रहस्यमयी हलचल लगातार बढ़ती जा रही थी।ठंडी, धुंधली हवा गुफा के भीतर और बाहर फैल रही थी।दीवारों पर एक चमकदार रोशनी लहरों की तरह नाच रही थी, मानो कोई प्राचीन शक्ति जाग रही हो।तभी अचानक, गुफा के गर्भ से एक विशाल, बलशाली व्यक्ति बाहर निकला।वह साधारण इंसानों से कहीं अधिक लम्बा और मज़बूत था।उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी, और उसकी आँखों में आग जैसी चमक थी — जैसे कोई अनदेखा उद्देश्य उसमें धधक रहा हो।उसने गहरी साँस ली और बुदबुदाया:"दस हज़ार साल... और अब समय आ गया है।"उसकी आवाज़ गहरी थी, जैसे गुफा की दीवारें भी उससे काँप उठीं।फिर वह ज़ोर से ठहाका मारकर हँसा — जैसे किसी पुराने शत्रु को फिर से चुनौती दे रहा हो।"शक्तिपुंज... अब मेरी मुट्ठी में होंगे।और इस दुनिया का समय... मेरे अधीन होगा!"---अजय और रहस्यमयी किताबइधर, अजय फिर से अपने कमरे में उसी रहस्यमयी किताब के साथ बैठा था।हल्की पीली रोशनी में पन्ने पलटते हुए उसकी आँखें पंक्तियों में छिपे हर संकेत को टटोल रही थीं।फिर वह उस पन्ने पर पहुँचा जिसने उसे पहले चौंकाया था।इस बार उसने उसे ध्यान से पढ़ा:> "समय से परे कुछ नहीं यहाँ,समय के बिना कुछ नहीं यहाँ।नियंत्रण में लाओ अगर समय को,तो मुट्ठी में आएगा ये जहाँ।अगर करना है समय को नियंत्रित,तो हो जाए तुम्हारा भला।क्यों किसी के पास नहीं होगी,तुम्हारे जैसी यह कला।"अजय का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा।उसकी उंगलियाँ काँप रही थीं।अगले पन्ने पर एक सीधा निर्देश लिखा था:> "तो जाओ केदारनाथ के धाम,हो जाएगा तुम्हारा काम।पा लो शक्तिपुंज को,फिर दुनिया में होगा तुम्हारा नाम।""केदारनाथ?"उसने हैरानी में दोहराया।"क्या ये कोई इत्तेफाक है... या सच में कुछ बड़ा छुपा है इसमें?"उसने पहले के पन्नों पर दोबारा नज़र डाली —देव, विक्रमादित्य, और वह आधा फटा पन्ना।अब उसे यह समझ आने लगा कि शायद ये सितारों जैसे चित्र ही 'शक्तिपुंज' थे।लेकिन फिर मन में एक संशय उभरा:"क्या यह सब सिर्फ़ एक काल्पनिक कहानी है?या मेरे हाथों में सच में कुछ ऐसा है जो अतीत को बदल सकता है?"---अजय और रिया का संवादअगले दिन अजय ने रिया को फ़ोन कर घर बुलाया।उसकी आवाज़ में कुछ ऐसा था, जिसने रिया को चिंतित कर दिया।रिया जैसे ही उसके कमरे में पहुँची, अजय उसे घबराया हुआ लगा।"क्या हुआ, अजय?तुम कुछ बदले-बदले लग रहे हो," उसने पूछा।अजय ने बिना कुछ कहे किताब उसकी ओर बढ़ा दी।रिया ने उसे उलट-पलट कर देखा और मुस्कुरा कर बोली:"अरे वाह, पुरानी किताबों का शौक कब से हो गया तुम्हें?"अजय ने शांत स्वर में कहा:"मज़ाक मत उड़ाओ, रिया।ये सिर्फ कोई पुरानी किताब नहीं है।इसमें कुछ है… कुछ ऐसा जिसे मैं समझ नहीं पा रहा, लेकिन नज़रअंदाज़ भी नहीं कर सकता।"उसने रिया को 'केदारनाथ' वाले हिस्से के बारे में बताया।रिया हँसते हुए बोली:"तुम्हें लगता है ये सब सच है?ये पढ़ाई से बचने का नया बहाना लग रहा है मुझे!"अजय ने गहरी साँस ली और गंभीर स्वर में बोला:"अगर इसमें ज़रा भी सच्चाई है...तो शायद मैं समय को नियंत्रित कर सकता हूँ।मैं अपने अतीत को बदल सकता हूँ।वो सब ठीक कर सकता हूँ जो मुझसे गलत हुआ..."रिया का चेहरा अब गंभीर हो गया।उसने किताब की ओर देखा और धीरे से कहा:"अगर तुम सही हो... तो ये सिर्फ तुम्हारे लिए नहीं, पूरी दुनिया के लिए एक बहुत बड़ी बात हो सकती है।लेकिन हम कैसे जाने कि ये सच है?"अजय ने धीरे से सिर हिलाया:"पता नहीं... लेकिन अब मैं इसे नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता।"रिया थोड़ी देर सोचती रही, फिर बोली:"तो चलो।केदारनाथ चलते हैं।अगर कुछ मिला — तो जवाब भी मिलेगा।और अगर कुछ नहीं मिला, तो कम से कम तुम्हारे मन का बोझ तो हल्का होगा।"अजय ने उसकी ओर देखा और पहली बार थोड़ी राहत की सांस ली।"शायद तुम सही कह रही हो," उसने कहा।---अंधेरे से निकलता वह शत्रुउधर, गुफा के बाहर —वह रहस्यमयी व्यक्ति अब एक घने जंगल में खड़ा था।उसकी आँखों में जीत की चमक थी, और होंठों पर एक रहस्यमयी मुस्कान।"शक्तिपुंज..."उसने धीमे स्वर में कहा,"मैं आ रहा हूँ..."अध्याय 5 – पहला कदमरात का खाना खत्म हो चुका था। अजय टेबल पर चुपचाप बैठा था, लेकिन उसके मन में विचारों का तूफान चल रहा था। कई बार उसने बोलने की कोशिश की, पर रुक जाता। आखिरकार, उसने हिम्मत जुटाकर कहा,"पापा... मैंने सोचा है कि इस बार हमें केदारनाथ दर्शन के लिए जाना चाहिए।"डाइनिंग टेबल पर एक पल के लिए सन्नाटा छा गया। उसके पिता ने चश्मा उतारकर गंभीर निगाहों से उसे देखा।"केदारनाथ? इतनी अचानक ये तीर्थ यात्रा का ख्याल कहां से आया?"अजय ने हल्के संकोच से जवाब दिया,"बस... यूं ही। थोड़ा बदलाव मिल जाएगा। वैसे भी रिया और उसके मम्मी-पापा भी जा रहे हैं।"पिता का चेहरा तमतमा उठा,"तुम्हारी पढ़ाई का क्या? हर बार नया बहाना! ये सब ढकोसला बंद करो अजय।"माँ ने धीरे से हस्तक्षेप किया,"अरे, भगवान के दर्शन में क्या बुरा है? कभी-कभी बच्चों को आध्यात्मिक अनुभव भी मिलना चाहिए।"पिता झल्ला उठे,"धार्मिकता के नाम पर पढ़ाई से भागने का बहाना है ये। मैं ऐसे झूठे बहानों में नहीं फंसता।"अजय ने शांत लेकिन दृढ़ स्वर में कहा,"पापा, पढ़ाई मेरी ज़िम्मेदारी है। लेकिन कभी-कभी... इंसान को अपनी आत्मा के लिए भी कुछ करना चाहिए।"माँ ने बेटे की बात का समर्थन किया,"जाने दीजिए। हो सकता है यह यात्रा इसे कुछ सिखा दे। घर लौटकर पढ़ाई तो हो ही जाएगी।"एक लंबा मौन पसरा। फिर पिता ने कठोर स्वर में कहा,"ठीक है। पर याद रखना—अगर वापसी के बाद तुम्हारे अंकों में कोई गिरावट आई, तो परिणाम भुगतने होंगे।"अजय ने राहत की सांस ली,"थैंक यू, पापा। आप सच में बेस्ट हो।"---गुफा की परछाईंदूर किसी निर्जन पहाड़ पर, एक प्राचीन गुफा से रहस्यमयी हलचल फिर से शुरू हो गई थी। ठंडी हवा में अजीब-सी भनक और कंपन फैल रही थी।गुफा से एक विशालकाय व्यक्ति बाहर निकला। उसका शरीर सामान्य मानव से कई गुना बड़ा और बलशाली था। आंखों में चमक थी और चेहरा किसी अदृश्य उद्देश्य से भरा हुआ।"हज़ारों साल बीत गए...", उसने गहरी सांस लेते हुए कहा।"अब इस दुनिया को फिर से आकार देने का समय आ गया है..."वो अपने चारों ओर देखने लगा, जैसे किसी पुराने संसार को फिर से पहचानने की कोशिश कर रहा हो। तभी उसकी नजर एक लकड़हारे पर पड़ी, जो गुफा के पास लकड़ियां काट रहा था।लकड़हारा घबराकर बोला,"क... कौन हो तुम? ये जगह तुम्हारे लिए नहीं है!"रहस्यमयी व्यक्ति मुस्कराया और धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ा।"मैं वही हूं... जो हर युग में अलग नाम और रूप लेता है। अब मेरी बारी है..."उसने लकड़हारे के कंधे पर हाथ रखा। एक पल में, लकड़हारे के शरीर से ऊर्जा की तेज़ लहर निकलकर उस व्यक्ति में समा गई। लकड़हारा वहीं गिर पड़ा — निर्जीव और निःशब्द।अब वह रहस्यमयी व्यक्ति, हूबहू लकड़हारे जैसा दिखने लगा।"अब ये दुनिया मुझे पहचान नहीं पाएगी। खेल अब शुरू होता है...", वह बुदबुदाया।---रहस्य की अगली परतअगली रात, अजय ने रिया को घर बुलाया। दोनों उस रहस्यमयी किताब को लेकर फिर से बैठे। कमरे में हल्की रौशनी और गहरी जिज्ञासा का माहौल था।"चलो, देखते हैं आज ये किताब हमें कहां ले जाती है," अजय ने उत्सुकता से कहा।उन्होंने अगला पन्ना पलटा। उसमें लिखा था:> "केदार के पार 10 मील,कैलाश के पार, वही है तुम्हारी मंज़िल।"रिया ने भौंहें चढ़ाईं,"कैलाश के पार? ये तो काफी उलझा हुआ संकेत लग रहा है।"अजय ने सिर खुजलाते हुए कहा,"शायद ये किसी जगह की ओर इशारा है। केदारनाथ से 10 मील दूर... लेकिन 'कैलाश के पार' का क्या मतलब है?"रिया ने धीमे स्वर में कहा,"क्या ये कैलाश पर्वत ही है? या फिर किसी स्थान का प्रतीक?"अजय ने आगे के पन्ने पलटे। कुछ पन्ने फटे हुए थे, और जो शब्द बचे थे, वो धुंधले और अधूरे थे।"इस किताब को लिखने वाला जैसे आधी बात बताकर गायब हो गया," अजय ने निराश होकर कहा।रिया की आंखों में फिर भी चमक थी।"सच हो या कहानी... ये संकेत मज़बूत हैं। हमें केदारनाथ जाकर इसे खोजने की कोशिश करनी चाहिए।"अजय थोड़े संशय में बोला,"अगर ये सब सिर्फ कल्पना निकली तो?"रिया ने मुस्कराते हुए कहा,"कम से कम हमें ये तो पता चल जाएगा कि सच क्या है। और अगर कुछ निकला... तो शायद पूरी दुनिया बदल जाए।"अजय ने सहमति में सिर हिलाया।दोनों ने तय कर लिया था — अब रुकने का नहीं, आगे बढ़ने का समय था।अध्याय 6 – परछाई बस मेंसुबह की ठंडी हवा पहाड़ियों को छूते हुए बस के भीतर तक आ रही थी। केदारनाथ की ओर बढ़ती बस किसी चुप वादे की तरह रास्तों पर सरक रही थी — हर मोड़, हर घुमाव एक रहस्य समेटे हुए।बस के भीतर हल्की-सी हलचल थी। मुसाफिरों के चेहरों पर यात्रा की थकान से ज्यादा उत्साह झलक रहा था। अजय और रिया की निगाहें बार-बार उस बैग पर जा रहीं थीं जिसमें ‘शक्तिपुंज’ की रहस्यमयी किताब रखी थी — वही किताब, जिसने उनके सफर को साधारण से असाधारण बना दिया था।"कितने सालों बाद केदारनाथ जा रहे हैं," अजय की माँ खिड़की के पास बैठी हल्के मुस्कान के साथ बोलीं, उनकी आंखों में एक पुरानी याद तैर रही थी।पिता ने अख़बार मोड़ा और रूखे स्वर में कहा,"सिर्फ तीर्थयात्रा नहीं... बच्चे की सोच भी बदलनी चाहिए। ये पढ़ाई छोड़कर जो दिशा पकड़ रहा है, वो चिंता की बात है।"पीछे की सीट पर कुछ औररिया ने धीरे से फुसफुसाया,"तुम्हारे डैड हमेशा नाराज़ क्यों रहते हैं?"अजय मुस्कुरा दिया,"उनका अपना अंदाज़ है। हमें उन पर नहीं, इस किताब पर ध्यान देना है। अगर इसमें लिखा सच है… तो ये सफर हमारी ज़िंदगी बदल सकता है।"दोनों ने बहाना बनाकर बस के पिछले हिस्से की ओर रुख किया, जहां कुछ खाली सीटें थीं — और शांति भी।लेकिन जैसे ही वे पीछे पहुँचे, उन्होंने एक अजीब दृश्य देखा।सबसे आख़िरी सीट पर एक लम्बा, गठीला आदमी अकेला बैठा था। उसकी आँखें बाहर निहार रही थीं, लेकिन चेहरा ऐसा जैसे किसी और ही दुनिया में खोया हो। वो न पूरी तरह जीवित लग रहा था, न पूरी तरह निष्क्रिय — जैसे किसी प्रतीक्षा में हो।अजय और रिया उसकी मौजूदगी को नजरअंदाज कर, एक कोने में बैठ गए।अजय ने धीरे से बैग खोला और किताब बाहर निकाली।"अजय..." रिया की आवाज़ धीमी और कांपती हुई थी,"वो आदमी... हमें घूर रहा है। कुछ अजीब है उसके चेहरे पर।"अजय ने आंखें घुमाए बिना कहा,"कोई यात्री होगा। ऐसे सफर में कई अजीब लोग मिलते हैं। ध्यान मत दो।"लेकिन रिया की बेचैनी बढ़ती जा रही थी।"नहीं, अजय। उसकी आँखें... वो अलग हैं। मानो... जैसे वो सब जानता हो।"मौन संवादअजय ने नज़र उठाई और पहली बार उस आदमी की ओर देखा।"भाईसाहब, आप भी केदारनाथ जा रहे हैं?" — उसने सहज स्वर में पूछा।कोई प्रतिक्रिया नहीं। वो आदमी अब भी खिड़की के पार देख रहा था — बिल्कुल स्थिर, जैसे पत्थर की मूर्ति हो।रिया ने अजय की बांह हल्के से दबाई,"उसे हमारी बात सुनाई नहीं दी शायद।"अजय ने फिर कहा, थोड़ा तेज़ होकर,"सुन रहे हैं आप? मैं आपसे कुछ पूछ रहा हूँ।"इस बार वह धीरे से घूमा। उसकी आँखें गहरी और सूनी थीं — जैसे किसी विशाल अंधेरे कुएँ की सतह।उसने कुछ नहीं कहा। सिर्फ हल्की-सी मुस्कान दी — ठंडी, रहस्यमयी, असहज।बस वही मुस्कान काफी थी रिया को बेचैन कर देने के लिए।"अजय... चलो कहीं और बैठते हैं। ये आदमी ठीक नहीं लगता," उसने धीमे स्वर में कहा।"शांत रहो," अजय फुसफुसाया। "हो सकता है वो बस अकेला रहना चाहता हो।"बस की गड़गड़ाहट और रहस्यबस अब पहाड़ियों की चढ़ाई चढ़ रही थी। नीचे खाई और ऊपर लहराती सड़क। अचानक बस ज़ोर से झटकी और रुक गई।"घबराइए मत!" ड्राइवर की आवाज़ आई,"रास्ते में एक बड़ा पत्थर आ गया था, बस उसे हटाना है।"लेकिन यात्रियों के चेहरों पर चिंता की लकीरें खिंच गईं।"हे भगवान..." अजय की माँ ने आंखें बंद कर प्रार्थना शुरू कर दीं।"अच्छे से चलाओ! पहाड़ में एक चूक बहुत भारी पड़ती है," पिता ने झुंझलाकर कहा।पीछे की सीट पर बैठे उस आदमी की हल्की-सी हंसी अजय को साफ सुनाई दी।"क्या तुमने सुना?" उसने रिया से पूछा।रिया ने सिर हिलाया — उसकी आंखों में डर साफ था।वो आदमी अब खुद से बुदबुदाने लगा।"समय... शक्तिपुंज... सब मेरे अधीन होगा..."अजय की सांसें तेज़ हो गईं।"रिया, ये आदमी सिर्फ अजीब नहीं... खतरनाक भी लग रहा है।"किताब अधूरी, रहस्य पूरीअजय ने किताब खोलनी चाही, लेकिन रिया ने उसका हाथ पकड़ लिया।"नहीं, अभी नहीं। उसके सामने नहीं।"अजय ने उसकी बात मानी और किताब वापस बैग में रख दी।"हमें सतर्क रहना होगा। ये संयोग नहीं है कि ये आदमी हमारे सफर में आ गया है।"रिया ने गंभीर स्वर में कहा,"शायद वो उसी चीज़ की तलाश में है... जो हम ढूंढ रहे हैं।"बस अपनी गति से चलती रही। बाहर पहाड़ों पर बर्फ की चादर चमक रही थी, और अंदर एक अदृश्य खतरा हर पल नज़दीक आता लग रहा था।आदमी अब भी अपनी खिड़की की ओर बैठा था। उसका चेहरा हवा में झूलती परछाईं की तरह रहस्यमयी था। और उसकी आंखें — जैसे किसी प्राचीन रहस्य की चाबी हों।चैप्टर 7बस में बैठे अजय के दिमाग में किताब की वो रहस्यमय पंक्ति बार-बार गूंज रही थी:"केदार के पार 10 मिल, कैलाश के पार, वही है तुम्हारी मंजिल।"अजय ने धीमे से रिया की ओर झुककर पूछा,"रिया, ये '10 मिल' वाली लाइन समझ में नहीं आ रही... आखिर मतलब क्या है इसका?"रिया ने कुछ देर सोचा, फिर बोली,"शायद 'केदार के पार' का मतलब है केदारनाथ से आगे... और '10 मिल' — वो दूरी हो सकती है।"अजय ने धीमी आवाज़ में जोड़ा,"और 'कैलाश के पार'... यानी शायद ये रास्ता हमें कैलाश की तरफ ले जाएगा।"रिया ने गहरी सांस ली,"इसका मतलब, शक्तिपुंज कहीं केदारनाथ और कैलाश के बीच, किसी गुफा में छिपा है। अब सवाल ये है कि वहाँ तक पहुँचा कैसे जाए?"अजय ने सिर हिलाया,"हमें प्लान बनाना होगा। पर इतना तय है... वहां तक जाना ही होगा।"---केदारनाथ पहुँचना और बहाना बनानाबस एक झटके से रुकी, ड्राइवर ने घोषणा की,"भाई लोगों, बस यहीं तक जाती है। मंदिर का रास्ता अब पैदल तय करना होगा।"सभी यात्री एक-एक कर उतरने लगे। चारों ओर बर्फ की चादर फैली थी। हवा में एक अजीब सी शांति थी — सर्द, लेकिन सुकून भरी।अजय और रिया अपने-अपने परिवारों के साथ चल रहे थे, मगर ध्यान कहीं और था।"घरवालों को कैसे समझाएँगे?" अजय ने धीरे से पूछा।रिया मुस्कुराई,"तुम्हारा बहानेबाज़ी का स्टाइल तो बहुत पुराना है। मैं कहती हूँ — मां-पापा से बोलेंगे कि आसपास की वादियाँ देखना है।""पर क्या वो मानेंगे?" अजय थोड़ा झिझकते हुए बोला।रिया ने भरोसे से कहा,"जब तक शक नहीं करेंगे, मान ही लेंगे। और वैसे भी, ज़्यादा देर नहीं लगेगी।"अजय ने अपनी मां से कहा,"मां, मैं और रिया थोड़ा ऊपर की ओर घूमने जा रहे हैं। जल्दी दर्शन के लिए लौट आएंगे, वादा।"मां थोड़ी हैरान हुईं,"इतनी ठंड में कहाँ जाओगे बेटा?"अजय मुस्कुराया,"बस थोड़ा नजारा देखना है मां... जल्दी लौट आएंगे।"उधर रिया ने भी अपने माता-पिता को मनाया। थोड़ी बहस के बाद, दोनों को अनुमति मिल गई।---रहस्यमय आदमी का पीछापरिवार से अलग होते ही, उनकी नज़र एक जान-पहचान वाले चेहरे पर पड़ी — वही रहस्यमय आदमी, जो बस में सबसे पीछे बैठा था।"अजय, देखो... वही आदमी!" रिया ने धीरे से कहा।"हाँ, और देखो, बिना थके चलता जा रहा है। जैसे जानता हो, कहाँ जाना है।"उसकी चाल में एक अजीब सा आत्मविश्वास था, जैसे हर कदम उसकी मंज़िल की ओर तय हो।"क्या लगता है, ये भी उसी गुफा की तरफ जा रहा है?" रिया ने पूछा।अजय ने गंभीरता से कहा,"मुझे यकीन है... इसका पीछा करना चाहिए। शायद यही हमें सही रास्ता दिखाए।"रिया ने धीरे से सिर हिलाया,"लेकिन ध्यान रखना, इसे भनक भी न लगे।"---गुफा का मुहानाकरीब एक घंटे के बाद, वे दोनों एक वीरान और सुनसान इलाके में पहुँचे। बर्फीली घाटियों के बीच, एक अंधेरी सी गुफा का मुहाना दिखा।वह आदमी गुफा के सामने रुका, चारों तरफ देखा — जैसे तसल्ली कर रहा हो कि कोई उसे देख तो नहीं रहा।"अजय, ये क्यों रुक गया?" रिया ने फुसफुसाकर पूछा।"यही तो सोच रहा हूँ... शायद यही जगह है।" अजय की आवाज़ में उत्सुकता थी।दोनों चट्टानों के पीछे छिप गए और उसकी हरकतें देखने लगे। कुछ ही पलों में वह आदमी गुफा के भीतर चला गया।"अब?" रिया ने चिंतित स्वर में पूछा।अजय ने गहरी सांस ली,"हमें भी अंदर जाना होगा। ये मौका नहीं छोड़ सकते। शायद यही हमारी मंज़िल है।"अध्याय 8 — गुफा का रहस्यअजय और रिया धीरे-धीरे उस रहस्यमयी गुफा के भीतर प्रवेश करते हैं। भीतर का वातावरण एक अलग ही सन्नाटे से भरा हुआ था। दीवारों पर उकेरे गए चित्र उसी किताब के पहले और दूसरे पन्नों के समान थे—पुरातन, प्रतीकात्मक, और रहस्यमय।जैसे-जैसे वे गुफा के अंदर गहराई तक बढ़ते हैं, उनकी नज़र एक नए चित्र पर जाती है। यह चित्र किताब में नहीं था। यह कुछ और ही दर्शा रहा था—काली छाया में छुपा एक चेहरा, जिसकी आँखों से जैसे कोई अदृश्य भय झलक रहा था।गुफा में आगे बढ़ते हुए वे एक ऐसे स्थान पर पहुँचते हैं जहाँ हल्की-सी रोशनी झलक रही थी। वहाँ, वे देखते हैं—एक साधु की वेशभूषा में कोई व्यक्ति खड़ा है। उसके सामने वही रहस्यमयी आदमी खड़ा था, जिसका पीछा वे अब तक कर रहे थे। दोनों के बीच कुछ संवाद हो रहे थे, मगर वह आवाज़ इतनी धीमी और अस्पष्ट थी कि अजय और रिया कुछ समझ नहीं पाए।अचानक वह रहस्यमयी आदमी, जिसने अब तक सिर्फ रहस्य का आवरण ओढ़ा था, उस साधु को गले से पकड़कर ऊपर उठा लेता है। यह दृश्य अप्रत्याशित था। अजय और रिया स्तब्ध रह जाते हैं।"क्या... क्या हो रहा है?" अजय की आवाज़ काँप रही थी। उसकी आँखों में डर और असमंजस साफ दिखाई दे रहा था।रिया ने भी डर महसूस किया, लेकिन उसने खुद को सँभालते हुए कहा, "अजय, रुक जाओ। हमें भागना नहीं है... हमें समझना होगा कि ये सब क्यों हो रहा है।""पर ये बहुत अजीब है रिया... हमें यहाँ से निकल जाना चाहिए," अजय ने फुसफुसाते हुए कहा, उसकी बेचैनी स्पष्ट थी।रिया ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए धीरे से कहा, "डरना आसान है, पर समझना ज़रूरी। अगर हम सच तक पहुँचना चाहते हैं, तो हमें इसे देखना होगा... पूरे होश में।"वे दोनों उस दृश्य को आँखें गड़ाकर देखने लगते हैं। उस साधु की पहचान अभी तक अज्ञात थी, लेकिन उसकी आँखों में एक गहरी चेतावनी थी—मानो वह दोनों को कुछ बताना चाहता हो।गुफा का वातावरण अब और भी भारी और रहस्यमय हो चला था। अजय और रिया की साँसें तेज़ हो रही थीं। कोई अनकहा, अनजाना सच धीरे-धीरे उनके सामने आकार ले रहा था।पर यह रहस्य कहाँ ले जाएगा उन्हें... इसका जवाब किसी के पास नहीं था।अध्याय 9 — रहस्य की दीवाररिया और अजय छिपकर बहुत ध्यान से सब कुछ देख रहे थे। वे समझने की कोशिश कर रहे थे कि वह साधु जैसी शक्ल वाला रहस्यमयी व्यक्ति, उस अजीब इंसान को गले से पकड़कर क्यों खड़ा है।उनकी नज़रें अचानक उन दोनों के पीछे की दीवारों पर गईं। दीवार पर दो प्राचीन मूर्तियाँ उकेरी गई थीं — और वे हूबहू वैसी ही थीं जैसी उन्होंने उस रहस्यमयी किताब में देखी थीं।रिया की आँखों में एक अलग ही चमक उभरी।"जानते हो," रिया ने धीरे से कहा, उसकी आवाज़ में रहस्य और गंभीरता घुली हुई थी, "इनमें से एक मूर्ति मेरे पूर्वज 'देव' की है।"अजय एक पल के लिए सन्न रह गया। उसकी आँखों में अविश्वास झलकने लगा।"क्या? तुम्हारे पूर्वज... देव?"रिया ने हल्के से सिर हिलाया।"हाँ। और एक बात और — वो किताब जो हमें लाइब्रेरी में मिली थी... वो किसी और ने नहीं, मैंने वहाँ रखी थी।"अजय अवाक रह गया।"मुझे अब यकीन है," रिया की आवाज़ धीमी लेकिन दृढ़ थी, "कि तुम्हीं वो इंसान हो जो इस रहस्य को सुलझाने में मेरी मदद कर सकता है।"अजय का चेहरा अब गुस्से से तन गया था।"क्या बकवास है ये, रिया?" उसने कड़वाहट से कहा। "तुम्हें कैसे लगा कि मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ? मुझे तो खुद कुछ समझ नहीं आ रहा!"उसकी आँखों में गुस्से से ज़्यादा उलझन थी। जैसे कोई अपने ही अस्तित्व को लेकर सवालों में घिर गया हो।तभी, पीछे से एक आवाज़ गूंजी।वो वही रहस्यमय व्यक्ति था, जो अब उनकी बातें सुन रहा था। उसकी आँखों में एक जटिल सी चमक थी — जैसे वह पहले से सब जानता हो।अजय और रिया बिना वक्त गंवाए तुरंत मुड़े और भागे। वे एक संकरी सी गली की ओर बढ़े। और फिर — उनके सामने जो आया, उसने उनकी सांसें रोक दीं।एक दीवार का हिस्सा टूटा हुआ था, जहाँ से एक तेज़, नीली चमक फूट रही थी — जैसे किसी दिव्य ऊर्जा का स्रोत खुल गया हो।उस दीवार के भीतर कुछ दबा हुआ था... कोई शक्ति... कोई रहस्य, जो अब बाहर निकल रहा था।अजय और रिया एक-दूसरे को बिना कुछ कहे उस रोशनी की ओर बढ़ने लगे।उनकी आँखों में एक ही सवाल था —क्या यही वो शक्ति है... जो उनका भाग्य बदल सकती है?अध्याय 10 — समय के पाररिया और अजय ने जैसे ही शक्तिपुंज को छुआ, एक तेज़ झटका उनके पूरे शरीर में दौड़ गया। एक अजीब ऊर्जा ने उन्हें घेर लिया और चारों ओर का वातावरण तेजी से बदलने लगा — हवा भारी हो गई, ज़मीन कांप उठी, और समय… मानो थम सा गया।कुछ ही पल में, जब सब शांत हुआ, वे खुद को एक घने जंगल के बीचोंबीच खड़ा पाए। हवा में अजीब सी गंध थी और हर दिशा में रहस्यमय सन्नाटा फैला था।रिया ने हैरान और घबराई आवाज़ में कहा, “हम… हम दस हज़ार साल पीछे आ गए हैं।”उसकी आँखों में भय और विस्मय दोनों झलक रहे थे।“मैंने किताबों में पढ़ा था कि अगर कोई शक्तिपुंज को छुए, तो वो देवों के युग में पहुँच सकता है,” उसने फुसफुसाते हुए जोड़ा।अजय का चेहरा सफेद पड़ गया।“क्या सच में हम इतने पीछे आ गए हैं?” उसने अविश्वास में पूछा।“क्या हम कभी लौट भी पाएंगे?”रिया ने गहरी साँस ली और शांत स्वर में कहा, “डरने की जरूरत नहीं, अजय। लौटना संभव है — लेकिन उससे पहले हमें यह समझना होगा कि यहाँ क्या घट रहा है।”उसने आगे समझाया, “मेरे पास जो ग्रंथ हैं — वे मेरे पूर्वजों की अमानत हैं। उनमें लिखा है कि एक धोखेबाज़ इंसान, कुशन, अपने ही साथियों को धोखा देगा और तीनों शक्तिपुंज हासिल कर समय के नियम तोड़ देगा। अगर उसे रोका नहीं गया... तो दुनिया अंधकार में डूब जाएगी।”अजय ने सिर झुका लिया, उसकी आँखों में चिंता उभर आई थी।“तो हमें उसे रोकना ही होगा। लेकिन वो कहाँ होगा? हम उसे कैसे ढूंढेंगे?”इसी पल, एक जानी-पहचानी, ठंडी और भारी आवाज़ उनके पीछे से गूंजी।दोनों ने चौंक कर मुड़कर देखा।वहीं रहस्यमय आदमी — जिसकी आंखों में वो पुरानी जादुई चमक थी — अब धीमे-धीमे उनकी ओर बढ़ रहा था।उसने गहराई से मुस्कुराते हुए कहा,“तुमने जो किया है, उसका अंजाम तुम सोच भी नहीं सकते। तुम्हारा एक कदम... पूरी दुनिया को बदल सकता है।”रिया और अजय अब समझ चुके थे — यह वही है... कुशन।कुशन की चाल धीमी, लेकिन आत्मविश्वास से भरी थी।“तुम दोनों मेरी राह में रोड़े हो,” उसने कहा, “लेकिन क्या तुम जानते भी हो कि मैं क्या करने जा रहा हूँ? मैं समय के नियम तोड़कर शक्तिपुंज हासिल करूंगा... और पूरी दुनिया को अपनी मुट्ठी में बंद कर दूंगा।”रिया ने कांपती आवाज़ में अजय से कहा, “यह वही कुशन है! जो हमारे सामने बनावटी दोस्त बनकर आया था। अब यह अपने असली रूप में है।”कुशन की आँखों में पागलपन तैरने लगा था।“तुम कुछ नहीं कर सकते। अब सब कुछ मेरे हाथ में है… और तुम? तुम तो बस मोहरे हो।”रिया और अजय को अब यह साफ समझ में आ गया था कि कुशन को रोकना ही उनका सबसे बड़ा मक़सद है।वे दौड़ पड़े — कुशन के सामने टिकना इस वक्त संभव नहीं था। वे जंगल की ओर भागे और कुछ ही देर में एक रहस्यमय पुराने गाँव में पहुंच गए।यह गाँव... एक अलग ही युग का लग रहा था। वहाँ के लोग उन्हें घूर रहे थे, जैसे वे किसी दूसरी दुनिया से आए हों। उनके कपड़े, आँखें, बोली — सब कुछ अलग था।रिया ने धीमे से कहा, “यह गाँव हमें कोई सुराग दे सकता है। लेकिन बहुत सावधानी से चलना होगा — कुशन आसपास ही है।”अजय ने दृढ़ स्वर में कहा,“हमें उसे रोकना ही होगा, रिया। अगर नहीं रोका... तो जो उसने सोचा है, वही हकीकत बन जाएगा।”और इस तरह, दोनों उस रहस्यमय गाँव में कदम रखते हैं —एक नई चुनौती, एक नया अध्याय... और एक भयावह भविष्य की ओर।चैप्टर 11 बाज़ार में अफरा-तफरी मच चुकी थी। लोग इधर-उधर भाग रहे थे — चेहरों पर घबराहट और आंखों में डर। ऐसा लग रहा था जैसे कोई अनहोनी बस घटने ही वाली हो। अजय और रिया को ढूंढते हुए कुशन भी उसी बाज़ार में आ पहुंचा था। उसकी नज़रें चारों ओर घूम रही थीं, हर चेहरे में उसे वही दो चेहरे तलाशने थे — अजय और रिया।कुशन के मन में एक विचार कौंधा। उसकी मुट्ठी में दबा शक्तिपुंज हल्की रोशनी के साथ कंपन कर रहा था। उसने उसे अपने हाथ में ऊपर उठाया और धीमे स्वर में बुदबुदाया —"यदि इच्छाशक्ति हो, तो समय भी नियंत्रण में आ सकता है।"और फिर एक घुमाव — शक्तिपुंज को घुमा कर उसने हवा में एक चक्र बनाया। एक पल में ही बाज़ार की चाल रुक गई।हर चीज़ थम गई थी।कोई कंधा ऊपर उठा था, वहीं रुक गया; किसी का पैर ज़मीन से कुछ इंच ऊपर अटका था; बच्चों की मुस्कान अधूरी रह गई और हाथ आधे हवा में अटक गए। पूरा दृश्य जैसे एक पुरानी मूर्ति बन गया हो। केवल कुशन चल रहा था, और उसकी चाल में अब एक अजीब सी शांति और सत्ता थी।धीरे-धीरे चलते हुए उसकी निगाहें अजय और रिया को खोजने लगीं। और तभी उसकी आँखें अटक गईं — एक बैलगाड़ी के पीछे दो स्थिर आकृतियाँ खड़ी थीं। चेहरे भावशून्य, शरीर जड़। वह मुस्कराया।"तो आखिर मिल ही गए," उसने धीमे से कहा।जैसे ही उसने उनकी ओर कदम बढ़ाए, शक्तिपुंज की ऊर्जा अचानक कमज़ोर होने लगी। एक झलक भर में समय दोबारा बहने लगा। हवा चलने लगी, आवाज़ें लौट आईं — और अजय-रिया की आंखें खुल गईं।अजय (फुसफुसाते हुए): "रिया! भागना पड़ेगा, अभी!"रिया: "Let’s go, अब नहीं तो कभी नहीं!"दोनों एक साथ दौड़ पड़े। कुशन गुस्से में उनकी ओर लपका — लेकिन तभी अचानक एक और मोड़ आया।देव और विक्रमादित्य तेज़ी से वहाँ पहुँचे। उन्होंने स्थिति को भांपते हुए अजय और रिया की ओर दौड़ लगा दी।और तभी — एक और झटका। राजकीय सैनिकों की टुकड़ी वहाँ पहुँच चुकी थी। उन्होंने ना सिर्फ अजय और रिया को घेरने की कोशिश की, बल्कि देव और विक्रमादित्य को भी अपने घेरे में ले लिया।सैनिक (गंभीर स्वर में): "राजादेश है, संदेहास्पद गतिविधि करने वालों को तुरंत बंदी बनाया जाए!"हालात बेकाबू होते जा रहे थे। अचानक ही कुशन को भी सैनिकों ने घेर लिया। उसकी चाल, उसकी निगाहें — सब कुछ संदिग्ध लग रहा था। अब वह खुद एक शिकारी से शिकार बन चुका था।कुशन (गुस्से से): "तुम मूर्ख लोग जानते नहीं, मैं कौन हूँ! मेरे पास वो शक्ति है जो..."लेकिन उसके शब्द वहीं रुक गए। उसने एक बार फिर शक्तिपुंज को सक्रिय करने की कोशिश की — उसका हाथ ऊपर उठा, प्रकाश फिर से फूट पड़ा — लेकिन तभी एक सैनिक की ढाल से उसे जोर का धक्का लगा।धम!शक्तिपुंज ज़मीन पर गिर पड़ा।कुशन (चिल्लाता है): "नहीं! तुम नहीं समझते, ये क्या है!"पर अब बहुत देर हो चुकी थी।सैनिकों ने उसे जकड़ लिया। और साथ ही साथ, पास खड़े एक और व्यक्ति — जो हूबहू कुशन जैसा ही दिख रहा था — उसे भी पकड़ लिया गया। भीड़ में कानाफूसी शुरू हो गई।"दो-दो कुशन...? ये क्या माया है?"इस बीच, अजय और रिया यह सब देख रहे थे। उनके चेहरे पर हैरानी थी, लेकिन उन्हें पता था — मौका बस यही है।अजय (तेज़ स्वर में): "रिया, अब नहीं भागे तो कभी नहीं भाग पाएंगे!"रिया: "चल, ये chaos हमारे लिए वरदान है।"वे दोनों दबे पाँव, घुमते सैनिकों की नज़रों से बचते हुए भाग निकले।पीछे से सैनिकों की आवाज़ें आती रहीं —"पकड़ो उन्हें!""कहीं नहीं भाग पाएंगे!"लेकिन अब तक वे भीड़ में गायब हो चुके थे।बाज़ार, जो कुछ मिनट पहले एकदम ठहरा हुआ था, अब उथल-पुथल और भगदड़ से गूंज रहा था। कुछ लोग अभी भी समझ नहीं पा रहे थे कि हुआ क्या। लेकिन सब महसूस कर सकते थे — कुछ बड़ा घट चुका है। और जो होने वाला है, वह सिर्फ एक राज्य की नहीं, समय की कहानी बदल देगा।चैप्टर 12 अजय और रिया को बंदी बनाकर चलते-चलते एक विशाल और भव्य महल के सामने लाया गया। महल की भव्यता देखते ही अजय की आंखें आश्चर्य से फैल गईं। ऊँचे-ऊँचे स्तंभ, दीवारों पर गहरी नक्काशी, और पत्थरों में उकेरी गई कहानियाँ जैसे इतिहास को जीवंत कर रही थीं।अजय (आश्चर्य से):"Whoa… रिया, ये महल तो एकदम गेम ऑफ थ्रोन्स लेवल का लग रहा है। But seriously, हम यहाँ कैसे पहुँचे? और ये है किसका महल?"रिया के चेहरे पर गहराई से छाया तनाव अब और स्पष्ट हो चुका था। उसने एक लंबी साँस ली और अजय की ओर देखा।रिया (धीमे स्वर में):"अजय, यही वो जगह है जहाँ सब शुरू हुआ था। मेरे पूर्वजों की कहानी, देव, विक्रमादित्य और कुशान की – ये महल उसका गवाह है।"अजय (संभलते हुए):"Wait... मतलब ये उसी timeline का हिस्सा है? और कुशान ने ऐसा क्या किया था जो हमें आज भी भुगतना पड़ रहा है?"रिया की निगाहें अतीत में खो गईं।रिया:"तीनों – देव, विक्रमादित्य और कुशान – बचपन के घनिष्ठ मित्र थे। वे केवल विद्वान नहीं, राज्य के खोजकर्ता भी माने जाते थे। ज्ञान, साहस और भक्ति का अनुपम मेल थे वे। कुशान, जो राजा कालसेन का पुत्र था, अक्सर अपने मित्रों संग दूरस्थ स्थलों पर खोज में निकलता — पुरानी गुफाएँ, मंदिर, खजाने… उन्हें रहस्य आकृष्ट करता था।एक दिन, जैसे ही वे घुड़सवारी करते हुए जंगल पार कर रहे थे, आकाश से तीव्र प्रकाश और एक भयंकर गर्जना हुई।"अजय (चकित होकर):"Seriously? एक धमाका? Like a meteorite or...?"रिया:"तीन रहस्यमयी यंत्र धरती पर गिरे। इतनी तेज़ रोशनी थी कि आँखें खोल पाना मुश्किल था। वे यंत्र किसी और लोक के प्रतीत होते थे।"अजय कुछ और पूछने ही वाला था कि तभी घोड़ों की टापों की गूंज सुनाई दी। वे पीछे मुड़े और देखा — रामपुर राज्य के सैनिकों ने उन्हें पूरी तरह घेर लिया था।सैनिक (कड़कता हुआ):"तुम कौन हो? इस राजमहल की परिधि में आने का साहस कैसे किया?"अजय और रिया ने भागने की कोशिश की, पर सैनिकों ने उन्हें झट से जकड़ लिया। रस्सियों से बाँधकर वे दोनों को महल के भीतर ले गए।---दरबार मेंभव्य दरबार में उन्हें लाकर सिंहासन के सामने प्रस्तुत किया गया। चारों ओर वैभव, संगमरमर की दीवारों पर आभा फैलाती चित्रकारी, और बीचोंबीच विराजमान थे — राजा कालसेन।उनके चारों ओर मंत्री और राजगुरु उपस्थित थे। अजय और रिया, बंधे हुए, सभी की निगाहों का केंद्र बने खड़े थे।राजा कालसेन (गंभीर स्वर में):"तुम दोनों कौन हो? किस उद्देश्य से इस प्राचीन स्थल की ओर बढ़े?"अजय (हल्के डर के साथ, पर स्पष्टता से):"महाराज... हम बस यात्री हैं। रास्ता भटक गए थे। हमारा इरादा अपवित्र नहीं है।"राजा का चेहरा और कठोर हो गया।राजा कालसेन (आवाज़ में रोष के साथ):"यात्री? तुम्हारे वस्त्र, तुम्हारा आचरण, इस युग से मेल नहीं खाता। सच कहो — क्या तुम किसी शत्रु राज्य के भेदिये हो?"रिया (संयमित स्वर में):"महाराज, हम जासूस नहीं हैं। हम अनजान हैं और दुर्भाग्यवश यहाँ आ पहुँचे। कृपया हमें दोषी न मानिए।"तभी रिया की निगाह दरबार के कोने की ओर गई। वहाँ तीन ऊँचे आसन थे — और उन पर विराजमान थे: देव, विक्रमादित्य, और कुशान।अजय (धीरे से, आश्चर्य में):"रिया... वो वही हैं, न? तुम्हारे पूर्वज।"रिया की आँखें विस्मय से भर उठीं। उसने देव को देखा। उनकी आँखों में गरिमा थी, लेकिन साथ ही मानो कोई अनकहा जुड़ाव भी।राजा कालसेन (संदेह से):"तुम इन महापुरुषों को इस भांति क्यों निहार रही हो? क्या तुम इन्हें जानती हो?"रिया ने नज़रें झुका लीं, पर उसकी आँखों में अब एक जानी-पहचानी चमक थी।राजा कालसेन (मंत्रियों की ओर):"ये मेरे राज्य के स्तंभ हैं — देव, विक्रमादित्य और कुशान। इनकी वीरता और विवेक से ही हमारा राज्य अभेद्य है।"अजय और रिया एक-दूसरे की ओर देख रहे थे। उन्हें अब स्पष्ट हो गया था — समय के जिस मोड़ पर वे आ खड़े हुए हैं, वहाँ से सबकुछ बदल सकता है।अजय (नरम स्वर में):"महाराज, हम आपसे निवेदन करते हैं — हमें कोई खतरा मत समझिए। हम सचमुच केवल यात्री हैं।"राजा कालसेन:"तुम्हारे शब्दों में चतुरता है, परंतु सत्य का आभास नहीं। इन दोनों को बंदीगृह में डाला जाए!"सैनिकों ने उन्हें दरबार से बाहर ले जाना शुरू किया। लेकिन जाते-जाते, रिया ने एक बार फिर देव की ओर देखा। देव, जो अब तक मौन थे, उसकी दृष्टि को समझते हुए हल्के से सिर झुकाते हैं — संकेत की तरह।---चैप्टर 13बंदीगृह की ओरसैनिक उन्हें बंदीगृह की ओर ले जा रहे थे।अजय (चिढ़ कर):"रिया, we are screwed. हमें यहाँ से निकलने की कोई solid प्लान बनानी पड़ेगी।"रिया (गंभीर स्वर में):"देव ने मुझे देखा, और इशारा किया। He recognized me, I know it. हमें थोड़ा इंतज़ार करना होगा।"अजय (आश्चर्य से):"Wait... तुमको कैसे यक़ीन है कि वो हमारी मदद करेंगे?"रिया:"Because वो सिर्फ मेरे पूर्वज नहीं हैं, अजय... वो इस युद्ध के असली चाबी हैं। अगर कोई है जो हमें कुशान से लड़ने में मदद कर सकता है, तो वो देव ही हैं।"---बंदीगृह की ओर बढ़ते कदमसिपाही अजय और रिया को बंदी बनाकर महल के बंदीगृह की ओर ले जा रहे थे। महल की दीवारें ऊँची और पुरातन थीं, उन पर समय की कहानियाँ खुदी हुई थीं। रास्ता संकरा था और सन्नाटा भारी।अजय (धीमे स्वर में, रिया की ओर मुड़ते हुए):"रिया... I mean, what the hell is going on? ये सब प्लान का हिस्सा था क्या?"रिया (आँखें गहरी, स्वर संयमित):"हमेशा सब कुछ प्लान के हिसाब से नहीं होता, अजय। लेकिन हम सही जगह हैं, सही वक्त पर।"अजय (हल्की हँसी में):"Yeah, great timing! Ancient jail tour included!"रिया (गंभीर होकर):"देव को सच बताना ज़रूरी है। तभी इस कहानी की दिशा बदलेगी।"जैसे ही वे बंदीगृह के पास पहुँचे, सिपाहियों ने रुकने का आदेश सुना। दरबार के गलियारे में एक ऊँचा, गंभीर व्यक्तित्व प्रकट हुआ — देव। उसके पहनावे और चाल में राजसी ठहराव था।देव (सिपाहियों को आदेश देते हुए):"ठहरो। इन्हें अभी बंदीगृह में न ले जाओ। मुझे इनसे कुछ पूछना है।"सिपाही सिर झुकाकर पीछे हटे। अजय और रिया अब देव के सामने खड़े थे।देव (तेज नज़रों से देखते हुए):"कौन हो तुम दोनों? और मुझे वह दृष्टि क्यों दी, कन्या?"रिया (धीरे-धीरे, आत्मविश्वास से):"हम शत्रु नहीं हैं। आपके विश्वास को ठेस नहीं पहुँचाएँगे। पर सत्य की बात कहनी है।"देव (गंभीर लहजे में):"तुम्हारा वस्त्र, वाणी और भाव… सब इस युग से परे लगते हैं। तुम कौन हो?"अजय (धीरे से रिया की ओर):"Alright, it’s now or never…"रिया (देव की ओर देखकर, दृढ़ स्वर में):"हम भविष्य से आए हैं। दस हजार वर्षों के आगे से।"देव (चौंकते हुए):"भविष्य? यह बात तो केवल स्वप्न जैसी प्रतीत होती है।"रिया (बैग से पुस्तक निकालते हुए):"यह ग्रंथ है। इसी में वह सब लिखा है जो होने वाला है। आप, विक्रमादित्य, और कुशान — सब कुछ।"देव (किताब को उलटते-पलटते):"शक्तिपुंज...? यह शब्द तो मैंने कभी नहीं सुना।"रिया:"आपको कल इसका अनुभव होगा। तीन दिव्य ऊर्जा-पिंड आकाश से गिरेंगे — हर एक के पास एक शक्ति होगी।"देव:"क्या प्रकार की शक्ति?"रिया:"एक से समय यात्रा संभव होगी, एक से समय को स्थिर किया जा सकेगा, और तीसरे से कहीं भी क्षणभर में पहुँचा जा सकेगा।"अजय (देव को देखते हुए, धीमे से):"Yeah… sci-fi just got real."देव (आश्चर्य में):"यदि यह सत्य है, तो यह सृष्टि का खेल है। पर… फिर संकट क्या है?"रिया (संवेदनशील स्वर में):"कुशान — आपका प्रिय मित्र — उन शक्तियों के मोह में अंधा हो जाएगा। वह आपको और विक्रमादित्य को धोखा देगा।"देव (आक्रोश और अविश्वास में):"नहीं! कुशान ऐसा नहीं कर सकता। वह तो मेरा भ्राता समान है।"रिया (किताब की ओर इशारा करते हुए):"यही यथार्थ है। और जब वह तीनों शक्तियां ले लेगा, तो वह समय को तोड़ने की शक्ति पा जाएगा।"देव (गंभीर, भीतर डूबे हुए):"तो तुम यहाँ उसे रोकने आई हो…?"रिया:"हाँ। लेकिन हम अकेले नहीं लड़ सकते। हमें आपकी, विक्रमादित्य की, और उस समय की शक्ति की ज़रूरत है।"देव (मंथन के बाद):"यदि यह यथार्थ है, तो मैं तुम दोनों की सहायता करूँगा। पर पहले, मुझे स्वयं इसे अनुभव करना होगा।"तभी बाहर से सिपाहियों की तेज़ आवाजें आने लगीं।देव (तेज़ी से निर्णय लेते हुए):"अब समय नहीं है। मैं तुम्हें बंदीगृह तक नहीं जाने दूँगा। मेरे पीछे आओ — एक गुप्त द्वार से निकलना होगा।"अजय (धीरे से रिया की ओर):"Looks like your great-great-grandpa just became our first real ally."रिया (हल्के से मुस्कुराते हुए):"पहला कदम रखा है... अब कहानी शुरू हुई है।"देव के साथ, वे अंधेरे गलियारों में उतर गए — इतिहास और भविष्य के बीच एक नया अध्याय खुलने को था।चैप्टर 14 – शक्ति का संघर्षरात गहरा चुकी थी। महल की दीवारों के बीच एक बेचैन सन्नाटा पसरा हुआ था। तभी अंधेरे में, तीन परछाइयाँ चुपचाप बंदीगृह से निकलती हैं — देव, अजय और रिया।देव (धीरे और दृढ़ स्वर में):"अब यह मार्ग हमारी नियति बन चुका है। जो भी होगा, हमें साथ रहकर करना होगा... और एक-दूसरे पर पूर्ण विश्वास रखना होगा।"अजय और रिया उसकी बात को गंभीरता से सुनते हैं। रिया देव की ओर मुड़ती है।रिया:"देव, वो शक्ति-पुंज... क्या वो सच में कल गिरेंगे?"देव:"हाँ, और उनके साथ ही आएगा भविष्य का कुशान। वह और उसका भूतकालीन स्वरूप, दोनों शक्ति-पुंज को प्राप्त करने का यत्न करेंगे।"अजय (धीरे से रिया से):"मतलब... basically, दो versions of the same villain. Time travel का ultimate mess!"रिया (थोड़ा चिंतित):"Exactly. अगर हमने ठीक से प्लान नहीं किया, तो सब कुछ खत्म हो जाएगा।"तीनों ने मिलकर एक विस्तृत योजना बनाई — शक्ति-पुंज को पहले पाना था, और कुशानों से पहले वहाँ पहुँचना था।रिया (अजय की ओर देखकर):"Ajay, no distractions this time. हमारे पास सिर्फ एक chance है। All in or nothing."---अगली सुबह — रामपुर राज्य की ओर यात्रातीनों अपने-अपने घोड़े पर सवार होकर निकलते हैं। लेकिन देव की आंखों में आज गहरी चिंता साफ़ दिखाई देती है। वह आगे बढ़कर विक्रमादित्य से मिलता है और सारी सच्चाई बताता है।देव (विक्रमादित्य से):"महाराज, यह युद्ध केवल शक्तियों का नहीं... समय के भविष्य का है। यदि कुशान सफल हुआ, तो काल अपने ही पथ से भटक जाएगा। हमें शक्ति-पुंज को पहले पाना ही होगा।"विक्रमादित्य (दृढ़ स्वर में):"तो फिर देरी किस बात की है, देव? हम युद्ध के लिए प्रस्तुत हैं।"---शक्ति-पुंज का गिरना और युद्ध की शुरुआतअजय और रिया कुछ दूरी पर छिपकर सभी घटनाएं देख रहे थे। अचानक आकाश गड़गड़ाने लगता है, और तीन दिव्य प्रकाश पुंज — शक्ति-पुंज — आकाश से गिरते हैं।धमाका!पूरा मैदान रोशनी से भर जाता है। देव और विक्रमादित्य अपने घोड़े दौड़ाते हुए वहां पहुँचते हैं।वे जल्दी-जल्दी शक्ति-पुंज को उठाने लगते हैं, लेकिन तभी —भविष्य का कुशान प्रकट होता है। उसकी आंखों में समय का अभिमान है।भविष्य का कुशान (घमंड से):"अब समय मेरे अधीन होगा! यह शक्ति अब मेरे हाथों में है!"जैसे ही देव अंतिम शक्ति-पुंज उठाने वाला होता है, भूतकाल का कुशान भी वहां पहुँच जाता है और शक्ति-पुंज को झपट लेता है।अजय (रिया से फुसफुसाते हुए):"This is bad... दो-दो कुशान! We’re literally watching a time-warped disaster unfold."रिया (तेज़ी से):"Calm down. देखो, देव और विक्रमादित्य ready हैं। They won't give up so easily."---⚔️ युद्ध का आरंभ — शक्ति-पुंज की टकराहटअब मैदान दो भागों में बँट चुका था —एक ओर: देव और विक्रमादित्यदूसरी ओर: भविष्य का कुशान और भूतकाल का कुशानदेव अपने शक्ति-पुंज को उठा कर समय की गति को मोड़ने लगता है। जैसे ही कुशान आगे बढ़ता है, देव का कवच उसे पीछे धकेलता है।देव (आँखों में अग्नि लिए):"तू चाहे जितना बल लगा ले, पर सत्य की शक्ति को कभी पराजित नहीं कर सकेगा!"भविष्य का कुशान तेज़ी से हमला करता है, लेकिन देव हर वार को झेलता है।वहीं विक्रमादित्य और भूतकाल का कुशान आमने-सामने आ चुके हैं। विक्रमादित्य शक्ति-पुंज को तेज़ी से घुमाते हुए हमला करता है।विक्रमादित्य:"समय पर अधिकार नहीं, सेवा होनी चाहिए। तू इसे बंदी बनाना चाहता है, और मैं... मुक्त करना!"भूतकाल का कुशान उसे एक ओर फेंकता है, लेकिन विक्रमादित्य फिर उठता है।अजय (रिया से):"They're literally getting thrown around like Avengers... but still standing!"रिया:"Because they’re not fighting for power, Ajay… they’re fighting for dharma."---🔥 संघर्ष की चरम सीमाभविष्य के कुशान ने देव पर शक्ति का प्रचंड वार किया। ज़मीन फटने लगी, लेकिन देव ने शक्ति-पुंज से समय का कवच बनाकर उसका वार उल्टा मोड़ दिया।देव (गर्जना करते हुए):"मैं अपने मित्रों, अपने राज्य और समय के संतुलन के लिए लड़ रहा हूँ... और मैं झुकूंगा नहीं!"विक्रमादित्य ने अपने शक्ति-पुंज से भूतकाल के कुशान को रोकते हुए उस पर एक जबरदस्त ऊर्जा प्रहार किया।विक्रमादित्य:"अब बहुत हुआ! शक्ति उन्हीं के हाथों में रहेगी, जो उसका मर्यादा से उपयोग करें।"---🌪️ अंत की ओर बढ़ता युद्धयुद्ध की आँच से मैदान जल रहा था। आकाश में बिजली, धरती पर कंपन।दोनों कुशान अपनी पूरी ताकत झोंक चुके थे, लेकिन देव और विक्रमादित्य अब भी डटे थे।अजय (धीरे से):"This... is epic. पर ये खत्म कहाँ होगा?"रिया (आँखों में विश्वास के साथ):"जहाँ सच्चाई है... वहीँ इसका अंत होगा। और जीत भी।"
चैप्टर 15 – अंधेरे में उम्मीद
अजय और रिया एक टीले के पीछे छिपकर युद्ध देख रहे थे। दूर, धूल और धुएं के बीच देव और विक्रमादित्य अपने शक्तिपुंजों के साथ भयंकर युद्ध लड़ रहे थे — एक ओर भविष्य का कुशान, दूसरी ओर भूतकाल का कुशान। ज़मीन थर्रा रही थी, समय जैसे काँप रहा था।
तभी देव की नज़र अजय और रिया पर पड़ी। उसकी आँखों में urgency थी। वह समझ चुका था — अब समय नहीं बचा।
देव (जोर से):
"अजय! रिया! इसे पकड़ो — अभी!"
(वह अपनी पूरी ताकत से शक्तिपुंज उनकी ओर फेंकता है)
विक्रमादित्य (अपने शक्तिपुंज को उछालते हुए):
"तुम दोनों अब केवल साक्षी नहीं, भागीदार हो। अपनी शक्ति संभालो!"
अजय और रिया चौंक उठे, लेकिन बिना एक पल गँवाए, वे दोनों शक्तिपुंज की ओर दौड़ पड़े। तभी—
भविष्य का कुशान (गरजते हुए):
"तुम दोनों को नहीं छोड़ेंगे! देव और विक्रमादित्य तो बस शुरुआत थे!"
अजय (हड़बड़ाते हुए):
"Bro, they spotted us! अब क्या करें? हम literally next target हैं!"
रिया (तेज़ी से):
"Think fast! Run towards the crowd — अगर हम mixed हो गए लोगों में, they'll lose track."
अजय और रिया घोड़ों को मोड़ते हैं और सामने एक तंग गली की ओर भागते हैं, जहाँ एक स्थानीय उत्सव की भीड़ चल रही थी। ढोल-नगाड़ों और रंग-बिरंगे कपड़ों के बीच सबकुछ बहुत chaotic था।
रिया (इशारा करते हुए):
"उधर चलो! भीड़ में घुसते ही हम invisible जैसे हो जाएंगे।"
अजय (तेज़ी से):
"Let’s go! अगर ये plan भी fail हुआ, then we’re officially doomed."
भीड़ में दाखिल होते ही, उनके चारों ओर इंसानों की दीवार बन गई। कुशान भी वहां पहुँचे, लेकिन उनकी आँखें उन्हें नहीं ढूंढ पा रही थीं।
भविष्य का कुशान (झुँझलाते हुए):
"ये यहीं कहीं हैं! मुझे उनके अस्तित्व की आहट मिल रही है!"
भूतकाल का कुशान (कड़कते स्वर में):
"यह भीड़... यह धुँध... सब छलावा है। किन्तु हम हार नहीं मानेंगे।"
भीड़ के बीच, अजय और रिया धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे। रिया की नज़र सतर्क थी, और अजय की साँसें तेज़।
अजय (धीरे से):
"Okay... we're alive. But for how long?"
रिया (नज़रें घुमाते हुए):
"जब तक हम move करते रहेंगे, we’ve got a chance. बस एक गलती, और सब खत्म।"
उसी समय, अचानक भीड़ में भगदड़ मच जाती है। कोई अफवाह फैलती है, और लोग इधर-उधर दौड़ने लगते हैं। रंग-बिरंगे झंडे उड़ते हैं, लोग चिल्लाते हैं।
अजय (तेज़ी से):
"यह perfect distraction है! Let’s use it to slip further."
रिया:
"Follow me. Left में एक alley दिखी थी... वहाँ चलते हैं।"
दूसरी ओर, देव और विक्रमादित्य, जो ज़ख्मी थे, अब भी मैदान में डटे हुए थे।
विक्रमादित्य (घोड़े पर बैठते हुए):
"देव, यदि हम इन बालकों को सुरक्षित न कर सके, तो यह युद्ध व्यर्थ होगा।"
देव (हांफते हुए):
"वह दोनों शक्ति लेकर भागे हैं... अगर वे सही दिशा में गए, तो यह लड़ाई उनकी हो सकती है।"
वे घोड़े दौड़ाते हैं और भीड़ में घुसते हैं। लेकिन अब वहां सिर्फ अफरातफरी है। उनके सामने रास्ता अवरुद्ध है।
विक्रमादित्य:
"यह धुंध — समय की नहीं, मन की है। इसे चीरना होगा।"
वे भीड़ में अजय और रिया को ढूंढ़ने की कोशिश करते हैं, लेकिन तभी—
भूतकाल का कुशान (दूर से):
"देखा? वे भाग रहे हैं। उनकी ताक़त हमारी होगी!"
लेकिन अजय और रिया अब भीड़ के उस पार एक संकरी गली में घुस चुके थे। वहाँ थोड़ी शांति थी।
अजय (गहरी साँस लेते हुए):
"We made it... at least for now."
रिया (शांत स्वर में):
"अब हमें छिपने नहीं, लड़ने की तैयारी करनी होगी। शक्ति-पुंज अब हमारे पास है।
अध्याय 16 – शक्तिपुंज का रहस्य
जंगल का दृश्य
अजय और रिया, सैनिकों की पकड़ से बचते-बचाते, जंगल के एक घने और सुनसान हिस्से में पहुँच चुके थे। चारों ओर सन्नाटा था, जैसे समय भी वहाँ थम गया हो। दोनों थक कर एक विशाल पेड़ की छांव में बैठ गए।
अजय (गहरी साँस लेते हुए):
"अब क्या करें, रिया? कोई idea है आगे का?"
रिया ने अपने कंधे पर टंगे बैग को टटोलना शुरू किया, और फिर उसका चेहरा अचानक बदल गया।
रिया (चौंकते हुए):
"Wait... मेरा बैग!"
अजय (सावधानी से):
"क्या हुआ बैग को?"
रिया (घबराकर):
"उसमें वो किताब थी, जिसमें आगे का रास्ता बताया गया था। लगता है बाजार की उस अफरा-तफरी में गिर गया… Damn!"
अजय (हाथ से सिर पकड़ते हुए):
"Seriously, रिया? तुम थोड़ा careful रह सकती थी! अब हमारे पास कोई clue नहीं बचा।"
रिया (धीरे और भारी आवाज़ में):
"I’m sorry, अजय... मुझे अंदाज़ा नहीं था कि ये सब इतना intense हो जाएगा।"
दोनों कुछ देर तक चुप बैठे रहे। तभी पास की झाड़ियों से एक धीमी, गूंजती हुई आवाज़ आई—
अनजानी आवाज़:
"डरो मत, बालकों। अब तुम्हारी राह दिखाने वाला आ पहुँचा है।"
दोनों एक साथ चौंककर खड़े हो गए। झाड़ियों के पीछे से एक वृद्ध पुरुष प्रकट हुआ — सफ़ेद दाढ़ी, गहरी झुर्रियों से भरा चेहरा, और हाथ में एक लकड़ी की छड़ी। उसकी आँखें रहस्यमयी शांति से भरी थीं।
अजय (सावधान स्वर में):
"आप कौन हैं? और यहाँ क्या कर रहे हैं?"
वृद्ध (हल्की मुस्कान के साथ):
"मैं वही हूँ, जिसकी तुम्हें ज़रूरत है। मैं तुम्हारा मित्र हूँ... कोई शत्रु नहीं।"
अजय और रिया ने एक-दूसरे को देखा — दोनों की आँखों में साफ़ संशय था।
रिया (तेज़ और दृढ़ स्वर में):
"अगर आप सच में हमारे मित्र हैं, तो आपको पता होगा हम कौन हैं… और हमारे पास क्या है।"
वृद्ध (गंभीर पर शांत आवाज़ में):
"मैं सब जानता हूँ। तुम्हारे पास शक्तिपुंज है, और यही कारण है कि तुम अभी तक जीवित हो।"
रिया ने तुरंत अपना बैग कसकर पकड़ा और शक्तिपुंज को छुपाने लगी। लेकिन वृद्ध पहले ही देख चुका था।
वृद्ध:
"मुझसे छुपाने का प्रयास व्यर्थ है। मैंने इसे तुम्हारे हाथ में महसूस किया है। लेकिन क्या तुम जानते हो — यह वस्तु केवल शक्ति नहीं, एक चेतावनी है?"
अजय (हैरानी से):
"क्या मतलब है आपका? हमें तो बताया गया कि ये एक ऐसी divine energy है जो time को control कर सकती है।"
वृद्ध धीरे से मुस्कुराया और आगे बढ़कर बोला—
वृद्ध:
"हां, यह शक्ति है — परंतु इस शक्ति का जन्म एक बलिदान से हुआ है। यह तुम्हारे नियंत्रण में तब तक नहीं आ सकती जब तक तुम इसके मूल को न समझो।"
अजय और रिया कुछ क्षणों के लिए अवाक रह गए।
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राजमहल – सिंहासन कक्ष
राजा कालसेन अपने सिंहासन पर विराजमान थे। उसी समय सैनिक, देव, विक्रमादित्य और दोनों कुशानों को राजदरबार में ले आए। जैसे ही राजा की नजर उन दो कुशानों पर पड़ी, उनका चेहरा कठोर हो गया।
राजा कालसेन (गुस्से में):
"यह क्या मायाजाल है? दो मेरे जैसे दिखने वाले लोग?! इनमें असली कौन है?"
देव (शांति से):
"महाराज, ये दोनों ही आपके पुत्र हैं — एक वर्तमान से, और एक भविष्य से।"
राजा चौंक गए।
राजा कालसेन:
"भविष्य...? यह कैसे संभव है?"
विक्रमादित्य:
"यह सब शक्तिपुंज की कृपा है, महाराज। यह समय को मोड़ने की क्षमता रखता है।"
तभी एक सैनिक चमकता हुआ शक्तिपुंज राजा के समक्ष लेकर आया।
राजा (उसे देखते हुए):
"यह क्या है?"
देव:
"यह शक्तिपुंज है — एक ब्रह्मांडीय यंत्र। इससे समय को रोका, मोड़ा और नियंत्रित किया जा सकता है।"
विक्रमादित्य:
"यदि आप चाहें तो इसका अनुभव स्वयं कर सकते हैं।"
राजा ने शक्तिपुंज को उठाया और धीरे-धीरे घुमाया। एक क्षण में ही दरबार रुक गया — हर व्यक्ति, हर गति स्थिर हो गई।
कुछ ही पल बाद सब कुछ सामान्य हो गया। राजा स्तब्ध थे।
राजा कालसेन (धीरे से):
"यह तो… यह तो दिव्यता है! यदि यह मेरे पास रहा, तो मैं अमर हो सकता हूँ… सारा संसार मेरा होगा!"
देव (गंभीरता से):
"यही सबसे बड़ा खतरा है, महाराज। शक्तिपुंज केवल उन्हीं के हाथों में सुरक्षित है, जिनका मन निर्मल हो।"
तभी भविष्य का कुशान बोल पड़ा—
भविष्य का कुशान:
"यह शक्तिपुंज मेरा है! मैं ही इसका उत्तराधिकारी हूँ!"
राजा कालसेन (कड़कते स्वर में):
"शांत हो जाओ! बताओ — शेष दो शक्तिपुंज कहाँ हैं?"
देव:
"वे सुरक्षित स्थानों पर हैं, और वहीं रहने चाहिए। तीनों शक्तिपुंज यदि एकत्र हो गए, तो परिणाम विनाशकारी होंगे।"
राजा कुछ क्षण सोच में डूबे रहे, फिर बोले—
राजा कालसेन:
"उन दोनों शक्तिपुंजों को मेरे पास लाया जाए। और इन सबको कड़ी निगरानी में रखा जाए।"
देव और विक्रमादित्य की आँखों में चिंता गहरा गई थी। उन्हें अब यकीन होने लगा था — राजा का लालच, असली खतरे की शुरुआत है।
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जंगल – पुनः
अजय और रिया, वृद्ध व्यक्ति की बातें सुनकर अंदर तक हिल गए थे।
अजय:
"आप कौन हैं? और ये सब आपको कैसे पता?"
वृद्ध (धीरे से):
"मैं वह हूँ जिसे समय ने अपना सेवक बनाया है। और अब, यह उत्तरदायित्व तुम्हारा है।"
रिया:
"हम क्या करें? हमारे पास न किताब है, न योजना।"
वृद्ध:
"किताब खोई है, लेकिन मार्ग नहीं। शक्तिपुंज को समझो, और उसके पीछे के सत्य को। तभी तुम अपने नियति को पा सकोगे।"
अजय और रिया की आँखों में अब डर से ज्यादा जिज्ञासा थी। एक नया अध्याय उनके सामने खुलने वाला था — और यह राह पहले से कहीं ज़्यादा कठिन थी।
अध्याय 17 – दिशा की ओर
स्थान: घना जंगल | समय: रात का अंतिम पहर
जंगल अब भी रात के अंधेरे में ढका हुआ था। हल्की हवा में आग की लौ काँप रही थी। पास ही एक झोपड़ी के बाहर, अजय और रिया ध्यान से विश्वास की बात सुन रहे थे। उनके चेहरे पर चिंता और थकावट दोनों साफ़ झलक रहे थे।
विश्वास (गंभीर स्वर में):
"ये दिशा-सूचक यंत्र लो। ये तुम्हें पूर्व दिशा की ओर ले जाएगा। रास्ते में बर्फीले पहाड़ मिलेंगे। वहाँ से कोई तुम्हें कैलाश पर्वत का रास्ता बता देगा।"
वह एक चमकता हुआ छोटा यंत्र और कुछ ताज़े फल उन्हें देता है।
रिया (जल्दी में):
"लेकिन आप हमारे साथ क्यों नहीं चल सकते?"
विश्वास:
"मेरा कार्य यहीं तक था। आगे की राह तुम्हारी परीक्षा है। मैंने जो देखना था, देख लिया। अब तुम्हें खुद तय करना होगा कि सही क्या है।
और जल्दी करो — सैनिक निकट आ चुके हैं।"
अजय (तेज़ी से यंत्र और फल उठाते हुए):
"रिया, चलो। अब एक पल भी रुकना ठीक नहीं होगा।"
वो दोनों बिना समय गंवाए जंगल की गहराइयों में आगे बढ़ गए।
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सैनिकों का आगमन
कुछ ही देर में घोड़ों की टापों की आवाज़ और मशालों की रोशनी ने पूरे इलाके को चमका दिया। सैनिकों का दल झोपड़ी तक पहुँच चुका था।
सैनिक (तेज़ आवाज़ में):
"यहाँ कोई बाहरी आया है? राजा कालसेन का आदेश है — अजय और रिया को तुरंत खोजा जाए!"
विश्वास (शांत भाव से):
"मैंने किसी को नहीं देखा। जंगल बहुत बड़ा है... शायद वो कहीं और हों।"
सैनिकों ने झोपड़ी की तलाशी ली, लेकिन उन्हें कुछ नहीं मिला।
उनका नेता गुस्से में बाहर आया।
सैनिक नेता:
"अगर तुमने झूठ बोला है, तो इसकी कीमत तुम्हें चुकानी पड़ेगी!"
विश्वास:
(बस चुपचाप खड़ा रहा, उसकी आँखें स्थिर थीं।)
सैनिक घोड़ों को मोड़ते हैं और जंगल की ओर रवाना हो जाते हैं।
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राजा कालसेन का दरबार
राजमहल में, राजा कालसेन अपने सिंहासन पर बैठे हैं।
उन्होंने अपने पुत्र भविष्य का कुशान को क्षमा कर दिया है।
राजा कालसेन:
"भविष्य के कुशान, अब अजय और रिया को पकड़ना तुम्हारा कार्य है। शक्तिपुंज किसी भी हाल में हमें प्राप्त होना चाहिए। कुछ चुने हुए सैनिक तुम्हारे साथ भेजे जाएंगे।"
भविष्य का कुशान (हल्की मुस्कान के साथ):
"आप चिंता न करें, पिता। इस बार वो नहीं बचेंगे।"
इसी बीच, देव और विक्रमादित्य को बंदीगृह में डाल दिया गया है।
हालाँकि समय जैसे थम गया है, फिर भी उनकी आँखों में उम्मीद अभी बाकी है।
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अजय और रिया का सफर
अजय और रिया जंगल के बीच से भागते हुए नदी किनारे पहुँचते हैं।
सुबह की हल्की रोशनी आकाश में फैल रही है।
रिया (थकी हुई आवाज़ में):
"अजय... कितना और चलना होगा? ऐसा लग रहा है जैसे हम कई दिनों से बस भाग ही रहे हैं।"
अजय (दिशा-सूचक यंत्र को देखते हुए):
"जब तक ये यंत्र चमक रहा है, हमें चलते रहना होगा। और हाँ, अब हमें और भी ज़्यादा सतर्क रहना पड़ेगा।"
तभी दूर से घोड़ों की टापें सुनाई देती हैं।
दोनों चौंकते हैं और झाड़ियों में छिप जाते हैं।
सैनिक नदी के किनारे से होकर निकलते हैं।
सैनिक नेता:
"ज़्यादा दूर नहीं होंगे। नदी के इस किनारे को अच्छे से खोजो।"
कुछ देर बाद, अजय और रिया धीरे-धीरे झाड़ियों से बाहर आते हैं।
अजय (धीरे से सांस छोड़ते हुए):
"लगता है हर दिशा में ये लोग फैले हुए हैं। अब एक भी गलती भारी पड़ सकती है।"
रिया (चुपचाप):
"अजय… क्या हम हमेशा ऐसे ही भागते रहेंगे? मुझे सच में डर लगने लगा है।"
अजय ने रिया के कंधे पर हाथ रखा।
अजय (नज़रें सीधे उसकी आँखों में डालते हुए):
"रिया, अब डरने का वक्त नहीं है। ये सफर सिर्फ भागने के लिए नहीं है। हमें उस शक्तिपुंज की रक्षा करनी है… और वो हम दोनों की जिम्मेदारी है।"
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यात्रा में भावनाएँ
चलते-चलते, अजय अचानक रुक जाता है।
चारों ओर की ठंडी हवा उसे घर की याद दिला देती है।
अजय (धीरे-धीरे, उदासी में):
"मुझे माँ के हाथ की रोटियाँ याद आ रही हैं... पापा की आवाज़... और मेरा छोटा भाई...
सोचते होंगे मैं कहाँ चला गया…"
रिया (धीरे से, सहानुभूति के साथ):
"मुझे भी घर याद आता है, अजय। लेकिन शायद ये सब हमारे घरवालों के लिए ही तो है।
जब सब ठीक होगा, हम लौटेंगे। और तब उन्हें हम पर गर्व होगा।"
अजय मुस्कराने की कोशिश करता है, पर उसकी आँखें हल्की सी भीग जाती हैं।
फिर वो खुद को संभालता है।
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आगे की राह
जंगल, नदियाँ, और अब धीरे-धीरे ऊँचाई की ओर जाते रास्ते…
अजय और रिया, दिशा-सूचक यंत्र की चमक को देखते हुए बढ़ते जा रहे हैं।
सैनिक पीछे हैं, लेकिन अब वो डर से नहीं — इरादे से चल रहे हैं।
अध्याय 18 – नदी की चुनौती
जंगल के किनारे – सूरज की पहली किरणें
अजय और रिया घने जंगल से निकलते हुए बेहद थक चुके थे। उनके चेहरे पर थकावट और चिंता की लकीरें साफ़ थीं। भूख और प्यास अब सहन के बाहर हो चुकी थी।
दोनों ने अपने पास के ताजे फल खाए और नदी से पानी पीकर कुछ राहत ली।
रिया (गहरी सांस लेते हुए):
"अजय... हमें ज़्यादा देर यहाँ नहीं रुकना चाहिए। सैनिक ज़रूर पास ही होंगे।"
अजय ने बिना कुछ कहे दिशा-सूचक यंत्र की ओर देखा। यंत्र ने नदी के पार जाने का संकेत दिया। लेकिन नदी चौड़ी थी, और उस पर कोई पुल नहीं था।
उसका किनारा दूर तक फैला हुआ था — मानो चुनौती दे रहा हो।
अजय (सोचते हुए):
"हमें ये नदी पार करनी होगी। देखो, वहाँ कुछ सूखी लकड़ियाँ पड़ी हैं... और ये रही रस्सी। हम मिलकर एक छोटी नाव बना सकते हैं।"
दोनों ने मिलकर सूखी, मजबूत लकड़ियाँ जुटाईं और रस्सी से उन्हें बाँधना शुरू किया। कुछ ही देर में एक अस्थिर-सी लेकिन तैरने लायक नाव तैयार हो गई।
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नदी के बीच संकट
अजय और रिया ने नाव को धीरे-धीरे नदी में उतारा। धारा तेज़ थी, लेकिन दोनों ने हिम्मत नहीं हारी।
जैसे-जैसे वे आगे बढ़ते गए, एक पल के लिए उन्हें लगा कि यह रास्ता पार हो जाएगा।
लेकिन तभी—
फिर्रर्र...!
एक तीर सीधा आकर उस रस्सी पर लगा, जो लकड़ियों को बाँध रही थी।
रिया (चौंकते हुए):
"अजय! तीर... रस्सी टूट गई!"
रस्सी के टूटते ही नाव की लकड़ियाँ अलग-अलग दिशाओं में बहने लगीं।
रिया ने चिल्लाते हुए कहा:
रिया:
"हमें तैरना भी नहीं आता! अब क्या करेंगे?"
किनारे से सैनिक उन्हें देख चुके थे, और कुछ सैनिक तुरंत नदी में कूद पड़े।
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पत्थर का सहारा
जैसे ही रिया पानी में बहने लगी, उसका पैर अचानक नदी के बीच एक बड़े पत्थर से टकराया।
उसने जल्दी से उसे पकड़ा और अजय का हाथ थाम लिया।
लेकिन तभी—
पोटली, जिसमें शक्तिपुंज सुरक्षित था, उसकी कमर से फिसलकर पानी में गिर गई और तेज़ बहाव में बहने लगी।
रिया (डरते हुए):
"अजय! पोटली बह गई!"
अजय (बिना समय गंवाए):
"मैं लाता हूँ!"
अजय ने अपने होश-हवास को दरकिनार करते हुए बहते पानी में छलांग लगाई और पोटली की ओर लपका।
कुछ संघर्ष के बाद वह पोटली पकड़ने में सफल हुआ।
रिया (घबराए स्वर में):
"अगर शक्तिपुंज खो जाता, तो..."
अजय (गंभीरता से):
"हम इसे खोने नहीं देंगे, रिया। इसके लिए तो हम जिंदा हैं।"
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किनारे की ओर संघर्ष
तभी बहती हुई टूटी हुई लकड़ियाँ फिर उनके पास आ गईं।
दोनों ने उन्हें पकड़ लिया और किसी तरह किनारे तक पहुँच गए।
लेकिन—
सैनिक अब भी पीछा कर रहे थे। अजय ने जल्दी से कहा:
अजय:
"अब देर नहीं करनी है, चलो भागो!"
दोनों जल्दी से जंगल की ओर दौड़ पड़े।
किनारे पर खड़े सैनिक, नदी की तेज़ धार और चट्टानों की वजह से उस पार नहीं आ सके।
सैनिकों ने पीछे मुड़ते हुए कहा:
सैनिक (गुस्से में):
"ये दोनों हर बार बच निकलते हैं... लेकिन ज़्यादा दिन नहीं!"
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राजमहल का बंदीगृह
उधर राजमहल के बंदीगृह में, देव और विक्रमादित्य गहरी चिंता में थे।
विक्रमादित्य:
"हमें किसी भी हाल में यहाँ से निकलना होगा। कालसेन अब तीनों शक्तिपुंज हासिल करने पर तुला है।"
देव:
"हमें पता नहीं अजय और रिया कहाँ हैं... लेकिन हमें कुछ करना होगा।"
विक्रमादित्य ने दीवार के एक कोने की ओर इशारा किया।
विक्रमादित्य:
"ये दीवार... यह कुछ कमजोर लग रही है।"
देव (आशा से):
"अगर इसे तोड़ सके, तो शायद बाहर निकलने का रास्ता मिल जाए।"
विक्रमादित्य:
"तो देर किस बात की? योजना बनाओ... समय हाथ से फिसल रहा है।"
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जंगल में नया संकट
अजय और रिया अब और भी थक चुके थे। कपड़े भीग चुके थे और ठंड उन्हें कंपा रही थी।
रिया (काँपते हुए):
"क्या हमें कभी कोई सुरक्षित जगह मिलेगी, अजय? ऐसा लग रहा है जैसे हर ओर बस खतरा है।"
अजय (दृढ़ता से):
"हम रुक नहीं सकते। अगर हम थम गए, तो वही लोग हमें पकड़ लेंगे जिनसे हम भाग रहे हैं।"
तभी पास के जंगल से घोड़ों की टापों की आवाज आई।
दोनों ने बिना देर किए पास की झाड़ियों में छिप जाने का फैसला किया।
सैनिक वहाँ से गुज़रे... लेकिन उन्हें कुछ नहीं मिला।
कुछ देर बाद, अजय ने आसमान की ओर देखा — और घर की यादें उमड़ पड़ीं।
अजय (धीरे से):
"ये सब मैं सिर्फ अपने लिए नहीं कर रहा... जिनके लिए मैं लड़ रहा हूँ, उन्हें मैं कभी हारते नहीं देख सकता।"
रिया (धीरे से मुस्कराते हुए):
"हम हारेंगे भी नहीं।
हम ये लड़ाई जीतेंगे... और शक्तिपुंज को सुरक्षित रखेंगे — ये हमारी नियति है।"
भाग 19 — पीछा और पहाड़ी की पुकार
देव ने बड़ी चतुराई से एक सैनिक को अपने पास बुलाया, जो बंदीगृह के बाहर पहरे पर तैनात था।
"ऐ भाईसाहब!" देव ने थोड़ी दर्दभरी आवाज में कहा, "दीवार यहाँ से अंदर से दरक चुकी है… ज़रा चाबी लेकर आओ, हम इसे खोलकर बाहर देखना चाहते हैं कि खतरा कितना बड़ा है।"
सैनिक थोड़ा चौंका, फिर बोला, "इस भाग से कोई खतरा नहीं है, पर यदि भीतर से दरार है तो देखना ही होगा।"
वह चाबी लाने के लिए भीतर चला गया।
उधर, देव ने फुर्ती से विक्रम की ओर देखा, "दीवार का कमजोर कोना यही है, अब नहीं तो कभी नहीं!"
विक्रम ने सिर हिलाया, "एक, दो… और तोड़ो!"
कई घूंसे और लातों के बाद, मिट्टी की पुरानी दीवार ढह गई और दोनों उस अंधेरे बंदीगृह से बाहर निकलने में सफल हो गए।
अब उनका लक्ष्य केवल एक था — अजय और रिया को हर हाल में ढूंढना।
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दूसरी ओर — एक शांत गाँव की सरहद पर...
अजय और रिया एक छोटे से गाँव में पहुँचे थे। लंबा सफर, थकान और पीछा किए जाने की बेचैनी उनके चेहरों पर साफ दिख रही थी।
"रिया... लगता है हम एक और टाइम ज़ोन में आ गए हैं," अजय ने हँसते हुए कहा।
रिया हँस पड़ी, "Seriously Ajay, ये जगह तो एकदम पहाड़ों की किसी फेयरीटेल जैसी लग रही है। देखो कितनी शांति है यहाँ!"
चारों तरफ हरियाली, शांत वातावरण और पक्षियों की चहचहाहट उन्हें एक पल के लिए सुकून देती है।
उसी समय, एक बुज़ुर्ग महिला जो आँगन में कपड़े सुखा रही थी, उनकी ओर देखती है।
"ओ रामा! यह कौन है जो इस बेला गाँव की चौहद्दी में थक कर आया है?" वह पास आई, और धीरे से बोली,
"बेटा, देखो तो कैसे थक गए हो तुम दोनों। भीतर आओ। भोजन, जल और विश्राम सब मिलेगा।"
अजय थोड़ी हिचकिचाहट से देखता है, "हम सच में बहुत थक चुके हैं… पर मैम, आपको तकलीफ न हो?"
वह मुस्कुराती है, "तकलीफ नहीं, यह सेवा है पुत्र। भूखे को भोजन, थके को विश्राम — यही धरम है हमारा।"
वे दोनों महिला के घर गए। अंदर मिट्टी की सौंधी खुशबू थी, दीवारों पर पुराने चित्र और तुलसी का पौधा आँगन में हिल रहा था।
रिया ने फुसफुसाकर कहा, "This place feels like time-travel. She's so kind."
अजय मुस्कराया, "I know, right? लोग अब भी ऐसे मिलते हैं… unbelievable."
महिला ने उन्हें गरम रोटी, दाल और गुड़ परोसा। रिया की आँखें नम हो गईं, "मुझे मम्मी की याद आ रही है…"
महिला ने उनके सिर पर हाथ रखा, "बेटी, माँ कहीं भी हो… ममता हर जगह होती है।"
काफी देर तक आराम करने के बाद, अजय ने कहा, "माँजी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद। हम अब आगे निकलते हैं।"
"जाओ पुत्र, पर सावधानी रखना। इन जंगलों में चालाकियाँ भी बसी हैं।"
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सामने खड़ी थी मुसीबत...
अभी वे गाँव की सीमा पार कर ही रहे थे कि सामने से धूल उड़ती दिखाई दी। कुशान अपने सैनिकों के साथ आ रहा था — घोड़े पर सवार, आँखों में क्रोध और चेहरा तना हुआ।
"रिया... we're screwed!" अजय ने फौरन रिया का हाथ पकड़ा।
"Run, Ajay! Fast! हम एक बार फिर पकड़ में नहीं आ सकते!"
कुशान चिल्लाया, "रुको! भाग नहीं सकते अब! ये अंतिम बार कह रहा हूँ!"
अजय ने एक पतली सी पगडंडी की ओर इशारा किया, "उधर! चलो फटाफट! घोड़े नहीं आ पाएंगे वहाँ!"
दोनों तेजी से दौड़ते हुए एक झाड़ीदार रास्ते से होकर आगे निकले। घुड़सवार सैनिक पीछा कर रहे थे लेकिन चट्टानों और पेड़ों की ओट में अजय और रिया अब दिख नहीं रहे थे।
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एक पहाड़ी पर पहुंचकर…
भागते-भागते वे एक ऊँची चोटी पर पहुँचे, जहाँ से सारा जंगल दिखता था — गहराइयों और पेड़ों का अनंत विस्तार।
रिया ने थककर कहा, "I can't… Ajay… मेरा दम घुट रहा है।"
"Wait, breathe… listen," अजय ने उसका हाथ थामा, "We’ve made it this far… we won't stop now."
नीचे से कुशान की आवाज गूँज रही थी, "तुम जहाँ भी छुपो, मैं तुम्हें ढूँढ निकालूँगा!"
पर ऊँचाई पर होने से अजय को एक नई दिशा दिखी — एक पत्थरों से भरी गुफा की छाया।
"रिया! वहाँ! That cave! अगर हम उसमें पहुँच गए तो शायद कुछ वक्त मिल जाए सोचने का।"
"Are you sure?"
"Do we have a choice?"
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दोनों फिर से दौड़ पड़े — उस गुफा की ओर, जो शायद अब तक के सबसे बड़े मोड़ की शुरुआत बनने वाली थी...
भाग 20 — पकड़, प्रतिशोध और पहाड़ी की पुकार
कुशाण ने आखिरकार उन्हें पकड़ ही लिया था।
अजय और रिया पेड़ों से उल्टे बंधे हुए लटक रहे थे। मोटी रस्सियाँ उनके कंधों और कमर में कस चुकी थीं, जिससे हर सांस लेना भी मुश्किल हो रहा था। लेकिन, सबसे ख़ास बात — उनके चेहरे पर डर नहीं था।
रिया ने धीमे स्वर में अजय की ओर देखा, "तुम ठीक हो?"
"जैसा इन हालातों में कोई हो सकता है," अजय ने जवाब दिया, और एक हल्की मुस्कान देने की कोशिश की, "तुम?"
"Better than expected," रिया बोली, "लेकिन हम बस ऐसे हार नहीं मान सकते, ओके?"
"Obviously. ये हमारा आख़िरी चांस हो सकता है। We either break out now, or it's game over."
उसके ठीक सामने कुशाण खड़ा था — उसकी आँखों में जली हुई राख जैसी घृणा और सनक। उसके हाथ में चमचमाती तलवार थी, और चाल में एक ठंडी क्रूरता।
"तो… अब क्या हुआ तुम्हारे सारे प्लान्स का?" कुशाण ने ज़हर घुले स्वर में कहा। "तुम दोनों को लगा था कि मुझे मात देना आसान होगा? तुमने ये नहीं सोचा था कि शेर कभी हार नहीं मानता, सिर्फ़ दुबकता है… और फिर हमला करता है।"
अजय ने थूक निगला और बोला, "हमें लगा था कि तेरा दिमाग भी तेरी तलवार की तरह तेज़ होगा, लेकिन… guess not."
"Shut up, Ajay," रिया ने फुसफुसाया, "अब मज़ाक का टाइम नहीं है।"
कुशाण ने तलवार उठाई और रिया के बिल्कुल पास जाकर कहा, "अब यह शक्तिपुंज मेरा होगा… और तुम दोनों सिर्फ इतिहास की एक अधूरी कहानी बनकर रह जाओगे।"
तभी...
फटाक!
हवा में एक तीव्र आवाज गूंजी — एक तीर बिजली की तरह आया और सीधा कुशाण की तलवार को छीन ले गया।
"क्या!" कुशाण पीछे हटा, और उसी समय एक और तीर आकर अजय और रिया की रस्सियाँ काट गया।
दोनों ज़मीन पर गिर पड़े, लेकिन तुरंत खड़े हो गए। अजय ने कमर पकड़ी और रिया की ओर देखा, "We’re not dead yet!"
रिया ने गर्दन घुमाकर आवाज़ की दिशा में देखा — देव सामने खड़ा था, विक्रमादित्य और उनके सैनिकों के साथ।
देव की आँखें गुस्से से जल रही थीं, लेकिन चेहरे पर एक गहरी स्थिरता थी।
"कुशाण!" उसने शांत स्वर में कहा, "यह शक्ति तुम्हारे जैसे अधर्मी के लिए नहीं बनी।"
कुशाण दाँत पीसते हुए बोला, "तुम लोगों की हिम्मत कैसे हुई यहाँ तक आने की?"
देव ने तलवार घुमाते हुए कहा, "हिम्मत नहीं, धर्म है। और जब धर्म संकट में हो, तब युद्ध भी पूजा बन जाता है।"
उसने एक इशारा किया — और सैनिकों ने युद्ध मुद्रा ले ली।
देव, विक्रम, और उनकी सेना कुशाण की सेना से भिड़ गई। तलवारों की टकराहट, ज़मीन पर गिरती चिंगारियाँ और आकाश में उठता शोर — जैसे कोई पुरातन युद्ध फिर से ज़िंदा हो गया हो।
उधर, देव ने अजय और रिया को एक घोड़े की ओर इशारा किया।
"तुम दोनों यहाँ नहीं रुक सकते। इस युद्ध से तुम्हारा मार्ग अलग है। तुम्हारी यात्रा बर्फीले पर्वतों की ओर है — वहीं से शक्ति की रक्षा संभव होगी।"
अजय ने बिना समय गंवाए रिया की ओर देखा, "चलो, time to move!"
रिया चढ़ते हुए बोली, "Thanks, Dev. Don’t die, okay?"
देव ने हल्की मुस्कान दी, "तुम लौट कर आओगे — यही वादा है।"
अजय और रिया घोड़े पर सवार होकर तेज़ी से जंगल की ओर भाग निकले, युद्ध पीछे छूटता गया।
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सफर... बर्फ की दिशा में
घोड़ा पगडंडी पर भाग रहा था, चारों ओर घना जंगल और अंधकार। रिया लगातार पीछे देख रही थी।
"तुम ठीक हो?" अजय ने पूछा।
"Yeah, but... अज–" वह झिझकी, "मेरा दिशा-सूचक यंत्र… खो गया। शायद झड़ गया भागते हुए।"
अजय चुप रहा। फिर बोला, "We’ll figure it out. तू ही तो कहती थी — कुछ खो जाने का मतलब ये नहीं कि रास्ता बंद हो गया।"
रिया ने हल्का सिर हिलाया, "तुम्हें पता है... कभी-कभी लगता है हम दोनों पुराने किसी युग के किरदार हैं। जैसे कोई अधूरी कहानी अब फिर से पूरी हो रही है।"
"और हम उसमें accidental heroes हैं," अजय ने मुस्कुराते हुए कहा।
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थोड़ी देर बाद, उनके सामने बर्फ से ढके पहाड़ दिखाई देने लगे — सूरज की हल्की रोशनी उनकी चोटियों पर पड़ रही थी।
"वहीं है हमारी मंज़िल," रिया ने कहा।
"तैयार हो?" अजय ने पूछा।
"हमेशा से," रिया ने जवाब दिया।
और घोड़ा तेज़ी से उन बर्फीले पहाड़ों की ओर दौड़ पड़ा… जहां एक और रहस्य, एक और परीक्षा उनका इंतज़ार कर रही थी।
भाग 21 – हिम की गोद में नियति का संदेश
बर्फ़ीले पहाड़ों पर घंटों की चढ़ाई के बाद, अजय और रिया आखिरकार उस स्थान पर पहुँच गए जहाँ से उनकी मंज़िल—कैलाश पर्वत—बस कुछ ही दूरी पर थी। थकावट उनके चेहरों पर थी, लेकिन आँखों में उम्मीद अब भी चमक रही थी।
राह चलते उन्हें एक ऊनी टोपी पहने वृद्ध राहगीर मिला। अजय ने उससे पूछा, "Excuse me, कैलाश की दिशा में कौन-सा रास्ता जाता है?"
वृद्ध ने मुस्कुराकर बर्फीली हवा की ओर इशारा किया, "बस इसी मार्ग पर आगे बढ़ते जाओ, बालक। एक मील और, फिर स्वयं शिव की छाया में पहुँच जाओगे।"
"Thanks a lot," रिया ने कहा और दोनों आगे बढ़ चले।
रास्ते में चारों ओर फैली प्रकृति उन्हें सम्मोहित कर रही थी। देवदार के ऊँचे पेड़ बर्फ से लदे खड़े थे जैसे वे भी शिव की उपस्थिति को नमन कर रहे हों। झरनों की हल्की कल-कल और सूरज की किरणें बर्फ पर पड़ते ही मोती जैसे चमक रही थीं।
"Wow," रिया ने धीमे स्वर में कहा, "ये जगह… किसी पेंटिंग जैसी लगती है।"
"शायद ये वही जगह है जहाँ इंसान और ब्रह्मांड के बीच कोई दीवार नहीं बचती," अजय ने जवाब दिया।
थोड़ी दूर चलते ही उनकी नज़र एक पहाड़ी पर बने प्राचीन मंदिर पर पड़ी। मंदिर का शिखर बर्फ से ढका हुआ था, और उस पर भगवान शिव का त्रिशूल हवा में लहरा रहा था। मंदिर के बाहर कुछ ऋषि ध्यानमग्न मुद्रा में बैठे थे।
अजय और रिया एक-दूसरे को देखते हैं।
"Let’s go," अजय बोला।
"Yeah… I think we’re meant to be there," रिया ने हामी भरी।
जैसे ही वे मंदिर के अंदर पहुँचे, वहाँ का वातावरण पूरी तरह दिव्य था। बीच में खड़ा एक तेजस्वी ऋषि शिव की आराधना कर रहे थे। उनके वस्त्र बर्फ से भी अधिक उज्ज्वल थे, जटाएँ कंधों पर लहराती थीं, और चेहरे पर शांति की ऐसी आभा थी जो किसी महासागर की गहराई जैसी लगती थी।
उनके चारों ओर एक ऊर्जा थी जो सामान्य नहीं थी — जैसे यह साधक नहीं, साक्षात् ब्रह्मांड का दूत हो।
अजय ने आगे बढ़कर कुछ कहने की कोशिश की, लेकिन ऋषि ने आँखें खोलीं और हल्के से मुस्कुरा दिए।
"तुम दोनों को कुछ कहने की आवश्यकता नहीं," उन्होंने शांत स्वर में कहा।
"मैं जानता हूँ कि तुम कौन हो, और क्यों आए हो। समय और ब्रह्मांड ने तुम्हें चुना है। यह मार्ग तुम्हारा नहीं था — यह तुम्हारी नियति थी।"
अजय और रिया स्तब्ध रह गए।
"गुरुदेव…" अजय ने धीरे से कहा, "हमने अब तक जितना संभाल सकते थे, संभाला। लेकिन शक्तिपुंज अब हमारे बस से बाहर है। हम इसे सुरक्षित रखना चाहते हैं… कहीं ऐसी जगह, जहाँ कुशाण कभी न पहुँचे।"
ऋषि ने कुछ पल नेत्र मूँदे, फिर बोले,
"नहीं, वत्स। तुम्हें यह शक्ति त्यागनी नहीं है। यह शक्ति तुम्हारी परीक्षा है… और यही तुम्हारी सिद्धि भी। तुम दोनों नियति के चुने हुए रक्षक हो। मेरी विद्या, मेरी तपस्या, तुम्हारी सहायता करेगी — लेकिन युद्ध तुम्हें ही लड़ना होगा।"
रिया ने आवाज में थरथराहट के साथ कहा, "पर… गुरुदेव, हम बहुत थक चुके हैं। कुशाण… वो हमसे कई गुना शक्तिशाली है। हम और कितना भाग सकते हैं?"
ऋषि की आवाज़ थोड़ी गंभीर हो गई, "भागने से कोई रक्षक नहीं बनता, पुत्री। तुम्हारा डर स्वाभाविक है, लेकिन याद रखो – डर और विश्वास एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जिस दिन तुम अपने भीतर विश्वास जगा लोगे, उसी दिन कोई शत्रु तुम्हारे सम्मुख नहीं ठहर सकेगा।"
फिर वे थोड़े और निकट आए, हाथ उठाया और बोले —
"मैं सैकड़ों वर्षों से तप कर रहा हूँ, ताकि किसी दिन जब समय आए, मैं तुम्हें वह शक्ति दे सकूँ जो सत्य की रक्षा के लिए आवश्यक हो। आज वही दिन है।"
अजय ने गर्दन झुकाकर कहा, "आप जैसा आदेश देंगे, गुरुदेव। हम तैयार हैं।"
"तो सुनो," ऋषि बोले, "अब तुम्हारे प्रशिक्षण की आरंभिक बेला है। यहाँ से एक यात्रा और शुरू होगी — भीतर की यात्रा। तुम्हें आत्मबल, साहस और संयम को साधना होगा। यह ब्रह्मांड स्वयं तुम्हें मार्ग देगा… क्योंकि अब तुम इसके रक्षक हो।"
अजय और रिया ने आँखें बंद कर सिर झुका दिए — उनके चेहरे पर एक नई रोशनी थी। यह उनके जीवन की अगली परीक्षा की शुरुआत थी।
भाग 22 – ध्यान और द्वंद्व
गुरुदेव के समक्ष बैठे अजय और रिया के मन में जैसे दो अलग-अलग युद्ध चल रहे थे—एक बाहर की ठंड से, दूसरा अंदर के विचारों से।
चारों ओर हिमाच्छादित पहाड़, हवा में बर्फ की बूँदें तैर रही थीं, और मंदिर की घंटियों की मंद ध्वनि वातावरण को और रहस्यमय बना रही थी।
गुरुदेव की गंभीर, मगर स्थिर आवाज गूंजी—
"विद्या की प्राप्ति के लिए मन को वश में करना आवश्यक है। जब तक चित्त स्थिर नहीं होगा, तब तक ज्ञान का प्रकाश भी धुंधला ही रहेगा।"
अजय और रिया ने गुरुदेव की ओर देखा, फिर एक-दूसरे की आँखों में हल्की चिंता झलकती देखी।
"Ready?" अजय ने रिया से पूछा।
"Yeah. Let’s try this," रिया ने हौले से कहा।
गुरुदेव ने उन्हें ध्यान मुद्रा में बैठने को कहा।
"आँखें मूँद लो और अपनी चेतना एक बिंदु पर केंद्रित करो। भीतर की यात्रा वहीं से प्रारंभ होती है।"
धीरे-धीरे दोनों ने साँसों की लय धीमी करनी शुरू की। लेकिन…
हर बार जब वे मन को स्थिर करने की कोशिश करते, कोई न कोई स्मृति उनका ध्यान भटका देती।
अजय के मन में माँ की ममता और पिता के संघर्ष की छवियाँ कौंधने लगीं।
रिया को बार-बार कुशान की आँखें याद आ रही थीं—उनमें छुपी क्रूरता और संहार की प्यास।
"God, why can’t I stop thinking!" रिया ने मन ही मन कहा।
गुरुदेव ने बिना उनकी ओर देखे भी उनके द्वंद्व को भाँप लिया।
"चित्त चंचल है… यह उसका स्वभाव है। पर योद्धा वह है जो अपने चित्त को अनुशासन में लाए। ध्यान तभी सफल होगा जब तुम अपने विचारों के पार देखना सीखोगे।"
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राजमहल की ओर…
राजा कालसेन अपने सिंहासन पर बैठे थे, आँखों में चिंता और होंठों पर रहस्यमय मुस्कान।
एक गुप्तचर ने आकर कहा,
"महाराज, कुशान अब अजय और रिया के अत्यंत समीप है।"
राजा ने आँखें मूँदीं, फिर कहा,
"यदि वह सफल हुआ, तो अच्छा। और यदि नहीं… तो यह कार्य मैं स्वयं पूर्ण करूंगा। शक्तिपुंज किसी और के हाथों नहीं जाना चाहिए।"
उन्होंने एक संकेत किया, और विशेष अंगरक्षक दरबार में प्रस्तुत हुए।
"संपूर्ण राज्य में सावधानी बढ़ा दो। कुशान की हर चाल पर दृष्टि रखो। यह युद्ध अब केवल शक्ति का नहीं, समय का भी है।"
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कैलाश के मंदिर में…
गुरुदेव ने अजय और रिया को विशिष्ट मंत्र दिए।
"यह मन्त्र केवल शब्द नहीं, ऊर्जा हैं। इन्हें जपो… और स्वयं को शून्य की ओर प्रवाहित करो।"
दोनों ने आँखें मूँदीं और मंत्रोच्चारण शुरू किया।
"ॐ नमः शिवाय…ॐ नमः शिवाय…"
धीरे-धीरे एक दिव्य ऊर्जा उनके चारों ओर फैलने लगी। शरीर हल्का होने लगा। साँसें स्थिर। चेतना उच्चतर स्तर की ओर बढ़ने लगी।
अचानक, अजय की चेतना एक छवि में अटक गई—कुशान की हँसी, उसके हाथों गाँव का विनाश…
वह काँप उठा। और अगले ही क्षण—ध्यान टूट गया। वह हवा में से नीचे गिरा।
"अजय!"
रिया ने घबराकर चिल्लाया।
गुरुदेव ने गंभीर किन्तु शांत स्वर में कहा—
"डरो मत, पुत्री। यह मात्र परीक्षा थी। जो गिरता है, वही उड़ना सीखता है। ध्यान केवल शरीर नहीं, मन का भी अनुशासन है।"
अजय दर्द से कराहते हुए उठा।
"Okay… I messed up. But I won’t quit."
उसने गुरुदेव की ओर देखा,
"गुरुदेव, मैं फिर से प्रयास करना चाहता हूँ।"
गुरुदेव ने सिर हिलाया और कहा,
"स्मरण रखो—मन पर नियंत्रण सबसे बड़ा शस्त्र है। जब तुम स्वयं को साध लेते हो, तब संसार की कोई शक्ति तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती।"
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उधर बर्फीले मार्ग पर…
कुशान पहाड़ों में आगे बढ़ता जा रहा था। उसके पीछे सैनिक थक चुके थे।
"महाराज," एक ने कहा, "यह इलाका जोखिम भरा है… क्या हमें रुकना नहीं चाहिए?"
कुशान की आँखें आग की तरह दहक उठीं।
"मैं तब तक नहीं रुकूँगा जब तक उन्हें और शक्तिपुंज को पा न लूँ। मेरी विजय ही मेरा विश्राम है।"
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अंत में…
गुरुदेव ने अजय और रिया के चारों ओर अपनी उंगली से एक मंडल बनाया, जिसमें चमकती ऊर्जा फैलने लगी।
"अब ध्यान पुनः प्रारंभ करो। परंतु इस बार… मन को अपने अधीन करो। यही तुम्हारा प्रथम प्रशिक्षण है।"
अजय और रिया ने आँखें मूँदीं।
और पहली बार, शांति की एक छोटी सी लहर उनके भीतर स्पंदित हुई।
यह यात्रा अभी प्रारंभ ही हुई थी…
भाग 23 – सहयोग की तलाश और आत्मबल की परीक्षा
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त्रिपुरा का राजमहल – देव और विक्रमादित्य
त्रिपुरा का राजमहल... काले पत्थरों से तराशे हुए स्तंभ, दीवारों पर बारीक नक्काशी, और छत से लटकते विशाल दीपक—यह सब देखकर विक्रमादित्य की आँखों में क्षणभर के लिए विस्मय कौंध गया।
राजा तोमर अपने रत्नजड़ित सिंहासन पर बैठे थे। उनकी मुद्रा कठोर थी, लेकिन आँखों में अनुभव की चमक थी।
राजा ने कड़कते स्वर में कहा—
"तुम दोनों शत्रु राज्य से हो। मैं यह समझना चाहता हूँ कि तुम्हारा यहाँ आना किसी षड्यंत्र का हिस्सा तो नहीं?"
देव ने सिर झुकाकर उत्तर दिया—
"महाराज, यह समय शत्रु-मित्र की परिभाषा से परे है। हम यहाँ कोई राज्य जीतने नहीं, बल्कि एक महाविनाश को रोकने आए हैं।"
राजा ने भौंहें सिकोड़ते हुए पूछा—
"महाविनाश?"
"शक्तिपुंज..." देव की आवाज अब गूंजने लगी थी,
"वह दिव्य ऊर्जा जिसका संतुलन बिगड़ जाए, तो समूचा लोकप्रपंच चिरकालिक अंधकार में डूब सकता है। कुशान उसे पाने के लिए कुछ भी कर सकता है। और उसका पिता राजा कालसेन... वह मौन है, लेकिन उससे अधिक खतरनाक।"
राजा तोमर के मुख पर अब सावधानी के साथ उत्सुकता भी झलकने लगी।
"और तुम चाहते हो कि त्रिपुरा इस युद्ध में कूदे?"
विक्रमादित्य ने राजा की आँखों में देख कर कहा—
"नहीं महाराज, हम चाहते हैं कि त्रिपुरा इस सृष्टि की रक्षा में सहभागी बने। यह युद्ध केवल सीमाओं का नहीं, मूल्यों का है।"
एक मंत्रणा सभा की ओर इशारा कर राजा बोले—
"हम विचार करेंगे। यदि तुम्हारा उद्देश्य निष्कलंक है, तो त्रिपुरा तुम्हारे साथ खड़ा होगा। लेकिन... यदि हमारी भूमि पर कोई छाया पड़ी... तो न्याय क्रूर भी हो सकता है।"
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गुरुदेव के साथ—अजय और रिया का प्रशिक्षण
हिमाच्छादित उस गुफा में आज एक विशेष शांति थी। दीवारों पर टिमटिमाती अग्नि की रेखाएं और गुरुदेव की मंत्रध्वनि वातावरण में एक दिव्यता भर रही थी।
गुरुदेव ने अजय और रिया के सामने खड़े होकर कहा—
"आज तुम्हें अपने शरीर को प्रकृति से एकाकार करना है। जब चेतना शरीर को बाँधना छोड़ दे, तभी तुम वायु में विलीन हो सकते हो।"
उन्होंने एक धीमे स्वर में मन्त्र जपना शुरू किया—
“ओं ह्रीं वायु तत्वाय नमः...”
गुरुदेव के चारों ओर एक हल्का प्रकाशमंडल बना, और वह धीरे-धीरे ज़मीन से ऊपर उठ गए।
"अब तुम दोनों भी प्रयास करो। अपने विचारों को शून्य करो।"
अजय और रिया ने आँखें बंद कीं।
रिया के मन में शांति उतर आई थी।
"I can feel it... like I’m not even here anymore," उसने फुसफुसाते हुए कहा।
लेकिन अजय...
वो बार-बार अपने विचारों में डूब जाता। कुशान की तलवारें, माँ की चीखें, पिता का चुप चेहरा—सब कुछ सामने आ रहा था।
अचानक...
धड़ाम!
अजय ज़मीन से टकराया।
"अजय!" रिया ने आँखें खोलकर चिल्लाया।
गुरुदेव ने शांत स्वर में कहा—
"तुमने बाहर की लड़ाई जीती है, लेकिन भीतर की नहीं। भय तुम्हें बार-बार गिरा रहा है। उसे पहचानो। उसे स्वीकार करो। तभी उससे मुक्ति मिलेगी।"
अजय ने मिट्टी से अपना चेहरा उठाया और कहा,
"Gurudev… I don’t want to fail again."
"मैं फिर प्रयास करूंगा।"
गुरुदेव ने मुस्कराकर कहा—
"तुम्हारा यह प्रयास ही तुम्हारी साधना है। उठो। यही आरंभ है।"
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उधर कुशान...
बर्फीले तूफानों के बीच कुशान के सैनिक थक चुके थे।
एक सैनिक ने डरते हुए कहा,
"महाराज, यह क्षेत्र मानचित्र में भी नहीं आता... हमें रुकना चाहिए..."
कुशान की आँखों में पागलपन चमक उठा।
"अगर तुममें साहस नहीं तो लौट जाओ। मैं अकेला भी रह जाऊं, तो भी उन्हें ढूंढ निकालूंगा। और जो बीच में आएगा..."
उसने तलवार ज़मीन में धंसा दी—
"उसका अंत यही होगा।"
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अंत में...
अजय और रिया एक बार फिर ध्यान में बैठे।
गुरुदेव ने अपना हाथ उठाया और उनके चारों ओर एक सुनहरी आभा का मंडल रच दिया।
"यह ऊर्जा तुम्हारे भीतर की शक्ति को जागृत करेगी। परंतु, इसे नियंत्रित करना तुम्हारे आत्मबल पर निर्भर है।"
इस बार अजय की साँसे स्थिर थीं। उसका चेहरा शांत था। विचार रुक गए थे।
और जैसे ही उसने मंत्रोच्चार पूरा किया—वह हवा में तैरने लगा। उसकी आँखें अब नहीं डरी हुई थीं—वे निर्भीक थीं।
गुरुदेव ने कहा—
"अब तुम तैयार हो… लेकिन यह यात्रा अभी समाप्त नहीं हुई। अब परीक्षा तुम्हारे बाहर इंतज़ार कर रही है…"
चैप्टर 24 – दिव्य ऊर्जा का जागरण
दस दिन बीत चुके थे। अजय और रिया अब साधारण शिष्यों की तरह नहीं, बल्कि सच्चे साधकों की तरह अपने ज्ञान में डूब चुके थे। रिया में अद्भुत सीखने की क्षमता थी — वह हर विद्या को सहजता से ग्रहण कर रही थी। अजय थोड़ा धीमा ज़रूर था, पर उसकी लगन और धैर्य ने उसे किसी भी कमी से बड़ा बना दिया था। दोनों ने अथक परिश्रम किया था, और आज वह दिन था — जब उन्हें वह परम विद्या सौंपी जानी थी, जिससे वे असीम ऊर्जा के वाहक बन सकते थे।
गुरुदेव उन्हें लेकर कैलाश पर्वत के शिखर पर पहुंचे। वहाँ की हवा में एक अलग ही गूंज थी — न कोई पक्षी, न कोई ध्वनि — केवल बर्फ़ीली हवाओं की सनसनाहट, जो मन के भीतर तक उतरती थी। पर्वत का शिखर बादलों से भी ऊँचा था। चारों ओर केवल श्वेत चादर, और एक असहज शांति जो किसी आने वाले तूफ़ान का संकेत दे रही थी।
गुरुदेव ने धीरे से अपनी आँखें मूँदीं और गंभीर स्वर में मंत्रोच्चार आरंभ किया।
"ॐ नमो दिव्यशक्तये..."
उनके उच्चारण की गूंज पूरी पर्वतीय घाटी में फैलने लगी। तभी ज़मीन हल्के-हल्के कांपने लगी। रिया ने चौककर इधर-उधर देखा।
"अजय, कुछ हो रहा है... ये साधारण मंत्र नहीं लगता!"
अजय ने गम्भीर स्वर में कहा,
"शायद यही है वो क्षण जिसके लिए हमने सब सहा है..."
पर्वत की चट्टानों में कंपन होने लगा। ज़मीन से एक तेज़ प्रकाश फूटा, और पूरा शिखर मानो ऊर्जा से थरथरा उठा।
गुरुदेव ने अपने दोनों हाथ फैलाए और अजय व रिया के चारों ओर एक दिव्य सुरक्षा-कवच रच दिया। यह एक सुनहरी ढाल थी — ऊर्जा से बनी, जो उन्हें इस प्रकंपन से बचाए रखने के लिए थी।
तभी, आकाश की ओर जाती एक तीव्र प्रकाश-धारा ने ज़मीन को चीर डाला। उस ऊर्जा ने अजय और रिया को उठाना शुरू कर दिया। वे दोनों हवा में लहराने लगे, आँखें बंद, पर शरीर में एक अनजान अग्नि की लहर महसूस कर रहे थे।
रिया की चीख उभरी—
"गुरुदेव... ये बहुत तीव्र है! इसे रोकिए!"
अजय भी पीड़ा से बोल पड़ा—
"गुरुदेव, यह शक्ति... यह हमें तोड़ देगी!"
गुरुदेव मौन रहे, केवल मंत्र तेज़ करते गए। उनके चेहरे पर दृढ़ता थी।
"ॐ तेजोमयाय नयस्व माम्..."
अचानक, उस उग्र ऊर्जा की धाराएँ अजय और रिया के शरीरों में समा गईं। उनके नेत्र प्रकाशमान हो उठे। उनका संपूर्ण शरीर अब एक तेज से जगमगा रहा था — जैसे कोई सूर्य-अंश उनके भीतर आ गया हो। वे अब पहले जैसे नहीं रहे।
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उधर — कुशान का आगमन
कुशान, जो पर्वत के नीचे था, वह उस प्रकाश को देख चौक पड़ा। उसकी आँखों में क्रोध भड़क उठा।
"तो वे वहीँ हैं... शक्तिपुंज मेरे सामने है। कोई इसे मुझसे छीन नहीं सकता।"
उसने सैनिकों को आगे बढ़ने का संकेत दिया।
"तेज़ चलो। इससे पहले कि यह शक्ति किसी और के हाथ लग जाए!"
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इधर — राजा तोमर और देव
कैलाश की ओर बढ़ती एक और सेना थी — राजा तोमर और देव की। देव चिंतित थे।
"हमें जल्द वहाँ पहुँचना होगा। हमारा उद्देश्य है इस शक्ति को सही हाथों में सुरक्षित करना, न कि युद्ध छेड़ना..."
राजा तोमर बोले,
"लेकिन यदि कुशान या कालसेन पहले पहुँच गए... तो विनाश अवश्यंभावी है।"
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राजा कालसेन की चाल
राजा कालसेन, जो दूर खड़ा अपनी सेना को देख रहा था, गुर्राया—
"आज चाहे जो हो जाए, शक्तिपुंज मुझे चाहिए। कुशान हमारा साथी है, पर अगर वह आड़े आया... तो उसे भी कुचल दूँगा।"
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शिखर पर — जागरण की पूर्णता
गुरुदेव ने मंत्रोच्चार रोका। अजय और रिया धीरे-धीरे ज़मीन पर लौटे। उनके भीतर अब केवल ऊर्जा नहीं, एक नई चेतना प्रवाहित हो रही थी। उनकी आँखों में तेज था, पर मन में एक जवाबदेही का भार भी।
गुरुदेव बोले—
"अब तुम केवल शरीर नहीं... चेतना के वाहक हो। यह शक्ति तुम्हें किसी पर प्रभुत्व के लिए नहीं दी गई। इसका उपयोग केवल अधर्म के विनाश और धर्म की रक्षा के लिए होगा।"
अजय ने हाथ जोड़कर कहा—
"गुरुदेव, हम प्रतिज्ञा करते हैं कि इस शक्ति का उपयोग केवल न्याय के लिए होगा।"
रिया ने भी सिर झुकाकर कहा—
"यह हमारे लिए गर्व नहीं... जिम्मेदारी है।"
गुरुदेव ने मुस्कराते हुए कहा—
"और यही भावना तुम्हें इस शक्ति के योग्य बनाती है। लेकिन ध्यान रखना, राह अब कठिन होगी... समय बहुत कम है।"
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अंत में...
दूर पहाड़ों की ओर से धूल उठ रही थी। कुशान, अपनी सेना के साथ, तेजी से चोटी की ओर बढ़ रहा था।
वह शक्ति जो अब अजय और रिया के भीतर थी... कई राजाओं की आँखों का स्वप्न बन चुकी थी।
अब खेल शुरू हो चुका था।
भाग 25 – शिखर युद्ध का प्रारंभ
कुशान अपनी विशाल सेना के साथ बर्फीले पर्वतों की ओर तेजी से बढ़ रहा था। उसके काले घोड़ों की टापों की गूंज दूर-दूर तक सुनाई दे रही थी। बर्फ की सफेद चादर पर उनके पदचिन्ह काली लकीरों की तरह फैलते जा रहे थे, और उस ठंडी हवा में एक अजीब-सा भय तैर रहा था।
कुशान के चेहरे पर गुस्से और विजय का एक घातक मिश्रण था। उसकी आंखों में एक ही लक्ष्य चमक रहा था — शक्तिपुंज को अपने अधीन करना।
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उधर, गुरुदेव की झोपड़ी के बाहर बर्फ की बौछारें चल रही थीं। अंदर, गुरुदेव गंभीर स्वर में बोले:
"संकट द्वार पर है। अभ्यास का समय अब समाप्त हो चुका है। अपने भीतर की हर शंका, हर भय को अब समूल नष्ट करो। यही युद्ध तुम्हारी आत्मिक शक्ति की अग्निपरीक्षा है।"
अजय और रिया एक-दूसरे की तरफ देखे।
रिया ने धीरे से कहा,
"No turning back now?"
अजय ने मुस्कराकर जवाब दिया,
"Not even an option."
दोनों की आँखों में निश्चय था— वे अब पीछे नहीं हटेंगे।
गुरुदेव ने इशारा किया,
"अपनी शक्तियों का संतुलन समझो। एक-दूसरे के खिलाफ अभ्यास करो। जितना सीख चुके हो, उसका उपयोग अब करो।"
रिया ने हवा में अपनी हथेलियाँ फैलाईं और ऊर्जा को समेटकर एक बर्फीला तूफान अजय की ओर छोड़ा।
अजय ने अपनी ऊर्जा को ढाल में बदलते हुए उसे हवा में ही रोक लिया।
गुरुदेव ने चेताया,
"शक्ति का प्रयोग केवल आक्रमण में मत करो। याद रखो, संयम और रक्षा — ये ही असली बल हैं।"
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अचानक, पहाड़ों की तलहटी से काले घोड़ों की टापों की आवाज गूंजी।
रिया ने चौंककर कहा,
"They’re here."
अजय ने ऊंचाई से नीचे देखा— घोड़ों पर सवार कुशान की सेना पूरे वेग से उनकी ओर बढ़ रही थी। लेकिन इस बार अजय और रिया के चेहरों पर डर नहीं था... था तो सिर्फ आत्मबल।
"तो अब निर्णायक क्षण आ गया है," रिया ने शांत लेकिन दृढ़ स्वर में कहा।
अजय ने गुरुदेव की ओर मुड़कर कहा,
"गुरुदेव, समय आ गया है। हमारी परीक्षा शुरू होने वाली है।"
गुरुदेव ने आंखें मूंदी, ध्यान में कुछ क्षण बिताए और फिर बोले,
"याद रखो, भय ही सबसे बड़ा शत्रु है। अब पीछे हटने की कोई राह नहीं है। शक्तिपुंज की रक्षा ही तुम्हारी सर्वोच्च प्राथमिकता है।"
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थोड़ी देर में कुशान और उसकी सेना पहाड़ के नीचे पहुँच गई। अजय और रिया पहाड़ी की चोटी पर खड़े थे — एक अडिग शिलाखंड की भांति।
कुशान ने उन्हें ऊपर देखकर हैरानी से कहा,
"भागे क्यों नहीं? क्या मौत का आलिंगन करने का इरादा है?"
रिया ने तीखी दृष्टि से कहा,
"भागना हमारे खून में नहीं है। अब जो भी होगा, यहीं तय होगा।"
कुशान हँसा,
"अरे वाह! हिम्मत तो है तुम दोनों में। लेकिन नौसिखियों, मेरी ताकत के सामने ये ‘हिम्मत’ एक मज़ाक है। शक्तिपुंज मुझे सौंप दो, और मैं तुम्हारी मौत को आसान बना दूँगा।"
अजय ने दृढ़ नजरों से उसकी आंखों में झाँका,
"शक्तिपुंज हमारी ज़िम्मेदारी है, कुशान। तुम्हारे जैसे किसी पिशाच के हाथों में जाने की बजाय, हम जान देना पसंद करेंगे।"
कुशान ने तलवार निकाली और गर्जना की,
"सेना! हमला करो!"
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युद्ध आरंभ हो गया।
पहाड़ों की शांत बर्फ अब युद्ध की आग में पिघलने लगी थी। तलवारों की चमक, मंत्रों की गूंज और बर्फीले तूफानों की चीखें — सब मिलकर एक प्रलय रच रही थीं।
अजय ने अपनी ऊर्जा से कई सैनिकों को हवा में उछाल दिया।
उसकी आंखों में एकाग्रता थी, और मन में एक ही मंत्र — "रोकना है, हर हाल में।"
रिया हवा में ऊपर उठी, दोनों हथेलियाँ खोलकर उसने हवा से बर्फ खींची और उसे गोले बनाकर दुश्मनों पर दागने लगी।
"रिया, दाहिनी ओर!" अजय चिल्लाया।
रिया ने तुरंत दिशा बदली और अपनी ऊर्जा से एक बर्फीली दीवार बनाई — कई सैनिक उसमें फंसकर चीखने लगे।
गुरुदेव दूर से देख रहे थे। उनका मन चिंतित था:
"अब भी इन दोनों में वह समरसता नहीं आई जो चाहिए। जब तक मन और शक्ति का समन्वय नहीं होगा, इनकी ऊर्जा अधूरी रहेगी।"
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कुशान का आक्रमण
अपनी सेना को कमजोर पड़ते देख कुशान ने खुद तलवार निकाली।
वह गरजते हुए अजय की ओर बढ़ा।
अजय ने उसे रोकने का प्रयास किया, लेकिन कुशान की शक्ति और गति के आगे वह कुछ पल के लिए असंतुलित हो गया।
कुशान ने वार किया — अजय ने अपनी ऊर्जा से बनी ढाल से उसे रोका।
"ये खेल नहीं है!" कुशान गरजा।
"हां, ये न्याय की लड़ाई है," अजय ने शांत लेकिन दृढ़ स्वर में उत्तर दिया।
उधर, रिया भी पूरी ताकत से जूझ रही थी। पर धीरे-धीरे, दोनों की ऊर्जा थकान के सामने झुकने लगी।
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कुशान ने धरती को कंपा दिया। बर्फीली ज़मीन में कंपन होने लगा — अजय और रिया का संतुलन बिगड़ गया।
"गुरुदेव, हमें अब आपकी ज़रूरत है!" रिया ने पुकारा।
गुरुदेव शांत खड़े थे।
"यह तुम्हारी परीक्षा है। अपने भीतर की शक्ति को अब जगाओ। यही तुम्हारा मार्ग है।"
कुशान हँसा,
"अब क्या करोगे? हार मानो, और शक्तिपुंज मुझे दे दो।"
अजय ने गहरी सांस ली और बोला,
"चाहे टूट जाएं, गिर जाएं… लेकिन तुम जैसे राक्षस को ये शक्तिपुंज नहीं देंगे!"
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ऊर्जा का विस्फोट
अचानक, अजय और रिया दोनों की आंखें चमक उठीं।
उन्होंने अपनी सारी शक्ति को समेटा। उनके चारों ओर एक सुनहरी और नीली ऊर्जा की आभा फैल गई।
रिया ने आकाश से बर्फ के विशाल टुकड़े बरसाने शुरू कर दिए, और अजय ने अपनी ऊर्जा को धारदार हथियारों में बदलकर कुशान की ओर फेंकना शुरू किया।
कुशान ने अपनी शक्ति से चट्टानों को चूर किया, लेकिन उसकी चाल धीमी होने लगी।
"तुम्हारी ताकत मेरे अनुभव के आगे कुछ नहीं!" वह चिल्लाया।
रिया गरजी,
"मत भूलो कुशान, हम सिर्फ साधक नहीं हैं — हम नियति के रक्षक हैं!"
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युद्ध जारी था। अजय और रिया
थके जरूर थे, लेकिन झुके नहीं।
कुशान की सेना फिर से हमला कर रही थी।
लेकिन अब लड़ाई केवल शरीर की नहीं, आत्मा की थी — धैर्य, आस्था और बलिदान की।
अध्याय 26 — निर्णायक मोड़
हिमालय की बर्फीली चोटियाँ अब युद्धभूमि बन चुकी थीं। आकाश में काले बादलों की गहराई और बर्फीली हवाओं की तीव्रता, उस घड़ी की गंभीरता को और भी तीव्र बना रही थी। अजय और रिया थक चुके थे — उनकी साँसें तेज़ थीं, शरीर घायल और ऊर्जा क्षीण। लेकिन उनकी आँखों में अब भी साहस की लौ जल रही थी।
सामने खड़ा था कुशान, अपनी विशाल और क्रूर सेना के साथ। और तभी, दूर से आती तलवारों की चमक और भालों की सरसराहट के साथ कालेसैन की सेना भी मैदान में उतर आई।
कालेसैन का प्रवेश
अपने रथ से उतरते हुए, कालेसैन ने गंभीर स्वर में कहा,
"अजय, रिया… ये जो संघर्ष तुम कर रहे हो, उसका कोई अर्थ नहीं। शक्ति उस हाथ में जानी चाहिए जो उसे नियंत्रित कर सके — और वो हाथ मेरा है।"
अजय ने घायल हाथों को ज़मीन पर टिका कर उठते हुए कहा,
"तुम्हारा उद्देश्य केवल अधिकार है, कालेसैन। हम इस शक्ति को ऐसे स्वार्थी हाथों में जाने नहीं देंगे।"
रिया ने कमज़ोर लेकिन दृढ़ स्वर में कहा,
"तुम लोग कभी नहीं समझ सकते कि शक्तिपुंज केवल बल नहीं, संतुलन का प्रतीक है। यही अंतर है हम में और तुम में।"
कालेसैन हँसा, "नियति वही है जो ताकतवर लिखता है। और आज, तुम्हारी नियति मैं तय करूँगा।"
युद्ध का प्रारंभ
कुशान और कालेसैन की सेनाओं ने एक साथ हमला बोल दिया। अजय और रिया ने एक बार फिर अपनी ऊर्जा को एकत्रित किया — मन ही मन गुरुदेव के दिए मंत्रों को दोहराते हुए। बर्फ पिघलने लगी, और उनके शरीर से ऊर्जा की तरंगें निकलने लगीं।
रिया ने हवा में बर्फ को समेटा और उसे धारदार टुकड़ों में बदल कर दुश्मनों पर छोड़ दिया। अजय ने अपनी हथेलियों से ऊर्जा की तरंगें छोड़ीं, जो कुशान के सैनिकों को दूर फेंकती चली गईं। एक क्षण के लिए मैदान पर संतुलन बना… परंतु शत्रु संख्या में अधिक थे, और हर दिशा से वार हो रहे थे।
थकान और टूटती उम्मीदें
अजय ने एक नज़र रिया पर डाली — वह लहूलुहान थी, लेकिन अब भी डटी हुई।
"रिया," उसने हाँफते हुए कहा, "मुझे नहीं लगता, हम इसे रोक पाएँगे।"
रिया ने उसकी आँखों में देखा, "अजय, अगर हम आज हार गए… तो अंधकार हमेशा के लिए विजयी हो जाएगा। हम नहीं रुक सकते।"
कुशान की क्रूरता
कुशान तलवार लिए उनके करीब आया और गरजा,
"बहुत हुआ तुम्हारा तमाशा! शक्तिपुंज अब मेरा होगा — और तुम दोनों इतिहास!"
अजय और रिया ने एक बार फिर मिलकर उस पर वार किया, लेकिन कुशान की शक्ति के आगे वे बेबस थे। एक तीव्र प्रहार ने दोनों को ज़मीन पर गिरा दिया। चारों ओर शत्रु सैनिकों ने उन्हें घेर लिया।
"तो… यही अंत है?" रिया ने धीरे से पूछा।
"शायद… लेकिन हम अपनी आखिरी साँस तक कर्तव्य निभाएँगे।" अजय की आवाज़ में अब भी एक चिंगारी बाकी थी।
अंतिम प्रयास
एक बार फिर दोनों ने अपनी ऊर्जा को समेटा — इस बार अपने भीतर की सबसे गहरी शक्ति को जागृत करते हुए। अजय की हथेलियों से ऊर्जा विस्फोट हुआ, जिससे चारों ओर बर्फ उड़ने लगी। रिया ने हवा में उड़ते हुए ऊर्जा की ढाल बनाई, जो शत्रुओं को पीछे धकेलने लगी।
पर दुश्मन बहुत अधिक थे। थोड़ी ही देर में वे फिर ज़मीन पर गिर पड़े। कुशान और कालेसैन अब उनके सामने खड़े थे — विजयी मुस्कान लिए।
कालेसैन बोला,
"खेल खत्म… अब शक्तिपुंज हमारा है।"
अजय और रिया ने एक-दूसरे की तरफ देखा। उनकी आँखों में दर्द था — लेकिन हार नहीं। यह सिर्फ एक अंत नहीं था — यह उस अगले अध्याय की शु
रुआत थी, जो उनके भीतर की अग्नि को जागृत करने वाला था।
अध्याय 27: भीषण युद्ध की पुकार
धूप की आखिरी किरणें पहाड़ों के पीछे छिप चुकी थीं। बर्फ़ीली हवा उनकी हड्डियों तक चुभ रही थी, और चारों ओर का सन्नाटा युद्ध से पहले की चेतावनी जैसा लग रहा था।
अजय और रिया… लड़खड़ाते कदमों के साथ चल रहे थे। उनके चेहरे पर थकावट की रेखाएँ थीं, कपड़े फटे हुए और ज़ख्मों से लथपथ थे।
रिया धीरे-से बोली,
"अजय... कितना और चलना है यार? मेरी साँस भी जवाब दे रही है..."
अजय रुका, थोड़ा मुस्कराया,
"तू जब तक सवाल पूछ रही है, समझ ले... जिंदा है। चल, रुकना मना है हमारे लिए।"
दोनों एक पत्थर पर बैठ गए। थोड़ी देर की शांति थी, पर तभी ज़मीन से कंपन और हल्की आवाज़ें आने लगीं — जैसे घोड़े दौड़ रहे हों, या कोई सेना पास आ रही हो।
रिया (चौंककर): "अजय... ये फिर से कुशाण के लोग तो नहीं?"
अजय (तेज़ी से खड़ा होते हुए): "नहीं... देख वहाँ — वो देव है! और... विक्रम भी!"
घोड़े की पीठ पर शान से बैठे देव ने मुस्कुराकर कहा,
"धैर्य रखो, साथीगण! अब यह युद्ध अकेले नहीं लड़ना पड़ेगा!"
अजय की आंखों में राहत की आभा थी। उसने विक्रम की ओर देखकर कहा,
"तुम लोग टाइम पे आए हो... वरना रिया ने मुझे खींचते-खींचते मार ही देना था।"
रिया (हँसते हुए): "तू बच गया... अभी तो लड़ाई बाकी है!"
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कुशाण और देव का आमना-सामना
और तभी, काले घोड़े पर सवार कुशाण अपनी सेना के साथ मैदान में उतरा। उसकी आँखों में आग थी।
कुशाण (गरजते हुए):
"मूर्खों! तुम समझते क्या हो? यह शक्ति, यह युद्ध — मेरी मुट्ठी में है! तुम्हारी नीयत चाहे जितनी पवित्र हो, मैं उसे रौंद दूँगा!"
देव (गंभीर स्वर में):
"कुशाण, शक्ति जो स्वार्थ पर टिकी हो, वह रेत की दीवार है। हम धर्म की धरती पर खड़े हैं, और सत्य की रक्षा हेतु यह जीवन अर्पण है।"
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कालसेन और तोमार की टकराहट
युद्धभूमि के दूसरी ओर कालसेन और तोमार आमने-सामने खड़े थे।
कालसेन (क्रोध से):
"तोमार! तेरी संधियाँ और चालें तुझसे अधिक किसी को हानि न देंगी। तुमने जो राह चुनी, वह विनाश का द्वार है।"
तोमार (धैर्य से):
"यदि मेरा विनाश धर्म की रक्षा में हो, तो वह गौरव है, लांछन नहीं। और तेरी राह... अंधकार की है, जो स्वयं तुझको निगल जाएगी।"
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गुरुदेव का प्रकट होना
अचानक, एक तेज़ प्रकाश के बीच गुरुदेव वहाँ प्रकट हुए। उनके चारों ओर ऊर्जा की लहरें घूम रही थीं।
गुरुदेव (शांत स्वर में):
"अजय… रिया… अब समय आ गया है। अपने भीतर देखो — जहाँ शस्त्रों से अधिक तेज़, मन से अधिक दृढ़, आत्मा की शक्ति छिपी है। वही शक्ति तुम्हारा उत्तर है।"
अजय और रिया ने एक-दूसरे की आँखों में देखा। अब डर नहीं था। अब सिर्फ भरोसा था।
अजय (धीरे से):
"Ready?"
रिया:
"Born ready."
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महायुद्ध प्रारंभ
युद्ध आरंभ हो चुका था।
अजय ने ज़मीन पर अपना हाथ मारा — और वहां से एक उर्जा की लहर निकली, जो कुशाण की सेना को धक्का दे गई।
रिया ने अपनी हथेली उठाई — और एक बर्फ़ीला तूफ़ान बनाकर हवा में तीर बरसा दिए।
शत्रु चारों ओर बिखरने लगे, लेकिन वे अनगिनत थे। अजय की साँसें तेज़ हो रही थीं, रिया के हाथ काँपने लगे थे।
रिया (थकते हुए):
"अजय... कितनी देर और...?"
अजय (गंभीर):
"जब तक जीत नहीं मिलती। अभी नहीं रुक सकते।"
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अंतिम विश्वास
एक पल के लिए दोनों थम गए। उनकी साँसें टूट रही थीं। लेकिन फिर, उन्होंने एक-दूसरे का हाथ पकड़ा।
अजय:
"हमारी ताकत... हमारी सोच है, हमारा साथ है।"
रिया:
"और ये दुनिया नहीं जानती... कि जब हम साथ होते हैं, तो असंभव कुछ नहीं रहता।"
अचानक, उनके शरीर से एक चमकती हुई संयुक्त ऊर्जा निकली — प्रकाश की एक दीवार बनी, जो शत्रु की सेना को पल भर में ध्वस्त कर गई।
गुरुदेव ने देखा, और कहा,
"अब युद्ध संतुलित हुआ है। अब निर्णय समय करेगा — पर तुमने अपने भीतर की शक्ति को पहचान लिया है। यही जीत की असली शुरुआत है।"
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अध्याय का अंत — एक नवयुग की आहट
अब अजय और रिया केवल योद्धा नहीं थे,
वह ऊर्जा बन चुके थे। एक विचार, एक लहर, जो युग बदल सकती थी।
🌑 अध्याय 28 — महासमर का अंतिम स्वर
चारों ओर धुआँ था… और धुआँ था उन स्वप्नों का, जो कभी भविष्य बन सकते थे।
ज़मीन पर रक्त बह रहा था — और वो रक्त सिर्फ शरीरों का नहीं, भावनाओं का भी था।
अजय और रिया, दोनों एक-दूसरे के सहारे खड़े थे। उनका शरीर टूटा था, लेकिन आत्मा अब भी जाग रही थी।
युद्धभूमि पर अब केवल कुछ ही चेहरे बचे थे — गुरुदेव, देव, विक्रमादित्य, तोमार, और कालसेन… साथ ही वो छाया जो कभी कुशाण था… और अब उसका भविष्य भी वहीं आ खड़ा हुआ था।
शांति का एक भ्रमपूर्ण क्षण था — उस सन्नाटे जैसा जो किसी तूफान से ठीक पहले आता है।
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⚔️ कालसेन का शक्तिपुंज और समय का ठहराव
कालसेन ने अपनी हथेली खोली — और उसमें से निकल आया तीसरा शक्तिपुंज।
वह चमक रहा था, जैसे सूर्य की आत्मा उसमें बंद हो।
कालसेन (विचलित कर देने वाली शांति में):
"यह अंतिम सूत्र है समय का… अब इसे छिन लेना कोई भी नहीं चाहेगा। मैं नहीं छोड़ूँगा वो अवसर, जो समस्त युगों को मेरी मर्ज़ी पर नचाए।"
गुरुदेव आगे बढ़े, पर कालसेन की शक्ति अब समय को मरोड़ रही थी। हवा थमी, ध्वनि ठिठकी, और पल ठहर गए।
पर तभी…
अजय और रिया, एक चमकती हुई उर्जा के साथ हवा में उड़े —
और कालसेन से शक्तिपुंज छीन लिया!
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🗡️ कुशाण का अंतिम वार
पर जैसे ही विजय उनके हाथ में लगी…
कुशाण ने अंधकार में तलवार घुमा दी — और वह सीधी रिया की ओर आई!
रिया (चौंकती हुई):
"अजय!"
पर उसने हार नहीं मानी — उसने अपनी बर्फीली शक्ति से समय पर एक ढाल बना दी।
तलवार ढाल से टकराई, और एक भयंकर गूंज हुई।
रिया (दाँत भींचकर):
"This guy just doesn't quit!"
अजय (गुस्से से):
"Enough!"
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🔥 अजय का विकराल रूप
अजय की आँखों में ज्वाला थी। अब वह केवल योद्धा नहीं था — वह एक जीवित ज्वालामुखी था।
उसने ज़मीन पर मारा — और वहाँ से ऊर्जा की एक दीवार उठी।
हर प्रहार के साथ उसका क्रोध, उसका दुःख, और उसका प्रेम उभरता जा रहा था।
देव (धीर स्वर में):
"प्रत्येक योद्धा की असली शक्ति उसके क्रोध में नहीं, उसके उद्देश्य में होती है। अजय ने अब उस उद्देश्य को पा लिया है।"
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❄️ गुरुदेव की अंतिम चाल
गुरुदेव ने अपना त्रिनेत्र खोला — और कुशाण को बर्फ़ की जेल में क़ैद कर दिया।
कुशाण चीख़ता रहा, पर अब समय निकल चुका था।
गुरुदेव (निशब्द स्वर में):
"अब विश्राम करो, कुशाण। यह अग्नि अब युगों तक शांत रहेगी।"
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🩸 अंतिम टकराव: अजय बनाम कालसेन
अब केवल एक शत्रु शेष था — कालसेन।
अजय उसके सामने आया — उसकी आँखों में आँसू थे, पर हाथों में आग।
अजय (धीमे स्वर में):
"तूने जो छीना... वो केवल शक्ति नहीं थी, वो हमारे लोग थे, हमारा विश्वास था। अब तुझे जवाब मिलेगा — हर एक आह का।"
अजय ने प्रहार शुरू किए — इतने तेज़, कि हवा चीख उठी।
कालसेन जवाब देता रहा — पर अब वह भी थक चुका था।
अंततः वह अजय के अंतिम प्रहार से ज़मीन पर गिरा।
कालसेन (आखिरी साँसों में):
"शायद… मैं भी… सच्चाई से भाग रहा था..."
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🌌 विराम के बाद का मौन
युद्ध समाप्त हुआ।
देव पीछे हटे। तोमार ने सिर झुकाया।
गुरुदेव मौन साधे, अपने त्रिशूल को ज़मीन में गाड़ चुके थे।
अजय, खून से लथपथ, टूटे हुए, अब भी खड़ा था।
रिया धीरे-से उसके पास आई,
उसके कंधे पर हाथ रखा, और कहा:
रिया (धीरे, कोमल स्वर में):
"तुमने सही किया, अजय। सबके लिए... मेरे लिए। तुमने हमें बचा लिया।"
अजय की आँखों में आँसू थे।
अजय:
"लेकिन क्या वाकई? इतनी जानें गईं… सिर्फ ताक़त की लालच में। मैं अब क्या करूँ, रिया?"
रिया (धीरे से मुस्कुराते हुए):
"तू वही करेगा जो हमेशा करता है — टूटा हुआ होकर भी सबसे पहले खड़ा होगा।"
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💫 नया प्रारंभ
अजय ने आकाश की ओर देखा — अब वहाँ तारे चमक रहे थे।
कोई प्रकाश नहीं था, फिर भी सब कुछ दिख रहा था।
उसने रिया का हाथ पकड़ा —
और एक नई राह की ओर चल पड़ा।
यह युद्ध था,
पर यह शांति का जन्म भी था।
✨ अध्याय 29 — अंतिम यज्ञ
युद्ध भूमि पर अब सन्नाटा पसर चुका था।
वो शोर, वो चीत्कारें, वो प्रहार… अब बस एक मूक कहानी बन चुके थे, जो वीरता और विनाश की गवाही दे रहे थे।
चारों ओर बस शव थे — वीरों के, दानवों के, और शायद सपनों के भी।
जिन्होंने इस युद्ध को जन्म दिया था, अब वे अंतिम सांसें ले रहे थे।
अब वहां खड़े थे सिर्फ कुछ ही लोग —
अजय, रिया, गुरुदेव, कुशान, कालसेन, देव, विक्रमादित्य, तोमर…
और वो रहस्यमय छाया — भविष्य का कुशान, जिसकी आँखों में समय का भार दिखता था।
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🌀 कालसेन की अंतिम चाल
कालसेन ने अपने कंधे से झटके से तीसरा शक्तिपुंज निकाला।
वो उसके हाथ में एक धधकते हुए सूर्य की तरह चमक रहा था।
उसने उसे हवा में घुमाया… और समय थम गया।
हर धड़कन ठहर गई,
हवा रुक गई,
और सूर्य की रोशनी तक धीमी पड़ गई।
उस ठहरे हुए पल में, कालसेन आगे बढ़ा…
और गुरुदेव के पास जाकर बाक़ी दो शक्तिपुंज भी छीन लिए।
अब उसके पास थी संपूर्ण शक्ति।
कालसेन (शांत स्वर में, पर घातक आत्मविश्वास के साथ):
"अब यह कथा मेरी इच्छा से पूरी होगी। मैं काल नहीं… अब मैं 'सर्वकाल' हूँ।"
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⚡ अजय-रिया का विद्रोह
लेकिन जैसे ही शक्तिपुंज का प्रभाव ढीला हुआ,
अजय और रिया, एक बिजली की तरह चमके और हवा में उड़ते हुए,
सीधे कालसेन से टकरा गए।
एक क्षण में, वे तीनों हवा में थे —
दूसरे ही पल, अजय और रिया ने शक्तिपुंज उससे छीन लिए।
कालसेन (गुस्से में):
"तुम दोनों क्या समझते हो… यह शक्ति तुम्हें टिकने देगी?"
रिया ( लहजे में):
"We don’t just survive, we fight back!"
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🗡️ कुशान का विश्वासघात
तभी…
एक घातक सन्नाटा टूटा।
कुशान, जो अब तक खामोश था,
अचानक अपनी तलवार खींचता है —
और रिया पर वार करता है।
तलवार रिया के शरीर में धंस जाती है।
रिया (दर्द में चीखते हुए):
"अजय!"
अजय (सिहरते हुए):
"रिया!"
वो लहूलुहान होकर अजय की ओर गिरती है।
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💔 अजय और रिया — अंतिम संवाद
अजय, उसके पास दौड़कर आता है और उसे अपनी बाँहों में भर लेता है।
उसका चेहरा खून से सना होता है, पर आँखों में सिर्फ एक सवाल होता है — "क्यों?"
अजय (कांपती आवाज़ में):
"नहीं रिया… तुम नहीं जा सकती। हमने साथ चलने का वादा किया था… Remember?"
रिया (धीरे-धीरे मुस्कुराते हुए):
"तुम… तुमने मुझे लड़ना सिखाया, अजय। डर से नहीं, प्यार से। और… मैं तुमसे एक वादा करना चाहती हूं…"
अजय (आंसुओं में):
"क्या?"
रिया (धीरे):
"जब तक तुम लड़ोगे… मैं तुम्हारे साथ हूं। हमेशा…"
उसके होंठ कांपते हैं, आँखें धीरे-धीरे बंद हो जाती हैं…
उसकी साँसें थमने लगती हैं… पर उसके चेहरे पर सुकून होता है।
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🔥 अजय का क्रोध — प्रलय बन गया
अजय चुप था… पर उसकी आँखें बोल रही थीं।
वो नहीं चीखा, पर उसकी आग हर दिशा में फैल चुकी थी।
वो खड़ा हुआ — रक्त और आँसुओं से सना हुआ।
उसने तलवार उठाई… और ज़मीन पर एक वार किया।
धरती कांप गई।
देव (धीमे स्वर में):
"अब यह लड़ाई किसी के लिए नहीं… यह एक आत्मा की पुकार बन चुकी है।"
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⚔️ अजय बनाम कालसेन — अंतिम द्वंद्व
कालसेन (घबराकर):
"तुम अब भी सोचते हो कि तुम मुझे हरा सकते हो?"
अजय (आँखों में जलती हुई रोशनी के साथ):
"मैं नहीं… रिया की आत्मा तुम्हें हराएगी। अब यह मेरी नहीं, उसकी लड़ाई है।"
अजय के वार अब और तेज़ हो गए थे।
हर वार के साथ उसकी आँखों में रिया की तस्वीर कौंधती थी —
उनका साथ, उनका सपना, और… उसका अंतिम वादा।
कालसेन पीछे हटने लगा।
आखिरकार,
अजय ने एक जोरदार प्रहार किया —
और कालसेन धराशायी हो गया।
अजय (धीरे से, रिया के नाम लेकर):
"ये… तुम्हारे लिए था।"
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अजय वापस रिया के पास आया।
उसने
उसे फिर से अपनी गोद में लिया, और आकाश की ओर देखा।
"तुम चली गई हो… पर मैं जानता हूँ, तुम यहीं हो। अब जब भी मैं लड़ूंगा… तुम मेरी ताकत बनोगी।"
✨ अध्याय 30 — समय रक्षक
अजय, रिया के पास चुपचाप बैठा था।
उसकी आंखों में वो मौन वेदना थी, जो किसी तूफान के बाद की शांति जैसी लगती है।
रिया, जो अब तक स्वयं को एक योद्धा मानती थी, थक चुकी थी। उसकी आँखों में गहराई थी, और अधरों पर अधूरी कहानियाँ।
एक लंबी साँस लेकर अजय ने धीमे, पर स्पष्ट स्वर में कहा —
"रिया… मैंने तुम्हें कभी बताया नहीं… पर मैं तुम्हें हमेशा सिर्फ एक दोस्त नहीं, एक एहसास की तरह महसूस करता रहा हूँ।"
"I love you."
इन शब्दों में न कोई नाटकीयता थी, न कोई प्रदर्शन —
बस एक सच्चा स्वीकार, जैसे आत्मा ने पहली बार खुद को पहचान लिया हो।
रिया की आँखों से एक बूँद आँसू गिरी —
न कमज़ोरी में, बल्कि इस अहसास के बोझ से जो अब अचानक हल्का लगने लगा था।
अजय ने उसका हाथ थामा।
"तुमसे ये कहने में जितना वक्त लग गया, शायद उससे ज़्यादा वक्त मुझे खुद को समझने में लगा," उसने कहा।
इसी क्षण — गुरुदेव का आगमन हुआ।
उनकी उपस्थिति में एक प्रकार की शांति और दृढ़ता थी।
उन्होंने अजय के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा —
"तुम्हारा प्रेम ही तुम्हारी सबसे बड़ी शक्ति है, अजय। लेकिन अब समय तुम्हें पुकार रहा है।"
"समय?" अजय ने प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा।
"हां," गुरुदेव बोले, "तुम्हें वह क्षण बदलना है जहां रिया की नियति तय हुई थी। शक्ति-पुंज तुम्हारे पास हैं — तुम्हारे प्रेम की तरह शुद्ध, और तुम्हारे हृदय की तरह तेज़।"
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🕰️ अतीत का परिवर्तन
अजय ने एक शक्तिपुंज को सक्रिय किया, और समय की धारा में प्रवेश कर गया।
वो क्षण सामने था —
कुशान, तलवार लिए रिया की ओर बढ़ रहा था।
पर इससे पहले कि वह वार कर पाता —
अजय ने उसकी ही तलवार को उसकी ओर मोड़ दिया।
एक झटके में, कुशान धराशायी हो गया।
समय की धारा बदल गई।
अजय फिर से वर्तमान में लौट आया।
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❤️ रिया, पुनर्जीवित
रिया अब होश में थी।
थकी, लेकिन जीवित।
उसने धीमे से आँखें खोलीं और सामने अजय को देखकर मुस्कुराई।
"तुमने… क्या किया?" उसने पूछा।
"जो करना ज़रूरी था," अजय बोला।
"मैंने तुम्हें खोने का डर देखा था, रिया… और अब तुम्हें हमेशा के लिए पाना चाहता हूँ, तुम्हारे साथ हर समय में चलना चाहता हूँ।"
पर तभी, कुछ असामान्य हुआ।
तीनों शक्ति-पुंज अचानक टूटने लगे।
और फिर, विस्फोट के साथ…
उनकी समस्त ऊर्जा अजय के शरीर में समा गई।
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🔥 समय रक्षक का जन्म
गुरुदेव आगे आए।
उनकी आँखों में गर्व था।
"समय ने तुम्हें स्वीकार किया है, अजय। अब शक्ति-पुंज तुम्हारे भीतर हैं।
तुम अब केवल योद्धा नहीं, ‘समय रक्षक’ हो — समय के संतुलन का संरक्षक।"
अजय ने आँखें बंद कीं, और महसूस किया —
हर वह क्षण, हर वह स्मृति, हर वह बलिदान जो उसे इस मोड़ तक लाया था।
"मैं समझ गया हूं, गुरुदेव," उसने कहा।
"अब मेरा कर्तव्य सिर्फ अतीत को सुधारना नहीं, भविष्य को संवारना भी है।"
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🚪 घर वापसी
अजय ने रिया की ओर देखा।
"अब चलें? अपने समय में?"
रिया मुस्कुराई, "अब वहाँ भी जीने का कारण है… तुम्हारा साथ।"
गुरुदेव, देव और विक्रमादित्य से विदा लेकर,
अजय और रिया ने गुफा से होकर समय की धारा में प्रवेश किया।
2025।
केदारनाथ।
अजय और रिया अपने माता-पिता के सामने खड़े थे।
माँ ने गले लगाकर पूछा —
"इतनी देर कहां थे?"
अजय ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया —
"बस कुछ यादों को कैमरे में कैद करने गए थे…"
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🕊️ अंत… या एक नई शुरुआत?
उनकी ज़िंदगी अब सामान्य थी।
पर एक बात अब भी रिया के दिल में गूंज रही थी —
"I love you."
शायद यही एक बात थी जो 10,000 सालों से बदलते समय को भी नहीं बदल सकी थी।
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🎬 पोस्ट-क्रेडिट सीन
अजय, अपने कमरे में पढ़ाई कर रहा था।
अचानक —
हवा में एक हलचल हुई।
और फिर — एक त्रिकोणाकार अंतरिक्ष यान उसके सामने प्रकट हुआ।
"क्या यह एक नई यात्रा की शुरुआत है?"
उसने मन ही मन सोचा…
और मुस्कराया।
"समय कभी थमता नहीं… और अब मैं भी नहीं।"
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📘 समाप्त — पर यात्रा अभी जारी है…
*****अंत ही आरंभ है***********