शाम का वक्त था। हल्की बारिश की बूंदें रेस्टोरेंट की खिड़कियों पर धीमे-धीमे गिर रही थीं। चारों तरफ एक ठंडी उदासी छाई हुई थी। रेस्टोरेंट के कोने की एक टेबल पर बैठी थी आयात — एक 24 साल की मासूम, सीधी-सादी, दिल से बहुत गहरी लड़की। उसके सामने दो कप कॉफी रखे थे , एक उसके लिए , और दूसरा उसके मंगेतर कुणाल के लिए।
हर मिनट घड़ी की सुई के साथ उसके दिल की धड़कनें तेज़ होती जा रही थीं। फोन बार-बार चेक कर चुकी थी, लेकिन कोई मैसेज , कोई कॉल , कुछ नहीं।
आज उसका जन्मदिन था। और साथ ही कुणाल ने वादा किया था कि आज वो उसे सबसे खूबसूरत तोहफा देगा उसकी उँगलियों में एक सगाई की अंगूठी।
लेकिन दो घंटे बीत चुके थे और वो नहीं आया।
"आयात का मन एक टूटते बादल जैसा था — जिसमें हर भावना एक गड़गड़ाहट बन चुकी थी। उसकी डायरी उसकी मेज़ पर खुली पड़ी थी।
उसमें कुछ अधूरे शब्द लिखे थे:
"कभी-कभी लोग वादा नहीं तोड़ते, वो बस खुद को बदल लेते हैं..."
"और बदल जाना, सबसे खौफनाक धोखा होता है..."
आयात की आँखों में पानी था, लेकिन वो आँसू नहीं बहा रही थी। क्योंकि वो जानती थी कुछ रिश्ते इतने चुपचाप खत्म होते हैं कि आँसुओं का भी कोई मतलब नहीं रहता।
उसने पिछले एक साल में कुणाल से जितना प्यार किया था, शायद खुद से भी उतना नहीं किया। कॉलेज के दिनों में मिले थे दोनों। आयात की कहानियों पर कुणाल मरता था। वो उसकी मुस्कान का दीवाना था। और आयात वो कुणाल की हर बात पर यकीन कर बैठी थी।
लेकिन पिछले कुछ हफ्तों से सब कुछ बदल गया था।
कुणाल देर से जवाब देने लगा था, कॉल्स मिस करता, और जब भी मिलते उसका चेहरा अजनबी लगता...आयात ने समझा, शायद काम का दबाव होगा। शायद वो थका हुआ होगा।
लेकिन आज... आज जो हुआ, वो सब कुछ साफ कर गया।
शाम के सात बज चुके थे। रेस्टोरेंट के कोने में लाइट धीमी हो चुकी थी। उसके सामने रखा कुणाल का कॉफी कप अब ठंडा हो गया था।
वेटर तीसरी बार आकर पूछ चुका था, “मैम, क्या आप कुछ और चाहेंगी?”
आयात ने धीमे से सिर हिलाया, “नहीं... बस थोड़ा और रुकना है।”
फिर उसने अपना फोन उठाया और कुणाल को एक आख़िरी बार कॉल किया।
"The number you are trying to reach is switched off..."
ये सुनते ही जैसे दिल की दीवार टूट गई।
अंदर की आवाज़ अचानक बोल पड़ी..."आयात, तुमने फिर भरोसा कर लिया ना? फिर उसी इंसान पर, जिसने पिछले कुछ महीनों में तुम्हें छुपकर तकलीफ़ दी थी।"
"तुम तो writer हो? तुम तो कहानियों में धोखे पहचान लेती हो? लेकिन अपनी ज़िंदगी में क्यों नहीं?"
उसने धीरे से डायरी बंद की। आँखों से एक चुप आँसू गिरा।
तभी उसके सामने एक छोटी सी बच्ची अपनी माँ का हाथ थामे वहाँ से गुज़री।
बच्ची माँ से पूछ रही थी — "मम्मा, प्यार करने वाले झूठ क्यों बोलते हैं?"
माँ बोली — "क्योंकि उन्हें सच्चाई का सामना करने की हिम्मत नहीं होती बेटा..."
वो एक जवाब आयात के दिल में तीर बनकर चुभा। रात हो चुकी थी। रेस्टोरेंट धीरे-धीरे खाली होने लगा था। बाहर बारिश अब तेज़ हो चुकी थी।
आयात उठी, अपनी डायरी उठाई, और बाहर निकल आई।
उसका जन्मदिन उसका इंतज़ार और वो इंसान — तीनों ही अधूरे रह गए।
सड़क पर चलते हुए, बारिश उसके बालों से फिसलती रही। लेकिन आयात के चेहरे पर अब कोई भाव नहीं था। न गुस्सा, न शिकायत, सिर्फ़ एक गहरी चुप्पी।
"शायद कुछ लोग प्यार नहीं करते बस तुम्हें किसी और से दूर रखने के लिए पास आते हैं"...उसने मन ही मन सोचा।
घर पहुँचकर, उसने गीले कपड़े बदले। कमरे में अंधेरा था, सिर्फ़ खिड़की से आती बिजली की चमक उसकी दीवारों पर कविताएं लिख रही थी।
उसने अपना लैपटॉप खोला। एक नई फ़ाइल बनाई और टाइटल डाला: "वो जो कभी आया ही नहीं"
वो लिखने बैठ गई — अपने दिल की टूटन को, अपने इंतज़ार की कहानियों को।
हर शब्द जैसे उसके आँसुओं की भाषा बन गया।
आयात एक writer थी। और writers कभी टूटकर नहीं बिखरते। वो खुद को शब्दों में समेट लेते हैं।
उसी रात उसने पहली बार लिखा कि प्यार कैसा लगता है जब वो तुम्हें छोड़ देता है।
और तब... उसके दिल में कहीं एक हल्की सी आवाज़ आई...."तुम्हारा सफ़र अभी शुरू नहीं हुआ है, आयात! तुम अभी किसी और के लिए लिख रही हो कोई ऐसा, जो तुम्हारे टूटे पन्नों को अपना घर बना लेगा..."
अगले दिन...
वो उसी रेस्टोरेंट गई... लेकिन आज उसे कोई और दिखा एक लड़का जो वहाँ अकेला बैठा पियानो बजा रहा था जिसकी धुनें उसके शब्दों से मेल खा रही थीं।