Happiness is lost in blood in Hindi Short Stories by Harish kumar books and stories PDF | खुशियाँ खून में बह गयी

Featured Books
Categories
Share

खुशियाँ खून में बह गयी

"खुशियां खून में बह गयी"

 
बात वर्ष 2000 की है, जब "गीता" नाम की लड़की की शादी मां-बाप बड़े ही धूमधाम से करते हैं। मां-बाप बहुत ही खुश होते हैं क्योंकि उन्हें एक होनहार, स्वभाव से अच्छा "लड़का" मिल जाता है। जोकि "गीता" से बहुत प्रेम करता है। शादी के लगभग एक वर्ष बीत जाने के उपरांत इस "कहानी" का आगाज होता है, जब वर्ष 2001 में "गीता" प्रसव-पीड़ा से गुजर रही होती है। (यह कहानी वर्ष 2001 की एक "सत्य" घटना पर आधारित है। सभी पात्र "वास्तविक" है परंतु उनके नाम बदलें गए हैं। संवाद लेखक की "कल्पना"पर आधारित हैं।


गीता.. प्रसव-पीड़ा जेल रही है... 
  
प्रताप.. दो दिन पहले भी यही हाल हुआ था...

परंतु तुम ठीक हो गई थी...

गीता... परंतु आज बहुत ज्यादा "पीड़ा" हो रही है....

प्रताप... अगर तुम चाहो...तो "दाई" को बुला लाउ...

.. तुम बताओ...अगर ज्यादा पीड़ा हों तो अभी बुला लाता हूँ...

गीता.. हाँ..

पीड़ा तो बहुत है...

...पर पता नहीं...

प्रताप... पर पता क्या नहीं???

...बताओ तो ...

गीता.... कुछ बताने वाली हालत नहीं है...

....मेरी जान निकल रही है...

 प्रताप... तुम इस स्थिति में भी कुछ स्पष्ट बात नहीं कर रही हो....

...ऐसे मामलों में ज्यादा देरी अच्छी नहीं...

प्रताप...सीधा चला जाता है। 

दाई.... क्या हुआ.. 

इतनी सास क्यों फूली है..??

.. सब ठीक तो है..

 प्रताप... चलना दाई.. 

गीता को बहुत ज्यादा "पीड़ा" हों रही है...

दाई... अभी परसो ही तो देख आयी थी.. 

अभी समय लगेगा.. 

 प्रताप... ना दई... ना...

गीता की तबीयत ठीक नहीं है.. 

..मेरे साथ चलना पढ़ेगा अभी...

दाई.. चलती हूँ...

तुम मानते ही कहा हों...??

प्रताप और दाई कुछ ही देर में पहुंच जाते हैं...

गीता बहूत तेज़ दर्द में थी, दाई अन्दर जाती है.. थोड़ी देर में प्रताप की भाभी बाहर आती हैं..

भाभी... प्रताप को मुबारक हों...

 मुबारक हों सब को... 

लड़का हुआ है... 

प्रताप...खुशी के आँखों से आंसू...ज़ुबान से कुछ शब्द ना निकला..

 यह प्रताप और गीता का पहला बच्चा था, जिस के चलते घर में सब बहुत खुश हुए..  

 बलदेव( प्रताप का बड़ा भाई).. यह मेरे पर ही जाए गा..

 फौजी बनेगा फौजी...

शेर का बच्चा...

 किसी से डरेगा नहीं बड़ा हों के... 

.......हाआआ...


 घर में बहुत ही खुशी का माहौल था। सभी सदस्य बहुत खुश थे.. 

 अगले दिन सुबह.....

प्रताप.... आज तो मैं काम पर नहीं जाऊंगा... 

 
 क्षेत्रपाल (प्रताप का छोटा भाई)...वैसे घर में तो भईया-भाभी हैं....गीता का ख्याल रख लेगे..

... परंतु अब तू कहां जाएगा काम पर...

... बेटे की खुशी काम में कहा मन लगने देगी...

प्रताप... बात मन की भी है... परंतु.... रिश्तेदारो का भी तो आना जाना लगा रहेगा...

..बाहर से कुछ समान लाना होगा तो किसको भेजूंगा....

...मैं अब थोड़े दिन घर ही रहूंगा... जब तक गीता पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो जाए...

क्षेत्रपाल... चलो भाई मैं चलता हूं बहुत देर हो चुकी है.. जय सिया राम..

 क्षेत्रपाल....शाम को मिलते हैं छोटे उस्ताद...


 दिन में हर एक रिश्तेदार बधाई देने के लिए आ रहा था। पूरे घर में खुशी का माहौल था। खूब पताशे बाँटे जा रहे थे। दिन अच्छा बीता..

 क्षेत्रपाल दिनभर मेहनत मजदूरी करके शाम को घर लौटता है। चेहरे पर उदासी,
 कुछ खोया-खोया सा, माथे पर चिन्ताओं की लकीरें साफ झलक रही थी, 

बलदेव ( प्रताप और क्षेत्रपाल का बड़ा भाई, रिटायर फौजी )
 
आज ज्यादा काम था क्या?? थके हारे लग रहे हों।

 क्षेत्रपाल... भईया तुम्हें पता है। काम की मुझे कोई चिंता नहीं, इस जवानी में थोड़े बहुत काम से क्या थकावट..

 मैं तुम्हारी वजह से ही परेशान हूं.. 

..तुम किसी की सुनते हो नहीं...

...कितनी बार तुम्हें सब बोल चूके हैं। इस अकेली सुनसान जगह का कोई भरोसा नहीं.. कब क्या हो जाए...

... परंतु तुम मानते ही कहां हो...

 आज रात (&#* शहर) में फिर उग्रवादियों ने कई लोगों को मार दिया है.. 

 उग्रवाद दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। परंतु तुम शाम को पीकर बे-खौफ रहते हो... 

बलदेव... फौज का राशन खाया है.. जब तक मैं हूं तुम्हें कुछ नहीं होगा... पता नहीं तुम सब क्यों डरते हों.. 

 प्रताप....भैया तुम्हारा बस एक ही कहना होता है जब तक मैं हूं, जब तक मैं हूं.. 

... आखिर तुम क्या कर लोगे.. आंतकवादियों  के आगे किसी की चली है.. 

...यह सुमसान जंगल...बिजली के 4/4 घंटे ना आने पर घोर अंधेरा...

...खौफनाक रात...

... हम पूरी तरह अपने गांव से कट चुके हैं.. 

...अगर बीच में यह पहाड़ी ना होती तो हमें कोई खतरा नहीं था। परंतु इस पहाड़ी के चलते गांव एक तरफ और हम एक तरफ...

बंदु ( बलदेव की पत्नी)... हमारे भी छोटे-छोटे बच्चे हैं.. अब प्रताप का भी एक बच्चा है... और किसी के खातिर नहीं सही,इन बच्चों के खातिर ही अब हमें नीचे अपनी जमीन में नया घर बनाना चाहिए...

 हर रोज कुछ नया सुनने को मिलता है.. निर्दोष मारे जा रहे हैं.. हम पूरे गांव से कटे हैं.. न जाने किस दिन क्या हो जाएगा??? 

 बलदेव.."मैंने फौज का राशन खाया है"। जब तक मैं हूं तब तक तुम्हें कुछ नहीं होगा...तुम सभी बिना कारण डर-डर के जिंदगी जी रहे हो...

एक तरफ जहां घर में खुशी का माहौल था,वहीं दूसरी ओर बढ़ते आंतकवादी घटनाओं के चलते और एक अकेली जगह घर होने के कारण इस परिवार में हमेशा नए घर को लेकर विवाद बना रहता था.....

 बहुत दिनों तक यह विवाद यूं ही जारी रहा... परंतु जब आंतकवादी घटनाए दिन प्रतिदिन बढ़ने लगी, तब एक दिन बलदेव को भी यह बात समझ आने लगी की छोटे-छोटे बच्चे, वेहरान जगह, घर में कलह क्लेश... 
 तब बलदेव ने अपने दोनों भाइयों को बुलाया... 

प्रताप... बोलिए भैया....
..आज सुबह-सुबह क्या काम पड़ गया...

 क्षेत्रपाल.. काम तो भैया को सुबह ही पड़ेगा...

...शाम को होश ही कहां ????

प्रताप... भैया थोड़े होश में सोया करो...

... यहां के हालातो से तुम भली-भांति परिचित हो.. 

 क्षेत्रपाल.... भैया केवल दिन में ही होश में हो सकते हैं.....
.. शाम पढ़ते ही इनको जोश आ जाता है... 

बलदेव... तुम दोनों ही मुझे सुना लो पहले...

... बुलाया तुम दोनों को मैंने था.. 
परंतु ऐसा लग रहा है, जैसे तुम दोनों ने मेरी क्लास लेने के लिए बुलाया हों...

प्रताप... भैया बोलिए क्या बात है???

 क्षेत्रपाल... हां-हां बोलिए..

 क्योंकि काम पर भी जाना है...

.... और भईया.. तुम तो इन झाड़ियों से निकलते ही नहीं हो...

... कहीं हम ही मेहनत मजदूरी से दो - चार पैसे जोड़ कर, कहीं नीचे अपना घर बनाएंगे... 

बलदेव... जरा मुंह बंद रखो...

 मैंने तुम दोनों को यही बोलने के लिए बुलाया है, कि हम अगले कुछ दिनों में नए घर का काम लगा लेते हैं... 

प्रताप.. क्या???

 क्षेत्रपाल... सच में मन बना लिया है या शाम को मन बदल जाएगा। 

 बलदेव.. मैंने पूरी तरह मन बना लिया है.. 
हम नीचे अपनी जमीन में जल्दी ही काम लगाएंगे..

... और एक अच्छा घर तैयार करेगे.. 

..मुझे अपनी कोई भी परवाह नहीं,
परंतु दिन प्रतिदिन बढ़ती आतंकवादी घटनाएं देखकर मुझे भी कभी-कभी छोटे-छोटे बच्चों की चिंता होने लगती है... 

...इसलिए मैंने मन बना लिया है...


प्रताप, गीता, बलदेव की पत्नी, क्षेत्रपाल, बलदेव के बच्चे, सभी एकदम खुश हों जाते हैं... 

 प्रताप और गीता के पहले बच्चे के जन्म के चलते और नए घर बनने के चक्कर में घर का माहौल ही अलग बन गया था... सब व्यक्ति घर के एक दम खुश नज़र आ रहे थे ... 

 थोड़े ही दिनों में, नए घर का काम लग जाता है, तीनों भाई मिलकर इस घर को बना रहे हैं। सुबह काम पर चले जाते, शाम को वापस अपने पुराने घर लौट आते.. दूसरे दिन सुबह फिर काम पर चले जाते, यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा। गीता और बलदेव की पत्नी दोनों अपने पति, देवर और मजदूरों के लिए खाना लेकर जाती रही...

.. बच्चे कभी घर और कभी स्कूल चले जाते।

सोनी (बलदेव की 8 वर्ष की बेटी) 

अनिल ( बलदेव का 5 वर्ष का बेटा)

सुनील ( बलदेव का 10 वर्ष का बेटा जो की पूरी तरह स्वस्थ नहीं है)

 एक दिन बच्चे स्कूल ना जाकर घर में ही अपने आंगन में खेल रहे होते हैं। "गीता" और "बंदु" दोनों मजदूरों के लिए खाना लेकर चली जाती हैं।


-बच्चों..क्या कर रहे हो..??

सोनी.. कुछ नहीं....खेल रहे हैं... 

-क्या खेल रहे हो???

सोनी... बस यूं ही... 

 -तुम्हारे पापा और चाचू आजकल कहां होते हैं...??? 

 सोनी...हम नया घर बना रहे हैं

-अच्छा... बहुत अच्छा.. तुम्हारे पापा क्या करते हैं...????

सोनी.. पापा आर्मी में थे अब घर लौट आए हैं..

-मुझे भी तुम्हारे साथ खेलना है... क्या खेल रहे हो????

सोनी.. छुपा-छुपी ...

-वाह... बहुत अच्छा... क्या तुम लोगों ने कुत्ता भी पाल रखा है???

सोनी... ना हमने कुत्ता नहीं रखा है। 

सोनी...अंकल आप कहां से आए हो...

-मैं इधर ही रहता हूं... आपके पड़ोस में, आपने मुझे नहीं देखा है क्या?? 

सोनी... हमने तो आपको कभी नहीं देखा... 

-हाहाहा.. अपने पापा से पूछना वह मुझे अच्छी तरह जानते हैं... 

 अच्छा बच्चों में चलता हूं। कल फिर आऊंगा...

 शाम को प्रताप, क्षेत्रपाल, बलदेव, वह सभी वापस लौट आते हैं...

 आगे बच्चे बहुत खुश होते हैं...

  बंदु (बलदेव की पत्नी).. एक दूसरे को मारा-पीटा तो नहीं.. तुम हमेशा झगड़ते ही रहते हो, 

सोनी.. नहीं हम तो खेलते ही रहे...

...एक अंकल भी आए थे.. वह भी हमारे साथ खेलने लगे...

....हमें तो बहुत अच्छा लगा... 

बंदु... कौन अंकल... 

सोनी... पता नहीं परंतु बोल रहे थे मैं तो इधर ही आपके पड़ोस में रहता हूं और हमारे साथ खूब खेले,हमें बहुत हंसाया... 

बंदु कुछ समय सोचने के उपरांत.. चलो कोई आया होगा......आप ठहरे बच्चे... 

... आपको कहां सभी रिश्तेदार मालूम...

 दूसरे दिन फिर सुबह होते ही सभी मर्द काम पर चले गए, गीता और बंदु दिन में खाना लेकर वह भी चली गई.. जहां यह नया घर बन रहा था, वही गीता के मायके वाले भी पास में ही रहते थे.. इसलिए गीता अपना बच्चा साथ लेकर चली जाती थी.. 



-कैसे हों बच्चों??

अनिल.... सोनी आना,
आज फिर अंकल आए हैं... आज हम फिर खेलेंगे...

सोनी.. अंकल आप आ गये. 

-हाँ... यही है तुम्हारा घर...???

सोनी... हाँ

-यह साथ वाला घर किसका है??

सोनी.. यह मेरे बीच वाले चाचू का...

-और आपका घर तो बहुत अच्छा है....

इस घर में और कौन-कौन रहता है???

सोनी- इस घर में तो हम रहते हैं,...मम्मी,पापा,मैं और मेरे भाई बहन...

...साथ में हमारे सबसे छोटे चाचू भी हमारे साथ ही रहते हैं। 

-बहुत अच्छा.. घर बहुत बड़ा है...

...तुम सब लोगों का अपना-अपना कमरा होगा...

..... तुम सब सोते कैसे हो सब साथ या सभी अलग-अलग...

सोनी.. इस रूम में चाचू सोते हैं....

....बाकी हम सभी दूसरे रूम में सोते हैं...

... यह एक रूम दादू (दादा) का है...

-अच्छा तुम्हारे दादू भी हैं 

सोनी.. हाँ 

-आपके चाचू को मैं जानता हूं वह तो कुत्ते के बड़े शौकीन है कुत्ता रखा होगा उन्होंने... 

सोनी.. नहीं-नहीं.. हमने किसी ने भी कोई कुत्ता नहीं पाला है.. 

 अंकल आप आ जाते हो तो हमें बहुत अच्छा लगता है...

... हम घर में अकेले होते हैं, आप भी हमारे साथ खेलते हो तो हमें बहुत अच्छा लगता है...

-मुझे भी बहुत अच्छा लगता है आप बच्चों के साथ मिलकर...

.... इसीलिए मैं आपको मिलने बीच-बीच में चला आता हूं।

 शाम को सभी फिर घर लौट आते हैं और सभी के चेहरे पर एक खुशी, नया घर बन रहा है बच्चे अपनी खुशी में, उन को पूरा दिन खेलने को मिल जाता है। नया घर बनने के चक्कर में बच्चे स्कूल भी आजकल कम ही जा रहे हैं... 

 एक दिन बलदेव और दोनों भाई घर का काम करके शाम को अपने पुराने घर लौट रहे हैं... तब गांव में सभी लोग इकट्ठा हुए हैं,...

प्रताप.. देखो तो.. सभी लोग क्यों इकट्ठा हुए हैं...

 क्षेत्रपाल.. हुए होंगे किसी अपने काम से हमें क्या? 
इस समय बहुत थकान हो रही है...
अब सीधे घर ही चलते हैं...

प्रताप... हां, 
घर ही चलना है..... परंतु चलते-चलते देख तो ले। क्यों इकट्ठे हुए हैं???

 बलदेव... हां, चलो चलते हैं...

 जैसे ही यह वहां पहुंचते हैं तो देखते हैं कि बढ़ते आंतकवाद को देखते हुए...पुलिस विभाग के कर्मचारी लोगों को अपनी स्वयं की रक्षा के लिए हथियार दे रहे हैं...

वही खड़े गांव के एक आदमी ने कहा... बलदेव तुम तो फौज से रिटायर हुए हो,
तुम्हें हथियार चलाना भी आता है...

तुम क्यों नहीं ले लेते..
...और तुम्हारा हथियार लेना ओर भी जरूरी हो जाता है, तुम्हारा घर भी थोड़ा पहाड़ी के उस तरफ अकेला पड़ता है।

बलदेव.. पूरे जोश और जज्बे के साथ... "फौज का राशन खाया है" मैं अकेला ही काफी हूं,

मुझे राइफल की जरूरत ही क्या?.

.. और अब वैसे भी ज्यादा समय नहीं रह गया है, नीचे घर तैयार होने वाला है। हम भी आप लोगों की बस्ती में आ बसेंगे... 

 क्षेत्रपाल.. चलो घर चलते हैं,

 शुक्र करो भईया जो घर के लिए मान गे, राइफल की तो बात ही रहने दो... 

 तीनों भाई वहां से घर लौट आते हैं...


 एक-एक दिन निकल रहा था. घर का काम अब मुकम्मल होने वाला है.. घर के सभी सदस्य एकदम खुश.. हर सदस्य के मन में यही था कि अब जो समस्या घर की थी, वह भी हल हो गई। अब हम जल्दी ही अपने नए घर चले जाएंगे और खुशी से अपना जीवन गुज़ारे गे... आखिरकार घर तैयार हो गया.. 

प्रताप.... भैया आगे का क्या प्लान है..

बलदेव.. जैसे तुम लोगों की मर्जी, घर तो अब तैयार हो ही गया है...

 क्षेत्रपाल... तुम लोगों की मर्जी.....
कुछ समझ नहीं आया.. 

चलेंगे तो सभी चलेंगे... 

बलदेव.. मैंने कब कहा मैं नहीं जाऊंगा..
बस थोड़े ही दिनों बाद नए साल पर हम वहीं चले जाएंगे...

गीता.. अपने बच्चे के साथ बेहद खुश और ऊपर से घर की खुशी,मानो उसका जीवन ही बदल गया हो... 

गीता.. तेरे आने से घर में कितनी खुशियां आ गई, तू भी आ गया और तुझे नया घर भी मिल गया,यहा रात डर-डर के कटती थी.. 

प्रताप.. मां बेटे की क्या बातचीत हो रही है... दोनों बड़े खुश लग रहे हो...

गीता... खुश क्यों ना हो...
...नया घर भी बन गया और घर में नन्ना-मुन्ना भी आ गया.... भला इस समय खुश ना होंगे तो कब खुश होंगे।.

प्रताप... बात तो सही है... एक और खुशी की बात है.. अभी भैया से बात करके ही लौट रहा हूं। उन्होंने कहा है कि थोड़े ही दिनों बाद नए साल पर हम अपने नए घर में चले जाएंगे, यह सुनकर गीता बहूत खुश हो जाती है।


((वही दूसरी तरफ ))

-जनाब... कुत्ता नहीं है...

और क्या पता किया...???

-जनाब दो घर हैं..तीन भाई 

 अलग कौन सा रहता है..???

-जनाब बीच वाला...

 सुना था उन में से कोई फोज से रिटायर आया है..???

-जनाब.....बड़ा वाला...

 कितने बंदे हैं सभी???

-जनाब... तीन भाई, बड़े दो की घर वाली, फौजी के तीन बच्चे, और बीच वाले का एक 6 महीने का छोटा बच्चा, एक बुड्ढा भी है...

  सोते कब हैं????

 -जनाब पता नहीं लग पाया, पर जनाब,नया घर बन गया है, मुझे पता लगा है वह जल्द ही अपने नए घर में चले जाएंगे... 

 आज तारीख क्या है??

-जनाब.....28

देखते हैं.... क्या होता है???? 

तुम त्यार रहो...

-जी जनाब....

उधर घर में एक दम खुशियों का माहौल।

प्रताप.. भाभी आज 31 है...

 कल हम नए घर में प्रवेश कर रहे हैं क्या..?????

बंदु.. तेरे भैया तो आज कहां जवाब दे पाएंगे,आज तो 31 बनाएंगे।

तभी सुबह-सुबह उठते ही शहर को चले गए हैं।

 क्षेत्रपाल...अब जो भी सलाह होगी वह कल ही होगी..... क्योंकि आज तो भैया मौज मस्ती में होंगे और भैया ही क्यों?आज तो हमारा हक भी बनता है.. आज 31 दिसंबर जो है.. 

 भाभी और देवर सभी हंसने लगते हैं... 



 उधर एक बार फिर वह अनजान व्यक्ति घर के इर्द-गिर्द चक्कर काटते सोनी को दिखाई देता है.. 

सोनी...अंकल आप कहां चले गए थे बड़े दिन से दिखाई नहीं दिए... 

-मैं तो कहीं काम गया था..

तुम बताओ,

तुम लोग कैसे हो..

सोनी और अनिल दोनों मिल कर.. "हम तो बिल्कुल ठीक हैं अंकल....

कल हम भी अपने नए घर चले जाएंगे....

फिर आप हमें मिलने वहां आना... "

-कल तुम लोग चले जाओगे क्या...???

सोनी... हां हम कल चले जाएंगे... 

 -ठीक है बच्चों मैं आपको मिलने वही आया करूंगा.. 

 यह रहस्यमई व्यक्ति बहुत तेजी से अपने ठिकाने पर पहुंचता है।

जनाब..... अभी मालूम हुआ है कि कल अपने नये घर जा रहे हैं।

जो भी करना है आज ही करना होगा... 

.....इंतज़ार करो....


उधर गीता और सभी परिवार वालो का दिन मस्ती भरा निकलता है।

शाम को गीता और प्रताप भारी "कड़ाके की ठंड" में आग जलाकर बैठे हैं। गीता बच्चे को दूध पिला रही है और दोनों बातचीत कर रहे हैं .. हल्का-हल्का अंधेरा होने को था... इतनी देर में दरवाजे पर आवाज आती है.. 

प्रताप.. कौन??

-क्या हाल है जनाब???

प्रताप.. मै ठीक हूँ.. आप कौन?

-घबराना नहीं भाई जान, मैं किसी काम से आया हूं।

प्रताप.. रात को क्या काम??

-अकेले आपसे काम नहीं है...

 आप सभी से कुछ काम है.... इसलिए आप भी अपने भाई के घर ही आ जाओ,सभी वही बैठ के बात करेंगे। 

प्रताप - मैं अकेला ही चलता हूँ, 

-नहीं-नहीं जनाब आप अपनी घरवाली और बच्चे को भी ले आयो...
 वहीं आओ, वहीं सब बैठेंगे..

 हम अपने ही हैं.. कोई दूर से नहीं आए, 
डरो मत.. डरने की कोई बात नहीं है...

 प्रताप बच्चे को उठाता है, और गीता भी साथ चल पड़ती है....

,कुछ ही कदम की दूरी पर बलदेव के घर पहुंचाते हैं...

 वहां पर इस व्यक्ति के साथ एक और व्यक्ति होता है... जो पहले घर के बाहर था अब यह दोनों घर के अंदर जाते हैं... आगे बलदेव का पूरा परिवार खाना खा रहा होता है... 
 
-जनाब खाना खा रहे हो क्या...????

बलदेव.. हां जी..हाँ जी... कौन..???

 जनाब हमें कुछ बात करनी है..

 आप आराम से खाना खा लो, 
फिर ही बात करते हैं.. 

 प्रताप और गीता को अपने घर अचानक देख बलदेव की पत्नी पूछती है आप कैसे आए देर से , 

 प्रताप.... हमें यह बुला ले आये हैं. कि कुछ बात करनी है.. 

चलो आप खाना खा लो,
फिर बात करते हैं....

 बलदेव और बलदेव का परिवार जैसे ही खाना खाकर बाहर आता है,इतनी देर में लाइट चली जाती है.. घर में लैंप जलाई जाती है... 

बलदेव.. जी बताइए कैसे आना हुआ???

सोनी.. अंकल आप इतनी रात को??
 यही अंकल तो आते थे हमारे साथ खेलने के लिए.. 

-हमें आप सब लोगों का एक फोटो चाहिए था....

तभी आप सब लोगों को एक साथ ही इकट्ठा किया है.. 

 क्षेत्रपाल.. कैसा फोटो..?

..वह भी इतनी रात...
...आप कौन हैं ??
....कहां से आए हो??

-सब बताते हैं भाई जान,

... पर एक छोटा सा फोटो पहले हो जाए..
...उसके बाद सब बताते हैं। 

 पीछे दीवार के साथ एक मंजा लगा हुआ था..सभी को बोला गया....सभी मंजे पर बराबर बैठ जाओ ताकि सभी की फोटो एक बार में ही आ जाए... 

 अभी तक किसी को कुछ समझ नहीं आया था,

 क्षेत्रपाल... जब तक बताओगे नहीं.. तब तक कोई नहीं बैठेगा... 

-सर्वे के लिए आए थे जनाब,

 बहुत दूर तक चले गए थे.... अंधेरा हो गया,अब केवल आपका घर रह गया है... इसलिए इसको छोड़कर नहीं जाना चाहते..
 इसलिए सोचा सर्वे करके ही जाते हैं..

बस आप सभी की एक फोटो चाहिए....

 परंतु घर वालों के मन में कुछ आशंका हो रही थी.. कुछ समझ नहीं आ रहा था...

 शरीर में कंपन हो रही थी, 6 माह का बच्चा अपनी माँ गीता को देखे जा रहा था... गीता की नज़र भी अपने बच्चे के चेहरे से हटते नहीं बन रही थी... 

 अब यहां का दृश्य कुछ इस तरह नजर आ रहा है। 
वैरान इलाका, अकेले दो घर, बिजली गुल, कड़ाके की ठंड, डरावने चेहरे, अनजान व्यक्ति, धड़कते दिल, कांपता शरीर, बाहर से तो नहीं, परंतु भीतर से यह एहसास करा गया था कि कुछ बड़ी अनहोनी होने जा रही है। 

  सभी एक दूसरे की तरफ देखते हुए,परंतु कुछ ना बोलते हुए, लड़खड़ाते कदमों से मंजे पर जाकर बराबर बैठ गए. दिसंबर का महीना.....भारी सर्दी.. दो अनजान व्यक्तियों ने ऊपर शॉल लपेटा था.. जैसे ही सभी मंजे पर बैठते हैं...तो उन्ही दो आसंदिग्ध व्यक्तियों में से एक व्यक्ति द्वारा पीछे से दरवाजे को कुंडी लगा दी जाती है। और जैसे ही वह अपना शाल पीछे हटते हैं,तो घर के सभी सदस्यों की आंखें फटी की फटी रह जाती हैं क्योंकि शाल के नीचे राइफल थी, और जैसे ही वह अपनी राइफल को सीधा करते हैं, इतनी देर मे बलदेव उनकी तरफ जपटता है, परंतु थोड़ा फैसला अधिक होने के कारण,वह अभी खड़ा ही हुआ था कि बलदेव पर अंधाधुंध गोलियों की बरसात हो गई। जिसके चलते बलदेव लैंप पर जा गिरा और लैंप पर गिरते ही लैंप बुझ गई। घर में अंधेरा ही अंधेरा छा गया। घर के अन्दर भयानक चिखों की आवाज़...उसी अंधेरे का लाभ उठाते हुए सोनी जटके से पलंग के नीचे हो गई और उसने अपने भाई अनिल का बाजू पकड़ रखा था, उसको भी झटके से नीचे खींच लिया। अंधेरे में अंधाधुंध फायरिंग के चलते किसी को कुछ समझ नहीं आया, कि कौन किस कोने में पड़ा तड़प रहा है ?? और कौन इस संसार से अलविदा ले रहा है..?? आंतकवादी गोलीयाँ बरसा कर वहां से निकाल गए। रात में लोगों को कुछ समझ नहीं आया .. परंतु जब सुबह गांव के लोग पहुंचते हैं तो वह देखते हैं कि गीता के 6 माह के बच्चे की खोपड़ी दूर जाकर एक पानी वाले बर्तन में पड़ी है। और गीता, प्रताप बलदेव, बंदु, बलदेव का बड़ा बेटा सुनील और क्षेत्रपाल खून से लथपथ पड़े हैं। ऐसी डरावनी हालत, चारों तरफ बिखरा खून देख पहले सब,कुछ क्षणो के लिए विचलित हो गए, पास जाने से डरने लगे। परंतु हिम्मत जुटा कर जब पास जाकर देखा गया,तो पता लगा कि क्षेत्रपाल और बंदु की सांसे अभी चल रही है। जल्द एंबुलेंस पर दोनों को वहां से उठाया गया, परंतु कहर का मंजर अभी थमा नहीं था। शहर अस्पताल तक पहुंचने से पहले ही क्षेत्रपाल भी सब को अलविदा कह गया.. गीता, उस का बच्चा, बलदेव, प्रताप, और बलदेव का बड़ा बेटा सुनील, और क्षेत्रपाल.. यह सभी अपनी खुशियों को मन में समेटे इस संसार से सदा के लिए अलविदा हो गए। सोनी और अनील भारी सर्दी की रात नीचे फर्श पर पड़े रहे और मंजे के नीचे रात भर उस खोफ़ भरे माहौल में जलते रहे । परिवार वालों के खून से दोनों के चेहरे लथ-पथ, आंखों से आंसू नहीं खून बह रहा था, जब सुबह गांव वाले इन बच्चों को बाहर निकालते हैं तो बहुत देर तक खोफ़ के चलते यह दोनों बच्चे वहां से नहीं हिल पाते हैं। सारी रात का खोफ़ बरा खूनी खेल उनकी आंखों और मन पर घाव कर गया था....

 इन सब में एक बात केवल यह थी, कि बलदेव का लैंप पर गिरना और लैंप का बुझना। यही सोनी और अनिल को एक नई जिंदगी दे गया। सोनी और अनिल अंधेरे का फायदा उठाते हुए भारी सर्दी की रात नीचे फर्श पर खून में पढ़े रहे । जिसके चलते इन दोनों के साथ इन की माँ बंदु आस्वस्थ हालत में आज भी जीवित है। परन्तु पूरे परिवार के सपने और खुशियाँ सदा के लिए उस खून की बहती धार में बह गयी। 

-हरीश कुमार


 ((यह 31 दिसंबर 2001 की सत्य घटना पर आधारित कहानी है। इस कहानी से हमें केवल इतना ही ज्ञात होता है कि हमें अपने आसपास में क्या हो रहा है? इस पर भी नजर रखनी चाहिए। ऐसे ही पहलगाम अटैक से पहले कुछ अनजान लोग यात्रियों से उनके बारे में जानने की कोशिश करते रहे। इस सारी वार्तालाप से यह स्पष्ट हो जाता है कि हमेशा सतर्क रहने की जरूरत है।और आसंदिग्ध व्यक्तियों से की गयी वार्तालाप हमें संकट में डाल सकती है। ))