Half Truth in Hindi Short Stories by OMKAR books and stories PDF | आधा सच

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आधा सच

लखनऊ का पुराना शहर
संकरी गलियों से गुजरते हुए जब बारिश थोड़ी तेज़ हुई, तो राघव ने अपने बैग का ज़िप बंद किया और सीधे अपने रेगुलर शॉर्टकट से निकल गया।
वही शॉर्टकट, जो एक पुरानी, धीरे-धीरे भुला दी गई बाज़ार से होकर जाता था।

बाज़ार नवाबी गेट के पास।
सदियों पुरानी इमारतें, उखड़ती हुई पुताई, पुराने लकड़ी के छज्जे।
वहीं एक स्टेशनरी की दुकान का बोर्ड धुंधला सा दिखा, जिसमें कोई नाम नहीं था।
बस एक पुराना, फीका लाल परदा… और अंदर से आती हल्के नारंगी बल्ब की रोशनी।

दरवाज़ा धक्का देते ही छम-छम की आवाज़ आई।
अंदर एक बूढ़ा आदमी था — सफ़ेद दाढ़ी, सफ़ेद टोपी, आँखों में गहरा ठहराव।

बूढ़ा (बिना पूछे):
"लिखता है तू… दर्द या सच?"

राघव हैरान।

राघव:
"दोनों… कभी-कभी झूठ भी।"

बूढ़े ने एक काली चमड़े की डायरी निकाली — बिना कीमत बताए, उसके हाथ में थमा दी।
"जो लिखेगा… समझेगा।"


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अगली रात, राघव का कमरा।
एक छोटा 10x12 का रूम। कोने में स्टडी टेबल, एक साइड लैम्प, और खिड़की से गिरती बारिश की बूँदें।
उसने डायरी खोली।

पहली लाइन लिखी:

> "आज मैंने अनन्या से झूठ बोला कि मैं उससे प्यार करता हूँ… बस उसे अपूर्व से दूर रखने के लिए।"



तभी बल्ब झपका। खिड़की अपने आप खुल गई। ठंडी हवा। लाइट बंद।
राघव रुक गया। मगर अंदर की जिज्ञासा ज़्यादा थी।


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अगले दिन, कॉलेज: ला मार्टिनियर बिल्डिंग
ब्रिटिश काल के महल जैसे कॉलेज में, लोग गॉसिप कर रहे थे:

स्टूडेंट:
"अपूर्व और अनन्या का ब्रेकअप हो गया… धोखा देने वाला सीन बता रहे थे।"

राघव की उँगलियाँ ठंडी हो गईं। उसने डायरी देखी — क्या मैंने ये लिख कर ये कर दिया?


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अगले दिन उसने लिखा:

> "डॉ. सिन्हा कुछ छुपा रहे हैं… संदिग्ध लगते हैं।"



अगली सुबह: न्यूज़ फ्लैश –
"कॉलेज प्रोफेसर बैन मनोविज्ञान प्रयोग करने के आरोप में गिरफ्तार।"


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दिन बीतते गए।
राघव का चेहरा बदल रहा था। आँखों के नीचे काले घेरे। होंठ सूखे हुए।
हर पेज लिखने के बाद एक अपराधबोध… पर साथ ही एक अजीब-सा सुकून।

लेकिन उस रात, उसने लिखा:

> "कबीर जलता है… इसलिए मैंने उसकी गर्लफ्रेंड को पसंद कर लिया।"



तीन दिन बाद कबीर आईसीयू में था। सुसाइड अटेम्प्ट। पुलिस ने कहा: "रिलेशनशिप ट्रॉमा। मानसिक रूप से अस्थिर।"


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राघव ने डायरी को अलमारी के नीचे धकेल दिया।
बस अब और नहीं।
पर कुछ चीज़ें बस रुकती नहीं…


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रात – 3:17 AM
राघव की नींद खुली। डायरी खुली थी।
उसके पहले पन्ने पर — उसकी ही लिखावट में कुछ लिखा था:

> "सच लिखने से डर लगता है न? इसलिए आधा लिखता है… अब देख, पूरा झूठ कैसे जीता है।"



पूरा कमरा ठंडा हो गया। पंखा बंद, लाइट धीमी।
डायरी के पन्ने अपने आप पलटने लगे — जैसे कोई उसमें लिख रहा हो।


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आख़िरी पन्ना… उसमें लिखा था:

> "तू सोच रहा है कि तू लिख रहा है…
पर तू बस वही लिख रहा है जो तुझे लिखने दिया जा रहा है।"




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अगले दिन – राघव की माँ पुलिस स्टेशन में थी।
राघव का कमरा बंद था।
खिड़की से अंदर झाँकते ही पुलिस ने देखा:

टेबल पर डायरी रखी थी।

उसके पीछे दीवार पर लिखा था:

> "ये सब मैंने नहीं लिखा… डायरी लिख रही थी मुझे।"



और डायरी के आख़िरी पन्ने पर — बस एक शब्द था:

> आपदा।




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🎬 समाप्त

> जब आधा सच लिखने लगते हैं… तब सच का सामना करने के लिए कोई नहीं बचता।

Thanks for watching। By omkar