Funny in Hindi Moral Stories by mukesh more books and stories PDF | मजाकिया

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मजाकिया


गाँव का नाम था बड़गाँव और उस गाँव की सबसे हल्की चीज़ थी वहाँ की हवा… और सबसे भारी चीज़ मज़ाकिया की बातें। मज़ाकिया, यानी गोवर्धन,नाम तो गोवर्धन रखा गया था, लेकिन किसी ने वो नाम कभी पुकारा नहीं।बचपन से ही कुछ ऐसा कि जब लोग रोते, वह हँसता था। जब लोग चुप रहते, वह कुछ ऐसा कह देता कि सब लोटपोट हो जाते।
उसकी माँ कहा करती थी, “इस लड़के का तो जनम ही मज़ाक में हुआ है… प्रसव पीड़ा में डॉक्टर आया ही नहीं, और ये खुद ही बोल उठा, ‘चिंता मत करो, मैं बाहर आ ही रहा हूँ!’”
पाँच साल की उम्र में पहली बार अपने पिताजी के सामने बोला,“अब्बा, आपकी मूँछें देखकर भैंस डर जाती है… और अम्मा देखकर हँस पड़ती है!” पिता जी बहुत सख्त मिज़ाज के थे,भोपाल में मजदूरी करते थे।गोवर्धन की शरारतें और बात-बात में मज़ाक उन्हें बिल्कुल नहीं भाता।
एक बार उन्होंने कहा,“बेटा, हर बात मज़ाक की नहीं होती।”तो गोवर्धन बोला,“तो कौन सी किताब में लिखा है अब्बा? बताओ, मैं कल तक याद कर लूँगा!” पिता की आँखें लाल हो गई थीं उस दिन… और कुछ ही दिन बाद वो गाँव छोड़कर फिर भोपाल चले गए,इस बार रोज़गार से ज्यादा, शायद बेटे से दूर रहने के लिए।
अब वह पूरे गाँव का हीरो था,जहाँ जाता, वहाँ ठहाकों की फसल उगती।लोग कहते, “जिसके घर में मज़ाकिया एक बार हँसा गया, वहाँ हँसी महीनों टिक जाती है।”
गाँव के स्कूल में निरीक्षण आने वाला था। मास्टरजी बच्चों को खूब रटवा रहे थे। सबके हाथ में पाठ्यपुस्तकें थीं और सामने ब्लैकबोर्ड।मास्टरजी बोले, “इस बार अगर गाँव का स्कूल अच्छे नंबर लाया, तो मैं तहसील में सम्मान दिलवाऊँगा!”तभी पीछे से मज़ाकिया चिल्लाया, “पहले मुर्गियों को स्कूल से बाहर करो मास्साब! वो रोज़ ब्लैकबोर्ड पर अंडा देती है, बच्चे सवाल नहीं अंडा देख के उलझ जाते हैं!”पूरा स्कूल हँसी से गूंज गया। मास्टरजी की मूँछें तिरछी हो गईं, लेकिन कुछ कह नहीं पाए। कई बच्चों ने भी किताबें बंद कर दीं और हँसी में शामिल हो गए।
मज़ाकिया मुस्कराया और बोला “अब परीक्षा में एक नहीं, दो जीरो लाऊँगा, मास्साब! ताकि संतुलन बना रहे!”
कुछ दिनों बाद मंगलू गाँव चोपाल पर मुँह लटकाए बैठा था, उसका बैल मर गया था
मज़ाकिया आया, बोला,“अबे मंगलू! अब खेत खुद जोत, बैल को तो छुट्टी मिल गई! शायद वो कह गया, हो कि मुझसे अच्छा तो हल खुद चलाता है!”लोग हँस दिए, लेकिन मंगलू की आँखों में आँसू थे,उसने कुछ नहीं कहा बस उठकर चला गया।किसी ने मज़ाकिया से कहा,“तू कभी-कभी हँसी के नाम पर ज़रूरत से ज़्यादा कह देता है…”वह मुस्कराया,“भाई, दिल दुखाने का काम मैं जान-बूझकर नहीं करता। हँसी आई, तो कह दिया।”
वह दिन जब मज़ाक भारी पड़ गया,एक दिन दोपहर में चौपाल पर मज़ाकिया ताश खेल रहा था।
तभी एक अनजान आदमी आया धूल से सना, पसीने से भीगा।उसने पूछा,“भाईसाहब, क्या आप गोवर्धन को जानते हैं? मैं भोपाल से आया हूँ। बहुत जरूरी काम है उनसे।”सबने एक साथ मज़ाकिया की ओर इशारा किया,“वो रहा… मज़ाकिया। असली नाम गोवर्धन है।”
वह आदमी सीधे उसके पास आया और गंभीर स्वर में बोला “मुझे आपसे तुरंत बात करनी है। में भोपाल से आया हूँ।” मज़ाकिया ने उसे ऊपर से नीचे देखा और मुस्कराया “क्या बात है भैया! कोई चोरी-वरी तो नहीं की भोपाल में? मुझसे क्यों मिलना है?”आदमी घबरा गया “नहीं साहब, बस आपसे एक संदेश पहुँचना था, जल्दी पहुँचना था…”मज़ाकिया बोला “तो ऐसे करो सीधे जाओ, पीपल के पेड़ से दाएँ मुड़ो, वहाँ एक नीम है, उसके नीचे एक गधा बँधा मिलेगा, उसी से पूछना,गोवर्धन कहाँ है।”लोग हँसे, आदमी उलझन में चला गया। मज़ाकिया ने एक और चुटकुला मारा और बाकी ताश की बाज़ी में लग गया।
अगली सुबह सूरज चढ़ा ही था कि वही आदमी फिर लौटा,वह सीधा मज़ाकिया के पास गया और बोला, “आपके पिता अब नहीं रहे। उन्होंने अंतिम समय तक आपका नाम लिया… मगर आप नहीं पहुँचे।”गाँव की हवा रुक गई,नीम के पत्ते भी थम गए,मज़ाकिया की आँखें सूनी हो गईं।होंठ कांपे… पर आवाज़ नहीं निकली। गाँव में पहली बार वह बिल्कुल चुप था, फिर उसने शहर जाकर अपने पिता का अंतिम संस्कार किया।
कुछ दिनों बाद शाम को चौपाल पर वही मज़ाकिया बैठा था।कुछ लड़के आए, बोले “भाई, आज कोई मज़ेदार बात सुना दो… मन भारी है।”
वह सिर झुकाकर बोला, “आज पहली बार समझ में आया कि हर बात मज़ाक की नहीं होती।
कभी-कभी चुप रहना ज़रूरी होता है… बहुत ज़रूरी।”वह उठा और पीपल के पेड़ की ओर चला गया,जहाँ बचपन में मास्टरजी की कुर्सी पर पहली बार शरारत की थी।अब वहीं बैठकर वह अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी भूल पर आँसू बहा रहा था।
सीख:
हँसी जीवन की मिठास है — लेकिन हर समय, हर जगह, हर बात में हँसी ठीक नहीं।
कभी-कभी गंभीर होना ही सच्चा इंसान होना होता है।