Tere ishq mi ho jau fana - 47 in Hindi Love Stories by Sunita books and stories PDF | तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 47

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तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 47

शावर के नीचे खड़ी होकर उसने अपनी आँखें बंद कर लीं। उसके दिल में कई तरह की भावनाएँ उमड़ रही थीं। पानी की बूंदें जैसे उसकी उलझनों को धोने की कोशिश कर रही थीं। लेकिन भावनाएँ इतनी आसान नहीं होतीं, जो पानी से धुल जाएँ।

"दानिश... वो इतना अच्छा क्यों है?"

वो खुद से ही सवाल करने लगी। जब भी वह आसपास होता, समीरा को एक अजीब सी खुशी महसूस होती। लेकिन साथ ही, डर भी लगता था। कहीं ये खुशी उसे भी दर्द में न बदल दे?

यादों की बारिश

शावर के नीचे खड़े-खड़े उसे दानिश से पहली मुलाकात याद आ गई। 

पानी अब भी उसके शरीर से बह रहा था, लेकिन उसकी यादें उसे कहीं और ले जा रही थीं।

खुद को समझाने की कोशिश

समीरा ने गहरी सांस ली और अपने माथे पर हाथ रखा। उसने अपने दिल को समझाने की कोशिश की – "ये बस एक दोस्ती है। इससे ज़्यादा कुछ नहीं। मुझे खुद को रोकना होगा।"

लेकिन क्या वह खुद को रोक पाएगी? क्या दानिश वाकई सिर्फ एक दोस्त था?

उसने पानी बंद किया और एक तौलिए से अपने चेहरे को पोंछते हुए आईने में देखा। उसका चेहरा हल्का गुलाबी हो गया था, शायद ठंडे पानी की वजह से... या शायद उसके दिल की धड़कनों की वजह से।

आज उसने तय कर लिया था – वो दानिश से दूर रहेगी।

पर क्या उसका दिल उसकी बात मानेगा?

सानियाल हवेली: षड्यंत्र की बुनियाद

हवेली के विशाल हॉल में भारी पर्दों के पीछे दबी हुई साजिशें परवान चढ़ रही थीं। हल्की-हल्की रोशनी में त्रिशा, सोनिया और देव गहरे षड्यंत्र की बुनियाद रख रहे थे।

"तुमने देखा ना, त्रिशा?" सोनिया ने तंज भरे स्वर में कहा, "कैसे उसने सब कुछ अपने मनमुताबिक कर लिया? जैसे हम सब उसकी प्रजा हों और वो कोई राजा! ये लड़का खुद को समझता क्या है?"

त्रिशा की आंखों में जलन थी, दर्द भी था, लेकिन उससे कहीं ज्यादा नफरत थी। "हां, सोनिया, मुझे तो अब यकीन हो गया है कि इस लड़के के दिल में मेरे लिए कोई इज्जत नहीं। मैं उसकी मां हूं, भले ही सोतेली, लेकिन क्या मुझे कोई हक नहीं?"

देव, जो सिगरेट के धुएं के छल्ले बना रहा था, ठंडी मुस्कान के साथ बोला, "डार्लिंग, यह लड़का तुम्हें सच में कुछ नहीं समझता। नहीं तो अपनी मां के साथ ऐसा कौन करता? हां, माना कि तुम उसकी असली मां नहीं हो, लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि वो तुम्हारी इज्जत ही न करे।"

त्रिशा की मुट्ठियाँ कस गईं। "अब बहुत हो गया! मैंने इसे बचपन से बड़ा होते देखा है, लेकिन अब मैं इसे और बर्दाश्त नहीं कर सकती।"

सोनिया ने उसकी बांह थामी और धीरे से फुसफुसाई, "तो फिर क्यों न कुछ ऐसा किया जाए कि यह लड़का खुद अपनी औकात समझ जाए?"

त्रिशा ने घूरकर देखा, "तुम्हारे पास कोई योजना है?"

देव ने सिगरेट बुझाते हुए एक रहस्यमयी मुस्कान दी, "हम उसे उसकी ही चाल में फंसा सकते हैं। हवेली की जायदाद, कारोबार, सब कुछ इस वक्त उसके हाथ में है, लेकिन क्या अगर उसके खिलाफ ऐसा कोई सबूत मिले जिससे वो हमेशा के लिए बेदखल हो जाए?"

सोनिया ने ठहाका लगाया, "और ऐसा सबूत हम बना सकते हैं! मैंने सुना है कि दानिश ने कुछ गैरकानूनी सौदे किए हैं। अगर हम हवेली के कुछ पुराने दस्तावेज या उसके बैंक रिकॉर्ड में हेरफेर कर दें तो उसे जेल की सलाखों के पीछे भेज सकते हैं।"

त्रिशा को यह योजना पसंद आई, लेकिन वो और भी कुछ चाहती थी। "सिर्फ जेल भेजना काफी नहीं है। मैं चाहती हूं कि वो इस हवेली से भी निकाल दिया जाए और पूरी दुनिया के सामने बदनाम हो!"

देव ने सहमति में सिर हिलाया, "तो फिर हमें किसी ऐसे इंसान की जरूरत होगी जो उसके बेहद करीब हो, लेकिन हमारी बात भी माने।"

सोनिया ने अपनी लाल लिपस्टिक से भरे होंठों को हल्का सा चूसा और सोचते हुए कहा, "दानिश का सबसे बड़ा कमजोर पक्ष है उसकी वफादारी। हमें बस उसके किसी करीबी को हमारे पक्ष में लाना होगा।"

त्रिशा ने तुरंत कहा, "इमरान! वो उसकी सबसे अच्छा दोस्त है, और मैं जानती हूं कि उसके दिल में भी दानिश के लिए नाराजगी है। अगर हम उसे मना लें तो यह खेल और भी आसान हो जाएगा। साथ ही कारोबार भी देखता है "

देव मुस्कुराया, "तो फिर देर किस बात की? मैं इमरान से बात करूंगा, और तुम दोनों दानिश के खिलाफ सबूत तैयार करो। हमें हर चीज का पुख्ता इंतजाम करना होगा।"

सोनिया ने आंखें चमकाते हुए कहा, "और सबसे अच्छी बात, हमें यह सब ऐसे करना है कि कोई हम पर शक न कर सके। जब तक दानिश को एहसास होगा, तब तक वो पूरी तरह से बर्बाद हो चुका होगा।"

त्रिशा के चेहरे पर एक ठंडी, निर्दयी मुस्कान आ गई। "अब वक्त आ गया है कि हवेली का असली वारिस तय किया जाए। और वो दानिश नहीं होगा!"

हॉल में तीनों की आवाजें गूंज रही थीं, और हवेली की दीवारें उनकी साजिशों की गवाह बन रही थीं। अंधेरा घना हो चुका था, लेकिन षड्यंत्र की आग धधक रही थी।

सानियाल हवेली: साजिश पर दादी की नजर

हवेली के विशाल हॉल में षड्यंत्र की बातें अब भी गूंज रही थीं। त्रिशा, सोनिया और देव अपनी खतरनाक योजना पर चर्चा कर ही रहे थे कि तभी दरवाजे पर धीमे से आहट हुई। तीनों ने चौककर देखा – सानियाल हवेली की सबसे बुजुर्ग और तेज दिमाग वाली महिला, दादी, दरवाजे के पास खड़ी थीं।

उनकी आंखों में शरारत और चेहरे पर हल्की मुस्कान थी। वे अपने हाथ में चांदी का कड़ा घुमाते हुए धीरे-धीरे अंदर आईं। हॉल में छाई गंभीरता जैसे पलक झपकते ही बिखर गई। त्रिशा, सोनिया और देव के चेहरों पर डर की एक हल्की परछाईं उभरी।

दादी ने उनकी ओर देखा और हल्के से हंसी, "अरे-अरे, यह क्या? तुम लोग तो मुझे देखकर ऐसे चौक गए, जैसे किसी भूत को देख लिया हो! या फिर कोई ऐसा राज़ पकड़ा गया हो, जिसे छुपाना चाहते थे?"

तीनों ने जल्दबाज़ी में खुद को संयमित किया। सोनिया ने हंसने की कोशिश की, "अरे नहीं , हम तो बस... यूं ही बात कर रहे थे।"

दादी ने अपनी छड़ी जमीन पर टिकाई और आंखें मिचमिचाते हुए कहा, "हम्म... यूं ही बात कर रहे थे? मुझे तो ऐसा लग रहा है जैसे यहां कोई बड़ा मसला चल रहा था।" वे सोफे पर बैठ गईं और हल्के से सिर हिलाया, "देखो भई, मैं बूढ़ी हो गई हूं, लेकिन इतनी भी नहीं कि हवेली में क्या पक रहा है, ये न समझ सकूं।"

त्रिशा ने घबराहट छुपाते हुए कहा, "आप हमेशा मज़ाक करती हैं, । हमें तो डर ही लगा कि कहीं आपको ठंड न लग जाए, इसलिए चौक गए।"