दादी ने आंखें घुमाईं, "अच्छा? तो मतलब मैं ठंड से कांप रही हूं, और तुम लोग यहां षड्यंत्र की गर्मी फैला रहे थे?" उन्होंने हंसते हुए अपनी छड़ी से हल्के से देव के घुटने पर टकराया, "और तुम, देव बाबू! इतनी गंभीर बातें करने की क्या ज़रूरत थी? कोई हलवा-पूरी की चर्चा कर रहे थे क्या?"
देव हड़बड़ाकर बोला, "न-नहीं , बस यूं ही... कुछ व्यापार की बातें कर रहे थे।"
दादी ने उनकी ओर देखा और फिर मुस्कराई, "अच्छा, अच्छा! व्यापार की बातें! पर देखो, बेटा, व्यापार दिल से किया जाता है, साजिशों से नहीं। और जो लोग दूसरों के लिए गड्ढा खोदते हैं, वो खुद उसमें गिर जाते हैं।"
सोनिया ने जबरदस्ती मुस्कान बनाए रखी, लेकिन उसकी उंगलियां कुशन पर कस गईं। दादी की बातें भले मज़ाकिया लग रही थीं, लेकिन उनमें कहीं न कहीं गहरा मतलब छुपा था।
दादी ने गहरी सांस ली और अपनी छड़ी उठाकर हवा में घुमाई, "खैर, मुझे क्या! पर एक बात ध्यान रखना, मुझे नहीं पसंद जब कोई उसके खिलाफ उल्टी-सीधी बातें करता है।"
त्रिशा, सोनिया और देव अब पूरी तरह से चुप हो गए थे। दादी ने आंखें तरेरीं, "अब ज्यादा सोचो मत! जाओ, जाओ, कुछ अच्छा करो! मुझे भी अपने कमरे में जाकर आराम करने दो।"
उन्होंने हल्का ठहाका लगाया और अपनी जगह से उठकर बाहर चली गईं। उनके जाते ही हॉल में एक अजीब सी खामोशी छा गई।
सोनिया ने धीरे से फुसफुसाकर कहा, "ये बूढ़ी औरत जितनी मज़ाकिया दिखती है, उतनी ही तेज भी है।"
देव ने सिर हिलाया, "हां, और हमें अब और सतर्क रहना होगा। वो हमारी हर हरकत पर नजर रख रही हैं।"
त्रिशा की आंखें अब भी दरवाजे की ओर टिकी थीं, जहां से दादी निकली थीं। उसने ठंडी सांस भरी और धीरे से बुदबुदाई, "दानिश को हटाने के लिए हमें अब और चालाकी से चलना होगा।"
लेकिन उन्हें नहीं पता था कि दादी की निगाहें सिर्फ सामने से नहीं, बल्कि परदे के पीछे से भी देख सकती थीं।
दादी की नजरें परदे के पीछे से भी देख सकती थीं
दादी अपने कमरे में बैठी थीं। बाहर ठंडी हवा बह रही थी, लेकिन कमरे के अंदर एक अलग ही गर्माहट थी—सोच-विचार की गर्माहट। कमरे में हल्की रौशनी थी, और उनके सामने उनकी विश्वासपात्र नौकरानी, रुखसार, सिर झुकाए खड़ी थी।
"रुखसार," दादी ने धीरे से कहा, "इस घर में अजीब खिचड़ी पक रही है। हर कोई दानिश के खिलाफ कोई न कोई चाल चल रहा है। लेकिन क्या सच में वो इतना बुरा है?"
रुखसार ने संकोच से सिर उठाया। वह बरसों से इस परिवार के साथ थी और जानती थी कि दादी की नजरें हमेशा सच्चाई को परख लेती थीं। " दादी, मैंने तो हमेशा दानिश साहब को अच्छा ही पाया है। वह किसी से ऊँची आवाज़ में बात तक नहीं करते।"
दादी ने गहरी सांस ली। उनकी आंखों में एक तेज़ चमक थी। "फिर ये त्रिशा, सोनिया और देव क्यों उसके खिलाफ षड्यंत्र रच रहे हैं? क्या कोई कारण है?"
रुखसार ने इधर-उधर देखा, जैसे दीवारों को भी भरोसेमंद समझने की कोशिश कर रही हो। फिर वह धीरे से बोली, "दादी , असली बात संपत्ति की है। दानिश साहब इस घर के सबसे योग्य वारिस हैं, लेकिन बाकी लोग उन्हें अपना रास्ते का रोड़ा समझते हैं।"
दादी ने हल्की मुस्कान दी। "हां, मुझे भी ऐसा ही लग रहा था। लेकिन बेटा, ये लोग भूल रहे हैं कि जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है, वो खुद उसमें गिरता है। और फिर ये दौलत कमाने वाला दानिश ही तो है "
रुखसार ने सहमति में सिर हिलाया। "दादी, आप उन्हें रोकेंगी, न?"
दादी ने अपनी छड़ी उठाई और हवा में घुमाई। "बिलकुल। लेकिन मैं चालाकी से खेलूंगी। मैं उन्हें उनकी ही चाल में मात दूंगी।"
कमरे में एक अजीब-सी गंभीरता थी। बाहर हॉल में अब भी खामोशी पसरी थी, लेकिन दादी के मन में एक नई रणनीति जन्म ले रही थी। वह जानती थीं कि उन्हें कब क्या करना है।
और इस बार, इस घर में जो भी साजिशें रची जा रही थीं, उनकी हर डोर अब दादी के हाथों में थी।
दानिश और उसका छोटा भाई – साजिशों के बीच एक मजबूत रिश्ता
दानिश अपने केबिन में बैठा हुआ था, उसकी आंखें लैपटॉप स्क्रीन पर टिकी थीं, लेकिन उसका मन कहीं और था। वह अच्छी तरह जानता था कि इस घर में उसके खिलाफ षड्यंत्र रचे जा रहे हैं। उसके चारों ओर जाल बुना जा रहा था, लेकिन उसे हर चाल को समझदारी से काटना था।
"भाई, क्या तुम सुन रहे हो?" एक युवा, आत्मविश्वास से भरी आवाज़ ने उसकी सोच को तोड़ दिया।
दानिश ने सिर उठाया और अपने छोटे भाई कबीर को देखा, जो उसके सामने बैठा था। कबीर उसकी तुलना में ज्यादा बेफिक्र था,
"हां, हां, बोलो," दानिश ने कुर्सी पर थोड़ा पीछे झुकते हुए कहा।
कबीर ने टेबल पर अपने हाथ रखे और धीरे से बोला, "भाई, यह मीटिंग बहुत ज़रूरी है। हमें क्लाइंट को यह विश्वास दिलाना होगा कि हमारा प्रोजेक्ट सबसे बेहतर है। हमारे राएवलस भी इसी क्लाइंट से डील करने की कोशिश कर रहे हैं। अगर हम थोड़ा भी ढीले पड़े, तो हमें बड़ा नुकसान हो सकता है।"
दानिश ने हल्की मुस्कान दी। "मुझे पता है, कबीर। लेकिन मैं चीजों को जल्दबाज़ी में नहीं करना चाहता। अगर यह डील हमें मिलनी है, तो हम अपनी काबिलियत से ही जीतेंगे, न कि किसी साजिश से।"
कबीर ने सिर हिलाया। "आपकी बात सही है। पर भाई, इस मीटिंग की बात करें, तो हमें क्लाइंट को पूरी तरह से इंप्रेस करना होगा। क्या हमने सारी तैयारियां कर ली हैं?"
दानिश ने अपने लैपटॉप की स्क्रीन घुमाकर अरमान की ओर कर दी। "देखो, यह हमारी प्रोजेक्ट प्रपोजल की पूरी रिपोर्ट है। हमने इसमें हर छोटी-बड़ी चीज़ का ध्यान रखा है। मार्केट रिसर्च, बजट, टाइमलाइन—सब कुछ।"
कबीर ने ध्यान से स्क्रीन देखी और मुस्कराया। "वाह, भाई! यह तो बहुत ही बेहतरीन प्रेजेंटेशन है। मुझे लगता है कि अगर हम इसे सही तरीके से पेश करें, तो क्लाइंट हमारे प्रोजेक्ट को जरूर चुनेगा।"
दानिश ने सिर हिलाया। "बिल्कुल। हमें सिर्फ अपना काम अच्छे से करना है। और हां, एक बात और—इस मीटिंग के दौरान कोई भी ऐसी बात मत कहना जिससे लगे कि हम किसी भी तरह की गड़बड़ में फंसे हुए हैं। हमें पूरी तरह प्रोफेशनल रहना है।"
कबीर ने सहमति में सिर हिलाया। "तुम चिंता मत करो, मैं पूरी तरह तैयार हूं। दानिश ने कहा,