me or just me... in Hindi Anything by Manshi K books and stories PDF | मैं या सिर्फ मैं ...

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मैं या सिर्फ मैं ...

आज भी खिड़की से आती ठंडी हवा ने चेहरा छू लिया…मैंने परदे खींच दिए,ना जाने क्यों, अब रोशनी से डर लगने लगा है।कभी सूरज देख कर खुश हो जाती थी मैं, अब लगता है,वो भी पूछ रहा है—"तू इतनी बदली क्यों है?"तेरे चेहरे से मुस्कान रूठा क्यों है ???मैं अब जवाब देना नहीं चाहती हूं..... बचपना को भूल कर खुद को सयानी कहना नहीं चाहती हूं।

"तू ठीक है न?"—मैं अपने आप से पूछती हूँ।एक थकी हुई, टूटी-सी आवाज़ आती है—"ठीक…? पता नहीं। शायद हूँ भी, शायद नहीं भी।"यहां फिर से उलझ गई हूं मैं खुद के सवालों में जिसका जवाब मैं समझना चाहती नहीं हूं। अब बड़ी हो रही हूं न मैं... कौन समझेगा मुझे यहां ???

बचपना को मैं भूलना नहीं चाहती पर एक सच्चाई यह भी है जो मेरा पीछा कर रही है .... वो यह कि मैं अब बड़ी हो रही इस उम्र के पड़ाव में मुझे खुद को समझना पड़ेगा....

पर हकीकत तो कुछ और ही है न ....

वक्त के साथ मुझमें चिड़चिड़ापन और गुस्सा भर गया है जो दिन प्रति दिन मुझे अपनों के नजरों में गलत दिखाता है .... क्या करूं ???मेरे बिगड़े मूड को , मेरे गुस्से भरे मिजाज के पीछे दर्द को कोई समझ ही नहीं पाता है ..... !!!!उम्मीद भी किससे करूं ....???

जब मैंने खुद को आईने में देखा— बड़े प्यार से आँखों के नीचे हल्के काले घेरे , होंठों पर मुस्कान की जगह एक अजनबी खामोशी।"तू इतनी चुप क्यों हो गई?" सवाल फिर से पूछ ही लेती है...मन कहता है, "जब सुने जाने की उम्मीद खत्म हो जाए,तो बातें भी पनाह ढूँढने लगती हैं… और चुप्पी उनका घर बन जाती है।" फिर चेहरा खुद ब खुद ही उतर जाता है....

कभी मैं बहुत बोलती थी—अपने सपनों के बारे में, छोटी-छोटी खुशियों के बारे में,बारिश में भीगने की बात, चाय में डूबते बिस्किट की बात…चाहे मैं चाय की चुस्कियां लेना बचपन से पसंद नहीं...अब बारिश सिर्फ गीला करती है,चाय का कप बस ठंडा रह जाता है,और सपनों पर ताले लग चुके हैं, मानो मैं खुद को खोने की राह पर हूं .....

"तूने हँसना क्यों छोड़ दिया?"मन हँसने की कोशिश करता है, लेकिन वो हँसी भी नम होती है—"क्योंकि जो हँसी दूसरों को सुनाई देती थी,वो तो बहुत पहले रोने में डूब चुकी है।"

गलती सिर्फ और सिर्फ मेरी है .....

मुझे याद है, एक समय था जब मैं किसी के सामने खुलकर रो सकती थी।अब डर लगता है—क्या पता, जो आंसू देखे… वो भी किसी दिन मज़ाक बना दिए जाए ...."तू अकेली क्यों हो गई?""क्योंकि कुछ लोग छोड़ कर चले गए… और कुछ को मैंने खुद जाने दिया,क्योंकि वो रहते तो भी मुझे तोड़ देते।" ऐसा ख्याल आने में देर नहीं लगता।पर कौन समझे यहां ??? जब गुस्से में हूं मैं तो कौन संभाले यहां ??

मेरे अंदर की आवाज़ ने एकदम धीमे से कहा मुझसे—"तुझे सबसे ज्यादा किसका डर है?"मैंने बिना सोचे कह दिया—"खुद का।"हाँ, खुद का…क्योंकि कभी-कभी मुझे लगता है,मेरे अंदर का अंधेरा इतना गहरा है किअगर मैं उसमें खो गई, तो कोई मुझे ढूँढ नहीं पाएगा।

"तू लड़ क्यों रही है फिर?""क्योंकि हारने का मतलब सिर्फ मेरा खत्म होना नहीं…बल्कि वो छोटी-सी उम्मीद भी मर जाएगी,जो रोज कहती है—'शायद कल बेहतर हो।'"

मैंने खिड़की फिर खोली… हवा ठंडी थी, लेकिन इस बार डर नहीं लगा।मन बोला—"देखा, तू अभी भी ज़िंदा है।जिस दिन तू खुद से बातें करना छोड़ देगी,उस दिन सच में खत्म हो जाएगी।"

फिर से अंदर से आवाज आई, खत्म तो मैं ऐसे भी हो रही हूं खुद के आंसुओं तले.....

हवाओं की सरसराहट ने कहा ....बस कर खुद को खत्म करने की बात दिमाग में मत ला,दुनियां ऐसी ही है... तू बहुत कच्ची है उम्र में ,इंसानों की फ़िदारत जानेगी तो नफरत होने लगेगी इंसानियत शब्द से ....." " कोई होता नहीं यहां किसी का , मुस्कुराना फिर से शुरुआत कर "

मैंने धीरे से कहा—"ठीक है… मैं लड़ूँगी,भले ही अकेली सही,लेकिन इस बार, अपने लिए"

आईना मुस्कुरा उठाऔर शायद… मैं भी....

पर हकीकत मुझे भी पता था , मेरी वजह से किसी का दिल दुखेगा , शायद मेरे स्वभाव के कारण शायद नहीं ..... वक्त ने मुझे ऐसा बना दिया ..... वरना मेरे मुस्कान के चर्चे बहुत थे ........!!!!

जब गुस्सा आया किसी ने संभाला ही नहीं.... वक्त के कटघरे में खड़ी खुद को गुनाहगार बनने दिया , गुनाह कुछ किया नहीं था मैने ......



Thanks for reading.....