नमस्कार प्रिय लेखकों/पाठकों ,
यह रचना पूर्णरूपेण काल्पनिक हैं। पात्र के नाम , स्थान , रूप-रंग आदि पुराणों में किए गए वर्णन के आधार पर लिखें गए हैं। रचना में लिखें गए प्रसंगों को तथ्यात्मक न समझा जाए। किसी भी कृष्णभक्त को मेरी कल्पना से कोई ठेस पहुंचती है तो मैं हृदय तल की गहराई से क्षमाप्रार्थी हूँ। रचना मेरे मन के भाव है , श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम है। सभी से निवेदन है कि आप इस रचना का रसास्वादन भक्ति भाव से करें। किसी भी प्रकार की त्रुटि होने पर आप मुझें अवगत करवाये। मैं तुरन्त सुधार करूँगी।
यह रचना मेरे मन के भाव रूपी पुष्प हैं जिन्हें मैं अपने प्रभु श्रीकृष्ण के श्रीचरणों में समर्पित करती हूँ।
रचना आरंभ करने से पहले मैं प्रथम पूज्य श्री गणपति से आर्तभाव से यह प्रार्थना करती हूँ....!
हे! गणपति तुम मुझ पर ये कृपा कर दो..अटल कृष्ण भक्ति का तुम मुझें वर दो। न भटकूँ इस संसार में , न तड़पु वृथा प्यार में ,तुम मुझको कृष्ण चरणों की दासी कर दो।।
हे गणपति! मुझ पर ये कृपा कर दो....
रहूं नित ध्यान मगन,जलु विरह अगन,तुम मुझ पर यह उपकार कर दो।।हे गणपति ! मुझ पर ये कृपा कर दो...कभी मीरा सी डोलूं,कभी राधा होलूँ,तूम मुझकों प्रेममग्न गोपी कर दो।।
हे गणपति ! मुझ पर ये कृपा कर दो ...
भटकूँ नगर-नगर,पुकारू हे कृष्ण! हे गिरधर! तुम मेरा स्थाई वास वृंदावन कर दो ।।हे गणपति ! मुझ पर ये कृपा कर दो..अटल कृष्णभक्ति का तुम मुझें वर दो ।।
राजाधिराज महाकाल महाराज व श्रीकृष्ण की कृपा से ,माता-पिता व गुरुदेव के आशीर्वाद से ,आप सभी के स्नेह से इस रचना का आरंभ करती हूँ।
आइये रचना के पहले भाग में प्रवेश करते हैं....
स्वरचित कविताओ के साथ...
रो-रो सूख गए नैन प्याले कब आओगे मुरली वाले
दरस को तरसी है अब अखियां इंतजार में हैं तेरी सब सखियां पनघट सूना, क़दम्ब सूना तेरे बिन सुना घर-अँगनाराह तक रहे गोपी-ग्वाले कब आओगे मुरली वाले
मोहन छवि सा ना कोई सुंदरतू ही बाहर, तू ही अंदर भक्ति की लौ में भी तू है मेरे प्रेम का गीत भी तू है आकर फिर से रास रचाले कब आओगे मुरली वाले
बृजरज, मटकी ,मिश्री-माखन शाम ढले और मुरली वादनबृजबाला और संगी साथी गैय्या, मोर और छोटा हाथी यमुना, बाबा, यशोदा पुकारे कब आओगे मुरली वाले
देर करो ना अब दो दर्शनसाँसों के तिनके किये अर्पणमेरी काया, मेरी छाया सब पर है बस तेरा साया भीगी पलकों से 'वैदेही' पुकारे कब आओगे मुरली वाले....
रो-रो सूख गए नैन प्याले ,कब आओगे मुरली वाले..!
अष्टमी तिथि , रात काली अंधियारी सन्नाटे में कारागार में गूंजी किलकारी आ गया तारणहार ,भक्तों का हितकारी भये धन्य देवकी-वसुदेव जबसे छबि निहारी खुल गए ताले ,सो गए रखवाले
वसुदेव चले कान्हा को लेकर जिगर का टुकड़ा करने नन्द के हवाले। यमुना मचली पग पखारने को आ गए प्राणनाथ, खुशी कैसे संभाले
बरसी थी बदरिया , मानो उसे थी खबर चौकन्ने थे नन्द बाबा , गौओ की थी फिकर । सो गई नंदा-सुनंदा , यशोदा थी बेखबर लिटाकर कान्हा , चले नंद कन्या लेकर। मित्र इसे ले जाओ, न देखना अब मुड़कर
नन्दभवन में गूंजी जब कान्हा की किलकारी, सुप्त वातावरण में मानो बज उठी स्वर लहरी,सुनंदा जागी देख लाला को ली बलिहारी, दौड़ गई नंद के पास सुनाई खुशखबरी लाला भयो है कामना हुई आज पुरी
नन्द भवन में उल्लास है छाया, यशोदा ने लाला है जाया, देवो ने भी फूल बरसाया ,देख कान्हा को गोकुल हर्षाया, नंद ने आज सबकुछ है लुटाया, कान्हा का है जन्मोत्सव ,गोकुल में हो जैसे महोत्सव, हम सब भी करें भेंट अर्पण ,करते हैं हम स्वयं को समर्पण ,शुभ जन्मोत्सव प्यारे मोहन