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“Wo Pyaar Jo Ek Tarfa Tha”
(एक तरफ़ा मगर पूरा प्यार…)
एक ऐसी कहानी
जिसमें सिर्फ़ तस्वीर का साथ था…
सिर्फ़ दो मुलाक़ातों की यादें थीं…
और फिर भी दिल सालों तक उसी के लिए धड़कता रहा —
बिना शिकायत… बिना शोर…
चलो…
मैं तुम्हारी कहानी लिखती हूँ…
तुम्हारी ज़ुबान से… तुम्हारी रूह से।
💔 “सिर्फ़ दो मुलाक़ातों का इश्क़”
मैं 11 साल की थी…
सीधी-सादी, मासूम,
खुद में ही खोई रहने वाली… एक छोटी सी लड़की।
मुझे क्या पता था कि उस एक रात में
मेरी ज़िन्दगी का फैसला होने वाला है।
उस रात मैं गहरी नींद में थी…
और कोई आकर मेरे करीब बैठ गया।
मैंने आँखें आधी खोलीं — लगा जैसे तौसीफ़ भईया हों।
“सॉरी,” कहकर मैं फिर सो गई…
लेकिन दिल को कुछ अजीब सा लगा —
जैसे कोई अलग सी खुशबू…
कोई गहरी सी ख़ामोशी…
और फिर जब उसकी अम्मी हँसी —
तभी पता चला… वो फैज़ान था।
मेरी मँगनी उसी से तय हो चुकी थी,
पर मुझे पता तक नहीं था…
ना उसने कभी कहा,
ना किसी ने मुझे बताया।
अगले दिन मैं पहली बार
उसे जागते हुए देख रही थी।
वो अपने कज़न के साथ खड़ा था,
किसी लड़की के बारे में बात कर रहा था…
और उसके आँखें मुझसे बच रही थीं।
तभी मुझे पता चला —
दो साल पहले ही मेरी मँगनी फैज़ान से हो चुकी है…
वो मुस्करा कर मेरे पास आया…
और धीरे से बोला —
“मेरी दोस्त बनोगी?”
मैंने सीधे उसकी आँखों में देखा…
शर्मीली सी मुस्कान के साथ “हाँ” कह दिया।
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उसी दोस्ती में…
कुछ महीनों में, कुछ दिनों में…
ख़ामोशी से प्यार पनप गया।
लेकिन कभी इज़हार नहीं हुआ।
एक जुमे की सुबह,
माँ ने कहा —
“ज़रा फैज़ान को बुला के लाओ।”
मैं गयी…
दरवाज़ा खोला —
और सामने वो शर्टलेस,
गीले बालों के साथ… आँखों में नींद लिए खड़ा था।
और मेरी आँखों में…
कुछ टूट सा गया…
या शायद… कुछ जुड़ गया।
उसी वक़्त से… मेरा दिल, उसका हो गया।
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उसके बाद…
बस उसकी तस्वीर बाकी रह गई।
ना कॉल,
ना कोई मैसेज,
ना कभी उसने पूछा —
“महीरा कैसी हो?”
मैं हर छुट्टी में उसके शहर जाती…
शायद एक बार दूर से देख सकूँ…
शायद एक बार दिल को उसका प्यार मिल जाए।
पर वो कभी नहीं आया।
कभी होस्टल में था,
कभी बिज़ी…
या शायद…
मुझमें दिलचस्पी नहीं थी।
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5 साल बाद…
एक नयी छुट्टी,
एक नया दिन…
और तुम — एक नयी महीरा।
चेहरे पर नर्मी,
आँखों में टीकी हुई उदासी,
और दिल में अब भी वही एक नाम — फैज़ान।
इस बार तुम ससुराल गयी तो सब कुछ वैसा ही लगा…
वही घर,
वही लोग,
वही हँसी…
बस एक कमी थी — वो।
तुमने सोचना भी छोड़ दिया था कि
शायद कभी कुछ बदलेगा…
लेकिन… मोहब्बत की किस्मत भी अजीब होती है।
जिस दिन तुम सबसे बेफिक्र होती हो —
उसी दिन किसी की याद, सच बनकर सामने आ खड़ी होती है।
एक शाम…
तुम छत पे खड़ी थीं —
दुपट्टा हवा में उड़ रहा था,
तुम बस हवा को महसूस कर रही थीं।
और तभी,
पीछे से एक धीरे, बहुत मुलाइम सी आवाज़ आई —
“…महीरा…”
तुम्हे यकीन ही नहीं हुआ…
साँस जैसे एक पल के लिए रुक गयी।
धीरे से पलट कर देखा —
वो वही था…
फैज़ान।
5 साल बाद…
वही आँखें,
उसी तरह तुम्हें देख रही थीं
जैसे पहली बार दोस्ती की दुआ करते हुए देखी थीं।
तुम कुछ बोल नहीं पायीं।
और वो…
धीरे से मुस्कुराया —
जैसे वो एक मुस्कान,
सालों पुराने हर ज़ख्म पर मरहम बन कर उतर रही हो।
“बहुत वक़्त लग गया न… तुम्हें लेने आने में…”
उसने कहा, और तुम्हारी आँखों में पहली बार नमी नहीं — सुकून उतर आया।
फैज़ान ने एक क़दम आगे बढ़ाया…
और तुमसे बस यही पूछा —
“अब चले?
बाकी ज़िन्दगी तुम्हारे साथ गुज़ारने का वक़्त आ गया है…”
इस बार तुम्हारे लबों पर शरमायी सी मुस्कान थी,
पर आँखों में वो हिम्मत —
जो सिर्फ़ सच्चे प्यार से मिलती है।
तुमने बिना कुछ कहे
चुपचाप उसका हाथ थाम लिया।
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और यूँ…
एक एकतरफ़ा इश्क़
अचानक दो रूहों की दुआ बन गया…
जहाँ ना इज़हार हुआ,
ना कोई वादा…
सिर्फ़ मुकम्मल मोहब्बत।
कभी-कभी…
सबसे ख़ूबसूरत मोहब्बतें
शोर नहीं मचाती —
बस इन्तज़ार करती हैं…
और सही वक़्त पर
क़दमों के साथ दिलों में उतर जाती हैं। 🤍
Happy ending