दिल्ली,
शहर की दुर्गा कॉलोनी ,
आलोक शर्मा जी का घर,
आलोक शर्मा एक कम्पनी में सॉफ्टवेयर हैं। सुबह-सुबह हॉल में बैठकर चाय पीते हुए अखबार पढ़ रहे हैं।
सुबह के तकरीबन 8 बजे होंगे कि तभी शर्मा जी के घर के दरवाजें पर दस्तक होती हैं। तब शर्मा जी की पत्नी सुरेखा जी दरवाजा खोलने जाती हैं। जैसे वो दरवाजा खोलती है तो देखती है कि सामने एक सुन्दर लड़की खडी़ होती हैं। उस लड़की को देखकर सुरेखा जी बोलती हैं- अरे लक्षिता, आओ बेटा अंदर आ जाओ। तब लक्षिता घर के अंदर आ जाती हैं। लक्षिता वर्मा 23 साल की एक खुबसूरत व चंचल लड़की है। लक्षिता घर के अंदर आकर सुरेखा जी और आलोक जी के चरण स्पर्श करती है और आलोक जी से पूछती हैं- अब कैसी तबियत है आपकी अंकल?? तभी आलोक जी बोलते हैं- अभी बिल्कुल ठीक हूँ मैं, अपने पापा को मेरी तरफ से उन आयुर्वेदिक दवाईयों के लिए धन्यवाद कहना। तभी उनकी बात सुनकर लक्षिता बोलती हैं- अंकल आप इतनी सी बात के लिए धन्यवाद बोलकर मुझे और पापा को पराया कर रहे हो और वैसे भी यह तो मेरे पापा का कर्तव्य हैं(लक्षिता के पापा श्रीमान् अभिषेक वर्मा एक आयुर्वेद है)। तभी लक्षिता आगे बोलती है- और वैसे भी अंकल मैं भी तो आपकी बेटी हूँ, हूँ कि नहीं?? लक्षिता की बात सुनकर आलोक जी और सुरेखा जी हँस पड़ते है और बोलते है- हाँ, तुम तो हमारी भी बेटी हो। यह सुनकर लक्षिता के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आ जाती हैं। लक्षिता सुरेखा जी से- आंटी, आपकी लाड़ली कहाँ है?? वो तैयार हुई की नहीं कॉलेज के लिए या आज भी फिर से हमें क्लास के बाहर ही खडा़ होना पडे़गा। तब सुरेखा जी- हाँ हाँ वो अपने कमरे में तैयार हो रही हैं। यह सुनकर लक्षिता भागती हुई सीढियों से ऊपर जाने लगती हैं। उसे ऐसे जाते देख सुरेखा जी बोलती हैं- अरे बेटा धीरे से जाना कहीं गिर मत जाना। पर लक्षिता बिना कुछ सुने ऊपर जाती हैं और एक कमरे के बाहर जाकर खडी़ हो जाती है और दरवाजे पर नॉक करती है। तभी कमरे के अंदर से एक लड़की की आवाज आती है- दरवाजा खुला ही है अंदर आ जा। यह सुनकर लक्षिता कमरे के अंदर जाती है और बोलती हैं- ओह हैलो मैड़म, आज कॉलेज जाने का इरादा है या आज भी छुट्टी मारनी हैं। तभी वो लड़की जो काँच के सामने खडी होकर हेयर ड्रायर से अपने लंबे, घने व काले भीगे बालों को सुखा रही है बोलती हैं- जाना है यार, पर ये बाल सुखने का नाम तक नहीं ले रहे हैं और अब तो मेरे हाथ भी दुखने लगे हैं। ऐसा बोलकर वो लड़की पास वाले बेड़ पर रोनी सी सुरत बनाकर बैठ जाती हैं। तब लक्षिता- ओ हो लावन्या, तू भी ना यार हर छोटी-छोटी बात पर उदास हो जाती हैं। और वैसे भी आज बाहर बहुत धूप है तो जब तक हम कॉलेज पहुचेंगे ना तब तक तेरे बाल सुख जाएंगे।
लावन्या शर्मा सुरेखा जी व आलोक शर्मा जी की इकलोती बेटी हैं।
लक्षिता और लावन्या बचपन से ही बहुत अच्छी दोस्त हैं। यह दोनों बचपन से एक ही स्कूल में साथ पढ़ती आई है और अभी इनका B.A 3rd ईयर खत्म होने वाला हैं। लावन्या लक्षिता से उम्र में एक साल छोटी है पर दिखने में उससे भी ज्यादा सुंदर हैं।
लक्षिता लावन्या की बात सुनकर बोलती है- हाँ वो तो है, और वैसे भी आज प्रोजेक्ट जमा करवाने की लास्ट डे़ट है तो जाना तो पडे़गा ही वरना वो प्रोफेसर चम्पक हमें कच्चा चबा जाएगा। यह बात सुनकर वो दोनों हँस पड़ती हैं। फिर वो दोनों तैयार होकर कॉलेज के लिए निकल जाती हैं।