The journey of dreams and reality in Hindi Love Stories by Arya Tiwari books and stories PDF | सपने और हकीकत का सफर

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सपने और हकीकत का सफर

अध्याय 1 : बचपन की वो गलियाँ

गाँव की संकरी गलियों में मिट्टी की खुशबू फैली हुई थी।
सर्दी की सुबह, सूरज धीरे-धीरे बादलों के पीछे से झाँक रहा था।
मकानों की छतों से धुआँ उठ रहा था—कहीं लकड़ी के चूल्हे से, तो कहीं गोबर की उपलों से।

इन्हीं गलियों में एक छोटी-सी लड़की दौड़ रही थी—रिशिका।
उसकी चोटी हवा में लहरा रही थी, और हाथ में फटी-पुरानी किताब थी।

“अरे! धीरे भाग पगली, गिर जाएगी!”
उसकी माँ आँगन से चिल्लाईं।

“अम्मा, लेट हो जाऊँगी स्कूल से… मास्टरजी डाँटेंगे।”
रिशिका हाँफते हुए बोली।

वह स्कूल पहुँचने वाली थी, तभी पीछे से आवाज़ आई—
“रिशिका… रुको!”

वह पलटी तो देखा, हाथ में स्लेट लिए एक दुबला-पतला लड़का दौड़ता आ रहा था।
वह था अभिषेक।

“मैंने कहा था न, साथ चलेंगे। अकेली क्यों भाग रही हो?”
अभिषेक ने शिकायत की।

रिशिका मुस्कुराई, “तू तो हमेशा तैयार होने में देर करता है।”

दोनों हँसते-खेलते स्कूल की तरफ निकल गए।
सारा रास्ता दोनों हँसते-गिरते बातें करते।


---

स्कूल का आँगन

स्कूल की घंटी बजी। बच्चे अपनी-अपनी क्लास में जा रहे थे।
रिशिका और अभिषेक भी अपनी जगह पर बैठ गए।

आज क्लास में नया चेहरा आया था—
लंबा, गोरा-सा लड़का, शांत और गहरी आँखों वाला।
मास्टरजी ने कहा,
“बच्चों, ये हैं आर्य। अभी-अभी शहर से यहाँ आए हैं। सब अच्छे से पेश आना।”

रिशिका ने पहली बार आर्य को देखा… और देखते रह गई।
उसकी आँखों में कुछ ऐसा था जो दिल को छू गया।

अभिषेक ने धीरे से कहा,
“देखना, ये लड़का बहुत घमंडी निकलेगा।”
पर रिशिका चुप रही।
उसे पता भी नहीं चला कि कब मास्टरजी की आवाज़ से वह चौंक गई।


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शाम का आँगन

शाम को जब रिशिका अपनी किताबें लेकर छत पर पढ़ रही थी,
तो नीचे गली में बच्चों की आवाज़ें आईं।

अभिषेक पतंग उड़ा रहा था, और उसके साथ नया लड़का आर्य भी था।
दोनों हँसते-खेलते तकरार कर रहे थे।

रिशिका किताब बंद कर पतंगों को देखने लगी।
अचानक हवा से एक पतंग टूटकर उसके आँगन में आ गिरी।

वह दौड़कर पतंग उठाने लगी, तभी दरवाज़े पर आवाज़ आई—
“वो… हमारी पतंग…”

रिशिका ने देखा—आर्य खड़ा था।
धीरे से उसने पतंग उसकी तरफ बढ़ा दी।

आर्य ने मुस्कुराकर कहा,
“धन्यवाद।”

बस, इतना-सा लम्हा…
और रिशिका का दिल अजीब-सी धड़कन से भर उठा।




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अध्याय 2 : अधूरा वादा

सुबह की पहली किरण खिड़की से होकर रिशिका के चेहरे पर पड़ी।
वह किताब खोले बैठी थी, लेकिन मन पढ़ाई में नहीं था।
बार-बार उसकी आँखों के सामने वही मुस्कुराता चेहरा आ रहा था—आर्य का।

“तू फिर सोच रही है उसके बारे में?”
अभिषेक ने अचानक दरवाज़े से झाँकते हुए पूछा।

रिशिका चौंक गई,
“क…किसके बारे में?”

अभिषेक मुस्कुराया,
“अरे, उसी नए लड़के के बारे में। देख, मैं तेरी आँखों को पहचानता हूँ।”

रिशिका ने किताब बंद की, थोड़ा झेंप गई।
“पागल है तू! चल स्कूल देर हो रही।”


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स्कूल का मैदान

आज मास्टरजी ने बच्चों को निबंध लिखने को कहा।
विषय था – “मेरा सपना”।

सब बच्चों ने अलग-अलग बातें लिखीं—
कोई डॉक्टर बनना चाहता था, कोई इंजीनियर, कोई बड़ा अधिकारी।

रिशिका ने लिखा—
"मेरा सपना है कि मैं अपने माँ-बाप को खुश देखूँ। उनका टूटा मकान ठीक करवाऊँ और खुद अपने पैरों पर खड़ी होऊँ।"

आर्य ने लिखा—
"मैं चाहता हूँ कि गाँव के बच्चे भी शहर जैसे अवसर पाएँ। मैं बड़ा आदमी बनकर बदलाव लाऊँगा।"

मास्टरजी ने दोनों के निबंध पढ़कर सराहना की।
लेकिन एक बात पर सबका ध्यान गया—
आर्य और रिशिका की सोच कहीं-न-कहीं मिलती थी।


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संध्या समय

शाम को स्कूल से लौटते वक्त गली सुनसान थी।
रिशिका धीरे-धीरे कदम बढ़ा रही थी, तभी पीछे से आवाज़ आई—

“रिशिका, जरा रुको।”
वह मुड़ी तो देखा, आर्य खड़ा था।

“मैं… एक बात कहना चाहता था।”
आर्य थोड़ा हिचकिचाया।

“क्या?” रिशिका ने उत्सुकता से पूछा।

“तुम्हारा सपना पढ़ा आज। बहुत अच्छा लगा।
पता है… मेरे सपने भी कुछ वैसे ही हैं।
शायद… हम दोनों मिलकर एक दिन इन्हें सच कर पाएँ।”

रिशिका कुछ पल चुप रही।
उसके होंठों पर हल्की मुस्कान थी, लेकिन आँखों में चमक भी।

“तो वादा करते हो… तुम अपने सपनों से कभी पीछे नहीं हटोगे?”
उसने धीमे स्वर में पूछा।

आर्य ने हाथ आगे बढ़ाया,
“वादा।”

रिशिका ने झिझकते हुए उसका हाथ थाम लिया।

पास खड़ा अभिषेक ये सब देख रहा था।
उसके चेहरे पर मुस्कान तो थी, लेकिन दिल के किसी कोने में हल्की चुभन भी।
वह जानता था कि रिशिका के दिल में अब कोई और जगह बना रहा है।


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अधूरा एहसास

उस रात रिशिका छत पर बैठी आसमान को देख रही थी।
उसकी आँखों में सपने थे, और कानों में बार-बार वही शब्द गूँज रहे थे—
"वादा…"

लेकिन वक्त की रफ़्तार किसी वादे की परवाह नहीं करती।
उसे नहीं पता था कि यह मासूम-सा वादा
कभी उसकी ज़िंदगी का सबसे अधूरा एहसास बन जाएगा।


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अध्याय 3 : रिश्तों की दरारें

बारिश और बचपन की यादें

गाँव की गलियों में लगातार बारिश हो रही थी।
कच्चे घरों की छतों से पानी टपक रहा था।
नदी का पानी उफान पर था।
ऐसे मौसम में बच्चे कागज़ की नावें बहाते और खेलते,
लेकिन तीन दोस्तों—रिशिका, अभिषेक और आर्य—की ज़िंदगी अब खेल से कहीं आगे बढ़ रही थी।

रिशिका को अब महसूस होने लगा था कि उसकी दुनिया दो हिस्सों में बँटती जा रही है।
एक ओर था अभिषेक, उसका बचपन का साथी, जो हर मुश्किल में साथ खड़ा रहता था।
दूसरी ओर था आर्य, जिसकी बातें उसके दिल की गहराइयों तक उतर जाती थीं।


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कबड्डी का मैदान

एक दिन स्कूल में कबड्डी का बड़ा मैच रखा गया।
गाँव के कई लोग देखने आए।
अभिषेक टीम का कप्तान चुना गया।

वह जोश से बोला,
“आज हमारी जीत पक्की है!”

आर्य ने धीरे से कहा,
“जीतने के लिए जोश ही नहीं, होश भी चाहिए।”

अभिषेक को यह सुनकर गुस्सा आया।
“मतलब, तू कहना चाहता है कि मैं गलत हूँ?”

आर्य शांत स्वर में बोला,
“नहीं… मेरा मतलब है कि अगर सब मिलकर खेलेंगे, तभी जीत पाएँगे।”

लेकिन अभिषेक ने उसकी बात अनसुनी कर दी।
खेल शुरू हुआ।


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हार और तकरार

पहले आधे हिस्से तक अभिषेक शानदार खेला।
पर आखिर में उसकी अकेलेपन वाली रणनीति टीम पर भारी पड़ गई।
टीम हार गई।

गाँव के लोग बड़बड़ाने लगे—
“अगर आर्य कप्तान होता तो शायद हारते नहीं।”

अभिषेक का चेहरा उतर गया।
उसने सबकी बातें सुन लीं।

मैच खत्म होने के बाद रिशिका उसके पास आई।
“इतना परेशान मत हो… अगली बार जीतेंगे।”

लेकिन अभिषेक ने झल्लाकर कहा,
“तुझे तो हमेशा आर्य की ही तरफ़दारी करनी है! क्या मैं कुछ नहीं हूँ?”

रिशिका चुप हो गई।
उसकी चुप्पी अभिषेक के दिल में और गहरी चोट कर गई।


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रात की छत पर

रात को रिशिका अपनी छत पर बैठी थी।
बारिश थम चुकी थी, पर मिट्टी की खुशबू अब भी हवा में थी।
अचानक किसी ने धीमी आवाज़ में पुकारा—

“रिशिका…”

वह चौंकी। देखा—आर्य सामने खड़ा था, दीवार के उस पार।

“आज तुमने मुझे क्यों नहीं समझाया?” रिशिका ने पूछा।

आर्य ने हल्की मुस्कान दी,
“कभी-कभी चुप रहना ही सही होता है।
लेकिन हाँ, मैं जानता हूँ कि अभिषेक को मेरी वजह से तकलीफ़ हो रही है।”

रिशिका की आँखें नम हो गईं।
“वो बचपन से मेरा सबसे अच्छा दोस्त है… मैं नहीं चाहती कि हमारी दोस्ती में दरार पड़े।”

आर्य ने गहरी नज़रों से उसकी तरफ़ देखा।
“दरारें तभी पड़ती हैं, जब रिश्ते कमजोर हों।
तुम्हें अपने दिल की सुननी चाहिए।”

उसकी आँखों में कुछ ऐसा था,
जिससे रिशिका का दिल बेचैन हो उठा।


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अँधेरे का गवाह

लेकिन यह सब अभिषेक ने देख लिया था।
वह नीचे अंधेरे में खड़ा था।
उसकी आँखें गुस्से और दर्द से भर गईं।

“तो अब रिशिका… उसे चाहती है, मुझे नहीं।”
उसने मुट्ठियाँ भींच लीं।

उस रात अभिषेक पहली बार अकेले रोया।
उसका बचपन, उसकी दोस्ती, उसका सपना—सब उसे छिनता हुआ लग रहा था।


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आने वाला तूफ़ान

आसमान में बादल छँट चुके थे।
चाँदनी गाँव की गलियों पर बिखर रही थी।
लेकिन इन तीन दिलों में अब कोई शांति नहीं थी।

रिशिका सोच रही थी—“क्या सच में मेरी चुप्पी, मेरी दोस्ती को तोड़ देगी?”
आर्य को यक़ीन था कि सच्चा रिश्ता कभी नहीं टूटता।
और अभिषेक…
उसके दिल में अब दोस्ती नहीं, बल्कि जलन और कसक की आग जल रही थी।

और यह आग आगे चलकर, सबकी ज़िंदगी बदलने वाली थी।


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अध्याय 4 : पहला इकरार

सावन का मेला

गाँव में सावन का बड़ा मेला लगा था।
गाँव-गाँव से लोग आए थे—झूले, मिठाइयाँ, खिलौनों की दुकानें, नाच-गाने के मंच…
चारों तरफ़ एक अलग ही रौनक थी।

रिशिका के लिए यह मेला खास था।
वह पहली बार इतनी भीड़ और चमक-दमक देख रही थी।
उसके साथ अभिषेक और आर्य भी थे।

अभिषेक के चेहरे पर जोश था—वह चाहता था कि रिशिका का पूरा ध्यान उसी पर रहे।
वहीं आर्य हमेशा की तरह चुपचाप, पर गहराई से सब देख रहा था।


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गोलगप्पे और नज़रें

भीड़ में चलते-चलते रिशिका अचानक रुक गई।
सामने गोलगप्पे की दुकान थी।
उसकी आँखों में चमक आ गई।

अभिषेक बोला,
“चल, झूला झूलते हैं!”

पर रिशिका हँसकर बोली,
“नहीं… पहले गोलगप्पे खाऊँगी।”

आर्य बिना कुछ कहे दुकानदार से प्लेट ले आया और बोला,
“लो, तुम्हारे लिए।”

रिशिका चौंकी,
“तुम्हें कैसे पता कि मुझे गोलगप्पे इतने पसंद हैं?”

आर्य ने मुस्कुराकर कहा,
“तुम्हारी आँखें बता देती हैं कि तुम क्या चाहती हो।”

ये सुनकर रिशिका के चेहरे पर लाली आ गई।
अभिषेक ने यह सब देखा—उसका दिल भीतर ही भीतर कसक उठा।


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अचानक अंधेरा

रात ढल रही थी।
लाइटों से सजी दुकानों के बीच अचानक बिजली चली गई।
पूरा मेला अंधेरे में डूब गया।

रिशिका घबरा गई।
भीड़ बढ़ रही थी, धक्का-मुक्की हो रही थी।

उसी वक्त एक मजबूत हाथ ने उसका हाथ थाम लिया।
वह आर्य था।

“डरो मत… मैं हूँ।”
उसकी आवाज़ में अजीब-सी दृढ़ता थी।

उस पल रिशिका ने पहली बार खुद को इतना सुरक्षित महसूस किया।
उसका डर गायब हो गया, और उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं।


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बरगद के नीचे

बिजली आने में देर थी।
लोग इधर-उधर बिखर गए थे।
आर्य रिशिका को खींचकर मेले से थोड़ा बाहर ले गया—जहाँ एक पुराना बरगद का पेड़ था।

हवा ठंडी थी।
चारों तरफ़ चाँदनी फैली थी।
दोनों कुछ देर खामोश खड़े रहे।

फिर आर्य ने धीमी आवाज़ में कहा,
“रिशिका… कभी तुम्हें लगा है कि हमारे बीच कुछ ऐसा है,
जो सिर्फ़ दोस्ती से ज़्यादा है?”

रिशिका ने चौंककर उसकी तरफ़ देखा।
उसकी आँखों में सच्चाई झलक रही थी।

वह कुछ पल चुप रही।
फिर धीमे से बोली,
“हाँ… कई बार।”

आर्य का दिल तेज़ी से धड़कने लगा।
उसने गहरी साँस ली और कहा,
“मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता।
मुझे लगता है… मैं तुम्हें चाहने लगा हूँ।”


---

पहला इकरार

रिशिका की साँसें रुक-सी गईं।
उसने नज़रें झुका लीं।
चेहरे पर हल्की-सी लाली थी।

फिर बहुत धीरे से बोली,
“मुझे भी तुम्हारे बिना सब अधूरा लगता है।”

यह सुनते ही आर्य की आँखें चमक उठीं।
वह यक़ीन नहीं कर पा रहा था कि रिशिका ने भी अपने दिल की बात कह दी।

आर्य ने मुस्कुराकर पूछा,
“तो… क्या यह इकरार है?”

रिशिका ने सिर झुकाकर हाँ में इशारा किया।
उस पल मानो पूरी दुनिया थम गई थी।
बरगद की शाखों के बीच से झाँकती चाँदनी उन दोनों पर पड़ रही थी,
जैसे आसमान भी उनके इस रिश्ते का गवाह बनना चाहता हो।


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अनचाहा गवाह

लेकिन यह पल सिर्फ़ उनका नहीं था।
कुछ दूरी पर अभिषेक खड़ा था।
वह सब देख चुका था।

उसकी आँखों में आँसू भर आए।
दिल चीख रहा था—
“तो ये सच है… रिशिका ने मुझे नहीं, उसे चुना।”

उसकी मुट्ठियाँ भींच गईं।
गला सूख गया।
उसने चुपचाप मुँह फेर लिया।

उस रात अभिषेक की दुनिया पूरी तरह बिखर गई।
दोस्ती, भरोसा, उम्मीद—सब राख हो गया।


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आने वाले तूफ़ान की आहट

रिशिका और आर्य के लिए यह रात हमेशा यादगार बनने वाली थी।
उनका पहला इकरार, पहला प्यार।
लेकिन अभिषेक के लिए यही रात उसके टूटे दिल की शुरुआत थी।

और यही दरार आगे चलकर उन तीनों की ज़िंदगी में सबसे बड़ा तूफ़ान लाने वाली थी।


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✨ (अध्याय 4 समाप्त)


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अध्याय 5 : टूटा दिल

अकेलापन

उस रात मेला खत्म हो चुका था।
गाँव की गलियों में सन्नाटा पसरा था।
लेकिन अभिषेक के दिल में शोर था—एक ऐसा शोर जो किसी को सुनाई नहीं देता।

वह अकेले खेतों की पगडंडी पर चलता रहा।
आँखों में आँसू, सीने में आग।
हर कदम पर उसे वही नज़ारा याद आ रहा था—
रिशिका का आर्य के सामने इकरार।

उसने खुद से कहा,
“क्यों? क्यों उसने मुझे नहीं चुना?
मैंने तो उसे सबसे पहले देखा था, सबसे पहले चाहा था…”

उसके भीतर सवालों की आँधी थी,
जवाब कहीं नहीं।


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दोस्तों के बीच दूरी

अगले दिन जब तीनों कॉलेज पहुँचे,
तो माहौल अजीब था।

रिशिका और आर्य के बीच अब एक अनकही नज़दीकी थी।
उनकी आँखों की चमक, उनके चेहरे की मुस्कान—सब बदल चुका था।

अभिषेक यह सब देखकर मुस्कुराने की कोशिश करता,
पर उसकी मुस्कान बनावटी थी।

धीरे-धीरे उसने दोनों से दूरी बनाना शुरू कर दी।
कभी साथ बैठने वाला अभिषेक अब अकेला रहने लगा।
कक्षा में उसका ध्यान भटकने लगा।

रिशिका कई बार पास आई और पूछा,
“अभिषेक, सब ठीक है न?”

वह सिर्फ़ इतना कहता,
“हाँ, सब ठीक है।”
पर उसके भीतर का दर्द हर रोज़ बढ़ता जा रहा था।


---

रात का टूटना

एक रात अभिषेक अपनी छत पर बैठा था।
आसमान में चाँद था, पर उसके दिल में अंधेरा।

वह बोला,
“दोस्ती का हक़ भी खो दिया मैंने…
प्यार तो मिला नहीं…
अब मैं किसके लिए जियूँ?”

उसने शराब की बोतल उठाई।
पहली बार उसने नशे का सहारा लिया।
हर घूँट के साथ उसकी आँखें और लाल हो रही थीं।

दिल टूटा था, और अब वह रास्ता भी टूट रहा था।


---

आर्य की कोशिश

आर्य ने जल्दी ही यह महसूस कर लिया कि अभिषेक बदल रहा है।
उसने एक दिन उसे रोककर कहा,
“भाई, तुझसे कुछ छुपा नहीं सकता…
पर तू इतना दूर क्यों जा रहा है? हम दोनों तेरे अपने हैं।”

अभिषेक ने कड़वाहट भरी हँसी के साथ कहा,
“अपने?
तुम दोनों ने मुझे अकेला छोड़कर अपना ‘अपना’ बना लिया है।”

उसकी आँखों में जलन और दर्द साफ़ झलक रहा था।
आर्य समझ गया कि यह फासला भरना आसान नहीं होगा।


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रिशिका की बेचैनी

रिशिका भी अभिषेक की हालत देखकर परेशान थी।
वह चाहती थी कि तीनों पहले जैसे हों।
पर अब कुछ टूटा हुआ सा लग रहा था।

एक रात उसने आर्य से कहा,
“मुझे डर लग रहा है…
अभिषेक कहीं खुद को बर्बाद न कर ले।”

आर्य ने गहरी साँस ली,
“हाँ, मुझे भी वही डर है।”


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अंधेरे की ओर

समय बीतने लगा।
रिशिका और आर्य का रिश्ता गहराता गया।
लेकिन अभिषेक का अकेलापन भी गहराता गया।

उसने पढ़ाई से ध्यान हटा लिया,
नए दोस्तों के साथ वक्त बिताने लगा,
और धीरे-धीरे वह अंधेरे रास्ते पर उतरने लगा।

उसके मन में प्यार की जगह अब सिर्फ़
दर्द, जलन और बदले की चिंगारी बची थी।


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अध्याय 6 : बदले की आग 🔥

नए रास्ते

अभिषेक का दिल टूटा हुआ था।
उसकी दोस्ती, भरोसा, और प्यार सब कहीं खो गया।
रिशिका और आर्य का रिश्ता उसे हर रोज़ चुभ रहा था।

धीरे-धीरे अभिषेक ने खुद को बदलना शुरू किया।
वह अब वही बचपन का मासूम लड़का नहीं रहा।
हर हँसी, हर खुशी उसे अंदर ही अंदर जलाती थी।


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गलत संगति

एक दिन अभिषेक शहर के एक बड़े दोस्त के पास गया।
वह दोस्त कुछ गलत कामों में लिप्त था।
अभिषेक ने शुरू में सिर्फ़ अपनी नाराज़गी में उनकी संगति को अपनाया।
लेकिन धीरे-धीरे वह भी वही रास्ता अपनाने लगा।

“अब मैं किसी को भी नहीं छोड़ूँगा, जो मुझे चोट पहुँचाए।”
अभिषेक ने अपने आप से कहा।
और यही सोच उसे बदले की आग में झोंक रही थी।


---

आर्य और रिशिका

रिशिका और आर्य की नज़दीकियाँ बढ़ रही थीं।
कॉलेज में वे अक्सर साथ दिखते।
अभिषेक को यह सब देखने से भीतर का गुस्सा और बढ़ता।

एक दिन अभिषेक ने आर्य को अकेला पकड़ लिया।
“तुम्हें रिशिका की इतनी फिक्र क्यों है?”
अभिषेक की आँखें लाल हो रही थीं।

आर्य ने शांत स्वर में जवाब दिया,
“क्योंकि वह मेरे लिए सब कुछ है।
और तुम उसका दोस्त हो… मुझे उम्मीद थी कि तुम समझोगे।”

अभिषेक ने सिर्फ़ ठंडी हँसी हँसी।
“समझूँ? मैंने खुद को खो दिया है…
और तुम खुश हो?”


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रिशिका की बेचैनी

रिशिका ने अभिषेक के बदलते स्वभाव को नोटिस किया।
वह दिन-रात उदास रहने लगा था।
वो अक्सर अकेला रहता, कभी-कभी बिना बताए कहीं चला जाता।

रिशिका ने आर्य से कहा,
“मुझे डर लग रहा है… अभिषेक कहीं अपने गुस्से में कुछ गलत न कर दे।”

आर्य ने गंभीर स्वर में कहा,
“मैं भी यही सोच रहा हूँ।
हमें सावधानी रखनी होगी, वरना यह गुस्सा किसी बड़ा नुकसान कर सकता है।”


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टूटते रिश्ते

अभिषेक की बदले की योजना धीरे-धीरे साफ़ दिखने लगी।
वह अब किसी भी कीमत पर रिशिका और आर्य को दर्द देना चाहता था।
लेकिन रिश्तों की जटिलता उसे भीतर ही भीतर जकड़ रही थी।

रिशिका और आर्य ने महसूस किया कि उनका प्यार अब सिर्फ़ उन्हें नहीं,
बल्कि अभिषेक की भावनाओं और उसकी जुदाई की कसक को भी प्रभावित कर रहा था।


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आने वाला तूफ़ान

गाँव की गलियाँ अब पहले जैसी नहीं थीं।
तीनों के बीच अनकही बातों, झूठे सवालों और टूटते रिश्तों की आहट थी।
एक छोटी सी चिंगारी बड़ी आग बनने वाली थी।

और यही आग,
उनकी ज़िंदगी को ऐसे मोड़ पर ले जाएगी,
जहाँ सपने और हक़ीक़त आमने-सामने होंगी।


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अध्याय 7 : पहली जंग और रहस्य

तनाव की शुरुआत

अभिषेक का बदला अब सिर्फ़ दिल में नहीं रह गया था।
उसने अपनी योजना बनानी शुरू कर दी थी।
रिशिका और आर्य के लिए हर छोटी खुशी अब चुनौती बन चुकी थी।

गाँव में स्कूल के प्रोजेक्ट के लिए प्रतियोगिता का आयोजन हुआ।
रिशिका और आर्य ने टीम बनाई।
अभिषेक ने अलग टीम बनाई।
दोनों टीमों के बीच पहले ही दिन से तनाव और टकराव दिखने लगा।


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अभिषेक की चाल

अभिषेक ने जानबूझकर आर्य और रिशिका की योजनाओं में बाधा डालनी शुरू की।
वह जानता था कि अगर उन्हें परेशान किया जाए, तो वे लड़खड़ा जाएंगे।

एक दिन अभिषेक ने उनके प्रोजेक्ट के मॉडल को नुकसान पहुँचाया।
रिशिका और आर्य ने देखा कि मॉडल गिरा हुआ है।

“अभिषेक ने किया है?” रिशिका ने शॉक में पूछा।
आर्य ने गहरी साँस ली और कहा,
“हमें धैर्य रखना होगा। किसी भी हालत में हम हार नहीं सकते।”


---

पहली टकराव

अभिषेक ने इस अवसर का फायदा उठाते हुए टीम के सामने आर्य और रिशिका को अपमानित किया।
“तुम लोग क्या कर रहे हो? इतनी मेहनत और फिर भी काम अधूरा!”
उसकी आवाज़ में कटुता थी।

रिशिका को गुस्सा आया,
“अभिषेक, तुम जानबूझकर ऐसा कर रहे हो!
हमें परेशान करना बंद करो।”

लेकिन अभिषेक चुप नहीं हुआ।
“परेशान करना? नहीं… बस सच दिखा रहा हूँ।”

आर्य ने बीच में आकर कहा,
“अभिषेक, अगर दोस्त हो तो समझो।
लेकिन अगर दिल में सिर्फ़ जलन है, तो हम खुद संभाल लेंगे।”

अभिषेक ने गहरी साँस ली, आँखों में आग।
उसने जाना कि अब यह सिर्फ़ मुस्कान या दोस्ती का खेल नहीं रहा।
यह सच्चाई और धोखे की जंग बन चुकी थी।


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अनजाना रहस्य

इसी बीच एक पुराना रहस्य उभरने लगा।
रिशिका ने अपने पिता की अलमारी में एक पुराना खाता देखा।
जिसमें गाँव की जमीन, परिवार की पैतृक संपत्ति और कुछ पुराने खत लिखे थे।

उसमें एक नाम बार-बार आता था—आर्य के पिता का नाम।
रिशिका के मन में सवाल उठे,
“क्या आर्य का परिवार हमारे अतीत से जुड़ा है?”

इस रहस्य ने उसके दिल को बेचैन कर दिया।
उसने आर्य से पूछने की ठानी।


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पहली छोटी जीत

प्रोजेक्ट प्रतियोगिता के अंतिम दिन,
रिशिका और आर्य ने अपनी मेहनत और समझदारी से मॉडल तैयार किया।
अभिषेक की हर चाल के बावजूद, उन्होंने सफलता पाई।

रिशिका ने महसूस किया—
“सपनों को पूरा करना सिर्फ़ मेहनत से नहीं, बल्कि समझदारी, धैर्य और भरोसे से भी होता है।”

आर्य ने उसका हाथ पकड़कर कहा,
“देखा, हम हार नहीं सकते। चाहे अभिषेक कितना भी गुस्सा करे, हम अपना रास्ता खुद बनाएंगे।”


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तूफ़ान की चेतावनी

लेकिन अभिषेक की जलन और दर्द अब सिर्फ़ खेल तक सीमित नहीं रहे।
उसने ठान लिया था—
“मैं सिर्फ़ जीतने के लिए नहीं,
बल्कि रिशिका और आर्य की खुशियों को तोड़ने के लिए भी कुछ करूँगा।”

और इसी आग के बीच,
सपने और हक़ीक़त का संघर्ष अगले स्तर पर पहुँचने वाला था।


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अध्याय 8 : सच का सामना

रहस्य का खुलासा

रिशिका ने आखिरकार आर्य से वह पुराना खाता दिखाया।
उसके हाथ कांप रहे थे।

“आर्य… ये क्या है? तुम्हारे पिता और हमारे परिवार का नाम यहाँ क्यों है?”
रिशिका ने सवाल किया।

आर्य की आँखों में आश्चर्य और उदासी दोनों झलक रहे थे।
“मैं… मैं तुमसे हमेशा सच छुपाना नहीं चाहता था।
मेरे पिता और तुम्हारे परिवार के बीच कुछ पुरानी अनबन थी।
पर अब मैं चाहता हूँ कि हम खुद अपना भविष्य बनाएं, अतीत से नहीं।”

रिशिका की आँखों में हल्का सा डर था।
“तो इसका मतलब क्या है? हमें भी इसमें उलझना होगा?”

आर्य ने हाथ थामकर कहा,
“नहीं। मैं यह वादा करता हूँ—हमारे सपने, हमारी खुशियाँ
किसी पुराने झगड़े से नहीं टूटेंगी।
हम खुद अपनी कहानी लिखेंगे।”


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अभिषेक की चालें

अभिषेक ने ये सब देखा।
उसने तय किया कि अब बस धैर्य से काम नहीं चलेगा।
वह खुद सक्रिय हुआ—रिशिका और आर्य की हर छोटी खुशी में बाधा डालना शुरू किया।

पहले उसने आर्य की पढ़ाई में हस्तक्षेप किया।
फिर रिशिका के दोस्तों के बीच अफवाहें फैलाना शुरू किया।
उसका दिल अब केवल बदले की आग में जल रहा था।


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पहला बड़ा संघर्ष

एक दिन अभिषेक ने गाँव के पुराने स्कूल प्रोजेक्ट में आर्य और रिशिका के मॉडल को नुकसान पहुँचाया।
रिशिका की आँखों में आँसू थे।
“अभिषेक… क्यों?” उसने पूछा।

अभिषेक ने ठंडी हँसी दी,
“क्योंकि तुम्हें यह समझना होगा—हर खुशी सुलभ नहीं होती।”

आर्य ने सामने आकर कहा,
“हम हारेंगे नहीं। तुम चाहे जो भी कर लो।
हमारे सपने और हमारा प्यार किसी की जलन से टूटेंगे नहीं।”

अभिषेक की आँखों में और आग भड़क उठी।
उसने महसूस किया कि अब सिर्फ़ समझाना काम नहीं करेगा।
अब कार्रवाई करनी होगी।


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रिशिका की मजबूती

रिशिका ने अपने भीतर ताक़त महसूस की।
वह अब सिर्फ़ आर्य की नहीं,
अपने सपनों और अपने आत्मसम्मान की भी रक्षा करना चाहती थी।

उसने आर्य से कहा,
“हमें अकेले नहीं लड़ना।
हम अपने रास्ते खुद बनाएँगे, चाहे अभिषेक कुछ भी करे।”

आर्य ने मुस्कुराते हुए उसका हाथ थामा।
“तुम्हारे साथ, मैं किसी भी तूफ़ान का सामना कर सकता हूँ।”


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आने वाला बड़ा तूफ़ान

लेकिन अभिषेक की बदले की योजना अब और गंभीर हो चुकी थी।
उसने तय कर लिया—
“सिर्फ़ परेशान करना पर्याप्त नहीं।
अब मैं इस रिश्ते को तोड़ दूँगा, चाहे जो भी करना पड़े।”

गाँव की गलियाँ अब पहले जैसी नहीं रही।
तीनों के बीच अनकही बातें, जलन और डर की हवा चल रही थी।
सपने और हक़ीक़त का संघर्ष अब अपने चरम पर पहुँचने वाला था।


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अध्याय 9 : दिल की लड़ाई और मोड़

अभिषेक की साजिश

अभिषेक अब सिर्फ़ जलन और दर्द में नहीं,
बल्कि पूरी तरह बदले की आग में जल रहा था।
उसने योजना बनाई कि रिशिका और आर्य के बीच दरार पैदा करेगा।

वह धीरे-धीरे आर्य के प्रति अफवाहें फैलाने लगा।
कॉलेज में कुछ झूठे संदेश, कुछ गलत रिपोर्टें—
सब अभिषेक की चालें थीं।

रिशिका ने महसूस किया कि कुछ गलत हो रहा है।
उसने आर्य से कहा,
“कहीं अभिषेक… कुछ कर तो नहीं रहा?”

आर्य ने गंभीर स्वर में जवाब दिया,
“हमें सावधानी रखनी होगी।
वो अकेला नहीं है जो लड़ सकता है… हम दोनों एक साथ हैं।”


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पहली बड़ी लड़ाई

एक दिन अभिषेक ने आर्य और रिशिका के सामने सबको परेशान करने की कोशिश की।
वह उन दोनों के प्रोजेक्ट में बदलाव कर बैठा।
सब कुछ उलट-पुलट हो गया।

रिशिका चिल्लाई,
“अभिषेक! तुम जानबूझकर कर रहे हो।
हमारे सपनों को तोड़ने की कोशिश क्यों?”

अभिषेक ने ठंडी हँसी दी,
“सपने? तुम्हारे सपने और खुशियाँ अब मेरे हाथ में हैं।
और मैं इसे भुनाऊँगा।”

आर्य ने उसके सामने खड़े होकर कहा,
“हमारा प्यार और हमारा विश्वास किसी की चाल से नहीं टूटेगा।
हम हारेंगे नहीं।”

अभिषेक के चेहरे पर आग और गुस्सा झलक रहा था।
उसने सोचा—अब सिर्फ़ लड़ाई ही बाकी थी।


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रिशिका की ताक़त

रिशिका अब केवल मासूम लड़की नहीं रही।
वह अपनी ताक़त, धैर्य और समझदारी से अभिषेक की चालों को नाकाम कर रही थी।
वह जान गई थी कि केवल प्यार ही नहीं,
सपनों और रिश्तों की रक्षा के लिए भी लड़ना पड़ता है।

एक रात उसने आर्य से कहा,
“हमारे सामने जो भी तूफ़ान आए,
हम एक साथ उसका सामना करेंगे।
मैं डरूंगी नहीं।”

आर्य ने मुस्कुराते हुए कहा,
“और यही वजह है कि मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।”


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मोड़ का समय

लेकिन अभिषेक ने अपनी योजना को और बढ़ा दिया।
उसने गाँव के कुछ लोगों को भी अपने पक्ष में कर लिया।
रिशिका और आर्य की खुशियों पर अब खुला हमला शुरू हुआ।

गाँव में हवा बदल गई थी।
हर तरफ़ अफवाहें, डर और अनसुलझे सवाल।
सपने और हक़ीक़त की लड़ाई अब केवल दिलों तक सीमित नहीं थी।
यह पूरे गाँव की हकीकत बन चुकी थी।


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अंत की आहट

रिशिका और आर्य ने तय किया—
अब कोई भी साजिश, कोई भी झूठ उन्हें रोक नहीं सकता।
वे अपने प्यार और सपनों के लिए पूरी तरह तैयार थे।

लेकिन अभिषेक की आग अब और भड़क चुकी थी।
और आने वाला तूफ़ान…
तीनों की ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल देने वाला था।


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✨ (अध्याय 9 समाप्त)


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अध्याय 10 : सच और माफी का मोड़

अभिषेक की हार

अभिषेक अब अपनी पूरी योजना में फंस चुका था।
उसने जो भी किया, रिशिका और आर्य का प्यार उसे रोक नहीं सका।
हर चाल, हर झूठ—सब बेकार साबित हो गया।

रिशिका और आर्य ने गाँव के लोगों के सामने सच्चाई रखी।
अभिषेक की हर अफवाह और चाल अब सामने आ गई।

अभिषेक खड़ा था, मुँह पर ठंडी मुस्कान,
लेकिन अंदर उसका दिल टूट रहा था।
वह महसूस कर रहा था कि अब बदला और जलन कुछ नहीं बचाएगी।


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माफी का पहला कदम

अभिषेक ने रिशिका से कहा,
“मुझे माफ़ कर दो…
मैंने जो किया, उस पर मुझे पछतावा है।
तुम्हारे और आर्य के प्यार को मैंने कभी समझा नहीं।”

रिशिका की आँखों में आँसू थे,
लेकिन उसने धीरे से कहा,
“भाई… अब तुम बदल जाओ।
दुनिया में प्यार और दोस्ती की अहमियत समझो।
लेकिन माफ़ी का मतलब यह नहीं कि सब भूल जाओ,
बल्कि यह है कि अब सही रास्ता चुनो।”

अभिषेक ने सिर झुका लिया।
उसने पहली बार महसूस किया—सच्चा दुःख और पछतावा कैसा होता है।


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आर्य का समर्थन

आर्य ने अभिषेक को समझाया,
“हम सब गलतियाँ करते हैं।
लेकिन सही राह पर लौटना ही इंसान की असली ताक़त है।
अब से हम सब फिर से दोस्त बन सकते हैं,
लेकिन बस—भूल-चूक को दुहराना नहीं।”

अभिषेक की आँखों में आँसू थे।
वह पहली बार सच्चे दिल से मुस्कुराया।
उसने महसूस किया कि मित्रता और प्यार की ताक़त किसी बदले से बड़ी होती है।


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सपनों और हक़ीक़त का संगम

रिशिका और आर्य अब एक-दूसरे के और करीब हो गए।
उनके सपने अब एक साथ उड़ान भर रहे थे।
अभिषेक ने भी खुद को बदल लिया।
अब वह केवल एक सच्चा दोस्त और भाई बनना चाहता था।

गाँव की गलियाँ फिर से वही चमक दिखा रही थीं।
लेकिन अब सबके दिलों में समझ, माफी और सच्चाई की रोशनी थी।


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अंत

सपने और हक़ीक़त का सफ़र कठिन था।
कभी रिश्ते टूटे, कभी दिल दर्द से भर गए।
लेकिन प्यार, दोस्ती और समझदारी ने अंत में जीत हासिल की।

रिशिका और आर्य ने साबित किया—
सच्चा प्यार हर तूफ़ान में टिकता है।
अभिषेक ने सिखा—
कि जलन और बदला केवल दुख देते हैं,
लेकिन माफ़ी और समझदारी जीवन बदल सकती है।

और इस तरह, तीनों का सफ़र सपने और हक़ीक़त के संगम पर समाप्त हुआ।


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