Invisible Sacrificing Better Half - 2 in Hindi Women Focused by archana books and stories PDF | अदृश्य त्याग अर्द्धांगिनी - 2

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अदृश्य त्याग अर्द्धांगिनी - 2

प्रेमिका से पत्नी बनने का द्वंद्व: एक अंतहीन चक्र
यह कैसी विडंबना है कि जो पद (पत्नी) एक स्त्री द्वारा अक्सर आलोचना का पात्र बनता है, उसी को पाने के लिए एक अन्य स्त्री (प्रेमिका) किसी मौजूदा पत्नी को बदनाम करने से भी नहीं हिचकती। वह अपनी तुलना एक पत्नी से करती है, यह दावा करते हुए कि उसका प्रेम श्रेष्ठ और निस्वार्थ है, जबकि पत्नी का प्रेम अपने पति के प्रति केवल स्वार्थ से भरा होता है। या शायद यह प्रेमिका अपने भविष्य के ताने-बाने बुन रही होती है।
प्रेमिका जब बनती है पत्नी...
परंतु, जब यही प्रेमिका एक दिन पत्नी बन जाती है, तो क्या होता है? जिस "बुरी पत्नी" के कलंक को उसने दूसरों के माथे मढ़ा था, यही कलंक धीरे-धीरे उसके खुद के माथे पर आने लगता है। ऐसा लगता है कि यह प्रेमिका पत्नी के लिए ऐसा चक्रव्यूह रचती है, जिसमें फंसकर वह खुद को एक अच्छी पत्नी साबित करते-करते थक जाती है।


पीढ़ियों का चक्रव्यूह
यह चक्रव्यूह पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता रहता है। जैसे-जैसे नई-नई प्रेमिकाएं जन्म लेती हैं, यह सिलसिला जारी रहता है, और हर नई प्रेमिका अनजाने में या जानबूझकर उसी जाल में फंसती चली जाती है जिसे उसने दूसरों के लिए बुना था। यह एक ऐसा दुष्चक्र है जहाँ सम्मान पाने की चाह में दूसरों का अपमान किया जाता है, और अंततः यही अपमान अपने हिस्से आता है।
आपकी कविता एक बहुत महत्वपूर्ण संदेश दे रही है, जो कई पत्नियों के जीवन की सच्चाई को उजागर करता है।
मुख्य संदेश यह है कि पत्नियों का जीवन अक्सर संघर्षपूर्ण होता है, खासकर पारिवारिक संबंधों के भीतर। वे अक्सर अकेले ही चुनौतियों का सामना करती हैं, और उन्हें सास, ननद, देवरानी, जेठानी जैसे रिश्तों के बीच ईर्ष्या और मुकाबले का सामना करना पड़ता है।

जो पत्नियां सीधी-सादी, छल-कपट से दूर और साफ दिल की होती हैं, वे अक्सर इन पारिवारिक "चक्रव्यूह" में फंस जाती हैं। उनके सीधेपन और चालाकियों को न जानने के कारण, उन्हें गलत समझा जाता है और कभी-कभी उन्हें ही "बुरी पत्नी" मान लिया जाता है, जबकि वे सिर्फ सच बोलती हैं और दिल की साफ होती हैं।
संक्षेप में, यह कविता पत्नियों के अनकहे संघर्षों, उनके अकेलेपन और छल-कपट से दूर रहने वाली सीधी महिलाओं को गलत समझे जाने पर प्रकाश डालती है। यह एक मार्मिक चित्रण है कि कैसे अच्छे इरादों वाली स्त्री भी परिस्थितियों और दूसरों की चालाकी के कारण नकारात्मक रूप में देखी जा सकती है।

तुलना व्यर्थ है
दरअसल, प्रेमिका और पत्नी में तुलना करना व्यर्थ है, क्योंकि एक दिन प्रेमिका पत्नी बनेगी और और भी अपने सिर मढ़ेगी जो पत्नी के लिए मढ़ा। जिस दृष्टि से पत्नी को देखा, वैसे प्रेमिका इन परिस्थितियों से गुजरेगी।

और कभी लेखक और पुरुष शायद भूल गए कि प्रेमिका का कोई स्थान नहीं ले सकता, लेकिन प्रेमिकाओं को लेना पड़ा पत्नी का स्थान। और शादी के बाद इनको भी भुगतान करना पड़ा। सब, तुलना करना व्यर्थ है क्योंकि ये दोनों ही पहले स्त्री हैं, बाद में किसी की प्रेमिका और पत्नी हैं।
क्या पता है कि ये प्रेमिका आजीवन तक प्रेमिका नहीं रहेंगी? किसी-किसी की शादी करके पत्नी बनेगी। घूम-फिर कर बनना पत्नी ही है। क्योंकि राधा भी कृष्ण की पत्नी बनीं और वो पार्वती प्रतीक्षा अंत में पत्नी बनीं। और फिर भी कोई समझ न सका।

पत्नी और प्रेमिका का चक्रव्यूह
जिस पत्नी की आलोचना करती है, उसी पत्नी पद को पाने को, बदनाम करती है। और तुलना खुद की एक पत्नी से करती है, 'मैं श्रेष्ठ, मेरा निस्वार्थ प्रेम,' ऐसा वो कहती है। पत्नी तो स्वार्थ का प्रेम, अपने पति से करती है, या प्रेमिका अपने भविष्य का जाल बुनती है।
जब किसी की वो एक दिन प्रेमिका से पत्नी बनती है, 'बुरी पत्नी' का कलंक, अपने माथे मढ़ती है। ये प्रेमिका ऐसा चक्रव्यूह पत्नी के लिए रचती है, पत्नी की प्रेमिका से पत्नी बनती है, तो खुद को, अच्छी पत्नी साबित करते-करते थक जाती है। ये चक्रव्यूह पीढ़ी दर पीढ़ी, जो नई प्रेमिका बनती है।

सुनो प्रेमिकाओं! त्याग जो कभी न दिख सका पत्नी...
सुनो, प्रेमिकाओं! त्याग जो कभी न दिख सका पत्नी, जिसने परदे की आड़ में अपमान आरोप भी सहकर अपने पति का साथ न छोड़ा। पत्नी करती रही पति को अथाह प्रेम, पति ने पत्नी से प्रेमिका के लिए मुँह मोड़ा।
लगी रही दिन-रात खुद भूलकर सेवा में, बदले में मिला अपमान और तानों का कोड़ा।
तुम्हें गुरुर है कि घर की जिम्मेदारी, घर चलाना आसान है। तुम्हें अभी अनुभव नहीं, और अभी पत्नी भी नहीं। घर बसाने के लिए आरोप, आप अपमान सहो कभी बहुत तो कभी थोड़ा।
तुमने तो उसके प्रेम को हल्के में ले लिया, तुम उसके हिस्से का प्रेम खाकर कहती हो, 'हो कुछ तो मुझमें बात है!' तभी तो मैं और दौड़ा।
जरा सोचो, गलत कौन हम दोनों को इस मोड़ पर लाकर छोड़ा?
सुनो प्रेमिकाओं! इतना क्या प्रेम-गुमान करना?
एक पत्नी क्या चाहती है पति से
भावनात्मक सहारा और साथ
दुख में पति का धीरज चाहे, मुश्किल पल में वो अकेला न रहे, चाहे। खुशी में भी साथ वो चाहे, खुले दिल से हर कदम पर निभाए।
ये साथ नहीं केवल शारीरिक उपस्थिति, बल्कि आत्मा का गहरा जुड़ाव, एक सुंदर स्तिथि।
"दो शब्द" की कीमत
"क्या इतने कीमती हैं दो शब्द प्रेम और सम्मान?" ये बताते हैं कितना अनमोल है इनका स्थान। अक्सर इन्हें नज़रअंदाज़ किया जाता, पर पत्नी पति से ही इन्हें सदा चाहती।
क्योंकि पति से मिला प्रेम और सम्मान, सुरक्षा, आत्मविश्वास, खुशी का है ये वरदान।
पीढ़ियों का चक्रव्यूह
ये चक्रव्यूह पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता है। जैसे-जैसे नई-नई प्रेमिकाएं जन्म लेती हैं, ये सिलसिला जारी रहता है, और हर नई प्रेमिका, अनजाने में या जानबूझकर उसी जाल में फंसती चली जाती है जिसे उसने दूसरों के लिए बुना था।
ये एक ऐसा दुष्चक्र है, जहाँ सम्मान पाने की चाह में, दूसरे का अपमान किया जाता है, और अंततः वही अपमान अपने हिस्से आता है। क्या आपको लगता है कि इस चक्र को कभी तोड़ा जा सकता है? या यह समाज का एक अंतहीन हिस्सा है? और नई-नई प्रेमिकाएं बनती हैं, नई पीढ़ी की, जो प्रेमिका नई बनीं, जाल एक पत्नी के लिए। जब वो प्रेमिका से पत्नी बनती है, नई पीढ़ी की प्रेमिका, उन्हीं को प्रेमिका बुरी कहती है।
पत्नी के प्रेम में स्वार्थ क्यों दिखता कारण
प्रेमिका के खर्च का भार प्रेमी नहीं उठाता। प्रेमिका की हर ज़रूरत और खर्च प्रेमिका के माता-पिता द्वारा किया जाता है। इसलिए इस रिश्ते में स्वार्थ नज़र नहीं आता है। प्रेमी अपनी प्रेमिका से सप्ताह या महीने में मिलने जाता है और सारा दुख-दर्द प्रेमिका से बांटता है। परिवार और विपरीत परिस्थितियों और क्लेश के वातावरण से ये प्रेमी जोड़ा बच जाता है। और इन दोनों के हिस्से में ज़िम्मेदारी का भार नहीं आता है, इसलिए प्रेमी और प्रेमिका को प्रेम का आसान रिश्ता नज़र आता है।
यही कारण है कि समाज द्वारा इन दोनों के प्रेम को निस्वार्थ प्रेम बताया जाता है। शायद एक प्रेमी/पति इसलिए पत्नी का प्रेम समझ नहीं पाता। इसलिए पत्नी के प्रेम को स्वार्थ के तराजू पर रखकर प्रेमिका से तौला जाता है। जब पति पर पत्नी का भार आता है, उसकी ज़रूरतों का हिसाब लगता है, और वह सबको बताता है कि पत्नी बहुत खर्च करवाती है। सबको बताता है। इस तुलना के कारण पत्नी के प्रेम को स्वार्थ से जोड़ा जाता है।
पत्नी पर इल्ज़ाम है कि वो महंगी चीज़ों के लिए लड़ती है, और भूल गए तुम उस प्रेमिका पर किया सालों का खर्च, जो तुमसे खुशी-खुशी हर चीज़ लेती है, भूल गए तुम उसका स्वार्थ और उसकी फरेबी मुस्कान।
तुम कहते हो प्रेमिका निस्वार्थ भाव से मदद करती है, पर भूल गए वो पल, जब विपत्ति में, पत्नी ने अपने गहने गिरवी रखे, और तुम कहते हो पत्नी खर्च बहुत करती है!
क्या भूल गए बच्चों का भविष्य बनाने के लिए, एक-एक पैसा जोड़कर गुल्लक में रखती है? तुम कहते हो कि प्रेमिका सुकून देती है, पत्नी क्लेश करती है, पर भूल गए उसकी गुस्से के पीछे का प्रेम गहरा, वो तुमसे, तुम्हें पाने के लिए लड़ती है।
तुम कहते हो, पत्नी प्रेमिका की तरह प्यार नहीं करती, भूल गए उसका लड़ना बच्चों की भांति, उसका लड़ना भी तो प्यार का ही एक रूप है, जो सिर्फ अपनेपन में ही दिखता है।
प्रेमिका, पत्नी और ईर्ष्या का चक्र
एक प्रेमिका अक्सर पत्नी पर लांछन लगाती है, खुद को पत्नी से श्रेष्ठ दिखाने की कोशिश करती है। वह पत्नी के त्याग और बलिदान का मज़ाक बनाती है। इससे साफ पता चलता है कि वह पत्नी से कितनी ईर्ष्या करती है।
सबसे बड़ा दोष यह है कि किसी की प्रेमिका, पत्नी पर लांछन लगाती है। "मेरी प्रेमी को छीनकर यह पत्नी बहुत इतराती है," ऐसा प्रेमिका सोचती है। अब यह प्रेमिका कितनी नासमझ है! उन्होंने प्रेम किया है, इसलिए उन्हें सारी लड़कियां प्रेमिका ही नज़र आती हैं। वे लड़कियां जिन्होंने कभी प्रेम नहीं किया, वे भी सच में प्रेमी और प्रेमिका के इस चलन के कारण बदनाम हो जाती हैं।
ईर्ष्या के कारण प्रेमिका लांछन लगाती है, और सिंगल लड़कियों की पहचान छिप जाती है। सच में, सिंगल लड़कियां भविष्य में होने वाले पति के लिए ईमानदारी दिखाती हैं, और इस वजह से हर पत्नी भी प्रेमिका नज़र आती है।