shadow of fear in Hindi Short Stories by AKANKSHA SRIVASTAVA books and stories PDF | भय की छाया

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भय की छाया

रात का समय था। शहर की गलियों में एक सन्नाटा पसरा हुआ था, और सड़कों पर दूर-दूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था। प्रीति, जो अभी-अभी अपने काम से लौट रही थी, जल्दी से अपने कदम बढ़ा रही थी। उसके मन में एक अजीब सा डर था, लेकिन वह खुद को यह सोचकर ढांढस बंधा रही थी कि उसके पास अभी कुछ ही दूरी पर उसका घर है।

 
जैसे ही वह मोड़ से मुड़ी, उसे अपने पीछे किसी के कदमों की आहट सुनाई दी। उसने पलटकर देखा तो उसकी आँखें भय से फैल गईं। पीछे से एक अनजान व्यक्ति उसका पीछा कर रहा था। प्रीति के दिल की धड़कनें तेज हो गईं। उसकी सांसें तेज हो गईं, और उसे समझ नहीं आया कि वह क्या करे।
 
उसने अपनी चाल तेज की, लेकिन उस आदमी के कदम भी उतने ही तेजी से बढ़ने लगे। अब उसकी पूरी कोशिश थी कि वह जितनी जल्दी हो सके, अपने घर पहुँच जाए। लेकिन वह डर, वह घबराहट उसके दिमाग को सुन्न कर रही थी। उसे याद आया कि इस रास्ते में कभी भी स्ट्रीट लाइट्स ठीक से काम नहीं करती थीं, और आज भी वही अंधेरा उसके चारों ओर था।
 
प्रीति ने अपने फोन को निकालने की कोशिश की ताकि वह किसी को मदद के लिए कॉल कर सके, लेकिन हाथ कांपने लगे और फोन उसके हाथ से गिर गया। उसने बिना रुके दौड़ना शुरू कर दिया, उसके कानों में सिर्फ अपने पैरों की आवाज़ और पीछा करने वाले व्यक्ति के भारी कदमों की गूंज थी।
 
अचानक, प्रीति ने एक घर के सामने की बत्ती जलती देखी। उसने पूरी हिम्मत जुटाई और उस घर की ओर भागी। उसने जोर से दरवाजा खटखटाया, लेकिन कोई जवाब नहीं आया। अब वह पूरी तरह से घबरा गई थी, उसने सोचा, "क्या आज वह सुरक्षित घर पहुँच पाएगी?"
 
पीछे से उस आदमी की आवाज़ आई, "रुकिए, मैं आपकी मदद करना चाहता हूँ!" लेकिन अंजली को यकीन नहीं हो रहा था। क्या वह सच में मदद करना चाहता था, या फिर यह सिर्फ एक बहाना था?
 
उसी वक्त, घर का दरवाजा खुला और एक बुजुर्ग महिला बाहर आई। उन्होंने प्रीति को अंदर खींच लिया और दरवाजा बंद कर दिया। वह आदमी दरवाजे के पास आकर चुपचाप खड़ा हो गया, फिर कुछ पल बाद मुड़कर चला गया।
 
प्रीति की सांसें अब भी तेज चल रही थीं, लेकिन वह सुरक्षित थी। उस बुजुर्ग महिला ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, "बेटी, इस समय अकेले बाहर निकलना ठीक नहीं। अगली बार सावधानी रखना।"
 
प्रीति ने राहत की सांस ली और खुद से वादा किया कि अब वह कभी भी बिना सुरक्षा उपायों के बाहर नहीं निकलेगी।
 
आज के समय मे महिलाओं की सुरक्षा एक ऐसा विषय बन गया है, जो सिर्फ चर्चा का नहीं, बल्कि गंभीर सोच और समाधान की मांग करता है। आज के समाज में, महिलाओं को न केवल घर के बाहर बल्कि कई बार अपने निजी स्थानों पर भी सुरक्षा की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। यह चिंता बढ़ती जा रही है कि महिलाएं, चाहे वह शहर की हों या गाँव की, सुरक्षित नहीं हैं। इस लेख का उद्देश्य महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े मुद्दों को उजागर करना और इसके समाधान पर विचार करना है।
 
आज के समाज में महिलाओं को घर, कार्यस्थल, और सार्वजनिक स्थानों पर अनेक प्रकार के शोषण और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। चाहे वह घरेलू हिंसा हो, सार्वजनिक स्थानों पर छेड़खानी हो, या फिर डिजिटल माध्यमों के जरिए साइबर अपराध हो, महिलाओं की सुरक्षा का दायरा बहुत व्यापक है। अक्सर इन घटनाओं का शिकार होती महिलाएं, अपनी आवाज़ नहीं उठा पातीं, और यदि वे हिम्मत करके शिकायत भी करें, तो भी उन्हें न्याय मिलना मुश्किल होता है।
 
आए दिन बढ़ते केस मे महिलाओं की सुरक्षा केवल सरकार और कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि पूरे समाज तबके की है। महिलाओं को सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन देने के लिए आवश्यक है कि हम न केवल कड़े कानून बनाएं बल्कि उनके सही कार्यान्वयन पर भी ध्यान दें। महिलाओं की सुरक्षा के प्रति सजग समाज ही एक स्वस्थ और खुशहाल समाज का निर्माण कर सकता है।
 
प्रीति जैसी महिलाएं, जो रात के अंधेरे में अकेले चलते समय डर महसूस करती हैं, उनको आत्मनिर्भर और आत्मविश्वास से भरी महसूस कराने के लिए हमें एकजुट होकर काम करना होगा। यही समय है कि हम अपनी सोच में बदलाव लाएँ और महिलाओं को वह सुरक्षा और सम्मान प्रदान करें, जिसकी वे हकदार हैं।
आज के समाज में महिलाओं की सुरक्षा एक अत्यंत संवेदनशील और आवश्यक मुद्दा बन चुका है। चाहे प्रीति जैसी युवती हो, जो अकेली रात में घर लौटते समय डर और असुरक्षा महसूस करती है, या फिर गाँव की महिलाएं जो घरेलू हिंसा की शिकार होती हैं, हर महिला के जीवन में एक न एक बार सुरक्षा की चुनौती जरूर आती है। यह स्थिति किसी एक क्षेत्र या समुदाय तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया में महिलाएं अपने जीवन के विभिन्न आयामों में असुरक्षित महसूस करती हैं।महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ी है। यह बढ़ोतरी केवल शारीरिक हमलों तक सीमित नहीं है, बल्कि डिजिटल माध्यमों में भी महिलाओं का शोषण हो रहा है। साइबर अपराध जैसे ऑनलाइन उत्पीड़न, धमकियां, और अश्लील सामग्री के जरिए महिलाओं का शोषण बढ़ता जा रहा है। इसके अलावा, कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न और असमानता भी महिलाओं के आत्मसम्मान और आत्मविश्वास को प्रभावित कर रही है।
 
कई बार सामाजिक और सांस्कृतिक बंधनों की वजह से महिलाएं उत्पीड़न के खिलाफ आवाज़ उठाने से कतराती हैं। वे डरती हैं कि उनके परिवार या समाज का क्या सोचेगा, या उन्हें ही दोषी ठहराया जाएगा। इस तरह की मानसिकता न केवल महिलाओं की सुरक्षा के प्रति उदासीनता को दर्शाती है, बल्कि यह उत्पीड़कों को और भी निर्भय बनाती है। महिलाओं को खुद पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए समर्थन और जागरूकता की जरूरत है।प्रीति जैसी महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हमें केवल डर और असुरक्षा को समझना ही नहीं, बल्कि इसे समाप्त करने के प्रयास भी करने होंगे।
 
एक सुरक्षित समाज का निर्माण तभी संभव है जब महिलाएं खुद को सुरक्षित महसूस करें और उनके अधिकारों का सम्मान हो। यही वह समय है जब हमें महिलाओं की सुरक्षा को प्राथमिकता देकर एक मजबूत, आत्मनिर्भर और सुरक्षित समाज का निर्माण करना चाहिए, जहां हर महिला निडर होकर अपने सपनों को साकार कर सके।