कहानी का नाम: “उस शादी की एक अनकही कहानी”
सर्दियों की एक सुनहरी सुबह थी। खेतों में सरसों पीली-पीली मुस्कुरा रही थी, और गांव की गलियों में शादी के गीत गूंज रहे थे। रिया, अपनी सबसे अच्छी दोस्त पूजा की शादी अटेंड करने, शहर से गांव आई थी।
रिया और पूजा कॉलेज के दिनों में रूममेट रह चुकी थीं। दोनों की दोस्ती इतनी गहरी थी कि पूजा की शादी में रिया का आना तो जैसे तय ही था। गांव में पहुंचते ही पूजा के घर का दरवाज़ा जैसे उसके लिए खुला ही था — आंगन में औरतें हल्दी गीत गा रही थीं, बच्चे इधर-उधर दौड़ रहे थे, और हर चेहरा उसे पहचानता था।
पूजा के घर वाले भी रिया को देखकर बहुत खुश हुए, सबने गर्मजोशी से स्वागत किया।
लेकिन एक चेहरा था… जो बस दूर से देख रहा था — पूजा का बड़ा भाई अर्जुन।
अर्जुन जानता था कि ये उसकी बहन की सबसे करीबी दोस्त है,लेकिन शादी की तैयारियों में इतना व्यस्त था कि बात करने का मौका ही नहीं मिला। वो कभी पंडाल में सजावट देखता, कभी मेहमानों को संभालता, तो कभी बाजार भाग जाता।
एक-एक कर शादी के सारे फंक्शन शुरू हुए — हल्दी, मेहंदी, संगीत… रिया ने हर रस्म दिल से एन्जॉय की। गांव का खुला आसमान, ढोलक की थाप, और चारों तरफ फैला खुशियों का माहौल, रिया के दिल को छू रहा था।
और फिर आया संगीत का दिन…
सब गा-बजा रहे थे, डांस कर रहे थे। अचानक किसी ने अर्जुन को आवाज़ दी —
“अरे अर्जुन! तू भी अपनी मंगेतर के साथ डांस कर दे, मज़ा आ जाएगा!”
सारी नज़रें अर्जुन पर टिक गईं। लेकिन अर्जुन ने सबके सामने ठंडे, लेकिन सख्त लहजे में कहा —
“मैं इसके साथ डांस नहीं करूंगा।”
पूरा माहौल कुछ सेकंड के लिए चुप हो गया। उसकी आवाज़ में गुस्सा साफ झलक रहा था।
रिया वहीं खड़ी थी, और उसका ध्यान पहली बार अर्जुन पर गया।
उसके मन में सवाल उठा —
"इतना गुस्सा क्यों? आखिर माजरा क्या है…?"
अर्जुन के मना करने के बाद कुछ पल के लिए माहौल थम सा गया था, लेकिन बड़े-बुजुर्गों ने समझदारी से बात संभाल ली। ढोल फिर बज उठा, औरतों ने ताली बजाकर गीत की लय पकड़ ली, और माहौल में फिर से हंसी-खुशी लौट आई।
रिया भी बाकी सबके साथ तालियाँ बजा रही थी, लेकिन उसके मन में अब सिर्फ एक ही सवाल घूम रहा था —
"आखिर अर्जुन ने ऐसा क्यों कहा? सबके सामने इस तरह मना करना…"
उसी भीड़-भाड़ और गहमागहमी में, रिया को किसी ने फुसफुसाकर बताया कि शायद अर्जुन को अपनी मंगेतर का रवैया पसंद नहीं था, इसलिए उसने डांस करने से मना कर दिया।
ये सुनकर रिया के मन में अर्जुन को लेकर एक अजीब सी दिलचस्पी पैदा हो गई।
"कोई इतना साहस कैसे कर सकता है? लोग तो मन रखने के लिए बहुत कुछ कर लेते हैं, और ये…? सबके सामने अपने मन की बात कह दी…"
उस पल के बाद से रिया की निगाहें कई बार अनजाने में अर्जुन को ढूंढने लगीं। वो देखती कि कैसे अर्जुन मेहमानों का ख्याल रखता, बच्चों को हंसाता, और काम में जुटा रहता।
अर्जुन का ध्यान उस पर है या नहीं — ये तो रिया नहीं जानती थी। लेकिन हाँ, 2-3 बार ऐसा हुआ कि उनकी नज़रें टकराईं… और हर बार रिया ने तुरंत नज़र झुका ली, जैसे कुछ हुआ ही न हो।
शादी के बाकी फंक्शन्स में रिया सबके साथ इस तरह घुल-मिल गई कि कोई ये कह ही नहीं सकता था कि वो इस घर की बहू-बेटी नहीं है।
इतना अपनापन महसूस हुआ कि पूजा की फैमिली ने उसे उनके फैमिली व्हाट्सऐप ग्रुप में भी ऐड कर लिया।
अब उस ग्रुप में शादी की फोटो, वीडियो, और हल्के-फुल्के मज़ाक का दौर चल रहा था… और रिया के चेहरे पर हर बार मोबाइल देखते वक्त एक अनजानी मुस्कान आ जाती थी।
शादी के गीत, ढोल-नगाड़ों की आवाज़, और रंग-बिरंगी साड़ियों की चमकते रंगों के बीच दिन कब बीत गए, पता ही नहीं चला। रस्में पूरी हुईं, हंसी-मजाक चलता रहा… और फिर वह पल आ गया जिसका इंतज़ार भी था और डर भी — विदाई का दिन।
सुबह से ही घर के आंगन में एक अलग सा सन्नाटा था। पूजा के माथे पर सिंदूर, आंखों में आंसू और होंठों पर हल्की सी मुस्कान थी। रिया की आंखें भी भर आईं, उसकी सबसे करीबी दोस्त अब इस घर से विदा होकर अपने नए जीवन की ओर जा रही थी।
पूजा अपने पति के साथ चली गई, और आंगन में बस कुछ रिश्तेदार और घर के सदस्य रह गए।
रिया अभी भी घर पर थी, वैसे तो उसे भी लौटना था, लेकिन घर के बड़े-बुजुर्गों ने कह दिया —
“अरे, इतनी जल्दी क्या है? थोड़ा रुक जाओ, दोपहर बाद चली जाना।”
रिया मना नहीं कर पाई।
वो बैठकर सबके साथ बातें करती रही, खाने में गांव का सादा लेकिन स्वाद से भरपूर खाना खाया, और बार-बार सोचती रही कि अब जाने के बाद शायद पता नहीं कब फिर यहां आना होगा।
दोपहर ढलने लगी तो उसके जाने का वक्त आ गया।
पूजा के एक कज़िन भाई ने कहा — “चलो बहन, तुम्हें बस स्टॉप तक छोड़ देते हैं।”
रिया के मन में एक छोटी सी उम्मीद थी…
शायद अर्जुन उसे छोड़ने आएगा।
शायद रास्ते में उससे दो बातें हो जाएं…
लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
अर्जुन किसी काम में व्यस्त था, और बिना मिले ही रिया को विदा करनी पड़ी।
बस में बैठते समय, खिड़की से गांव का पंडाल, रंग-बिरंगे फूल, और वो आंगन नजर आया… लेकिन सबसे ज्यादा खल रही थी वो एक अधूरी सी उम्मीद।
रिया ने मन ही मन सोचा —
"शायद अर्जुन का ध्यान मेरी तरफ गया ही नहीं…"
बस चल पड़ी, और गांव की गलियां पीछे छूटने लगीं…
लेकिन रिया के मन में कुछ तो रह गया था — जैसे कहानी अभी खत्म नहीं हुई हो।
---
कहानी का नाम: “उस शादी की एक अनकही कहानी”
(भाग-2)
रिया अपने शहर लौट आई थी।
लेकिन उसके पास अब भी पूजा के परिवार का व्हाट्सऐप ग्रुप था, जिसमें हर दिन शादी की तस्वीरें, वीडियो और हल्की-फुल्की बातें चल रही थीं।
रिया भी उसमें हंसते-मुस्कुराते अपने कमेंट और इमोजी डालती रहती।
एक दिन अचानक उसने सोचा —
"देखूं तो सही, इस ग्रुप में हैं कौन-कौन?"
जैसे ही उसने लिस्ट देखी, उसका दिल एक पल को धक से रह गया —
अर्जुन का नाम भी था!
उसके चेहरे पर अनजाने में मुस्कान आ गई —
"मतलब… मैं चाहूं तो इससे बात कर सकती हूं…"
लेकिन अगले ही पल वो ठिठक गई।
"पर… क्या बात करूं? शादी में तो कोई बातचीत हुई नहीं… और अचानक मैं मैसेज कर दूं तो… अजीब नहीं लगेगा?"
कुछ सेकंड तक फोन हाथ में पकड़े रही, फिर हल्की सी उदासी के साथ मोबाइल रख दिया।
दो-तीन दिन बीत गए।
फिर अचानक पूजा के एक कज़िन भाई का मैसेज आया —
"कैसी हो? सही-सलामत पहुंच गई थी ना?"
रिया और वो पहले से एक-दूसरे को जानते थे, क्योंकि कॉलेज के दिनों में वो एक-दो बार पूजा के हॉस्टल आ चुका था।
तो उनकी बातचीत सहज और दोस्ताना तरीके से चलने लगी।
लेकिन रिया का ध्यान तो अब भी कहीं और था — अर्जुन पर।
बातों-बातों में एक दिन रिया ने मज़ाक-मज़ाक में कज़िन से कह दिया —
"पता नहीं क्यों… अर्जुन के बारे में कुछ तो है… मैं खुद नहीं जानती क्या… लेकिन उसे जानने का मन करता है।"
कज़िन हंसते हुए बोला —
"अरे… क्या तुम अर्जुन को पसंद करने लगी हो?"
रिया जल्दी से बोली —
"न-न-नहीं! ऐसा तो नहीं है… बस ऐसे ही कह दिया मैंने।"
लेकिन कज़िन की वो बात उसके दिल में कहीं अटक गई।
उसने खुद से कहा —
"नहीं… ऐसा कुछ नहीं है… वो मेरी दोस्त का भाई है बस।"
और फिर उसने जानबूझकर बात घुमा दी, कोई और टॉपिक छेड़ दिया…
लेकिन मन ही मन एक अजीब सा सवाल उसके भीतर गूंजता रहा —
"क्या वाकई… मैं उसे पसंद करने लगी हूं?"
कहानी का नाम: “उस शादी की एक अनकही कहानी”
(भाग-3)
दिन यूँ ही गुजरते गए।
रिया का किसी से ख़ास संपर्क नहीं हो पाया।
हाँ, उसने पूजा को एक-दो बार कॉल ज़रूर किया —
“कैसी हो? ससुराल में सब ठीक है न?”
पूजा हंसते हुए बताती कि सब अच्छा है, लेकिन नई-नई शादी होने के कारण रोज़ बात करना मुश्किल था।
करीब 10-15 दिन यूँ ही निकल गए।
रिया अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में वापस ढल रही थी…
लेकिन उसके मन के किसी कोने में वो शादी के दिन, वो कुछ अधूरे पल, और अर्जुन का चेहरा अब भी ज़िंदा थे।
और फिर… एक शाम, अचानक उसके व्हाट्सऐप पर एक नोटिफिकेशन आया —
“hyy”
रिया ने हैरानी से मैसेज खोला।
नंबर अनजाना था…
उसने झट से DP देखी —
दिल की धड़कन एक पल को जैसे रुक गई।
वो… अर्जुन था।
रिया कुछ सेकंड तक स्क्रीन को देखती रह गई।
उसकी आंखों में आश्चर्य था, चेहरे पर अनजानी मुस्कान… और दिल में हल्की सी घबराहट।
"क्या सच में… अर्जुन ने मुझे मैसेज किया है?"
वो मैसेज पढ़कर जैसे दो मिनट के लिए किसी और दुनिया में चली गई।
उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि जिस इंसान से शादी में एक शब्द भी ठीक से नहीं हुआ… उसने आज खुद उससे बात शुरू की है।
उसके हाथ अनजाने में मोबाइल के की-बोर्ड पर चले गए…
लेकिन जवाब लिखने से पहले ही वो रुक गई।
दिल कह रहा था — “तुरंत जवाब दे”,
और दिमाग पूछ रहा था — “क्या लिखोगी !
काफ़ी देर तक मोबाइल स्क्रीन को देखती रही रिया…
आख़िरकार हिम्मत करके उसने टाइप किया — "Hello"।
थोड़ी ही देर में अर्जुन का रिप्लाई आया —
"कैसी हो आप?"
रिया ने मुस्कुराते हुए लिखा —
"मैं अच्छी हूँ, आप कैसे हो?"
अर्जुन ने जवाब दिया —
"एकदम मस्त।"
रिया ने पूछा —
"और हो गए शादी के काम-काज से फ्री?"
अर्जुन ने लिखा —
"हाँ, लगभग हो गए हैं। पूजा को भी ससुराल से पगफेरे के लिए ले आए हैं, अभी वो यहीं है अपने घर।"
रिया ने लिखा —
"अरे वाह!"
अर्जुन ने भी हल्की सी हामी भर दी —
"हाँ।"
फिर रिया ने कहा —
"और बताइए।"
अर्जुन का छोटा सा जवाब आया —
"बस… सब ठीक।"
दोनों चुप हो गए।
रिया सोच रही थी — “क्या बात करूँ अब?”
शायद अर्जुन भी यही सोच रहा था…
कुछ देर बाद चैट वहीं खत्म हो गई।
अगले दिन अर्जुन का मैसेज आया — "Good Morning"
रिया ने भी रिप्लाई किया — "Good Morning"
…और बस, बात वहीं खत्म।
ये सिलसिला 4-5 दिन तक चलता रहा —
सिर्फ “Good Morning” और “Good Night” जैसे छोटे-छोटे मैसेज, लेकिन कोई असली बातचीत नहीं।
रिया के मन में सवाल उठने लगा —
"ये तो आगे बात ही नहीं कर रहा… फिर मैसेज किया ही क्यों?"
आख़िरकार उसने तय कर लिया कि वो पूछेगी।
रिया ने मैसेज किया — "Hello"
अर्जुन ने जवाब दिया — "Hello"
रिया ने लिखा —
"तुमसे कुछ पूछ सकती हूँ?"
अर्जुन — "हाँ, बिल्कुल।"
रिया ने टाइप किया —
"आप शादी में मुझसे बोले नहीं… और अब इतने दिन बाद मैसेज किया। नंबर भी आपके पास था नहीं, ग्रुप से लिया होगा… तो ऐसा क्यों?"
अर्जुन ने सीधे-सीधे जवाब दिया —
"नहीं, मैंने तुम्हारा नंबर ग्रुप से नहीं लिया। तुमने मेरे कज़िन से बात की थी… और उन्हें कहा था कि तुम मुझे जानना चाहती हो। उन्होंने मुझे बताया कि तुम मुझे पसंद करने लगी हो… तो मैंने मैसेज किया।"
रिया को सुनकर एक पल को अजीब सा लगा —
"उसके कज़िन ने ये क्यों बता दिया… अर्जुन मेरे बारे में क्या सोच रहा होगा… कैसी लड़की हूँ मैं?"
वो झट से बोली —
"अरे… ऐसा नहीं है… मैंने तो बस ऐसे ही कह दिया था।"
लेकिन अर्जुन को लग रहा था कि वो बहाना बना रही है।
वो मुस्कुराते हुए बोला —
"कोई बात नहीं… अब जब बात हो रही है, तो हम बात कर सकते हैं। जो जानना चाहो, जान सकती हो।"
रिया के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई।
उसे अच्छा लगा कि अर्जुन ने सहजता से बात की।
उसने टाइप किया — "जी, ठीक है।"
फिर रिया के मन में आया — "तो इनको मैंने उनके कज़िन के ज़रिए कहा और इन्होंने उसी वजह से मैसेज किया… लड़के तो ऐसे ही होते हैं, सीधी-सीधी बात सुनते ही आगे बढ़ जाते हैं।"
बात आगे बढ़ाने के लिए रिया ने लिखा —
"हाँ… शादी में जो वो incident हुआ था, जब आप गुस्सा हो गए थे… तो मैं सोच रही थी कि ऐसा क्यों? लेकिन वजह मुझे वहीं शादी में पता चल गई थी। तब से मेरे मन में था कि ये लड़का कितना daring है… बस इसलिए जानने की इच्छा थी।"
अर्जुन ने जवाब दिया —
"अच्छा… तो तुम्हें पता चल ही गया। हाँ, मैं ऐसा ही हूँ… लोगों की ज़्यादा परवाह नहीं करता।"
रिया ने लिखा —
"वही तो अच्छा है आप में।"
अर्जुन ने बस एक स्माइल इमोजी भेज दी…
और उस स्माइल के साथ जैसे रिया के दिल में भी एक हल्की सी गर्माहट उतर आई।
बातों-बातों में अर्जुन ने अचानक कहा —
"वैसे… मैंने भी तुम्हें शादी में कई बार नोटिस किया था।"
रिया एक पल को चौंकी, फिर हल्के से मुस्कुराई —
"अच्छा…?"
अर्जुन ने आगे कहा —
"हाँ… लेकिन मैं शादी के कामों में इतना व्यस्त था कि तुमसे बात करने का मौका ही नहीं मिला।"
रिया के दिल में जैसे किसी ने धीरे से खुशी भर दी।
वो अंदर से बहुत खुश थी, लेकिन जवाब बहुत साधारण और सामान्य तरीके से दिया —
"ओह… अच्छा।"
उसकी मुस्कान भले ही स्क्रीन पर नज़र नहीं आ रही थी, लेकिन अर्जुन के हर मैसेज पर अब उसका मन थोड़ी देर और ठहरने लगा।
ऐसे ही… धीरे-धीरे…
उनके बीच रोज़ बातें होने लगीं।
कभी हल्के-फुल्के मज़ाक, कभी दिनभर की बातें… और कभी बस चुपचाप एक-दूसरे की मौजूदगी महसूस करना।
उस शादी की एक अनकही कहानी (भाग-4)
धीरे-धीरे यह सब एक आदत बन गई थी।
सुबह की शुरुआत हमेशा रिया के अर्जुन को भेजे पहले मैसेज से होती, और रात का अंत उनके “गुड नाइट” मैसेज पर।
अब दोनों खुलकर बातें करने लगे थे। हर छोटी-बड़ी बात, हर जज़्बात… सब वे एक-दूसरे से साझा करते।
रिया और अर्जुन के बीच की नज़दीकियाँ हर रोज़ बढ़ती जा रही थीं। दोनों अब सिर्फ़ अच्छे दोस्त नहीं, बल्कि एक-दूसरे के सबसे करीब बन चुके थे।
अर्जुन बाहर, किसी और शहर में पढ़ाई कर रहा था।
वो रिया को अपनी रोज़मर्रा की दिनचर्या बताता —
"आज ऐसा हुआ… आज मैंने ये किया…"
और रिया भी उतनी ही उत्सुकता से अपने पूरे दिन का हाल उसे सुनाती।
धीरे-धीरे… बातों का यह सिलसिला ऐसा रंग लाया कि दोनों को पता ही नहीं चला कब दोस्ती मोहब्बत में बदल गई।
कब वे एक-दूसरे की आदत बन गए, दोनों को ख़ुद भी अहसास नहीं हुआ।
दोनों अपने दिल में एक-दूसरे के लिए प्यार महसूस करने लगे थे,
पर कह नहीं पा रहे थे।
हमेशा यही डर रहता— कैसे कहेंगे? क्या कहेंगे?
लेकिन एक दिन… अर्जुन ने हिम्मत कर ही ली।
उसने सीधे लिख दिया —
"रिया, मैं तुम्हें पसंद करने लगा हूँ… बल्कि प्यार करने लगा हूँ तुमसे।"
रिया ने यह पढ़ा तो वह हैरान नहीं हुई।
उसे कहीं न कहीं हमेशा एहसास था कि अर्जुन भी उसे चाहता है,
लेकिन यह इतनी सहजता से कह देगा, यह उसने कभी सोचा नहीं था।
कुछ पल चुप रहने के बाद रिया ने भी हिम्मत जुटाई और जवाब दिया —
"हाँ अर्जुन, मैं भी तुम्हें पसंद करने लगी हूँ। कब, क्यों, कैसे… यह नहीं पता,
लेकिन तुमसे बात करके हमेशा एक अजीब-सा सुकून मिलता है,
बहुत अपना-सा लगता है।"
अर्जुन के होंठों पर हल्की मुस्कान फैल गई। उसने लिखा —
"रिया, मुझे भी जब कभी तुमसे बात न हो तो लगता है कि आज कुछ अधूरा रह गया…
दिन अधूरा सा लगता है। तुम अब मेरी ज़िंदगी का हिस्सा बन चुकी हो।"
प्यार का एक प्यारा-सा इज़हार हो चुका था।
दोनों अब और भी गहराई से एक-दूसरे को समझने लगे थे।
उनके बीच का रिश्ता प्यार, सम्मान और मर्यादा से भरा हुआ था—
जिसे दोनों ने हमेशा बरकरार रखा।
जब भी अर्जुन अपने शहर से गाँव आता,
वह रिया से ज़रूर मिलता।
चाहे सिर्फ़ 10 मिनट के लिए ही सही,
पर वह मुलाक़ात उनके दिन को खुशियों से भर देती थी।
यह सिलसिला यूँ ही चलता रहा…
काफ़ी समय बीत गया।
दोनों अब एक-दूसरे को लेकर बेहद गंभीर हो चुके थे।
वे जैसे एक-दूसरे में ही खो गए थे,
बस…
उस शादी की एक अनकही कहानी (भाग- 5)
एक दिन… रिया के दिल में अचानक सवाल उठने लगे।
"क्या मैं अर्जुन के साथ हमेशा ऐसे ही रह पाऊँगी?
क्या अर्जुन भी मेरे साथ हमेशा ऐसे ही रहेगा?
क्या वाकई हमारी शादी हो पाएगी?"
उसके मन में अजीब-सी बेचैनी भर गई।
वो सोचने लगी—
"हमारे बीच सब तो अच्छा है… लेकिन क्या ये रिश्ता समाज और घरवालों की नज़रों में कभी मंज़ूर होगा?"
बहुत देर तक चुप रहने के बाद रिया ने तय किया कि उसे अर्जुन से यह सब कहना ही होगा।
उसने हिम्मत जुटाई और अपने मन की सारी बातें अर्जुन को बता दीं।
अर्जुन ने जब सुना तो वह भी एक पल के लिए भावुक हो गया।
उसने कहा—
"रिया, सच कहूँ तो मैं तो बस तुम्हारे साथ चलता जा रहा था।
कभी सोचा ही नहीं था कि आगे क्या होगा…"
दोनों जानते थे कि उनकी जाति और समाज अलग थे।
और यह भी कि उनके परिवार वाले शायद इस रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं करेंगे।
उस रात दोनों बहुत उदास थे।
एक-दूसरे को समझाते रहे—
"हम कुछ न कुछ कर लेंगे… सब ठीक हो जाएगा।"
लेकिन अंदर ही अंदर दोनों को एहसास था कि शायद उनका प्यार सिर्फ़ कुछ दिनों का मेहमान है।
फिर भी, प्यार तो प्यार है…
वो कभी कुछ दिनों का नहीं होता।
प्यार अपने आप में अनंत होता है—
चाहे साथ रहे या न रहे।
अर्जुन ने रिया से कहा—
"हम मिलकर बात करेंगे इस बारे में। तुम परेशान मत हो… सब ठीक हो जाएगा।"
उसकी यह बात सुनकर रिया थोड़ी शांत हुई।
और धीरे-धीरे सब फिर से पहले जैसा हो गया।
दोनों फिर से अपनी मस्ती, हँसी-मज़ाक और लंबी-लंबी बातों में खो गए।
इसी तरह… समय बीतता गया।
पल-पल उनके रिश्ते को और मज़बूत करता रहा।
और देखते-देखते दो साल पूरे हो गए।
इन दो सालों में अर्जुन ने हमेशा रिया का सम्मान किया,
उसकी हर बात को महत्व दिया।
और रिया भी अर्जुन की कोई बात टालती नहीं थी।
उनका रिश्ता प्यार और भरोसे से भरा हुआ था।
लेकिन लंबे समय से वे मिले नहीं थे।
सिर्फ़ फ़ोन पर बातें होती थीं।
रिया अर्जुन को देखने को तरसने लगी थी।
इसी बीच एक दिन रिया को उसकी दोस्त निशा का फोन आया।
निशा ने खुशी से बताया—
"रिया, मेरी शादी तय हो गई है… और तुम्हें आना ही होगा।"
रिया मुस्कुराई और बोली—
"अरे वाह! बधाई हो… मैं ज़रूर आऊँगी। बस मुझे तारीख़ बता दो।"
निशा बोली—
"मैंने शादी का कार्ड भेजा है, तुम देख लेना। और समय से आना!"
रिया ने हँसकर कहा—
"ठीक है… तू फिक्र मत कर।"
शादी की खबर से रिया तो खुश थी ही,
लेकिन उसके मन में एक और खुशी थी—
निशा का गाँव वही था जहाँ अर्जुन का गाँव था।
यानी इस बहाने अर्जुन से मुलाक़ात भी हो जाएगी।
उसने तुरंत यह खबर अर्जुन को बताई।
अर्जुन भी उत्साहित हो गया—
"अरे वाह! तब तो मैं भी ज़रूर आऊँगा कुछ दिनों के लिए।"
रिया हँसकर बोली—
"हाँ, तब तो हमारी मुलाक़ात भी हो जाएगी।"
दोनों के चेहरों पर मुस्कान थी… और दिलों में बेसब्री।
फिर अर्जुन बोला—
"तुम मेरे ही घर रुकना।"
रिया ने झट से कहा—
"नहीं… अच्छा नहीं लगेगा। पूजा भी वहाँ नहीं होगी। वो अब अपने ससुराल में है। अगर वो होती तो मैं ज़रूर रुक जाती।"
अर्जुन मुस्कुराया और बोला—
"अरे… पूजा तो आएगी ही। आखिर निशा उसकी भी दोस्त है।"
रिया ने माथा पकड़ा और हँस दी—
"अरे हाँ! मैं तो भूल ही गई कि पूजा भी ज़रूर आएगी।"
फिर रिया ने तुरंत पूजा (जो अर्जुन की बहन और उसकी भी दोस्त थी) को फोन किया।
पूजा ने भी खुशी से कहा—
"हाँ-हाँ, मैं ज़रूर आऊँगी। और तू भी आ रही है न?"
रिया बोली—
"हाँ, मैं भी आ रही हूँ।"
पूजा ने फिर मज़ाकिया अंदाज़ में कहा—
"तो तू मेरे ही घर रुकेगी। बस, ये पक्का।"
रिया अंदर से बेहद खुश हो गई, लेकिन बाहर से बस मुस्कुराकर बोली—
"ठीक है… रुक जाऊँगी।"
दोनों हँसते हुए बोले—
"चल, शादी में मिलते हैं और खूब मज़ा करेंगे।"
फोन कटते ही रिया का चेहरा खिल उठा।
अब उसका इंतज़ार और भी बड़ा हो गया था।
शादी के दिन का… और अर्जुन से मिलने का।
उस शादी की एक अनकही कहानी (भाग- 6)
आख़िरकार वो दिन आ ही गया, जिसका रिया बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी।
रिया अपने शहर से निकलकर अपनी दोस्त निशा की शादी में पहुँच गई।
निशा के घर रौनक छाई हुई थी।
ढेर सारी सहेलियाँ, रिश्तेदार, हँसी-मज़ाक और तैयारियों का शोर… रिया का दिल भी उस माहौल में खिल उठा।
वहीं उसे अपनी पुरानी सहेलियाँ भी मिल गईं, जिनसे मिलकर वो और भी खुश हो गई।
तभी पूजा (अर्जुन की बहन और रिया की भी दोस्त) बोली—
"रिया, तू अभी सफर से आई है, थोड़ा फ्रेश हो ले। चल, मेरे घर चल।"
रिया ने हाँ में सिर हिलाया और पूजा के साथ उसके घर चली गई।
जैसे ही रिया ने घर में क़दम रखा, उसकी नज़र अचानक अर्जुन पर पड़ी।
वो वहीं बैठा था।
रिया ठिठक गई, उसकी साँसें रुक-सी गईं।
"ये तो कह रहा था कि देर से आएगा… और यहाँ तो मुझसे पहले ही पहुँच गया!"
अर्जुन की यही प्लानिंग थी — रिया को सरप्राइज़ देने की।
वो मुस्कुराया और बोला—
"आओ, रिया।"
पूजा भी हँसकर बोली—
"अरे, कल ही आया था अर्जुन। इसकी भी छुट्टियाँ थीं 2-3 दिन की, तो चला आया।"
रिया ने हल्की-सी मुस्कान दी और बैठ गई।
उसके दिल की धड़कनें और तेज़ हो चुकी थीं।
वो तो सोच रही थी कि बस दूर से अर्जुन की एक झलक देख पाएगी…
पर ये तो उसके सामने बैठा था, अपने ही घर में।
उसके लिए तो यह किसी सपने से कम नहीं था।
और आगे के दो दिन उसे यहीं रहना था।
पूजा रिया के स्वागत-सत्कार में लग गई।
पानी, चाय लाने में व्यस्त थी,
और उतनी देर अर्जुन वहीं बैठा, चुपचाप रिया को देखता रहा।
कभी नज़रें मिलतीं, तो दोनों मुस्कुरा देते… और रिया शरमा कर नज़रें झुका लेती।
थोड़ी देर बाद दोनों फ्रेश होकर वापस निशा के घर शादी के फ़ंक्शन में पहुँच गए।
वहाँ सबने मिलकर खाना खाया, नाच-गाना किया और खूब मस्ती की।
लेकिन रिया को गए मुश्किल से दो-तीन घंटे ही हुए थे कि अर्जुन के मैसेज आने लगे—
"अब घर आ जाओ… तुम्हारे बिना अच्छा नहीं लग रहा।
जब सामने बैठी थी तो सब अच्छा लग रहा था… अब बस यही चाहिए कि तुम यहीं पास रहो।"
रिया मुस्कुराई और थोड़ी देर बाद पूजा से बोली—
"चलो न, अब घर चलते हैं। थोड़ा आराम कर लेंगे।"
पूजा ने हामी भर दी और दोनों वापस आ गईं।
जैसे ही रिया घर पहुँची, अर्जुन के चेहरे पर खुशी फैल गई।
रिया सोच रही थी—
"मैं ये कैसी हो रही हूँ… हर बार बहाने ढूँढ रही हूँ कि बस अर्जुन के पास रह सकूँ।"
उसके होंठों पर हल्की-सी शरमाई हुई मुस्कान थी।
फिर सब दोस्त और अर्जुन साथ बैठे, हँसी-ठिठोली हुई।
शाम को जब सब वापस निशा के घर शादी की दूसरी रस्मों में गए,
तो वहाँ बिंदोली की तैयारियाँ हो रही थीं — दूल्हन को सजाकर घोड़े पर बिठाकर गाँव में जुलूस निकालना।
रिया और पूजा खूब नाचीं।
और तभी अर्जुन भी आकर उनके साथ डांस करने लगा।
रिया पहले तो संकोच में थी, लेकिन फिर वो भी हँसते हुए थिरकने लगी।
भीड़ में भी अर्जुन उसके बिल्कुल पास था, और उसकी बात सुनकर—
"तुम कहीं और चले जाओ, सब देखेंगे तो क्या सोचेंगे…",
अर्जुन हँसकर बोला—
"कुछ नहीं होगा। मैं तो बस तुम्हारे साथ ही चलूँगा।"
रिया शरमा गई, और दोनों भीड़ में खोकर एक-दूसरे के साथ कदम मिलाते रहे।
बिंदोली खत्म हुई और सब लोग लौटकर घर आ गए।
रिया और पूजा भी पूजा के घर पहुँचीं।
डांस करके रिया को भूख लगी थी।
उसने पूजा से कहा—
"मुझे बहुत भूख लगी है।"
पूजा बोली—
"ऊपर चली जा, अर्जुन होगा वहाँ। वही कुछ खिला देगा।"
रिया झिझकी—
"तू भी चल न।"
लेकिन पूजा ने मना कर दिया—
"नहीं, मैं बहुत थक गई हूँ। तू ही चली जा, अर्जुन है न ऊपर।"
रिया हिचकिचाते हुए ऊपर गई तो देखा, अर्जुन किचन में ही बैठा था।
शायद उसे भी भूख लगी थी।
रिया ने हौले से कहा—
"मुझे भी भूख लगी है…"
अर्जुन मुस्कुराया—
"आओ, साथ खाते हैं।"
उसने एक मिठाई उठाई और रिया की ओर बढ़ा दी।
रिया उसे लेने लगी तो अर्जुन बोला—
"आह्हा… मेरे हाथ से नहीं खाओगी?"
रिया शरमा गई, कुछ कह न सकी… और अर्जुन के हाथ से मिठाई खा ली।
दोनों साथ बैठकर थोड़ी देर मिठाई और बिस्कुट खाते रहे।
रिया उठकर जाने लगी तभी अर्जुन ने अचानक उसका हाथ पकड़ लिया।
रिया चौंक गई—
"क्या कर रहे हो? सब नीचे हैं… किसी ने देख लिया तो?"
अर्जुन हँस पड़ा—
"अरे, कुछ नहीं कर रहा। बस थोड़ी देर बैठ जाओ। फिर तो सबके बीच ही रहना है।"
रिया की धड़कनें तेज़ हो गई थीं।
अर्जुन बोला—
"अरे… ऐसे काँप क्यों रही हो? मैं तुम्हें खा थोड़े ही जाऊँगा।"
रिया हँसी दबाते हुए बोली—
"हाँ, पर डर लग रहा है। अच्छा, अब मुझे जाने दो।"
अर्जुन ने मासूमियत से कहा—
"ठीक है, जाओ।"
लेकिन उसका चेहरा उतर गया।
रिया पलटी, देखा अर्जुन उदास-सा बैठा है।
वो समझ गई कि वो नाराज़ है।
रिया कुछ सोचे बिना आगे बढ़ी…
और अचानक उसे कसकर गले लगा लिया।
फिर तुरंत भाग गई।
अर्जुन का चेहरा एकदम खिल उठा।
उसका सारा गुस्सा गायब हो गया था।
वो बस उस एक लम्हे में खोकर मुस्कुराता रहा।
थोड़ी देर बाद अर्जुन भी सबके पास जाकर बैठ गया।
हँसी-मज़ाक हुआ, बातें हुईं और धीरे-धीरे सब सो गए।
लेकिन उस रात…
रिया और अर्जुन, दोनों की आँखों से नींद गायब थी।
दिल में बस वही एक अहसास गूंज रहा था—
"हम अब सचमुच एक-दूसरे के हो चुके हैं… चाहे दुनिया माने या न माने।"
Part 7 – Judaai ke Pal
अगला दिन…
Pooja और Riya तैयार होकर फिर से Nisha के घर पहुँच गईं। उस दिन भी शादी के बाकी रस्में चल रही थीं।
पूरा दिन वहाँ हंसी-मज़ाक, मस्ती और संगीत में बीता। Riya ने हर रस्म में बढ़–चढ़कर हिस्सा लिया और अपनी दोस्त की शादी का पूरा लुत्फ़ उठाया।
शाम को दोनों वापस Pooja के घर लौट आईं। वहाँ Pooja के मम्मी–पापा, Arjun और बाकी घर वाले बैठे हुए थे। सब देर रात तक बातें करते रहे—माहौल इतना खुशनुमा था जैसे किसी को नींद ही नहीं आ रही हो।
आख़िर देर रात सब अपने कमरों में सोने चले गए। पर Riya और Arjun को नींद कहाँ आने वाली थी…
Riya अचानक उठी और balcony में जाकर खड़ी हो गई। हल्की ठंडी हवा चल रही थी, चाँदनी रात थी, आसमान में तारे टिमटिमा रहे थे।
थोड़ी देर बाद Arjun भी उठकर आ गया।
Riya चौंक गई—
“अरे! तुम सोए नहीं?”
Arjun मुस्कुराया—
“तुम भी तो नहीं सोई…”
Riya हँस दी—“नींद ही नहीं आ रही थी।”
“मुझे भी,” Arjun ने धीमे स्वर में कहा।
दोनों चुपचाप पास–पास खड़े होकर आसमान को देखते रहे। कोई शब्द नहीं, बस चाँद–तारों और दिल की धड़कनों की आवाज़ें…
कुछ देर बाद Riya बोली—“बहुत देर हो गई, सो जाते हैं…कल फिर शादी में जाना है।”
Arjun बस सिर हिलाकर बोला—“हाँ…” और दोनों अपने–अपने कमरे चले गए।
---
विदाई का दिन
अगली सुबह घर में फिर शादी वाला माहौल था। उस दिन Nisha की विदाई थी। बारात आ चुकी थी और चारों तरफ़ चहल–पहल थी। Riya और Pooja ने पूरे दिन फिर से हर रस्म निभाई।
शाम को सब घर लौटे ताकि रात को फेरों के लिए फिर जा सकें।
पर Riya बेहद थक चुकी थी। उसने Pooja से कहा—
“यार, अब मुझसे नहीं होगा…बहुत थक गई हूँ। तू चली जा, मेरी तरफ़ से Nisha को gift दे देना।”
Pooja ने हामी भरी और चली गई।
घर में उस वक़्त सिर्फ़ Arjun था। उसके parents अपने कमरे में थे और Riya guest room में आराम कर रही थी।
कुछ देर बाद Arjun वहाँ आया—
“तुम functions में क्यों नहीं गई? तबीयत तो ठीक है न?”
Riya मुस्कुराई—“हाँ, बस थोड़ी थकान है…और वैसे भी कल सुबह मुझे अपने शहर वापस जाना है।”
Arjun चुप हो गया। फिर धीरे से बोला—
“अगर तबीयत ठीक नहीं है तो एक दिन और रुक जाओ।”
Riya ने हल्की उदासी के साथ कहा—
“नहीं Arjun, घर से फोन आया है…मुझे कल ही जाना होगा।”
दोनों कुछ देर चुप बैठे रहे। फिर Arjun ने अचानक उसका हाथ पकड़ लिया और धीमी आवाज़ में कहा—
“Riya, ये 3 दिन…मैं कभी नहीं भूल पाऊँगा। ये मेरी ज़िंदगी के सबसे खूबसूरत पल रहे।”
Riya की आँखें भी भर आईं—
“मेरे लिए भी, Arjun। मैंने कभी सोचा नहीं था कि तुम्हारे साथ इतना वक्त बिताने को मिलेगा।
मुझे नहीं पता आगे हम साथ होंगे या नहीं…पर ये प्यार और ये सम्मान हमेशा रहेगा।”
Arjun ने नज़रें झुका लीं—“हाँ Riya…”
वातावरण में ख़ामोशी छा गई। Riya बोली—
“अब तुम भी आराम करो, सुबह जल्दी उठना है मुझे छोड़ने के लिए।”
Arjun ने सिर हिलाया, फिर उसके सर पर हाथ फेरा और बोला—
“सो जाओ…Good night।”
Riya की आँखों से आँसू बह निकले।
Arjun घबरा गया—“अरे! तुम रो क्यों रही हो?”
Riya ने आँखें पोंछते हुए कहा—
“पता नहीं…शायद इसलिए कि कल जाना है, तुमसे दूर…”
Arjun की आँखें भी भीग गईं।
Riya हँसते हुए बोली—
“ओहो! लड़के भी रोते हैं? तुम रोते हुए बिलकुल अच्छे नहीं लग रहे हो…चलो अब सो जाओ।”
Arjun ने हल्की मुस्कान दी, फिर उसके माथे पर झुककर चुमा और बोला—
“Good night, Riya…”
---
सुबह की विदाई
सुबह गाँव की सुहानी हवा, पक्षियों की चहचहाहट और नई रोशनी…
Riya तैयार हो गई। Arjun की मम्मी ने उसके साथ मिठाई और कुछ सामान रख दिया—
“बेटा, ध्यान से जाना…और आती रहना इस घर।”
Riya ने भावुक होकर कहा—“हाँ aunty ji…आप भी अपना ख़याल रखना।”
अब Arjun उसे bus stop तक छोड़ने आया।
बस जैसे ही पहुँची, Arjun ने Riya को बैठाया और बोला—
“अपना ध्यान रखना…और पहुँचकर मुझे फोन ज़रूर करना।”
Riya ने सिर हिलाया—“हम्म…”
Arjun खिड़की के बाहर खड़ा उसे देखता रहा।
बस धीरे–धीरे चल पड़ी…
Arjun मुस्कुरा कर हाथ हिला रहा था, पर उसकी आँखें कह रही थीं—
“थोड़ा और रुक जाओ Riya…”
Riya खिड़की से झाँकती रही…
दोनों की आँखें बोल रही थीं, पर होंठ ख़ामोश थे।
बस मोड़ मुड़ी और Arjun की नज़र से Riya ओझल हो गई।
Arjun की आँखों से आँसू बह निकले…
वो वहीं खड़ा रह गया, जैसे उसकी रूह का टुकड़ा उससे जुदा हो गया हो।
और Riya के दिल में बस एक ही आवाज़ गूंज रही थी—
“काश वक्त यहीं थम जाता…”
Part - 8 अगला भाग
रिया अपने शहर पहुँच गई थी।
अर्जुन भी अगले दिन अपने शहर लौट गया था जहाँ वह अपनी पढ़ाई कर रहा था।
दोनों के बीच फिर से बातें शुरू हो गईं।
कभी हँसी-मज़ाक, कभी एक-दूसरे को छेड़ना, तो कभी वे तीन दिन याद करना जो गाँव में उन्होंने साथ बिताए थे।
उन लम्हों को याद करके दोनों के चेहरे खिल उठते थे।
दिन गुजरते जा रहे थे और उनकी बातें पहले से भी ज़्यादा होने लगी थीं।
उन तीन दिनों ने मानो दोनों की ज़िन्दगी में एक नई जगह बना ली थी।
---
कुछ ही दिनों बाद अर्जुन के घर का माहौल अचानक बदलने लगा।
घरवाले अब अर्जुन की शादी की बातें करने लगे थे।
एक दिन अर्जुन की माँ ने फोन पर उससे कहा –
माँ: "अर्जुन, अब तू बड़ा हो गया है। तेरी शादी करनी है। पूजा ने अपने ससुराल में एक बहुत अच्छी लड़की बताई है। सबको पसंद है। तू आकर एक बार देख ले।"
अर्जुन जैसे सन्न रह गया।
उसने झल्लाकर कहा –
अर्जुन: "मम्मी, मुझे अभी शादी नहीं करनी। मुझे पढ़ाई करनी है।"
माँ ने समझाने की कोशिश की –
माँ: "अरे, शादी अभी थोड़ी कर रहे हैं। बस देखना है लड़की को।"
अर्जुन और गुस्से में बोला –
अर्जुन: "मुझे लड़की भी नहीं देखनी है। जब शादी करनी होगी तब देखेंगे।"
तब माँ ने थोड़े सख्त लहजे में कहा –
माँ: "मुझे कुछ नहीं पता। हमने उन्हें बुला लिया है। परसों वे लोग तुझे देखने आ रहे हैं। तुझे आना ही पड़ेगा।"
और फोन रख दिया।
---
अर्जुन का दिल जैसे भारी हो गया।
उसे बस रिया का चेहरा याद आ रहा था।
उसके दिल में यही सवाल था कि अब वह रिया को यह बात कैसे बताए?
वह डर भी रहा था – क्या रिया को बुरा लगेगा? क्या वह उससे दूर हो जाएगी?
---
इसके बाद से अर्जुन की बातें बदल सी गईं।
वह रिया से तो रोज़ बात करता था, लेकिन उसके जवाब फीके और उदास लगते थे।
रिया ने महसूस किया और एक दिन पूछ बैठी –
रिया: "अर्जुन, कुछ बात है क्या? तुम पहले जैसे बातें नहीं कर रहे। अब तुम्हारे जवाबों में वो उत्साह नहीं है।"
अर्जुन ने टालने की कोशिश की –
अर्जुन: "नहीं… ऐसी कोई बात नहीं। तुम्हें बस ऐसा लग रहा होगा।"
रिया ने दृढ़ता से कहा –
रिया: "नहीं अर्जुन, कुछ तो बात है। मुझे छुपाओ मत। अगर मुझसे नहीं कहोगे तो किससे कहोगे? तुम्हें मेरी कसम है, सच-सच बताओ।"
अर्जुन की आँखें भर आईं।
उसने भारी आवाज़ में कहा –
अर्जुन: "हाँ रिया… सच में मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या करूँ।"
रिया घबरा गई –
रिया: "क्या हुआ? साफ-साफ बताओ।"
अर्जुन बोला –
अर्जुन: "परसों मम्मी का फोन आया था। वो लोग मेरी शादी की बात कर रहे हैं… और परसों ही मुझे देखने आ रहे हैं।"
रिया ये सुनकर हैरान रह गई।
उसकी साँस जैसे थम गई…
रिया: "क्या तुम्हारी शादी …?"
अगला भाग
अर्जुन ने भारी मन से रिया से कहा –
अर्जुन: "रिया… मैं परसों जाकर लड़की को देख आया हूँ। लड़की सबको बहुत पसंद आई है। घर में सब कह रहे हैं कि 'यही लड़की ठीक है, हम हाँ करने वाले हैं'। पर मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या करूँ, क्या जवाब दूँ।"
रिया ये सुनकर सन्न रह गई।
उसके होंठ काँपने लगे, आँखों से आँसू झर-झर गिर रहे थे।
वह कुछ बोल ही नहीं पा रही थी।
फिर भी खुद को सँभालकर उसने हिम्मत जुटाई और पूछा –
रिया: "अर्जुन… वो लड़की कैसी थी?"
अर्जुन ने नज़रें झुका लीं –
अर्जुन: "ठीक ही थी… पूजा के परिवार की ही है। मैंने उसे पहले भी देखा है।"
रिया ने गहरी साँस लेकर कहा –
रिया: "अच्छा…"
अर्जुन बेचैन था, जैसे उसके सीने पर कोई भारी पत्थर रख दिया हो।
अर्जुन: "रिया, मुझे सच में कुछ समझ नहीं आ रहा है। मैं मम्मी को मना भी कर चुका हूँ, पर उनका कहना है कि ये रिश्ता बहुत अच्छा है। और अब वो मानने को तैयार ही नहीं हैं।"
रिया के दिल में तूफ़ान मचा हुआ था, पर उसने काँपती आवाज़ में कहा –
रिया: "कोई बात नहीं अर्जुन… अगर लड़की सच में अच्छी है तो तुम हाँ कर दो।"
ये कहते हुए रिया का गला भर आया।
उसके शब्द काँप रहे थे, जैसे वह जानती हो कि आज नहीं तो कल ये होना ही था…
अर्जुन ने उसकी आँखों में गहराई से देखा –
अर्जुन: "रिया, मुझे पता है… तुम ये सब बहुत हिम्मत करके कह रही हो। पर मैं ये नहीं कर सकता। मेरे लिए तो सिर्फ़ तुम ही हो।"
रिया फूट-फूटकर रो पड़ी।
रिया: "अर्जुन… सच मानो, मुझसे शादी होने से रही। ना मैं अपने घरवालों को मना पाऊँगी, ना तुम अपने। हमारे परिवार… हमारी दुनिया… सब बिल्कुल अलग हैं। कोई इसे स्वीकार नहीं करेगा।"
अर्जुन चुपचाप उसकी बातें सुन रहा था, उसके दिल को चीरते हुए हर शब्द अंदर धँस रहा था।
रिया ने रोते-रोते कहा –
रिया: "मेरी बात मान लो अर्जुन। तुम हाँ कर दो। पूजा ने लड़की बताई है… तो ज़रूर बहुत अच्छी होगी। तुम्हें खुश रखेगी।"
अर्जुन ने आँसुओं से भीगी आँखों से कहा –
अर्जुन: "पर रिया… मेरे लिए तो सिर्फ़ तुम ही हो।"
रिया ने सिसकते हुए जवाब दिया –
रिया: "प्यार सिर्फ़ एहसास होता है अर्जुन… लेकिन ज़िन्दगी चलाने के लिए हमें समझौते करने पड़ते हैं। और यही सच्चाई है।"
अर्जुन के पास कोई जवाब नहीं था।
एक तरफ़ उसका दिल रिया से चिपका हुआ था, दूसरी तरफ़ परिवार का बोझ उसके कंधों पर था।
आख़िरकार…
रिया की बातों और परिवार के भारी दबाव के बीच अर्जुन टूट गया।
उसने लंबी चुप्पी के बाद कहा –
अर्जुन: "ठीक है… अगर तुम यही चाहती हो… तो मैं हाँ कर देता हूँ।"
उसकी आवाज़ टूटी हुई थी, आँखें नम थीं।
रिया ने फोन काट दिया… और घंटों तक अकेले बैठी रोती रही।
अर्जुन और रिया दोनों जानते थे कि उनका प्यार सच्चा था… पर हालात और परिवार की दीवारें उससे भी ऊँची थीं।
कुछ ही दिनों बाद अर्जुन ने रिया को मैसेज किया –
"रिया… आज मेरा रोका हो गया।"
रिया पल भर को सन्न रह गई। उसने फोन को कुछ देर तक देखा, मानो शब्द उसके गले में अटक गए हों। फिर खुद को सँभालते हुए उसने लिखा –
"बधाई हो अर्जुन… तुम्हें बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।"
उसके दिल में तूफ़ान उठ रहा था, पर चेहरे पर मुस्कान और शब्दों में केवल दुआएँ थीं।
दोनों फिर भी कुछ समय तक बातें करते रहे। पुराने किस्से, हँसी-मज़ाक, यादें—सब वैसा ही था। पर अब उनकी बातों में एक हल्की-सी दूरी महसूस होने लगी थी।
न तो रिया कुछ कह पा रही थी, न अर्जुन। बस दोनों ही जानते थे कि वक्त धीरे-धीरे बदल रहा है।
फिर भी… उनके दिल में एक-दूसरे के लिए प्यार और सम्मान जरा भी कम नहीं हुआ था।
ना ही अर्जुन ने कभी रिया को दोष दिया, ना ही रिया ने अर्जुन को।
दोनों अब भी एक-दूसरे से उसी अपनापन और कोमलता से बात करते जैसे पहले किया करते थे।
कुछ दिन बाद रिया ने धीरे से पूछा –
"अर्जुन… तुम मुझसे तो अब भी बात करते हो… पर उस लड़की से, जिससे तुम्हारा रिश्ता तय हुआ है, क्या तुम उससे बात करते हो?"
अर्जुन ने बिना झिझक कहा –
"नहीं।"
रिया ने कहा –
"क्यों? करनी चाहिए अर्जुन… ये ठीक नहीं है। आखिर वो तुम्हारी होने वाली पत्नी है। उसकी भी इच्छाएँ होंगी, उम्मीदें होंगी। तुम्हें उससे बात करनी चाहिए।"
अर्जुन ने ठंडी साँस भरते हुए कहा –
"नहीं रिया… मुझे नहीं करनी।"
रिया ने समझाते हुए कहा –
"लेकिन अर्जुन… करनी तो पड़ेगी।"
अर्जुन की आँखें भीग गईं। उसने कहा –
"प्लीज़ रिया… मुझे मजबूर मत करो।
शादी के बाद तो वैसे भी मुझे उसी के साथ रहना होगा, पूरी ज़िंदगी बात करनी होगी। मुझे कम से कम ये कुछ दिन तुम्हारे साथ अपने मन की तरह जी लेने दो… मुझे रहने दो जैसे मैं हूँ।"
रिया चुप हो गई। उसके पास इस तड़पते हुए दिल के सामने कोई शब्द नहीं थे। उसने बस धीरे से कहा –
"ठीक है अर्जुन… जैसा तुम ठीक समझो।"
धीरे-धीरे समय अपनी चाल चलता गया।
बातें अब उतनी लंबी नहीं होती थीं। कभी घंटों बातें करने वाले अब चुप्पियों में भी साथ तलाशते।
लग रहा था जैसे दोनों ही अपने रिश्ते को किनारे की ओर ले जाना चाहते हों, पर कोई भी उस किनारे तक जाने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था।
8-10 महीने इसी तरह बीत गए।
और फिर वह दिन भी आ गया जब अर्जुन के घर में शादी की तारीख़ तय की जाने लगी।
घरवाले तैयारी में डूब गए थे… और अर्जुन व रिया दोनों ही चुपचाप उस लहर में बह रहे थे, जहाँ उनका दिल होना ही नहीं चाहता था।
Part - 9
कुछ ही दिनों में अर्जुन की शादी की तारीख तय हो गई – 16 फ़रवरी।
रिया को यह ख़बर खुद अर्जुन ने मैसेज करके दी –
“रिया… मेरी शादी 16th फ़रवरी को है। तुम ज़रूर आना।”
रिया ने काँपते हाथों से जवाब लिखा –
“बधाई हो अर्जुन… मैं कोशिश करूँगी आने की।”
अर्जुन ने ज़िद की –
“कोशिश नहीं, रिया… तुम्हें आना ही होगा।”
रिया चुप रही। दिल में हज़ार तूफ़ान थे पर शब्द बस इतने ही निकले –
“ठीक है, देखती हूँ।”
फिर दोनों अपनी-अपनी ज़िंदगी में व्यस्त हो गए।
रिया अपनी नौकरी में डूबने लगी, खुद को भूलाने की कोशिश में।
और अर्जुन… अपने घर-परिवार की शादी की तैयारियों में।
Part -10
फ़रवरी का महीना आ गया।
रिया बार-बार सोचती –
“जाऊँ या ना जाऊँ? अगर गई… तो क्या मैं सह पाऊँगी अर्जुन को किसी और का दूल्हा बनते देखना?”
पर फिर उसने खुद को समझाया –
“नहीं… जाना चाहिए। अर्जुन ने हमेशा मुझे सम्मान दिया है, सच्चा प्यार दिया है। उसने कभी कोई दावा नहीं किया मुझ पर। उसकी शादी का दिन है, मैं उसके लिए खुश क्यों न रहूँ? चाहे दिल टूट जाए… पर इस दिन उसे अकेला महसूस नहीं होने दूँगी।”
आख़िर उसने तय कर लिया – वह जाएगी।
उसने ऑफिस से छुट्टी ली, और बस एक दिन रुकने का मन बनाया।
---
15 तारीख़ को रिया गाँव पहुँची।
अर्जुन को पता ही नहीं था कि वह आने वाली है। वह तो मान चुका था कि रिया शायद न आए।
रिया ने पहुँचकर अर्जुन की कज़िन को फोन किया –
“भाईया… मुझे बस स्टॉप से ले लो।”
अर्जुन की कज़िन उसे रिसॉर्ट ले आई, जहाँ शादी का माहौल चल रहा था।
जैसे ही रिया ने रिसॉर्ट में कदम रखा… सामने से अर्जुन की नज़र उस पर पड़ी।
क्षण भर में अर्जुन की आँखें चमक उठीं। वह भीड़ को चीरता हुआ भागकर रिया के पास आया… और बिना कुछ सोचे-समझे उसे सबके सामने गले से लगा लिया।
रिया हैरान रह गई।
पूरा परिवार देख रहा था… पर अर्जुन की परवाह नहीं थी।
उसका यही बेपरवाह, जिंदादिल रूप देखकर ही तो रिया पहली बार उससे प्रभावित हुई थी।
और आज, अपनी शादी के दिन, उसी रूप को देखकर उसका दिल फिर से भर आया।
अर्जुन ने उसका हाथ पकड़ा और अंदर ले गया।
फोटो खिंचवाई, खाना खिलाया, और बोला –
“इतनी देर से क्यों आई? अब मैं तुम्हारे पास ही बैठूँगा।”
रिया कुछ खा नहीं पा रही थी।
अर्जुन ने खुद मिठाई उठाकर उसके मुँह में डाली।
रिया की आँखें भर आईं… पर उसने आँसू गिरने नहीं दिए।
---
रात को, परिवार के बीच बहाना बनाकर अर्जुन की कज़िन ने रिया को छत पर बुलवाया।
वह वही कज़िन थी, जिसे रिया ने पहली बार अर्जुन के बारे में बताया था।
छत पर सिर्फ़ दो लोग थे – अर्जुन और रिया।
अर्जुन चारपाई पर बैठा था।
जैसे ही रिया पास आई, अर्जुन ने उसका हाथ थामा और धीरे से उसका दामन अपनी ओर खींच लिया।
वह उसकी गोद में सिर रखकर लेट गया।
रिया के गालों पर आँसू ढुलक पड़े। उसने नज़रें फेर लीं।
अर्जुन ने कहा –
“रिया… मेरी तरफ़ देखो।”
रिया ने आँसू पोंछे और उसकी ओर देखा।
अर्जुन बोला –
“मैं बस कुछ देर तुम्हारे पास बैठना चाहता था। और माफ़ी माँगना चाहता था। माफ़ करना रिया… मैं तुम्हें अपना न सका। मैं अपने परिवार को हमारे बारे में बता न सका। मैं तुम्हारे प्यार को नाम न दे सका।”
अर्जुन की आँखें भीग गईं।
रिया ने उसका हाथ दबाकर कहा –
“रोते क्यों हो अर्जुन? इसमें तुम्हारा दोष नहीं है… और मेरा भी नहीं। ये हालात थे, जो हमारे काबू में नहीं थे। हमारे परिवार इतने अलग थे, ये रिश्ता आगे नहीं बढ़ सकता था।
हमने किसी को दुख देने से अच्छा समझा… कि खुद को दूर कर लें। यही सही था।”
कुछ देर खामोशी रही… फिर रिया बोली –
“देखना, तुम्हारी पत्नी तुम्हें मुझसे भी ज़्यादा प्यार करेगी। तुम्हें सम्मान देगी, अपनाएगी। और एक दिन तुम मुझे भूल भी जाओगे।”
अर्जुन ने उठकर उसकी आँखों में देखते हुए कहा –
“नहीं रिया… तुम्हारी जगह कोई नहीं ले सकता।”
रिया मुस्कुराई…
“सब अच्छा होगा अर्जुन। बस तुम खुश रहो… मैं यही चाहती हूँ। अब मैं नीचे चलती हूँ, वरना कोई आ जाएगा।”
वह उठने लगी तो अर्जुन ने उसका हाथ पकड़ लिया।
रिया ने धीरे से कहा –
“अर्जुन… अपनी पत्नी को सारी खुशियाँ देना। उसे अपना सारा प्यार देना।
और मुझे… अपनी अच्छी दोस्त की तरह याद रखना।
प्यार न सही… शादी न सही… पर दोस्त तो हम हमेशा रहेंगे।
मेरे मन में तुम्हारे लिए हमेशा सम्मान रहेगा। जब भी कोई मुझसे सच्चे प्यार की मिसाल माँगेगा… तो मेरी ज़ुबान पर सिर्फ़ एक नाम होगा – अर्जुन।”
अर्जुन ने उसकी आँखों में देखा… और रिया ने आँसू रोकते हुए कदम बढ़ा दिए।
वह नीचे चली गई… और वहीं उनकी कहानी अधूरी होकर भी पूरी हो गई।
क्योंकि ज़रूरी नहीं कि हर प्यार का अंत शादी से ही हो।
कुछ प्रेम कहानियाँ अधूरी होकर भी… अपनी जगह अमर हो जाती हैं।
अर्जुन और रिया की तरह।
"अधूरी कहानी"
"अधूरा प्यार भी पूरा होता है"
जिनका प्यार अधूरा रह जाता है,
वो कभी अपने साथी को दोष नहीं देते,
क्योंकि मोहब्बत में कसूर ढूँढना
प्यार की रूह को कमज़ोर कर देता है।
नफ़रत नहीं करते, शिकवा नहीं करते,
बस चुपचाप हालात को समझ लेते हैं।
जानते हैं कि शायद मज़बूरी थी,
कोई दर्द था, कोई बेबसी थी…
इसलिए अपने दिल में उस प्यार को
ज़िंदा रखते हैं हमेशा के लिए।
हर कहानी शिव–पार्वती जैसी नहीं होती,
कुछ रिश्ते राधा–कृष्ण जैसे भी होते हैं…
जहाँ साथ न होकर भी
प्यार अमर हो जाता है।!!!!!!!
Surabhi