The pursuit of knowledge in Hindi Fiction Stories by kaushal singh books and stories PDF | ज्ञान की खोज

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ज्ञान की खोज

अथर्व की आँखें जैसे ही खुलीं, उसने सबसे पहले पेडों की हरी छतरी देखी. ऊपर से आती धूप की किरणें पत्तों के बीच से छनकर उसके चेहरे पर पड रही थीं. रात उसने आग की गर्मी और नदी के ठंडे पानी के सहारे किसी तरह काटी थी. हाँ, वो जिंदा था, लेकिन सवाल अब भी वही था, आगे क्या? उसने मन ही मन कहा, ठीक है, दोस्त, science की किताबें तो बहुत पढ लीं, lab में भी काम कर लिया, लेकिन अब यह असली जंगल है. यहाँ कोई Wi- Fi नहीं, कोई Google नहीं, सिर्फ तू और यह अनजान दुनिया।
धीरे उठा, शरीर अब भी थका हुआ था, लेकिन दिमाग बेचैन था. उसे पता था कि अकेले ज्यादा देर तक नहीं रह सकता. इंसान चाहे कितना भी बडा genius हो, अकेलेपन से जीतना मुश्किल होता है. उसे लोग चाहिए थे. बातचीत चाहिए थी. और शायद, किसी चमत्कार से वापस अपनी दुनिया लौटने का रास्ता. लेकिन यह सोच अब सपने जैसी लग रही थी.
सुबह का वक्त था, हवा हल्की- हल्की ठंडी थी. अथर्व ने नदी के किनारे- किनारे चलना शुरू किया. कदम धीमे थे, लेकिन निगाहें तेज. हर आवाज, हर हलचल पर वो चौकस था. पेड हरे तो थे, पर डरावने भी. पत्तों के पीछे छिपी नजरें जैसे उसका पीछा कर रही हों. जादुई जीव जिन्हें कल रात देखकर उसे अचरज हुआ था, आज कुछ ज्यादा ही खामोश लगे. जैसे किसी अनजान इरादे से उसे देख रहे हों.
चलते- चलते उसे अचानक धुएँ की एक हल्की लकीर नजर आई. वो ठिठक गया. ये धुआँ जादुई नहीं था. ये लकडी जलने का धुआँ था, भूरा और मोटा. उसकी आँखें चमक उठीं. लोग! मतलब इंसान! oh my god, finally! उसने मन ही मन चिल्लाया. धडकन तेज हो गई. उसने तेज कदमों से उस दिशा में बढना शुरू किया. जैसे- जैसे वो आगे बढा, पेडों के बीच से आती आवाजें साफ होती गईं. किसी के हसने की, किसी के बोलने की. कुछ बच्चे शायद खेल रहे थे. और फिर अचानक, सामने से झाडियों के बीच रास्ता खुला और अथर्व की नजर उस पर पडी. एक छोटा- सा गाँव. गाँव बहुत साधारण था, मिट्टी और घास- फूस की बनी झोपडियाँ, चारों तरफ धूल और छोटे खेत. और लोग, हाँ, लोग! कोई खेत में हल चला रहा था, कोई जानवरों को घास खिला रहा था, और कुछ औरतें कपडे सील रही थीं. बच्चों की खिलखिलाहट हवा में घुली थी. यह सब देखकर अथर्व को ऐसा लगा जैसे उसने सोने का खजाना पा लिया हो.
लेकिन जैसे ही वो मैदान में पूरी तरह आया, सबकी नजरें उसकी तरफ घूम गईं. काम रुक गया. हँसी थम गई. हर कोई उसे घूर रहा था. और उस घूरने में दोस्ताना भाव कम, संदेह ज्यादा था. कुछ बच्चों ने अपनी मा के कपडों को पकड लिया. औरतें धीरे- धीरे पीछे हटने लगीं. मर्द सतर्क खडे हो गए.
अथर्व को लगा जैसे वो कोई alien हो. उसने जल्दी से हाथ ऊपर उठाए, शांति का इशारा करते हुए बोला, hello? नमस्ते? उसकी आवाज थोडी काँप रही थी. उसने अंग्रेजी और हिंदी दोनों मिलाकर बोला, मैं. मैं help चाहता हूँ. मैं खो गया हूँ। पर सामने खडे लोगों के चेहरों में खालीपन था. कोई reaction नहीं. जैसे उन्होंने उसकी आवाज तो सुनी, लेकिन समझे नहीं. तभी, भीड को चीरते हुए एक बूढा आदमी आगे आया. चेहरा गंभीर था, हाथों में मोटा लकडी का भाला. आँखें तेज. वो अथर्व को ऊपर से नीचे तक परख रहा था. अथर्व ने एक बार फिर कोशिश की. धीरे- धीरे बोला, मैं, खो गया, मदद चाहिए। उसने अपनी ओर इशारा किया, फिर इधर- उधर confusion का इशारा किया.
बूढे ने उसकी भाषा में कुछ बुदबुदाया, जो अथर्व के लिए बिल्कुल अनजान थी. अथर्व ने माथे पर हाथ मारा. बस यही बाकी था. यहाँ की भाषा भी अलग है. वाह भाई वाह, पूरी problem पैकेज!
वो वहीं खडा रहा, सोच रहा था कि अब क्या करे. तभी उसकी नजर उनके खेतों पर गई. छोटे- छोटे टुकडों में फैले खेत, बंजर जैसी हालत. लोग हल चला रहे थे, लेकिन उनके औजार इतने पुराने थे कि मुश्किल से मिट्टी खुरच पा रहे थे. उनकी मेंहनत साफ दिख रही थी, पर नतीजा बहुत कम. अथर्व के दिमाग में अचानक बिजली सी कौंधी. ठहरो, दोस्त, भाषा की दिक्कत है, लेकिन काम की भाषा तो universal है. अगर मैं इन्हें दिखा दूँ कि मैं काम का आदमी हूँ, तो ये मुझे जरूर अपनाएँगे. और यही मेरा entry pass होगा इस society में।
उसने तुरंत उनके हल की ओर इशारा किया और हाथ से धार करने का इशारा किया. फिर मिट्टी में डंडे से कुछ आकृतियाँ बनाकर दिखाने लगा कि कैसे हल को और असरदार बनाया जा सकता है. लोग उसे घूर रहे थे, कुछ समझने की कोशिश कर रहे थे. बूढे आदमी ने आँखें छोटी कीं, जैसे अब भी भरोसा नहीं हो रहा हो. अथर्व ने सोचा, ये मेरी परीक्षा है. या तो पास हो जाऊँ और इनके बीच जगह बना लूँ, या फिर fail होकर वापस जंगल में अकेला नाचूँ। उसने गहरी साँस ली और पूरे confidence से उनके सामने खडा हो गया. धीरे- धीरे बच्चे फुसफुसाने लगे. औरतें एक- दूसरे की तरफ देखने लगीं. मर्द अब भी सतर्क थे, लेकिन उनकी आँखों में जिज्ञासा आ चुकी थी. शायद यह अंजान आदमी सच में कुछ कर सकता है. अथर्व ने हल पकडने की कोशिश की. गाँव वाले पहले तो पीछे हटे, पर फिर बूढे ने इशारे से अनुमति दी. हल भारी था, हाथों में छाले पड सकते थे, लेकिन अथर्व ने कसकर पकड लिया. उसने खेत की मिट्टी में उसे चलाने की कोशिश की, और फिर कुछ नया प्रयोग करके दिखाया, हल के नोक पर एक अलग कोण से दबाव डालकर मिट्टी को गहराई तक काटना.
लोगों की आँखें फैल गईं. कुछ ने आश्चर्य से एक- दूसरे की ओर देखा. बच्चे खुशी से चिल्लाने लगे. बूढा आदमी हल्का सा आगे झुका, जैसे मान गया हो कि यह आदमी कुछ अलग जानता है. अथर्व के होंठों पर मुस्कान आ गई. उसने हल छोडकर मिट्टी पर इशारा किया, फिर अपनी ओर इशारा किया, जैसे कह रहा हो" देखा? मैं मदद कर सकता हूँ।
गाँव वाले अब खुलकर बातें करने लगे. उनकी भाषा अब भी अनजान थी, लेकिन उनके भाव चेहरे पर साफ थे. उत्सुकता, थोडी- सी उम्मीद, और शायद भरोसे की हल्की शुरुआत. अथर्व के दिल में राहत की लहर दौड गई. जंगल में जिंदा रहना एक जंग थी, पर लोगों का दिल जीतना कहीं ज्यादा बडी जंग थी. उसने सोचा, ठीक है, नया chapter शुरू. अब देखना है कि यह कहानी मुझे कहाँ ले जाती है। और इसी सोच के साथ, उसे पहली बार लगा कि वह सच में इस दुनिया का हिस्सा है.