mere Sapno ki udan in Hindi Motivational Stories by Ayush y books and stories PDF | मेरे सपनों की उड़ान

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मेरे सपनों की उड़ान



कहानी: "सपनों का सफ़र"

रामू एक छोटे से गाँव का लड़का था। उसका परिवार बहुत गरीब था। पिता खेतों में मजदूरी करते और माँ दूसरों के घरों में बर्तन मांजती थी। घर की हालत इतनी कमजोर थी कि पढ़ाई करना उसके लिए लगभग नामुमकिन लगता था। लेकिन रामू के दिल में एक सपना था—वह बड़ा होकर इंजीनियर बनेगा और अपने गाँव के बच्चों के लिए एक स्कूल बनाएगा।

हर सुबह जब सूरज निकलता, रामू अपने पिता के साथ खेतों में जाता। वहाँ वह मजदूरी में हाथ तो बँटाता, लेकिन साथ ही मिट्टी पर लकड़ी से गणित के सवाल हल करता। कई बार गाँव के लोग हँसते, "इतना पढ़कर क्या करेगा? पेट तो खेत में काम करके ही भरेगा।" पर रामू उनकी बातों पर ध्यान नहीं देता। वह जानता था कि सपनों का रास्ता कठिनाइयों से ही गुजरता है।

गाँव में सिर्फ पाँचवी तक का स्कूल था। आगे की पढ़ाई के लिए उसे शहर जाना पड़ता। लेकिन फीस और किताबों के पैसे कहाँ से आते? रामू ने हार नहीं मानी। उसने गाँव के मेले में गुब्बारे बेचना शुरू किया। कभी-कभी खेतों से सब्ज़ियाँ तोड़कर बाज़ार में बेचता। जो भी पैसे बचते, वह किताबें खरीदता और रात को लालटेन की रोशनी में पढ़ाई करता।

दिन, हफ़्ते और महीने बीतते गए। उसकी मेहनत रंग लाई। उसने दसवीं कक्षा अच्छे अंकों से पास की। अब कॉलेज का सपना और भी बड़ा लगने लगा। लेकिन चुनौतियाँ भी उतनी ही बड़ी थीं। रामू शहर जाकर छोटे-छोटे काम करता—कभी चाय की दुकान पर, कभी निर्माण स्थल पर। जो भी पैसे मिलते, उससे अपनी पढ़ाई पूरी करता।

कई सालों की कठिनाई के बाद आखिरकार वह इंजीनियर बन गया। जिस दिन उसे नौकरी का पहला पत्र मिला, उसकी आँखों में आँसू थे। उसने माँ-बाप के पैरों को छूकर कहा—“ये सफलता मेरी नहीं, आपकी मेहनत का फल है।”

रामू शहर में नौकरी करने लगा, लेकिन उसने गाँव को कभी नहीं भुलाया। कुछ साल बाद जब उसके पास पर्याप्त पैसा हुआ, तो वह अपने गाँव लौटा और वहाँ एक सुंदर स्कूल बनवाया। जब बच्चे नए स्कूल में पढ़ने आए, उनकी आँखों में वही चमक थी जो कभी रामू की आँखों में थी।

गाँव वाले, जो कभी उसका मज़ाक उड़ाते थे, आज उसे गर्व से देखते थे। वह जान गए थे कि इंसान की मेहनत और विश्वास ही उसकी असली ताकत है।

लेकिन रामू की कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। उसने सिर्फ स्कूल ही नहीं, बल्कि गाँव में एक छोटी सी लाइब्रेरी और कंप्यूटर सेंटर भी शुरू कराया। उसका मानना था कि आज की दुनिया में शिक्षा तभी पूरी होती है जब बच्चों को किताबों के साथ तकनीक भी मिले।

धीरे-धीरे गाँव के बच्चे प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल होने लगे। कई लड़कियाँ, जो पहले पढ़ाई छोड़ देती थीं, अब आत्मविश्वास के साथ कॉलेज जाने लगीं। गाँव में पहले जहाँ लोग शहर की ओर भागते थे, अब वहाँ से बच्चे पढ़-लिखकर बड़े-बड़े पदों पर पहुँचने लगे।

रामू जब भी गाँव आता, बच्चे उसे घेर लेते। वह उन्हें कहानियाँ सुनाता और यह समझाता कि गरीबी कभी रुकावट नहीं होती, असली ताकत मेहनत और विश्वास है।

एक दिन गाँव का वही आदमी, जिसने बचपन में रामू से कहा था कि पढ़ाई से पेट नहीं भरता, उसके पास आया। उसकी आँखों में आँसू थे। उसने कहा, “बेटा, मैंने तुझे रोकने की कोशिश की थी। लेकिन तूने हमें साबित कर दिया कि सपनों की उड़ान गरीबी से भी ऊँची होती है।”

रामू मुस्कुराया और बोला—“चाचा, अगर मैं हार मान लेता तो आज मैं भी यहीं खेतों में काम कर रहा होता। लेकिन मैंने ठान लिया था कि गरीबी मेरी किस्मत तय नहीं करेगी।”

आज उसका गाँव “शिक्षा गाँव” के नाम से जाना जाता है। लोग दूर-दूर से आते और देखते कि कैसे एक गरीब लड़के ने अपनी मेहनत से पूरे गाँव का भविष्य बदल दिया।

रामू ने सबको यह सिखाया कि हालात कितने भी कठिन क्यों न हों, अगर सपनों को पाने की ज़िद और हौसला हो, तो कोई भी मंज़िल दूर नहीं।